मंत्रियों की हार में करप्शन एक बड़ा फैक्टर !

क्यों हर बार चुनाव में हार जाते हैं दिग्गज मंत्री? 

विधानसभा चुनाव में इस बार कई मंत्रियों के टिकट काटे जाने की चर्चाएं हैं। कांग्रेस के अपने सर्वे में भी कई मंत्री कमजोर नजर आ रहे हैं।

चर्चाएं जो भी हों मगर इतिहास रहा है कि ज्यादातर मंत्रियों के टिकट काटे नहीं गए। यह जानते हुए कि हर सरकार में अधिकांश मंत्री हार जाते हैं।

कांग्रेस हो या बीजेपी, मंत्रियों की हार की लंबी लिस्ट है। इस स्टोरी में जानेंगे पिछली 4 सरकारों में किन चेहरों ने मंत्री होने के बावजूद जीते और वो कौनसे चेहरे रहे जो मजबूत मंत्री होने के बावजूद हार गए….

पिछले 4 चुनावों का ट्रेंड; इस बार भी कांग्रेस के सर्वे में कई चेहरे कमजोर ……

विधानसभा चुनाव 2003 : दो-दो उपमुख्यमंत्री हारे, 25 में से 7 मंत्री ही बचा पाए सीट

शुरुआत, अगर 1998 से करें तो 153 सीटों की बड़ी जीत के बाद गहलोत ने अपने 5 साल में 25 कैबिनेट मिनिस्टर बनाए। इनमें दो उप-मुख्यमंत्री थे। मगर जब 2003 के नतीजे आए तो केवल 7 मंत्री ही चुनाव जीत पाए। सीएम गहलोत के अलावा गोविंद सिंह गुर्जर, प्रद्युम्न सिंह, बीडी कल्ला, रामनारायण चौधरी, रामसिंह विश्नोई और डॉ. सीपी जोशी ही दोबारा चुनाव जीत सके थे।

जब अशोक गहलोत 1998 में पहली बार मुख्यमंत्री बने तब दो नेताओं को उप-मुख्यमंत्री बनाया गया था। दोनों ही अगला चुनाव हार गए थे।
जब अशोक गहलोत 1998 में पहली बार मुख्यमंत्री बने तब दो नेताओं को उप-मुख्यमंत्री बनाया गया था। दोनों ही अगला चुनाव हार गए थे।

मंत्री रहे चंदनमल बैद खुद चुनाव नहीं लड़े मगर उनके पुत्र चंद्रशेखर चुनाव जीत गए। सरकार में गहलोत ने कमला बेनीवाल और बनवारी लाल बैरवा दो उप-मुख्यमंत्री बनाए थे। मगर दोनों ही अपनी-अपनी सीटों से चुनाव हार गए। इसके अलावा 22 राज्यमंत्री भी बनाए थे। मगर उनमें से भी सिर्फ तीन डॉ. जितेंद्र सिंह, हेमाराम चौधरी और रघुवीर मीणा ही चुनाव जीत सके थे।

विधानसभा चुनाव 2008 : 20 कैबिनेट मंत्री में से 9 हारे

2003 में बीजेपी की सरकार बनी। 120 सीटों के साथ वसुंधरा राजे सीएम बनीं। वसुंधरा राजे ने 20 कैबिनेट मंत्री बनाए। सरकार जब 2008 के चुनाव में उतरी तो बीजेपी के 11 कैबिनेट मंत्री ही सीट बचा पाए थे। इसमें एक सीट तो खुद मुख्यमंत्री राजे की थी। उनके अलावा किरोड़ीलाल मीणा, गुलाबचंद कटारिया, घनश्याम तिवाड़ी, नरपत सिंह राजवी, प्रभुलाल सैनी, राजेंद्र राठौड़, दिगम्बर सिंह, कालीचरण सर्राफ, देवीसिंह भाटी और नंदलाल मीणा ने अपनी-अपनी सीटों पर चुनाव जीता था। सरकार के 13 राज्य मंत्रियों में से वासुदेव देवनानी और गजेंद्र सिंह खींवसर सहित 3 ही मंत्री चुनाव जीत सके।

विधानसभा चुनाव 2013 : जब 80 फीसदी कैबिनेट हारी

2008 में अशोक गहलोत की अगुवाई में कांग्रेस ने सरकार बनाई। गहलोत ने 15 कैबिनेट और 18 राज्य मंत्री बनाए। लेकिन 2013 में कांग्रेस ने इतिहास की सबसे बुरी हार देखी और पार्टी 21 सीटों पर सिमट गई। गहलोत कैबिनेट में शामिल 15 मंत्रियों में से सिर्फ 3 ही जीत पाए थे। इनमें सीएम गहलोत के अलावा महेंद्रजीत सिंह मालवीय और मास्टर भंवरलाल मेघवाल शामिल थे। वहीं 18 राज्यमंत्रियों में से सिर्फ बृजेंद्र ओला और डॉ. राजकुमार शर्मा ही 2013 में वापस चुनाव जीत सके।

वसुंधरा राजे जब 2013 में मुख्यमंत्री बनीं तो उनकी कैबिनेट में 18 मंत्री थे।
वसुंधरा राजे जब 2013 में मुख्यमंत्री बनीं तो उनकी कैबिनेट में 18 मंत्री थे।

विधानसभा चुनाव 2018 : बीजेपी की बुरी हार, 18 में से 15 कैबिनेट मंत्री हारे

2013 में रिकॉर्ड 163 सीटों पर जीत के साथ सत्ता में आई भाजपा में एक बार फिर वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बनीं। उन्होंने 18 कैबिनेट और 13 राज्यमंत्री बनाए। मगर 2018 के चुनाव में मंत्रियों ने बहुत बुरी हार देखी। बीजेपी ने 73 सीटें जरूर जीती। मगर बड़े-बडे़ दिग्गज मंत्री हार गए। सीएम राजे के अलावा गुलाबचंद कटारिया, राजेंद्र राठौड़, कालीचरण सर्राफ और किरण माहेश्वरी को ही जीत नसीब हो सकी। वहीं, राज्यमंत्रियों में वासुदेव देवनानी, पुष्पेंद्र सिंह राणावत और अनिता भदेल ही चुनाव जीत पाईं।

विभागों का बड़ा असर, यूडीएच मंत्री दोबारा चुनाव नहीं जीत पाते

मंत्रियों की हार-जीत में उनके विभाग का भी बड़ा रोल रहता है। राजनीतिक जानकार प्रोफेसर भानू कपिल बताते हैं कि कई बार कुछ विभाग ऐसे होते हैं जिनमें अगर ठीक से काम ना हो ताे इसका असर मंत्रियों पर पड़ता है। गृह, यूडीएच, पीडब्ल्यूडी, शिक्षा, चिकित्सा, पंचायती राज, पीएचईडी जैसे विभाग सीधे लोगों को प्रभावित करते हैं।

पिछली सरकारों में मंत्रियों के ये विभाग चुनौतीपूर्ण रहे हैं। खास तौर से यूडीएच ऐसा विभाग है जिसे चलाने वाली मंत्री सबसे कम चुनाव जीत पाते हैं। 1998 में कांग्रेस की सरकार बनी तो यह विभाग शांति धारीवाल को मिला, मगर वे 2003 में चुनाव हार गए। कुछ समय छोगाराम बाकोलिया के पास रहा, वे भी चुनाव हार गए। हालांकि कुछ समय के लिए विभाग का काम देखने वाले बीडी कल्ला चुनाव जीतने में सफल रहे।

गहलोत सरकार के पहले कार्यकाल में यूडीएच मंत्री बनाए गए शांति धारीवाल अगला चुनाव हार गए थे।

इसी तरह 2003 से 2008 की सरकार पर नजर डालें तो मोटे तौर पर प्रताप सिंह सिंघवी और सुरेंद्र गोयल के पास यह विभाग रहा। दोनों ही 2008 में चुनाव में हार गए। इसी तरह 2008 से 2013 के बीच भी शांति धारीवाल के पास यह विभाग रहा। वे 2013 में चुनाव हार गए। 2013 से 2018 के बीच वसुंधरा राजे सरकार की बात करें तो पहले राजपाल सिंह और फिर श्रीचंद कृपलानी के पास यह विभाग रहा। मगर 2018 में वे दोनों ही चुनाव हार गए।

शिक्षा मंत्री ने हर बार चुनाव जीता

इसी तरह एक विभाग ऐसा भी है जो सबसे विवादित और चर्चाओं में रहता है। मगर बावजूद इसके इस विभाग से जुड़े मंत्री हर बार चुनाव जीतते आए हैं। 1998 में बीडी कल्ला, मास्टर भंवरलाल मेघवाल और सीपी जोशी। 2003 में वासुदेव देवनानी और घनश्याम तिवाड़ी, 2008 में मास्टर भंवरलाल मेघवाल, डॉ. जितेंद्र सिंह, 2013 में वासुदेव देवनानी, किरण माहेश्वरी, कालीचरण सर्राफ जैसे नेता शिक्षा के विभागों से जुड़े और अगला चुनाव जीते।

बीजेपी में कई चेहरे मंत्री होने के बावजूद जीत रहे

दोनों पार्टियों के सीएम तो अपनी सीटें बचाते आए हैं। मगर इसके अलाव कई ऐसे मंत्री भी हैं जो सरकार जाने के बावजूद भी अपनी सीटें बचा लेते हैं। बीजेपी में ऐसे कई चेहरे हैं। असम के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया उदयपुर से, कालीचरण सर्राफ मालवीय नगर से, वासुदेव देवनानी मंत्री होने के बावजूद दोनों बार अपनी सीटें जीते हैं। नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ भी इसी फेहरिस्त में शामिल हैं। नरपत सिंह राजवी भी दोनों बार चुनाव जीते हैं मगर 2013 में वे मंत्री नहीं बन पाए थे।

वहीं अगर कांग्रेस की बात करें तो सीएम गहलोत के अलावा ऐसा कोई चेहरा नहीं जो 2003 और 2013 में दोनों बार चुनाव जीता हो। हालांकि महेंद्रजीत मालवीय 2008 से लगातार चुनाव जीतते रहे हैं। वहीं 2013 में मास्टर भंवरलाल मेघवाल भी चुनाव जीते थे। मगर ऐसा कोई चेहरा नहीं जो लगातार मंत्री रहने के बावजूद चुनाव जीतता रहा हो।

मंत्रियों के टिकट काटने में भी बीजेपी आगे

मंत्रियों के टिकट काटने के मामने में भी बीजेपी कांग्रेस से आगे है। 2018 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अपने तत्कालीन कैबिनेट मंत्री हेम सिंह भडाना, पीएचईडी मंत्री सुरेंद्र गोयल, देव स्थान मंत्री राजकुमार रिणवा और पंचायती राज राज्यमंत्री धनसिंह रावत के टिकट काटे थे। वहीं जनजाति मंत्री नंदलाल मीणा और मंत्री जसवंत यादव की जगह उनके बेटों को टिकट दिया गया था। बीजेपी ने 2018 में जिन मंत्रियों के टिकट काटे वे सभी हार गए।

  • सुरेंद्र गोयल का टिकट कटने के बाद उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया, वे निर्दलीय चुनाव लड़े और हार गए।
  • हेम सिंह भडाना ने भी थानागाजी सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा और हार गए।
  • राजकुमार रिणवा का भी टिकट काट दिया गया। मगर वे भी निर्दलीय लड़े और हार गए।
  • धनसिंह रावत भी इसी तरह से बांसवाड़ा से टिकट कटने के बाद निर्दलीय चुनाव लड़कर हार गए।

कांग्रेस की बात करें तो 2013 में मंत्री डॉ. राजकुमार शर्मा और बाबूलाल नागर का टिकट काटा। इसके बाद राजकुमार शर्मा निर्दलीय लड़े और नवलगढ़ से जीत गए। वहीं रेप के आरोप लगने के बाद बाबूलाल नागर का टिकट काट उनके भाई हजारी लाल नागर को टिकट दिया। मगर वे चुनाव हार गए थे।

मंत्री केवल विभागीय मामलों में उलझे रहते हैं : देवनानी

बीजेपी सरकार में मंत्री रहने के बावजूद पिछले चार चुनावों से जीत दर्ज करने वाले वासुदेव देवनानी मंत्रियों की हार में उनकी धरातल से दूरी को वजह बताते हैं। दूसरा मंत्री केवल विभागीय मामलों में उलझे रहते हैं, इसलिए हार मिलती है। मगर जो समन्वय बैठाता है उसे कठिनाई नहीं आती। इसके अलावा आप अपने विभाग के दायित्व के साथ अपने क्षेत्र को मत भूलो।

उस क्षेत्र से लगातार संवाद और आना-जाना बना रहना चाहिए। वहीं अपने क्षेत्र के विकास में बाकी मंत्रियों से और सीएम से भी नेताओं को कंट्रीब्यूट कराना चाहिए। अपने कार्यकर्ताओं के बीच अहंकार नहीं दिखना चाहिए। सहज और सुलभ रूप से उपलब्ध हों तो दिक्कत नहीं आती। मगर मंत्री ऐसा करते नहीं हैं। मैं शिक्षामंत्री था तो खुला बैठता था, लोगों को फेस करना चाहिए। अपने काम में पारदर्शिता रखनी चाहिए।

मंत्रियों की हार में करप्शन एक बड़ा फैक्टर : एक्सपर्ट

राजनीतिक विश्लेषक अर्जुन देथा बताते हैं कि मंत्रियों के हार के कई फैक्टर होते हैं। कभी कभी टिकट जीतने के लिए ही नहीं दिया जाता। वहीं कई नेता ऐसे हैं जिनके बगैर पार्टी वहां एग्जिस्ट नहीं करती है। इनकी मास अपील और वर्किंग होती है। कई बार हार के पीछे ट्रायंगल भी बड़ी वजह होता है। मोटे तौर पर अगर सरकार बदलती है तो उसका असर भी दिखता है।

कई बार राजनीति में एक-दूसरे की मदद के लिए भी टिकट दिए जाते हैं। करप्शन एक बड़ा फैक्टर होता है जो मंत्री की हार-जीत में असर डालता है। मगर कई बार बहुत अच्छी वर्किंग वाले लोग भी हार जाते हैं तो कई बार करप्ट भी जीत जाते हैं। ओवरऑल सरकार की छवि का बड़ा रोल होता है।

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