फिर तो देश को दिल्ली की क्या जरूरत है ?

फिर तो देश को दिल्ली की क्या जरूरत है ?

और ‘अंतत ‘ दिल्ली अध्यादेश विधेयक लोकसभा में पारित हो गया। जाहिर है कि इसे पारित होना ही था । मै पहले ही कह चुका था कि संख्या बल के साथ ही ध्वनिमत सरकार के साथ है ,इसलिए इस विधेयक को पारित होने से कोई नहीं रोक सकता । भगवान भी नहीं । अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल में कूबत है तो वे इस विधयेक के खिलाफ दिल्ली की और देश की सड़कों पर लड़ें,लेकिन वे भी जानते हैं कि ये लड़ाई आसान नहीं है । केजरीवाल ट्विटर की दीवार पर लड़ रहे हैं ,जो की सही मंच नहीं है उन्होंने भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा , ट्वीट करते हुए कहा कि -‘हर बार भाजपा ने वादा किया कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देंगे। 2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने ख़ुद कहा कि प्रधानमंत्री बनने पर दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देंगे, लेकिन आज इन लोगों ने दिल्ली वालों की पीठ में छुरा घोंप दिया. आगे से उनकी किसी बात पर विश्वास मत करना।

केजरीवाल बड़े भोले हैं। उनका भोलापन देश ने देखा है। देश ने दिल्ली विधेयक पर देश के गृहमंत्री अमित शाह को भी बोलते देखा है । मैंने भी उन्हें बोलते हुए सुना और मुझे हंसी भी आयी, जब उन्होंने कहा कि -सेवाएं हमेशा केंद्र सरकार के पास रही हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की एक व्याख्या दी…,उल्हाना भी दिया कि 1993 से 2015 तक किसी भी मुख्यमंत्री ने लड़ाई नहीं लड़ी । कोई लड़ाई नहीं हुई क्योंकि जो भी सरकार बनी उनका उद्देश्य लोगों की सेवा करना था। लड़ने की कोई ज़रूरत नहीं है। अगर जरूरत है तो सेवा करने की लेकिन अगर उन्हें सत्ता चाहिए तो वे लड़ेंगे। ”

अक्सर मै शाह साहब से सहमत नहीं होता,लेकिन आज हूं। मेरा कहना है कि जब सेवाएं हमेशा से केंद्र के पास रहीं हैं तो दिल्ली को विधानसभा देने की भी क्या जरूरत है ? विधानसभा भी भंग कर दीजिये जैसी कि जम्मू-कश्मीर की। खामखां दिल्ली के सर पर सरकार नाम का खर्च लाद रखा है। न रहेगा बांस और न बजेगी बाँसुरी। देश में जैसे दूसरे केंद्र शासित क्षेत्रों में केंद्र सरकार सेवाएं दे रही है वैसे ही दिल्ली को भी दे देगी। मै तो कहता हूँ कि केंद्र सरकार को संसद के इसी सत्र में एक और विधेयक लाकर मणीपुर विधानसभा को भी भंग कर वहां केंद्र शासित क्षेत्र बना देना चाहिए क्योंकि राज्य में डबल इंजन की सरकार भी एक बोझ है । उसके बूते कुछ है ही नही। तीन महीने से मणिपुर आखिर जल ही रहा है।

दरसल संसद अब बहस का नहीं बल्कि निशानेबाजी का अड्डा हो गयी है । सब एक-दुसरे पर निशाना साधते दिखाई देते है। सत्ता पक्ष विपक्ष पर,विपक्ष सत्ता पक्ष पर । केजरीवाल शाह पर और शाह केजरीवाल पर । मुद्दों पर निशाना कोई नहीं साधना चाहता । मुद्दों पर निशाना साधना आसान भी नहीं है। दिल्ली विधेयक पर चर्चा के दौरान विधेयक के पक्ष में ठोस तर्क देने के बजाय अमित शाह ने विपक्ष पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि विपक्ष की प्राथमिकता अपने गठबंधन को बचाना है । विपक्ष को मणिपुर की चिंता नहीं है। हर कोई एक राज्य के अधिकारों के बारे में बात कर रहा है। लेकिन कौन सा राज्य? दिल्ली एक राज्य नहीं बल्कि एक केंद्र शासित प्रदेश है। संसद को दिल्ली के लिए कानून बनाने का अधिकार है।

संसद में आप के सदस्य इस मुद्दे पर बोलने के लिए हैं नहीं सो आप के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल को संसद के बाहर कहना पड़ रहा है कि ये बिल दिल्ली के लोगों को ग़ुलाम बनाने वाला बिल है। उन्हें बेबस और लाचार बनाने वाला बिल है. ‘इंडिया’ ऐसा कभी नहीं होने देगा। “केजरीवाल को पता है कि संख्या बल के हिसाब से इंडिया अभी एनडीए का कुछ बिगाड़ नहीं सकता। इसके लिए इंडिया को अभी बहुत मेहनत करना पड़ेगी। बेहतर हो कि केजरीवाल एनडीए से अकेले लड़ने के बजाय इंडिया के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लादे। आगामी 15 अगस्त से शुरू हो रही कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा के दुसरे चरण में शामिल होकर पूरे देश को बताएं किआखिर भाजपा देश में कर क्या रही है ? मणिपुर और अब हरियाणा क्यों जल रहा है ? भाजपा से लड़ाई ट्विटर पर नहीं, मैदान में लड़ी जाना चाहिए।

इस समय नसीब और हालात भाजपा के साथ है । भाजपा का लक्ष्य विधानसभाएं जीतना नहीं ,दिल्ली जीतना है । दिल्ली जीतने के लिए भाजपा एक क्या अनेक विधानसभाएं कुर्बान कर सकती है। और करती आ रही है। अभी तक बिहार,हिमाचल,बंगाल ,पंजाब और कर्नाटक हार चुकी है । आगे भी यदि मप्र,राजस्थान,छत्तीसगढ़ और मिजोरम हार जाए तो भाजपा की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ना। भाजपा की सेहत पर फर्क पडेगा तो देश की सत्ता हाथ से निकलने के बाद। जब तक देश की सत्ता भाजपा की मुठ्ठी में है तब तक सब कुछ उसकी मुठ्ठी में है ।

ईडी,सीबीआई । केंचुआ और परोक्ष रूप से कोर्ट भी। ज्ञानवापी मामले में आया निर्णय इसका उदाहरण है।
देशकाल और परिस्थिति के हिसाब से विपक्ष को संसद में हंगामा करने के बजाय सड़क पर हंगामा करना चाहिये । संसद में विपक्ष की सुनने वाला कोई नहीं है किन्तु सड़क पर सुनने के लिये जनता है। देश की तकदीर और तस्वीर अब जनता के ही हाथ में है। संसद के हाथ में केवल ध्वनिमत बचा है जो सदैव सत्ता के काम आता है ।

ध्वनिमत से विपक्ष को कभी कुछ हासिल नहीं हुआ। विपक्ष इस हकीकत को जितनी जल्दी समझ ले उतना बेहतर है। विपक्ष को अपना आत्मविश्वास भाजपा और प्रधानमंत्री जी के आत्मविश्वास से ऊँचा करना होगा। प्रधानमंत्री जी तो अपने आत्मविश्वास का मुजाहिरा ये कह कर कर चुके हैं कि आमचुनाव के बाद तीसरा टर्म भाजपा और प्रधानमंत्री के रूप में उनका ही रहने वाला है। विपक्ष ने अब तक इस तरह का कोई मुजाहिरा नहीं किया है ।

तमाम विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ दल और प्रधानमंत्री जी को चित कर चुका विपक्ष अभी तक इस स्थिति में नहीं आया है कि भाजपा को आम चुनावों में चित कर सके। विपक्ष के पास पैसा नहीं है ,लेकिन जनता है। जनता को सत्ता पक्ष के मौद्रिक चुमबक से बचाये रखना आसान काम नहीं है। देश के पूंजीपति भाजपा के साथ हैं। जनादेश इसी पूंजी से खरीदे-बेचे जाते हैं। लोकतंत्र के लिए लगातार महंगे होते चुनाव और पूंजी ही सबसे बड़ा खतरा है। इस खतरे से सभी किो मिलजुलकर निबटना चाहिए अन्यथा सेवाएं देने का काम केंद्र के पास ही बना रहेगा। राज्यों की सरकारें केवल एटीएम बनकर रह जाएंगी।

दिल्ली के मुख्यमंत्री जी को अगली लड़ाई दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की लड़ना चाहिये। यदि वे कामयाब हुए तो लोकसभा से पारित इस विधेयक का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। सत्ता की मेवा खाना है तो जनता की सेवा तो करना ही पड़ेगी।

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