‘संजय मिश्रा को छोड़ क्या ईडी के सारे अफसर नाकारा’..!
उस अधिकारी की कहानी, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट में अड़ गई सरकार …
केंद्र सरकार की मिन्नतों के बाद आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने संजय मिश्रा का कार्यकाल बढ़ाने की अनुमति दे दी है। हालांकि जस्टिस बीआर गवई, विक्रम नाथ और संजय करोल की पीठ ने कुछ सख्त कमेंट भी किए। मसलन…
‘जनहित में हम मिश्रा को कुछ समय के लिए डायरेक्टर के रूप में बने रहने की अनुमति दे रहे हैं। 15-16 सितंबर की मध्यरात्रि को मिश्रा ईडी के डायरेक्टर नहीं रहेंगे और भविष्य में किसी भी परिस्थिति में उनके विस्तार के लिए कोई और आवेदन स्वीकार नहीं किया जाएगा।’
‘क्या हम यह छवि पेश नहीं कर रहे हैं कि और कोई नहीं है और पूरा विभाग अयोग्य लोगों से भरा पड़ा है। इससे ऐसा संदेश जाता है कि ईडी के बाकी अफसर नाकारा हैं। इससे बाकी अफसर हताश भी हो सकते हैं।’
‘मान लीजिए कि मैं सीजेआई हूं और मेरे साथ कुछ अनहोनी हो जाए। क्या मेरी गैरमौजूदगी में सुप्रीम कोर्ट या देश की न्यायिक व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी?’
इससे पहले 11 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मिश्रा का कार्यकाल तीसरी बार बढ़ाने का केंद्र का फैसला गैर-कानूनी है। इसके बावजूद सरकार ने देशहित का हवाला देकर 15 अक्टूबर तक कार्यकाल बढ़ाने जाने की मांग की थी।
कौन हैं संजय मिश्रा, जिन्हें ईडी डायरेक्टर बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अड़ गई सरकार?
FATF क्या है, जिसको वजह बनाकर सरकार ने संजय मिश्रा का एक्सटेंशन मांगा
केंद्र सरकार 26 जुलाई को ED के डायरेक्टर संजय कुमार मिश्रा का कार्यकाल बढ़ाने की मांग लेकर फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंची। केंद्र ने अपनी अर्जी में कहा कि फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी FATF की समीक्षा को देखते हुए संजय को 15 अक्टूबर तक पद पर रहने दिया जाए।
जस्टिस गवई ने वजह पूछी तो सॉलीसिटर जनरल ने कहा- ED द्वारा अपने निर्देशों व सुझावों की पालना की FATF समीक्षा कर रही है। मिश्रा 2020 से इस प्रक्रिया में शामिल हैं। जांच प्रणाली की समीक्षा 5 राउंड में होती है। भारत 4 राउंड पूरे कर चुका है। 5वें राउंड में FATF का प्रतिनिधिमंडल 3 हफ्ते के लिए भारत आने वाला है। मिश्रा के समय भारत ने सभी राउंड क्लियर किए हैं। नए अधिकारी के लिए यह प्रक्रिया और जानकारी समझ पाना आसान नहीं होगा। इसलिए उनका पद पर बने रहना जरूरी है।
- फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स, यानी FATF एक इंटरगवर्नमेंटल ऑर्गेनाइजेशन है। इसे G7 देशों की पहल पर 1989 में फ्रांस की राजधानी पेरिस में बनाया गया था।
- 2006 में भारत आब्जर्वर के रूप में FATF में शामिल हुआ। इसके बाद से यह पूर्ण सदस्यता की दिशा में काम कर रहा था। 25 जून 2010 को भारत को FATF के 34वें सदस्य देश के रूप में शामिल किया गया।
- अंतरराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था को साफ-सुथरा बनाए रखना इस एजेंसी का मकसद है। यह अपने सदस्य देशों को टेरर फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग जैसी गतिविधियों में शामिल होने से रोकता है।
- FATF में टेरर फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में दो तरह की कार्रवाई करता है। पहले के तहत वह देशों को ग्रे लिस्ट में डालता है। साथ ही कोई कार्रवाई नहीं कर पाने पर उस देश को ब्लैक लिस्ट कर दिया जाता है।
- ग्रे लिस्ट वाले देशों को किसी भी इंटरनेशनल मॉनेटरी बॉडी यानी IMF, ADB, वर्ल्ड बैंक से कर्ज लेने के पहले बेहद सख्त शर्तों को पूरा करना पड़ता है। ज्यादातर संस्थाएं कर्ज देने में आनाकानी करती हैं। ट्रेड में भी दिक्कत होती है।
- ब्लैक लिस्ट वाले देशों को IMF, ADB, वर्ल्ड बैंक या कोई भी फाइनेंशियल बॉडी आर्थिक मदद नहीं देती। मल्टी नेशनल कंपनियां कारोबार समेट लेती हैं। रेटिंग एजेंसीज निगेटिव लिस्ट में डाल देती हैं।
संजय मिश्राः माइक्रोबायोलॉजिस्ट से सरकार के फेवरेट अधिकारी तक
संजय कुमार मिश्रा का जन्म लखनऊ के मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ। लखनऊ यूनिवर्सिटी से बायोकेमिस्ट्री में M.Sc किया। इसके बाद वह एक सीनियर रिसर्च फेलो के रूप में सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट यानी CDRI में शामिल हो गए। उन्होंने इम्यूनोलॉजी पर कई पेपर लिखे हैं।
साइंस बैकग्राउंड से होने के बावजूद परिवार के कहने पर मिश्रा सिविल सेवा परीक्षा में शामिल हुए। पहले ही प्रयास में सफलता भी मिल गई। साल 1984 में IRS जॉइन किया। पहली पोस्टिंग UP के गोरखपुर में आयकर विभाग में असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में हुई।
सिर्फ 4 साल के अंदर ED पहुंच गए। पहली नियुक्ति असिस्टेंट डायरेक्टर के पद पर हुई और चार्ज आगरा और जयपुर का मिला। उन दिनों ED अब निरस्त हो चुके विदेश मुद्रा विनियमन अधिनियम यानी FERA के तहत सिर्फ विदेशी मुद्रा उल्लंघन के मामलों की जांच करती थी।
जानकार बताते हैं कि इसी कार्यकाल के दौरान मिश्रा को एजेंसी के तौर-तरीके सीखने में मदद मिली। मिश्रा के शुरुआती सालों के सहकर्मियों में से एक बताते हैं कि वह सूक्ष्मदर्शी थे और डिटेलिंग पर ध्यान देते थे। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उनमें सीखने की ललक बहुत ज्यादा थी। उनमें नियमों की अवहेलना किए बिना सहानुभूति रखने की क्षमता भी थी।
इसी दौरान मिश्रा ने 20 लाख रुपए के हवाला लेनदेन की जानकारी मिलने पर जयपुर में छापेमारी की। हालांकि, छापेमारी के दौरान यह पता चला कि संदिग्ध पाकिस्तान के सिंध प्रांत का एक व्यापारी था और उसे धार्मिक उत्पीड़न के कारण देश छोड़ना पड़ा था। हवाला लेन-देन का पैसा ही उसकी सारी संपत्ति थी।
सहकर्मी ने बताया कि मिश्रा को व्यापारी पर बहुत दया आई। चूंकि छापा मारा गया था, इसलिए उन्होंने मामला दर्ज किया, लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ समायोजन किए गए कि संदिग्ध के साथ बहुत कठोर न्याय न किया जाए।
1994 में संजय मिश्रा वापस अपने कैडर आयकर विभाग में आ गए और नौ साल के कार्यकाल के लिए अहमदाबाद में तैनात हुए। इसके बाद वह महाराष्ट्र के कोल्हापुर चले गए और 2006 में दिल्ली वापस आ गए, जहां उन्होंने इंटरनेशनल टैक्सेशन और ट्रांसफर प्राइसिंग का काम संभाला।
पॉलिसी मेकिंग में उनकी एंट्री तब हुई जब उन्हें वित्त मंत्रालय में प्रणब मुखर्जी और बाद में पी चिदंबरम के अधीन संयुक्त सचिव के रूप में नियुक्त किया गया। उनके कुछ सहयोगी उन्हें फ्रांस से लाए गए HSBC दस्तावेजों से खुफिया जानकारी जुटाने का श्रेय देते हैं। इन्ही दस्तावेजों से भारत के बिजनेस घरानों के विदेशों में अकाउंट का खुलासा हुआ।
जब 2014 में BJP सरकार आई तो गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव के रूप में अपने कार्यकाल के एक साल बाद संजय मिश्रा उन 50 वरिष्ठ नौकरशाहों में से थे, जिन्हें मोदी सरकार के शुरुआती महीनों में प्रमुख मंत्रालयों से ट्रांसफर कर दिया गया था।
इसके बाद संजय मिश्रा आयकर विभाग में फिर से वापस आ गए। इस दौरान उन्होंने दो ऐसे मामले उठाए जिन्होंने सरकार का ध्यान खींचा। पहल मामला मीडिया हाउस NDTV के खिलाफ था और दूसरा यंग इंडिया के खिलाफ। यंग इंडिया गांधी परिवार द्वारा संचालित संगठन है जो नेशनल हेराल्ड अखबार का मालिक है।
तब दोनों मामले टैक्स असेसमेंट यानी कर निर्धारण के थे, लेकिन संजय मिश्रा ने उन्हें मुकदमा चलाने योग्य अपराध में बदल दिया। इसके बाद BJP सरकार ने नवंबर 2018 में संजय मिश्रा को ED का प्रमुख बना दिया।
संजय मिश्रा विपक्ष के नेताओं के गले की फांस बने
ED प्रमुख बनते ही मिश्रा लगातार कार्रवाई को अंजाम देने लगे। एजेंसी की कार्रवाइयों ने सरकार के लिए समर्थन बढ़ाया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा’ के वादे को पूरा किया, लेकिन केंद्र पर एजेंसी के जरिए शक्ति का दुरुपयोग करने का आरोप भी लगा।
मिश्रा की देखरेख में ED ने एक्सपर्ट्स, ट्रेंड प्रोफेशनल्स को शामिल किया और यहां तक कि कई हाई-प्रोफाइल मामलों को भी संभाला। यानी पहले जो हाई प्रोफाइल मामले सिर्फ CBI संभालती थी, अब उसकी जगह ED ने ले ली। इसी वजह से कहा जाने लगा कि ED में संजय मिश्रा के आने के बाद यह CBI से भी ज्यादा ताकतवर हो गई।
मिश्रा ने अपने अब तक के पांच साल के कार्यकाल के दौरान कई पूर्व मंत्रियों और शक्तिशाली नेताओं पर शिकंजा कसा है। इस दौरान ED ने 4000 मामले दर्ज किए और 3000 जगहों पर सर्च की है।
विपक्षी दल ED प्रमुख का कार्यकाल बढ़ाने के खिलाफ क्यों हैं
CBI, ED के निदेशकों के लिए 2 साल के अनिवार्य कार्यकाल की व्यवस्था इस वजह से की गई थी ताकि इस पद पर अधिकारी स्वतंत्र, निष्पक्ष और बिना डरे अपना कानूनी कर्तव्य निभा पाएं।
वहीं CBI के निदेशक के दो साल के फिक्स्ड यानी अनिवार्य कार्यकाल की व्यवस्था विनीत नारायण बनाम भारत सरकार के फैसले के बाद की गई थी, जिसे जैन हवाला केस नाम से भी जाना जाता है।
इसके पीछे एक मंशा ये भी थी कि दो साल के कार्यकाल में इस पद पर अधिकारी को निरंतरता मिलेगी और सरकारें अपनी सुविधानुसार उन्हें पद से हटा नहीं पाएंगी। सत्तारूढ़ दल के आलोचकों का आरोप है कि 2014 में जब से मोदी सरकार पहली बार सत्ता में आई, ED और CBI जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों का इस्तेमाल विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने और असहमति की आवाजों को दबाने के लिए किया गया है।
कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला कहते हैं कि मोदी सरकार सत्ता हथियाने और चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने के लिए ED-CBI को गुर्गे के रूप में इस्तेमाल करती है। विपक्षी नेताओं पर ED, CBI की छापेमारी आम बात हो गई है। अब इन्हें 5 साल के कार्यकाल के साथ सशक्त और पुरस्कृत किया जा रहा है, ताकि दुर्भावनापूर्ण अभियोजन का इस्तेमाल असहमति की आवाज को दबाने के लिए किया जा सके।
सुरजेवाला उन याचिकाकर्ताओं में से एक हैं जिन्होंने मिश्रा के बार-बार सेवा विस्तार को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सुरजेवाला के अलावा वकील मनोहर लाल शर्मा, कांग्रेस नेता जया ठाकुर, तृणमूल नेता महुआ मोइत्रा और साकेत गोखले ने अलग-अलग याचिकाओं में मिश्रा को सेवा विस्तार देने के केंद्र के फैसले को चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने संजय मिश्रा के एक्सटेंशन को अवैध क्यों बताया था?
- 19 नवंबर 2018 को केंद्र सरकार ने संजय को दो साल के लिए ED का डायरेक्टर बनाया। 2020 में जब कार्यकाल खत्म होना था, तभी सरकार ने उन्हें एक साल का सेवा विस्तार दे दिया।
- 27 नवंबर 2020 को NGO कॉमन कॉज ने संजय मिश्रा के एक साल के सेवा विस्तार को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 8 सितंबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फैसले को बरकरार रखा, लेकिन निर्देश दिया कि आगे कोई सेवा विस्तार नहीं दिया जाए।
- 14 नवंबर 2021 को केंद्र सरकार दो नए अध्यादेश लाई, जिसके जरिए ED और CBI के डायरेक्टर का कार्यकाल 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है। ये अध्यादेश थे- केंद्रीय सतर्कता आयोग यानी CVC (संशोधन) और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना यानी DSPE (संशोधन) अध्यादेश।
- इसके बाद केंद्र सरकार ने 17 नवंबर 2021 को संजय मिश्रा का कार्यकाल एक साल के लिए और बढ़ा दिया। इस तीसरे एक्सटेंशन के बाद संजय मिश्रा 18 नवंबर 2023 तक के लिए ED के डायरेक्टर रहेंगे।
- कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला, तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा और कई अन्य ने इस एक्सटेंशन के खिलाफ याचिका दायर की। 11 जुलाई 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने ED के डायरेक्टर संजय मिश्रा का तीसरी बार कार्यकाल बढ़ाने के केंद्र के फैसले को अवैध बताया।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार कानून बनाकर कार्यकाल विस्तार कर सकती है, लेकिन अध्यादेश से ऐसा करना वैध नहीं है। साथ ही कहा कि कार्यकाल विस्तार देना सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है। संजय कुमार मिश्रा को 31 जुलाई तक पद छोड़ना होगा।