हाईवे के दरिंदे, जिन्होंने दो-दो रुपये के लिए बिछा दी लाशें …
हाईवे के दरिंदे, जिन्होंने दो-दो रुपये के लिए बिछा दी लाशें
उन्हीं दिनों गुड़गांव में अपराध का एक नया और विभत्स रूप भी देखने को मिला. यह रूप सीरियल किलर्स का था. ऐसे सीरियल किलर्स या कहें हाईवे के दरिंदे, जो दो-दो रुपये के लिए लोगों की लाशें बिछा देते थे. क्राइम सीरिज में आज हम उन्हीं सीरियल किलर्स की कहानी लेकर आए हैं.
वह 2000 का दशक था, जब राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे गुड़गांव का ग्लैमर दुनिया भर के उद्योगपतियों के सिर चढ़ कर बोल रहा था. मिलेनियम सिटी के रूप में स्थापित हो रहे इस शहर में फार्चून कंपनियां आने को लालायित थीं. जापानी कंपनी सुजुकी और होंडा ने तो अपनी यूनिटें भी लगा दी थीं, वहीं करीब एक दर्जन अन्य विदेशी कंपनियों की नींव रखी जा रही थी. इसी प्रकार आईटी और बीपीओ कंपनियों के आने से यह शहर साइबर सिटी के रूप में वैश्विक पटल पर कब्जा जमाने की तैयारी में था.
इफको चौक पर बैठकर जुआ खेलते थे
वह साल 2005 की सर्दियों का था. उन दिनों गुड़गांव के सरहौल बार्डर से धारुहेड़ा तक भले ही सैकड़ों की तादात में देशी विदेशी कंपनियां शुरू हो गई थीं, लेकिन इन कंपनियों में कामगारों के आने जाने के लिए कोई ठोस सार्वजनिक परिवहन के इंतजाम नहीं थे. उन दिनों गुड़गांव जयपुर हाईवे पर कुछ निजी मैक्सी कैब चला करती थीं, जो दस रुपये में गुड़गांव के इफको चौक से मानेसर और 15 रुपये में धारुहेड़ा तक पहुंचा देती थी. इन्हीं में से एक मैक्सी कैब मानेसर से लगते बोहड़ाकला गांव के नवयुवकों की थी. चूंकि हाइवे पर सवारियां तो सुबह शाम ही मिला करती थीं, इसलिए ये नवयुवक दिन भर इफको चौक पर बैठकर जुआ खेलते थे और शराब पीते थे. लेकिन उनके इस शौक की पूर्ति मैक्सी कैब के किराए से नहीं हो पाती. ऐसे में इन लोगों ने छोटे मोटे अपराध शुरू कर दिए.
एक सवारी की हत्या कर दी
इधर, बदमाशों ने देखा कि अगले एक सप्ताह तक पुलिस की कोई हरकत नहीं हुई तो इन्होंने फिर एक सवारी को ऐसे ही लूटा और उसकी हत्या कर दी. इस वारदात में बदमाशों को 1400 रुपये, घड़ी और कुछ और सामान मिले थे. इसी प्रकार बदमाशों ने ढाई महीने में 32 हत्याओं को अंजाम दिया. इन 32 लोगों में गुड़गांव में ही स्थापित एक विदेशी कंपनी का अधिकारी भी शामिल है. उन दिनों हरियाणा में मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार थी. वहीं गुड़गांव में पुलिस कमिश्नर एसएस देशवाल हुआ करते थे.
चूंकि विदेशी कंपनी के मैनेजर की हत्या हुई थी, इसलिए मुख्यमंत्री कार्यालय की घंटी बजनी ही थी और बजी भी. इसके बाद सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बड़े तल्ख लहजे में पुलिस कमिश्नर एसएस देशवाल से बात की. सीएम के हड़काने के बाद पुलिस कमिश्नर एसएस देशवाल ने अपने सबसे तेज तर्रार एसीपी सुमित कुमार और सीआईए इंस्पेक्टर संजीव बल्हारा को इस गिरोह के खुलासे की जिम्मेदारी दी. इसके बाद इन दोनों अधिकारियों ने दिन और रात एक कर दिए. पूरी पूरी रात हाईवे पर गुजारी. 2000 से अधिक लोगों से पूछताछ की और फिर मार्च 2006 में इस गैंग को पकड़ लिया.
करीब एक सप्ताह तक भूमिगत रहे
पुलिस ने जब इस गैंग से पूछताछ की तो ऐसे ऐसे खुलासे हुए कि पुलिस के भी रोंगटे खड़े हो गए. पता चला कि इन बदमाशों ने तो 1.75 रुपये के लिए भी हत्याओं को अंजाम दिया है. बदमाशों ने पुलिस की पूछताछ में बताया कि दो वारदातों को अंजाम देने के बाद वह डर गए थे. इसलिए करीब एक सप्ताह तक भूमिगत रहे, लेकिन जब देखा कि पुलिस को उनपर शक नहीं है तो फिर इन्होंने सिलसिलेवार वारदातों को अंजाम देना शुरू कर दिया. वारदात के लिए ये 6 बदमाश बोहड़कला गांव से शाम को चार बजे नहा धोकर निकलते थे.
इसके बाद इफको चौक पर शिकार की तलाश करते थे. बदमाश अपनी मैक्सी कैब में इस प्रकार बैठते थे कि केवल एक सवारी के लिए जगह खाली रहे. फिर जैसे ही सवारी आकर गाड़ी में बैठती, ये लोग आगे ले जाकर चलती गाड़ी में ही लूट लेते और फिर गला घोंट कर हत्या के बाद हाईवे के किनारे डाल कर चले जाते थे. बदमाशों ने बताया कि आम तौर पर वह सप्ताह में एक से दो वारदातों को अंजाम देते थे.
पुलिस की पूछताछ में इन बदमाशों ने बताया था कि लूट के पैसे का वह बंटवारा नहीं करते थे, बल्कि सामूहिक तौर पर उन पैसों का इस्तेमाल शराब व नशे का सामान खरीदने के लिए किया जाता था. इसी प्रकार कुछ पैसा मैक्सी कैब में डीजल व मरम्मत आदि पर भी खर्च होता था.पुलिस ने आवश्यक पूछताछ के बाद इन बदमाशों को कोर्ट में पेश किया, जहां से अब तक सभी मामलों में कोर्ट ने सजा सुना दी है. इनमें से कुछ मामलों में इन्हें 10 साल की जेल, आजीवान कारावास और फांसी की सजा हुई है, लेकिन अभी तक इनमें से किसी को फांसी हुई नहीं है.