महिला के साथ वहशीपन, मणिपुर में हो या बंगाल में, शर्मनाक तो दोनों हैं ..!

बंगाल : महिलाओं से बदसलूकी करने वालों को सज़ा मिलनी चाहिए

महिला के साथ वहशीपन, मणिपुर में हो या बंगाल में, शर्मनाक तो दोनों हैं. मणिपुर में जो हुआ उसकी निंदा सबने की है, करनी भी चाहिए. वहां टकराव दो समुदायों के बीच है, लेकिन बंगाल में जो हुआ, वो राजनीतिक कार्यकर्ताओं के बीच हुई जंग का नतीजा है.

मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके सरेआम सड़क पर घुमाने वाले चार हैवान पकड़ लिए गए. इन चारों को 11 दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया गया. वी़डियो में निर्वस्त्र महिलाओं के आसपास दिख रहे 12 और लड़कों की पहचान हो गई है, इनको पकड़ने के लिए ATS की टीमें लगातार छापेमारी कर रही है. लोग इस घिनौनी हरकत को अंजाम देने वालों को सरेआम फांसी देने की मांग कर रहे हैं.  विरोध में सड़क पर निकली स्थानीय महिलाओं ने उन आरोपियों के घरों में आग लगा दी, जो कल पकड़े गए थे. मणिपुर में अब सरकार थोड़ी हरकत में आई है, लेकिन पश्चिम बंगाल से भी इसी तरह की खबरें आने लगीं. बंगाल में भी महिलाओं के साथ इसी तरह के अत्याचार हुए. पंचायत चुनाव के दौरान महिलाओं की इज्जत तार तार की, लेकिन ये महिलाएं डर के कारण खामोश थीं. मणिपुर का वीडियो सामने आने के बाद इन महिलाओं ने हिम्मत जुटाई और अपनी आप-बीती सुनाई. बताया कि कैसे तृणमूल कांग्रेस के गुंडों ने उन्हें बाल पकड़ कर घसीटा, उनके कपड़े फाड़े, उन्हें गलत तरीके से छुआ और जब वो पुलिस के पास पहुंची तो घर में घुसकर उन्हें पूरे परिवार समेत जान से मारने की धमकी दी गई. बीजेपी सांसद लॉकेट चटर्जी पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के दौरान महिलाओं के साथ किए गए जुल्मों की लिस्ट लेकर आई थीं. लॉकेट चटर्जी ने कहा कि मणिपुर की बेटियों के साथ जो हुआ, उस पर पूरे देश में गुस्सा है, दुख है, अब एक्शन भी हो रहा है, लेकिन क्या बंगाल की बेटियों को सिर्फ इसलिए न्याय नहीं मिलेगा क्योंकि उनके साथ जो हुआ, उसका वीडियो नहीं है? क्या उनको इसलिए इंसाफ नहीं मिलेगा क्योंकि बंगाल में ममता की सरकार है? अपनी बात कहते-कहते लॉकेट चटर्जी रोने लगीं. गौर करने वाली बात ये है कि लॉकेट चटर्जी के पास दर्जनों घटनाओं की लिस्ट थी, लेकिन FIR की कॉपी सिर्फ दो मामलों की थी. इसमें एक बीजेपी की कार्यकर्ता की तरफ से दर्ज कराई गई FIR थी. दूसरी FIR तो तृणमूल कांग्रेस की कार्यकर्ता ने दर्ज कराई थी कि उसके साथ अभद्रता हुई, उसके भी कपड़े फाड़े गए. हैरानी की बात ये है कि जो दो FIR दर्ज हुई, उनमें भी पुलिस को कुछ नहीं मिला. पुलिस ने कह दिया कि इस तरह की कोई घटना नहीं हुई. पहली घटना 8 जुलाई को हुई. तब पंचायत चुनाव हो रहे थे. इल्जाम ये है कि हावड़ा के पांचला इलाके में वोटिंग के दौरान एक पोलिंग बूथ के अंदर बीजेपी कैंडिडेट के साथ बदसलूकी की गई, उसके कपड़े फाड़े गए और तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने उसे निर्वस्त्र करके घुमाया. इस घटना की शिकायत ईमेल के जरिए 13 जुलाई को की गई. पुलिस ने 14 जुलाई को FIR भी दर्ज की, लेकिन पश्चिम बंगाल के डीजीपी मनोज मालवीय ने कह दिया कि पुलिस को  जांच में ऐसा कोई सबूत नहीं मिला कि महिला के साथ बदसलूकी हुई थी. डीजीपी ने कहा, पहली शिकायत घटना के पांच दिन  बाद की गई. दूसरा, पोलिंग बूथ पर सेन्ट्रल फोर्सेज भी तैनात थी, उनकी तरफ से भी इस तरह की किसी घटना की जानकारी नहीं दी गई, तीसरा, पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज चैक किया, उसमें भी कुछ नहीं मिला.चौथा, पुलिस ने आरोप लगाने वाली महिला को चिट्ठी लिखकर जानकारी देने को कहा. अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत बयान दर्ज कराने को कहा, लेकिन महिला ने कोई जबाव नहीं दिया, इसलिए साफ है कि मामला गड़बड़ है.

डीजीपी साहब बड़े अफसर हैं, नियम कानून और हालात सब जानते हैं. पांच दिन के बाद FIR पुलिस ने दर्ज की नहीं, करनी पड़ी क्योंकि ऑनलाइन शिकायत की गई थी. इसलिए FIR दर्ज करना पुलिस की मजबूरी थी. दूसरी बात पुलिस कह रही है कि आरोप लगाने वाली महिला को बयान दर्ज कराने की चिट्ठी भेजी गई थी, लेकिन  वो नहीं आई, ये बात भी गलत है. पुलिस ने चिट्ठी भेजकर अपना फर्ज पूरा कर लिया, महिला डरी हुई थी, पुलिस पर भी उसे भरोसा नहीं था, इसलिए वो थाने नहीं गई, लेकिन अब मणिपुर में महिलाओं के साथ अत्याचार पर जिस तरह से पूरे देश ने पीड़ित महिलाओं का समर्थन किया, तो अब ये महिला भी हिम्मत करके सामने आई है. उसने कैमरे के सामने 8 जुलाई को उसके साथ हुए जुल्म की पूरी दास्तां बताई. ये महिला गरीब परिवार से है, एक झोपड़ी नुमा घर में रहती है. पंचायत चुनाव में बीजेपी ने उसे उम्मीदवार बनाया था, इसलिए वो 8 जुलाई को पोलिंग बूथ में गई थी. उसी वक्त तृणमूल कांग्रेस के लोग आए और उसके साथ मारपीट शुरू कर दी, उसके बाल पकड़कर घसीटा गया. इसके बाद उसके कपड़े फाड़ दिए गए. महिला किसी तरह जान बचाकर उसी हालत में घऱ पहुंची….तो तृणमूल कांग्रेस के गुंडों ने उसके घर पर भी धावा बोला, घर में तोड़फोड़ की और धमकी दी कि अगर वो पुलिस के पास गई तो परिवार का कोई सदस्य जिंदा नहीं बचेगा. डीजीपी ने कह दिया कि महिला के आरोप गलत हैं क्योंकि उसने बयान ही दर्ज नहीं कराए और सीसीटीवी फुटेज से घटना का कोई सबूत नहीं मिला. हकीकत ये है कि 8 जुलाई को तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता हावड़ा जिले में पांचला इलाके के पोलिंग बूथ में जबरन घुसे थे. इसकी तस्वीरें तो हमारे पास हैं..चूंकि रिपोर्टर्स को पोलिंग बूथ के अंदर जाने की इजाजत तो होती नहीं इसलिए बूथ के अंदर जाकर तृणमूल कार्यकर्ताओं ने क्या किया, इसकी तस्वीरें नहीं हैं. जो लोग पोलिंग बूथ के भीतर घुसते दिख रहे हैं, वो उग्र थे, नारेबाजी कर रहे थे, ऐसा लग रहा है कि किसी पर हमले के इरादे से ही भीतर घुसे थे. इसी तरह एक और वीडियो आया है. 11 जुलाई को मतगणना थी, बीजेपी की एक महिला उम्मीदवार केन्द्रीय मंत्री निशीथ प्रमाणिक के पैरों में लिपट कर रोती हुई दिख रही है. उस दिन इस महिला के साथ भी तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने मारपीट की थी, धमकी दी थी. वो चुनाव हार गई लेकिन इसके बावजूद तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने उसके साथ इसलिए बदसलूकी और मारपीट की कि वो बीजेपी का समर्थन क्यों कर रही है. यह महिला इतनी डर गई कि जब निशीथ प्रमाणिक उस इलाके में पहुंचे तो पैर पकड़ कर रोने लगी, कहा कि मुझे बचा लो अब तृणमूल वाले मुझे छोड़ेंगे नहीं, वो धमकी देकर गए हैं. मंत्री के कदमों में गिरकर रो रही ये महिला कूच बिहार की रहने वाली है.

शुक्रवार को कोलकाता में ममता बनर्जी अपनी पार्टी की शहीद रैली को संबोधित कर रही थीं. वहां ममता ने बीजेपी के आरोपों को नाटक बताकर खारिज कर दिया. ममता ने कहा कि बीजेपी ड्रामा कर रही है, जानबूझकर बंगाल को बदनाम कर रही है, ये सब बीजेपी की साजिश है क्योंकि बीजेपी चाहती है कि किसी तरह बंगाल में राष्ट्रपति शासन लग जाए. नोट करने वाली बात ये है कि 21 जुलाई 1993 को वाम मोर्चा के शासन के दौरान कांग्रेस की एक रैली पर पुलिस ने फायरिंग की थी जिसमें 13 कांग्रेसी कार्यकर्ता मारे गए थे. ममता तब कांग्रेस में थी और तब से वो 21 जुलाई को शहीद दिवस मनाती हैं. ममता ने कहा कि मणिपुर से ध्यान हटाने के लिए बीजेपी बंगाल के मामले उठा रही है. किसी निर्दोष महिला को निर्वस्त्र किया जाए, उसकी परेड निकाली जाए,  उसके साथ ज़ुल्म हो, ये किसी भी समाज में हो, किसी भी राज्य में हो,  उतनी ही पीड़ा देता है, समाज को उतना ही शर्मसार करता है. महिला के साथ वहशीपन, मणिपुर में हो या बंगाल में,  शर्मनाक तो दोनों हैं. मणिपुर में जो हुआ उसकी निंदा सबने की है, करनी भी चाहिए. वहां टकराव दो समुदायों के बीच है,  लेकिन बंगाल में जो हुआ, वो राजनीतिक कार्यकर्ताओं के बीच हुई जंग का नतीजा है. वह तृणमूल कांग्रेस के लोगों द्वारा चुनाव में विरोधियों को डराने धमकाने केलिए किया गया. अगर किसी घटना का वीडियो नहीं बना, तस्वीरें नहीं खिंचीं तो उसकी बर्बरता कम नहीं हो जाती.  इस त्रासदी को, इस ज़ुल्म को ममता बनर्जी से ज़्यादा कौन समझ सकता है?  वो तो CPM की गुंडागर्दी के ख़िलाफ़ लड़कर इतनी बड़ी नेता बनीं,  उन्होंने बड़ी हिम्मत के साथ कम्युनिस्टों के अत्याचारों का सामना किया, उनसे लोहा लिया.  अब एक्शन लेने से पहले उनके हाथ इसलिए नहीं रुकने चाहिए कि अपराध करने वाले ममता की पार्टी के कार्यकर्ता हैं.  अब इस बारे में खुलकर बोलने से ममता को सिर्फ़ इसलिए नहीं रुक जाना चाहिए कि इस बार महिला को निर्वस्त्र करने वाले, उसकी परेड करने वाले उनकी पार्टी को चुनाव जिताने के लिए ये सब कर रहे थे. चाहे बिरेन सिंह हों या ममता बनर्जी हों, मैं दोनों को याद दिलाना चाहता हूं, दोनों से कहना चाहता हूं, ” तू इधर उधर की न बात कर, ये बता काफिला क्यों लुटा,  मुझे रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है.”

महिलाओं पर ज़ुल्म के मामले में पार्टियां ‘तेरा-मेरा’ ना करें 

रहबरी का सवाल सिर्फ़ मणिपुर और बंगाल तक सीमित नहीं है. राजस्थान से भी गैंगरेप और बहन-बेटियों पर ज़ुल्म की भयानक ख़बरें आई हैं, लेकिन आजकल सब सेलेक्टिव हो गए हैं. अपराधी ‘तेरा मेरा’ हो गया है. कांग्रेस बंगाल में महिलाओं के साथ हुई बदसलूकी पर खामोश रही और ममता राजस्थान में गैंगरेप और बलात्कार की वारदातों पर चुप रहीं. क्या ये सिर्फ़ इसलिए कि दोनों में नई नई दोस्ती हुई है?  क्या राजनीतिक गठबंधन प्रियंका और ममता को इस बात के लिए मजबूर करता है कि सिर्फ़ मणिपुर पर बोलना है? शुक्रवार को प्रियंका गांधी ने ग्वालियर की अपनी रैली में मणिपुर की घटना का जिक्र किया. कहा कि मणिपुर में महिलाओं पर अत्याचार हो रहा है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 77 दिन से चुप हैं, और जब उन्हें मजबूरी में बोलना पड़ा, तो उसमें भी राजनीति कर दी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ का नाम ले लिया. प्रियंका गांधी ने  करीब 32 मिनट का भाषण दिया. मोदी पर महिलाओं के अपमान पर सियासत का इल्जाम लगाया लेकिन राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हुई घटनाओं पर कुछ नहीं कहा, एक शब्द भी नहीं बोला. असली बात ये है कि सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी, राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे और कांग्रेस के तमाम नेताओं को इस बात पर नाराजगी है कि कानून और व्यवस्था की बात करते हुए प्रधानमंत्री ने राजस्थान और छत्तीसगढ़ का नाम क्यों ले लिया. अशोक गहलोत कह रहे हैं कि राजस्थान में सबसे बेहतर कानून और व्यवस्था है, महिलाओं की सुरक्षा सरकार की प्राथमिकता है, लेकिन अशोक गहलोत को उन्ही की सरकार के मंत्री राजेंद्र गुढ़ा ने आइना दिखा दिया. विधानसभा में खड़े होकर अशोक गहलोत की सरकार के मंत्री राजेन्द्र गुढ़ा ने कह दिया कि राजस्थान विधानसभा में मणिपुर की घटना पर चर्चा करने की बात हो रही जबकि चर्चा तो राजस्थान की कानून और व्यवस्था पर होनी चाहिए, क्योंकि ये सही है कि हमारी सरकार महिलाओं को सुरक्षा देने में असफल रही है. राजेन्द्र गुढ़ा ने जैसे ही ये बात कही, बीजेपी के नेता मेजें थपथपाने लगे.  राजेन्द्र गुढ़ा ने अपने दिल की बात कह दी लेकिन अपनी सरकार के ख़िलाफ़ बयान देने के बाद, जब वह घर पहुंचे तो वो पूर्व मंत्री हो चुके थे. अशोक गहलोत ने उन्हें  मंत्री पद से बर्ख़ास्त कर दिया,  लेकिन राजेन्द्र गुढ़ा ने कहा कि उन्हें मंत्री पद जाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, वो सच बोलते रहेंगे. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने कहा कि राजस्थान में पिछले साढ़े चार साल में 10 लाख से ज्यादा अपराधिक मामले हुए, बलात्कार के मामलों में राजस्थान पूरे भारत में पहले स्थान पर है. राजस्थान में महिलाएं बिल्कुल सुरक्षित नहीं हैं. आपने देखा राजनीति करने वाले चाहे राजस्थान में हों, बंगाल में या मणिपुर में,  सब अपराध और ज्यादती की इन घटनाओं का इस्तेमाल अपने अपने फ़ायदे के लिए करना चाहते हैं.  सबको महिलाओं पर हुए ज़ुल्म से ज़्यादा आने वाले चुनाव की चिंता है . कोई कह रहा है हमने दो दिन में पकड़ लिया, तुमने 70 दिन क्यों लगाए ? कोई कह रहा है कि तुम्हारी अपनी सरकार के मंत्री-विधायक कह रहे हैं कि महिलाओं पर ज़ुल्म हो रहा है,  महिलाएं सुरक्षित नहीं है. किसी ने कहा कि हमारे यहां पुलिस ने कम से कम FIR तो दर्ज की, तुम्हारे यहां तो FIR दर्ज करने के लिए भी मशक्कत करनी पड़ती है.. कोई पुलिस को दोष देगा, कोई विरोधी दलों को झूठा बताएगा, पर सच क्या है, सब जानते हैं. दिल सबका दुखता है, लेकिन, कहने में सेलेक्टिव हैं… सबको मालूम है कि जब भी समाज में टकराव होता है, जब भी राजनीति में जंग होती है, तो सबसे पहले महिलाएं उसका शिकार बनती हैं. महिला को निर्वस्त्र करने वाले, परेड कराने वाले, बलात्कार करने वाले, न तो किसी राजनेता के काम आ सकते हैं और न ही किसी सभ्य समाज का हिस्सा हो सकते हैं. लेकिन कोई इस बात को समझना नहीं चाहता. महिलाओं के ख़िलाफ़ हुए अपराधों पर राजनेता ‘तेरा मेरा’ अपराध देखते हैं

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