3 महीने से क्यों जल रहा मणिपुर?
मणिपुर के वायरल वीडियो से गुस्से में देश, 3 महीने से क्यों जल रहा मणिपुर? क्या बिरेन सरकार फेल हो चुकी है?
मणिपुर लगातार जल रहा है. 100 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है, 300 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हैं. महीनों से इंटरनेट बंद है. सुरक्षा बलों पर सामुदायिक गुटों की सेनाएं भारी पड़ रही हैं. सरकार के लोग खुद सुरक्षित नहीं हैं. सरकार आखिर कर क्या रही है?
दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर सड़क पर घुमाने वाला वीडियो वायरल होते ही मणिपुर हिंसा पर अब पूरे देश की निगाहें हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद इस घटना पर अपनी पीड़ा व्यक्त की है. देश के मुख्य न्यायाधीश ने भी मामले का संज्ञान लिया है. पर सवाल उठता है कि इस तरह की घटना अगर ढाई महीने पहले हुई थी तो सरकार अब तक क्या कर रही थी. क्या ऐसा संभव नहीं है कि इस तरह की और भी कई घटनाएं हुईं होंगी?
मणिपुर की वर्तमान बिरेन सरकार का नियंत्रण सरकार पर पूरी तरह खत्म हो चुका है. ये चार कारण इसकी गवाही देते हैं.
मणिपुर की कुकी लड़कियों के वीडियो वायरल होने के बाद जब पीएम और सीजेआई तक ने गहरा दुख जताया है, कानून व्यवस्था के लिए शर्मिंदगी बताया है. ऐसे समय में सीएम बिरेन सिंह का यह कहना कि ऐसी सैकड़ों एफआईआर दर्ज होती रहती हैं. वीडियो आया तो तुरंत संज्ञान लिया गया है. इसे घटना के प्रति एक जिम्मेदार शख्स की असंवेदनशीलता ही दिखती है. पूरे राज्य में अब तक 100 से अधिक निर्दोंष लोगों की जान जा चुकी है. 300 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हैं. सैकड़ों लोगों के घर जला दिए गए हैं. करीब 50 हजार लोग शिविरों में रहने को मजबूर हैं. गांवों में सशस्त्र हमले होते हैं , लोगों के घर फूंक दिए जाते हैं. लोगों को कतार में खड़ाकर गोली मार दी जाती है. मंत्रियों के घर जलाए दिए जाते हैं. कुकी और मैतेई लोगों के इलाके में जाने वाले लोगों की निजी सेनाएं तलाशी लेती हैं. ये उदाहरण हैं कि यहां सरकार खत्म हो चुकी है.
कुकी इलाके में मैतेई लोग और मैतेई इलाके में कुकी लोग अगर चले गए तो जिंदगी दांव पर है. स्थानीय पुलिस, सशस्त्र अर्ध सैनिक बल बंदूकों के बल पर शांति स्थापित करने में असफल हैं. 16 में से 11 जिलों में लगातार कर्फ्यू लगा हुआ है. एक ऐसे राज्य का मुख्यमंत्री इतनी बड़ी घटना को इस तरह बयान देता है जैसे कुछ हुआ ही न हो. सीएम ने अपने राज्य के दूसरे समुदायों और दूसरी पार्टी के नेताओं से मिलकर बातचीत न करने का आरोप लगता रहा है. प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जिन्होंने करीब 15 साल प्रदेश की बागडोर संभाली उनसे मिलने के लिए बिरेन सिंह के पास केवल 7 मिनट का समय दिया. कुकी नेताओं यहां तक मैतेई और बीजेपी नेताओं से भी दूरी बनाए रखने का बिरेन सिंह पर गंभीर आरोप लगता रहा है.
2- राज्य में बीजेपी नेताओं के घर और पार्टी दफ्तर सुरक्षित नहीं
जो राज्य अपने ही दल के केंद्रीय मंत्री का घर न बचा सके उस राज्य की कानून व्यवस्था पर उस राज्य के लोगों को क्या भरोसा होगा. केंद्रीय मंत्री आर.के. रंजन सिंह ने खुद अपना घर जलाए जाने की घटना के बाद ये बयान दिया था कि मणिपुर में लॉ एंड ऑर्डर पूरी तरह फेल हो गया है. तो क्या वाकई मणिपुर में सरकार फेल हो चुकी है? मणिपुर की स्थिति बिलकुल साफ है कि वहां पर जो राज्य सरकार है वह स्थिति को संभालने में विफल साबित हुई है.
इतना ही नहीं सुरक्षा बल भी या तो ठीक ढंग से काम नहीं कर पा रहे हैं या उनसे काम ही नहीं लिया जा रहा है. उपद्रवग्रस्त क्षेत्रों में असम राइफल, सेना के जवान, सीआरपीएफ भी हिंसा को रोकने में असफल साबित हुए हैं. राज्य में सभी गुटों के अपने-अपने संगठन हैं और वो अपने-अपने इलाके में अपनी मजबूत स्थिति बनाए हुए हैं. इसमें उनका दोष भी नहीं है. क्योंकि किसी भी गुट को सरकार पर भरोसा नहीं है. प्रदेश में जिनकी सरकार है उन लोगों को खुद अपनी सरकार के बजाय अपने जातिगत गुटों पर ज्यादा भरोसा है. कहने का मतलब राज्य में कोई भी सुरक्षित नहीं महसूस कर रहा है.
3- अविश्वास इतना कि शांति समिति में आने को कोई तैयार नहीं
सरकार का इकबाल खत्म हो चुका है. इसका सबसे बुरा प्रभाव यह हुआ है कि शांति के लिए कौन आगे बढ़े. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सुझाव दिया था शांति समिति बनाने का. इसके तहत सभी समुदाय के नेताओं को शामिल कर आपसी बातचीत, रजामंदी से समस्या के समाधान की कोशिश करनी थी. समिति बनी तो राज्यपाल की अगुआई में कोई आने को तैयार नहीं हुआ. कूकी संगठनों के नेताओं ने कहा कि मुख्यमंत्री वीरेंद्र सिंह को शामिल किया गया है इसलिए इस समिति में शामिल नहीं होंगे. दरअसल राज्य सरकार आरोप लगाती रही है कि कुकी लोग अफीम का अवैध कारोबार करते हैं और वे इस हिंसा जिम्मेदार हैं.
मुख्यमंत्री वीरेंद्र सिंह ने कुकी लोगों के बीच भरोसा जीतने के लिए मिजोरम के मुख्यमंत्री जोराम थांगा से सहयोग मांगा पर बात नहीं बनी. दरअसल बिरेन सरकार दो मुहिम चलाई थी- एक, अफीम की खेती को रोकने के लिए और दूसरे जो लोग बाहर से आकर बस गए उनकी पहचान कर बाहर किया जाए. ये बातें इस तरह फैल गईं कि कुकी लोगों को लगा कि सरकार उनके खिलाफ काम कर रही है उस पर किसी भी तरीके से भरोसा नहीं किया जा सकता.
4-बीजेपी विधायक खुद जताते रहे हैं अपनी सरकार से अंसतोष
गृहमंत्री अमित शाह जून के पहले सप्ताह में जब इंफाल के दौरे पर थे बीजेपी विधायकों का मणिपुर सरकार के खिलाफ असंतोष उसी समय दिखने लगा था. अमित शाह की यात्रा के बाद भी असंतोष कम नहीं हुआ. पार्टी के विधायक अपनी ही सरकार के खिलाफ नई दिल्ली में डेरा डाल लिए. बीजेपी के 9 विधायकों ने प्रधानमंत्री कार्यालय में ज्ञापन सौंपकर प्रदेश नेतृत्व पर ही सवाल खड़े करने में देर नहीं की थी. विधायकों ने बिरेन सरकार पर गंभीर आरोप लगाए थे. पीएमओ को ज्ञापन सौंपने के अगले ही दिन नौ में से आठ विधायकों ने भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष से मिलकर अपनी नाराजगी जाहिर की थी.
सबसे अहम बात यह है कि बिरेन सरकार के खिलाफ झंडा बुलंद करने वाले विधायक पार्टी के कट्टर समर्थक मैतेई समुदाय के ही लोग थे. करम श्याम सिंह, थोकचोम राधेश्याम सिंह, निशिकांत सिंह सपम, ख्वाइरकपम रघुमणि सिंह, एस ब्रोजेन सिंह, टी रोबिंद्रो सिंह, एस राजेन सिंह, एस केबी देवी और वाई राधेश्याम ये सभी मैतेई समुदाय से ही आते हैं.बाद में राज्य के 28 भाजपा विधायको ने दिल्ली में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से भी मुलाकात की थी.