I.N.D.I.A. में शामिल इन दलों की क्यों लगी लॉटरी?  

 I.N.D.I.A. में शामिल इन दलों की क्यों लगी लॉटरी?  इस तरह ये राजनैतिक दल तलाश रहे बड़ा सियासी फलक

विपक्षी दलों के बने संगठन I.N.D.I.A. में शामिल कई राजनैतिक दलों को सियासत की जमीन तलाशने के लिए बड़े फलक मिलने का अनुमान है। यही वजह है कि सियासी दल अपने इसी फलक को तलाशने के लिए गठबंधन के सहारे अब अपनी पार्टी को विस्तारित कर अलग-अलग राज्यों में चुनाव लड़ने की तैयारियां कर रहे हैं। इसके लिए कुछ राजनीतिक दलों ने अन्य राज्यों में चुनाव लड़ने के लिए अपना दावा भी ठोंक दिया है।

अनुमान लगाया जा रहा है कि ऐसे दलों को नए बने सियासी संगठन I.N.D.I.A. का मजबूत सहारा मिलेगा। इस कड़ी में समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी और जदयू अपने दल को अन्य राज्यों में पहुंचाने के लिए योजनाएं बना रहे हैं। हालांकि राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इस तरीके से अपने दलों को विस्तार देने में कई तरह के पेंच भी फंसते नजर आ रहे हैं।

समाजवादी पार्टी ने बुना यूपी से बाहर लड़ने का बड़ा ताना बाना
I.N.D.I.A. की जमीन पर सभी राजनीतिक दल अपने सियासी दलों को आगे बढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं। जानकारी के मुताबिक समाजवादी पार्टी ने इसके लिए अपना पूरा सियासी तानाबाना भी बुना है। सूत्रों के मुताबिक समाजवादी पार्टी इस गठबंधन के साथ मिलकर महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात समेत बिहार में अपनी सियासी जमीन तलाशने में जुट गई है।

समाजवादी पार्टी ने महाराष्ट्र में अपने दो नेताओं के लिए लोकसभा सीट की दावेदारी सुनिश्चित की है। इसके अलावा पश्चिम बंगाल में पार्टी अपने एक वरिष्ठ पदाधिकारी को सियासी मैदान में लोकसभा चुनाव के माध्यम से उतारना चाह रही है। समाजवादी पार्टी राजस्थान के यादव बाहुल्य सीटों पर और हरियाणा के यादव बहुल इलाकों में अपने प्रत्याशी उतारने की योजना बना रही है।

पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इस गठबंधन के माध्यम से सिर्फ उनको दूसरे राज्यों में लड़ने का मौका ही नहीं मिलेगा, बल्कि दूसरे राज्यों की पार्टियों को उत्तर प्रदेश में भी आकर अपने सियासी गठबंधन के माध्यम से पार्टी को और विपक्षी दलों के बनाए गए नए गठबंधन INDIA को मजबूत भी किया जाएगा।

तृणमूल कांग्रेस को भी मिल रहा दूसरे राज्यों में जाने का मौका
नए सियासी गठबंधन की जमीन पर सिर्फ समाजवादी पार्टी ही नहीं, बल्कि दूसरे सियासी दल भी अपनी राजनीतिक जमीन को अन्य राज्यों में उर्वरा करने की पूरी तैयारी कर चुके हैं। सूत्रों के मुताबिक, तृणमूल कांग्रेस भी उत्तर प्रदेश में सियासी जमीन तलाशने की बड़े स्तर पर योजना बना रही है। इसके लिए पार्टी के अंदर उत्तर प्रदेश समेत कुछ अन्य राज्यों में जहां पर बंगाली समुदाय का प्रभुत्व है, वहां चुनाव लड़ने की योजना बना रही है।

तृणमूल कांग्रेस यूपी में पूर्वांचल की एक अहम सीट पर कांग्रेस छोड़कर तृणमूल कांग्रेस ज्वाइन करने वाले पूर्व विधायक ललितेश पति त्रिपाठी को लोकसभा के मैदान में उतारना चाह रही है। सूत्रों का कहना है कि जिस तरीके से समाजवादी पार्टी पश्चिम बंगाल में किरणमय नंदा को सियासी मैदान में उतारना चाहती है ठीक उसी तरह ललितेश पति त्रिपाठी भी उत्तर प्रदेश में तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी हो सकते हैं।

एनसीपी भी जमीन तलाश रही अन्य राज्यों में
नए गठबंधन के सहारे सभी राजनैतिक दल संभावनाएं तलाश रहे हैं। जानकारी के मुताबिक, शरद पवार की पार्टी एनसीपी भी इस गठबंधन के माध्यम से अन्य राज्यों में सियासी जमीन तलाश रही है। सूत्रों का कहना है कि शरद पवार की पार्टी के भीतर कुछ नेताओं की ओर से यह बात भी उठाई जा रही है कि वह अपने प्रत्याशी जिस तरीके से नॉर्थईस्ट समेत पूर्व के राज्यों में सियासी मैदान में उतारते हैं, ठीक उसी तरह वह अब गठबंधन के माध्यम से उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों में भी अपने लिए सियासी जमीन की तलाश करें। हालांकि, सियासी जानकारों का कहना है कि इस गठबंधन में दूसरे राज्यों में सियासी जमीन तलाशने का मौका उन्हीं को मिलेगा जिनका अपना कोई जनाधार होगा।

नीतीश कुमार भी आजमाना चाह रहे हैं अन्य राज्यों से दांव
सियासी जानकारों का कहना है जब नए गठबंधन के सहारे सभी राजनीतिक दल अपना विस्तार करना चाहते हैं तो ऐसा कैसे संभव होगा कि जदयू के भीतर इस तरह की कोई चर्चाएं नहीं हो रही होंगी। जानकारी के मुताबिक, चर्चा इस बात की भी हो रही है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उत्तर प्रदेश की सियासत में बड़ी एंट्री मिले। इसके लिए नीतीश कुमार को खुद उत्तर प्रदेश की किसी एक लोकसभा सीट से चुनाव लड़ाई जाने की तैयारी और चर्चा हो रही है।

कहा यह भी जा रहा है कि नीतीश कुमार उत्तर प्रदेश की किसी प्रमुख कुर्मी बाहुल्य सीट से सियासी ताल ठोक सकते हैं। इसमें प्रयागराज की फूलपुर लोकसभा सीट और मिर्जापुर के साथ-साथ उत्तर प्रदेश की लखीमपुर की कुर्मी बाहुल्य लोकसभा सीट भी नीतीश कुमार के लिए मुफीद मानी जा रही है। सियासी जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार के उत्तर प्रदेश में किसी भी लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने से गठबंधन में मजबूती तो आएगी लेकिन इसके लिए यह निर्भर करता है क्या गठबंधन में शामिल अन्य दल इस बात के लिए राजी होंगे।

सवाल यही कि क्या राज्य के दल राजी होंगे?
जिस तरीके से अलग अलग दल गठबंधन के सहारे दूसरे राज्यों में अपनी जमीन तलाश रहे हैं उसमें सवाल यही उठता है क्या उस राज्य के प्रभावशाली दल ऐसा करने के लिए तैयार भी होंगे या नहीं। राजनीतिक विश्लेषक राजकुमार सिंह कहते हैं कि गठबंधन की यही खूबी होती है कि सभी दल मिलकर एक साथ चुनाव की सियासी जमीन तैयार करते हैं, लेकिन इस बात की आशंका भी बनी रहती है कि कहीं दूसरे राज्य के अन्य दलों की घुसपैठ उनके क्षेत्र में तो नहीं हो रही है।

उनका कहना हैं कि यही देखना बहुत आवश्यक है कि I.N.D.I.A. के सहारे कौन से राजनीतिक दल दूसरे राज्यों में अपनी एंट्री पाना चाह रहे हैं। वह कहते हैं जैसे तृणमूल कांग्रेस या जेडीयू उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है। समाजवादी पार्टी दूसरे राज्यों में चुनावी ताल ठोकने की तैयारी कर रही है। ऐसे में देखना यही होगा कि जिन राज्यों में यह दल सियासी ताल ठोकने की तैयारी कर रहे हैं, क्या वहां के राजनैतिक दल जो इस नए गठबंधन में शामिल हैं, उनको कोई बड़ा एतराज तो नहीं हो रहा है। वो कहते हैं कि निश्चित तौर पर जिन दलों को राष्ट्रीय स्तर की मान्यता नहीं है उनको इस गठबंधन के माध्यम से अपनी सियासी जमीन को बड़ा करने की उम्मीद तो दिखी ही रही है।

गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश में दिखता है बड़ा स्कोप
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि I.N.D.I.A. में शामिल ज्यादातर सियासी दलों को मध्यप्रदेश, गुजरात और राजस्थान में अपनी सियासी संभावनाएं तलाशने और जमीन बनाने का बड़ा स्कोप नजर आ रहा है। राजनीतिक विश्लेषक हेमेंद्र ठाकुर कहते हैं कि गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश ऐसे राज्य हैं जहां पर देश के अन्य राज्यों की तुलना में राज्य स्तरीय सियासी दल न के बराबर हैं। इन राज्यों में देश के दो प्रमुख दल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी मजबूत राजनीतिक दल है। जातिगत और क्षेत्रीय समीकरणों के लिहाज से यही दल सत्ता में बने रहते हैं।

ठाकुर कहते हैं कि आम आदमी पार्टी ने इसी को ध्यान में रखकर अपने संगठन का विस्तार इन राज्यों में तेजी से किया। इससे पहले बहुजन समाज पार्टी ने भी कुछ इसी तरह अपनी पार्टी का विस्तार तो किया लेकिन उसको संभाल नहीं पाई। यही वजह है कि अब इस बने नए गठबंधन के सहारे कई क्षेत्रीय दल अपने राजनीतिक दल को उन राज्यों में प्रमुखता से प्रवेश दिलाना चाहते हैं जहां पर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के सिवा कोई अन्य दल उतनी महत्वपूर्ण भूमिका में नहीं हैं।

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