खतरे में मंत्री..?

4 कार्यकाल में 33 मंत्री हारे: सबसे ज्यादा 13 पिछले चुनाव में …

हर चुनाव में हार जाते माननीय …

भोपाल. प्रदेश में चार माह बाद विधानसभा चुनाव होना है। इसके लिए सभी 230 विधायकों सहित दर्जनों दावेदार जुटे हैं। दावेदारियों के बीच सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा सरकार के मंत्रियों की है। जनता की बेशुमार अपेक्षाओं के कारण वे सबसे ज्यादा संकट में हैं। ज्यादा वजनदारी के कारण उनकी घेराबंदी भी ज्यादा है। प्रदेश का पिछले चुनावी रिकार्ड में भी साफ है कि हर चुनाव में कई मंत्रियों की हार हुई है।

पिछले तीन विधानसभा और एक जंबो-उपचुनाव में 33 मंत्री चुनाव हारे थे। सिर्फ तीन विधानसभा चुनाव में ही 30 मंत्री हार गए थे। 2018 में सबसे ज्यादा 13 मंत्री हारे। फिर उपचुनाव में भी 3 मंत्री दोबारा विधानसभा नहीं पहुंच सके। चार कार्यकाल में औसत 33% विधायक जीत नहीं सके। इस बार सरकार के 30 मंत्री फिर चुनौती की दहलीज पर हैं। भाजपा में सत्ता-संगठन उनकी परफॉर्मेंस रिपोर्ट चेक कर रहे हैं। दो सर्वे हो चुके हैं।

अब तक हुए सर्वे और फीडबैक में कुछ मंत्रियों की छवि खराब आ रही है। कुछ मंत्रियों की परफॉर्मेंस भी खराब आई है। उनके टिकट पर विचार-विमर्श किया जा रहा है। ऐसे में कितने मंत्रियों को टिकट मिलेगा, कितने जीतेंगे, यह बड़ा सवाल है। 2008 से अब तक मंत्रियों की जीत और हार के समीकरण बतलाती रिपोर्ट…।

2018 के चुनाव में भाजपा को 109 सीटें मिली थीं। सरकार बनाने के लिए 116 सीटों की जरूरत थी। लेकिन पार्टी के 13 मंत्री हार गए थे। अर्चना चिटनीस, जयभान सिंह पवैया, उमाशंकर गुप्ता, जयंत मलैया, लाल सिंह आर्य जैसे कद्दावर मंत्री तक हारे। इस हार ने समीकरण बदल दिए और भाजपा सत्ता से दूर हो गई। इस बार 1-1 सीट महत्वपूर्ण है। ऐसे में अब मंत्रियों के मामले में भी फूंक-फूंकर कदम रखने की तैयारी है।

मंत्रियों को टिकट मिलना तय नहीं है। 2018 में भाजपा ने 5 मंत्रियों के टिकट काटे थे। पहले भी चुनावों में 3-3 टिकट काटे। अब एक दर्जन मंत्री टिकट की जद्दोजहद में हैं। किसी के लिए उम्र का पैमाना तो किसी के परफॉर्मेंस और किसी की निगेटिव रिपोर्ट अडंगा डाल रही है। पार्टी उम्र के पैमाने के साथ पीढ़ी परिवर्तन का फार्मूला ला रही है। इसलिए इस बार टिकट चुनौतीपूर्ण है।

मंत्रियों की हार की प्रमुख वजह….

● क्षेत्र की जरूरतें पूरी नहीं कर पाना।

● जनता, पार्टी, सरकार की अपेक्षाएं पूरी न करना।

● भ्रष्टाचार और अन्य गड़बड़ियों में घिरना।

● अहंकार, जनता-कार्यकर्ता की नहीं सुनना।

● क्षेत्र में निष्क्रियता और पकड़ कमजोर होना।

● भितरघात में घिरना, समीकरणों में कमजोर पड़ना।

सिर्फ तीन विधानसभा चुनाव में ही भाजपा सरकार के 30 मंत्री हारे ….

कितने मंत्री लड़े व जीते ….

13 मंत्रियों की हार से दूर हुई सत्ता

वर्ष जीते हारे2020 09 03 2018 14 13 2013 21 09 2008 22 08 …

यह पहलू भी… टिकट काटना जीत की गांरटी नहीं …

2008 08 मंत्री हारे हिम्मत कोठारी, कुसुम महदेले, गौरीशंकर शेजवार, चौधरी चंद्रभान सिंह, रमाकांत तिवारी, रूस्तम सिंह, अखंडप्रताप सिंह और निर्मला भूरिया।

टिकट काटना जीत की गारंटी नहीं है। 2018 चुनाव में जो 5 टिकट काटे, उसमें दो सांची व ग्वालियर पूर्व भाजपा हारी। सांची में गौरीशंकर शेजवार का टिकट बेटे मुदित को दिया। माया सिंह, हर्ष सिंह, सूर्यप्रकाश मीणा का टिकट कटा। लक्ष्मीकांत शर्मा की जगह अगली बार भाई उमाकांत को टिकट मिला।

जीत ही दिग्गज बनाती, वरना हाशिये पर बड़े-बड़े ….

कभी कद्दावर माने जाने वाले हिम्मत कोठारी मंत्री रहते हारने के बाद सियासत में हाशिये पर चले गए। ऐसे कई उदाहरण हैं।

मंत्री रहते लगातार जीतने से नरोत्तम मिश्रा, गोपाल भार्गव सहित अन्य नेता कद्दावर बनकर उभरे। ऐसे भी कई उदाहरण हैं।

जीत ही दिग्गज बनाती, वरना हाशिये पर बड़े-बड़े

कभी कद्दावर माने जाने वाले हिम्मत कोठारी मंत्री रहते हारने के बाद सियासत में हाशिये पर चले गए। ऐसे कई उदाहरण हैं।

मंत्री रहते लगातार जीतने से नरोत्तम मिश्रा, गोपाल भार्गव सहित अन्य नेता कद्दावर बनकर उभरे। ऐसे भी कई उदाहरण हैं।

 

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