कहते हैं राजनीति में दोस्ती और दुश्मनी, दोनों ही स्थाई नहीं होतीं। कभी जो कट्टर विरोधी नजर आते हैं, वे ही गलबहियां डाले साथ खड़े मिलते हैं। भाजपा के कार्यकर्ताओं ने ऐसा ही नजारा बीते दिनों विधानसभा क्षेत्र क्रमांक एक में देखा। यहां पूर्व विधायक सुदर्शन गुप्ता ने कार्यकर्ता सम्मेलन किया था। कार्यकर्ता जुटे तो विधानसभा की स्थिति और चुनाव की चर्चा होने लगी। इसी दौरान मंच पर अतिथियों का आगमन हुआ। इसके बाद चौंकने की बारी कार्यकर्ताओं की थी। वहां वरिष्ठ भाजपा नेता सत्यनारायण सत्तन सहित वे नेता थे, जो बीते चुनाव में दूसरे खेमे के साथ खड़े थे। इस दृश्य को समझने का प्रयास कार्यकर्ता कर ही रहे थे कि इन नेताओं ने गुप्ता के सम्मान में शब्दों के फूल बरसाने शुरू कर दिए। सम्मेलन संपन्न होते ही चुनावी चर्चा राजनीति के इस समीकरण पर केंद्रित हो चुकी थी। चर्चा का सार एक ही था…ये तो यूं एक हो गए मानो कभी अलग थे ही नहीं।

आग का दरिया है, डूब के जाना है

राजनीति दूर से भले चमकदार नजर आती है, लेकिन नजदीक खड़े लोगों को किन-किन लपटों से जूझना पड़ता है, यह जानना है तो इंदौर भाजपा के पदाधिकारियों से पूछ भर लीजिए। दिल का गुबार ऐसे फूटता है, मानो यह बाढ़ पूरी सियासत को ही बहा ले जाएगी। मध्य प्रदेश में चुनाव संचालन की कमान अपने हाथ में लेने के बाद केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने भाजपाइयों को निर्देश दे दिए थे कि 10 अगस्त तक मोर्चा-प्रकोष्ठ के सम्मेलन हो जाएं और 15 अगस्त तक हर विधानसभा क्षेत्र में कार्यालय शुरू हो जाएं। इसके बाद से सांसत में आए पदाधिकारी समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर काम करें तो कैसे। मोर्चा-मंडल के हाल किसी से छुपे नहीं हैं। उनकी सामान्य बैठकें ही नहीं हो पातीं, सम्मेलन तो दूर की बात है। उधर, विधानसभा क्षेत्रों में कार्यालय शुरू करने के लिए अभी जगह की तलाश भी नहीं हो पाई है। पदाधिकारी चिंता में हैं कि आग के दरिया को डूब के पार करने की हिम्मत जुटाएगा कौन।

हमारी नहीं, तुम्हारी ‘जेल’ में सुरंग की तैयारी

सियासत में खुद से ज्यादा तो विरोधी दल की हर छोटी-बड़ी गतिविधियों पर नजर रखी जाती है। मध्य प्रदेश में इन दिनों नेताओं के एक-दूसरे के दलों में ’आवागमन‘ के बीच भाजपाइयों ने नया सिक्का उछाल दिया है। भोपाल में हुई बैठक के बाद जिला स्तर के पदाधिकारियों को यह सूची तैयार करने को कहा गया है कि कांग्रेस के बूथ स्तर के कार्यकर्ता कौन हैं और कौन-कौन मतदान के दौरान बूथ पर एजेंट बनकर बैठते हैं। पहले तो भाजपाइयों को समझ नहीं आया कि वरिष्ठ नेता चाहते क्या हैं। थोड़ी-खुसर-पुसर के बाद इंदौर के जिला पदाधिकारी ने भोपाल के नेताजी को फोन लगाकर पूछ ही लिया कि अब ये क्यों? दूसरी ओर से जवाब मिला ‘इस बार उनकी जेल में ही सुरंग बनाना है’। सबसे निचली पंक्ति को ही छिन्न-भिन्न कर दो ताकि इमारत ही कमजोर रहे। सूची बनाने में जुटे भाजपाई अब तक यह नहीं समझ पाए कि हमारी बूथ की टीम मजबूत करने के बजाय दूसरों की टीम का सूची बनाने का क्या लाभ?

’बड़े गांव‘ की बड़ी सियासत से बवाल

इंदौर जिले में बडे गांव के नाम से पहचाने जाने वाला देपालपुर विधानसभा क्षेत्र इन दिनों प्रदेश स्तर पर सुर्खियों में है। यहां भाजपा और कांग्रेस के परंपरागत प्रतिद्वंदी पटेलों की बीच रस्साकशी तो है ही, इंदौर के ’दरबार‘ ने भी यहां ‘रुमाल’ रखकर सीट पर दावेदारी जता दी है। बदनावर और इंदौर से विधायकी कर चुके वरिष्ठ भाजपा नेता भंवरसिंह शेखावत की बीते दिनों मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात के बाद शेखावत समर्थकों ने यह भी कह दिया कि या तो टिकट दें या फिर खुद लड़ लेंगे। इस बार कोई मनाने भी मत आना। उधर, नए समीकरण बनते देख भाजपाई पटेलों ने भी लामबंदी शुरू कर दी है। डैमेज कंट्रोल में जुटे बड़े नेताओं ने स्थिति देखी तो उज्जैन संभाग के काम छोड़कर देपालपुर पहुंचे, लेकिन फिलहाल किसी को समझ नहीं आ रहा कि दरबार को मनाए किस फार्मूले से।