ग्वालियर। पीएचई में हुए 16.42 करोड़ रुपये के घोटाले में अब ट्रेजरी के कर्मचारियों की भूमिका भी संदेह के घेरे में आ गई है। पीएचई में गत 2018 और 2019 में छह करोड़ 24 लाख 71 हजार 186 करोड़ रुपये का भुगतान क्लोरीन खरीद के नाम पर एक फर्म को किया गया है, जबकि क्लोरीन की खरीद की जिम्मेदारी नगर निगम के पास है। खरीद के बिलों पर विभागीय अधिकारियों के हस्ताक्षर भी नहीं हैं।

इसके अलावा विभाग के पास इस मद में पैसा भी नहीं है। इसके बावजूद ट्रेजरी के अधिकारियों ने दूसरे मदों से पैसा निकालकर फर्म को भुगतान कर दिया। इसका पर्दाफाश होने के बाद मुख्य अभियंता आरएलएस मौर्य ने संभागीय आयुक्त दीपक सिंह को पत्र लिखकर ट्रेजरी की भूमिका पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। दूसरी तरफ घोटाले में शामिल संदिग्ध कर्मचारियों की संपत्ति का ब्यौरा जुटाने की तैयारी की जा रही है। इसके अलावा यह भी पता लगाया जा रहा है कि जिन निजी खातों में भेजकर इस रकम को निकाला गया है, उसे कहां खर्च किया गया है। विभाग के आला अधिकारियों को जानकारी मिली है कि इस रकम से बड़े स्तर पर जमीनों की खरीद-फरोख्त की गई है। विभाग का प्रयास है कि निकाली गई रकम की रिकवरी कर ली जाए। इसके अलावा एक करोड़ रुपये की रकम विभाग में वापस जमा होने से अब संदेह और पुख्ता हो चुका है कि कर्मचारियों ने ही मिलीभगत कर इस घोटाले को अंजाम दिया है।

विभाग के अधिकारियों ने ट्रेजरी को जांच के लिए मौजूदा रिकार्ड उपलब्ध करा दिया है। उधर जांच शुरू होने के बाद से बिल क्रिएटर हीरालाल गायब है। बताया जा रहा है कि उसके पास भी भुगतान से जुड़ी फाइलें मौजूद हैं, जो कार्यालय से गायब हैं। ऐसे पकड़ में आया मामला: 71 फर्जी खातों में हुए 16.42 करोड़ रुपये के भुगतान में अलग-अलग खातों में छोटी से लेकर बड़ी रकम जमा हुई है। इसमें पाताली हनुमान तानसेन नगर स्थित फर्म मां पीतांबरा हाथकरघा वस्त्र उद्योग के नाम पर सबसे ज्यादा 6.24 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान हुआ है। जब इस मामले से जुड़ी फाइलें खंगाली गईं, तो तीन करोड़ रुपये से अधिक के बिल रिकार्ड में मिले। इसमें क्लोरीन परीक्षण ट्यूब व किट के नाम पर अलग-अलग बिल लगाए गए हैं। कुछ बिलों पर कार्यपालन यंत्री के हस्ताक्षर हैं, जबकि कुछ बिल पर हस्ताक्षर नहीं हैं। इसके बावजूद ट्रेजरी से भुगतान हुआ है।

जांच के बाद दोषियों पर होगी एफआईआर

इस मामले में विभागीय अधिकारी प्राथमिक जांच के आधार पर हीरालाल के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराना चाह रहे थे, क्योंकि कई ट्रांजेक्शन उसके रिश्तेदारों के खाते में हुए हैं। उनकी पहचान भी कर ली गई है। बताया जा रहा है कि हीरालाल ने चिरवाई पर एक शानदार होटल बनाया है, जबकि पुरानी छावनी में भी जमीन खरीदी है। ये खरीद-फरोख्त अन्य लोगों के नाम पर की गई हैं। ऐसे में एफआइआर दर्ज कराकर पुलिस की पूछताछ में इसका राजफाश हो सकता है, लेकिन आला अधिकारियों ने पूरी जांच रिपोर्ट आने के बाद एफआइआर कराने के निर्देश दिए हैं, ताकि अन्य कर्मचारियों की भूमिका का भी पर्दाफाश हो जाए।

6.24 करोड़ रुपये से अधिक के भुगतान क्लोरीन खरीद के नाम पर हुए हैं। क्लोरीन निगम द्वारा खरीदा जाता है। विभाग इसे नहीं खरीदता है। इस कारण इस मद में पैसा भी नहीं होता है। इसके बावजूद ट्रेजरी से भुगतान हुआ है। बिलों पर कार्यपालन यंत्री के हस्ताक्षर भी नहीं हैं।

– आरएलएस मौर्य, मुख्य अभियंता पीएचई ग्वालियर