PM की कठपुतली बन जाएंगे चुनाव आयुक्त ? बिल का विरोध क्यों?

विपक्ष क्यों कह रहा PM की कठपुतली बन जाएंगे चुनाव आयुक्त, नए बिल से क्या-क्या बदलेगा?

देश के मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर गुरुवार को केंद्र सरकार ने राज्यसभा में एक विधेयक पेश किया। विधेयक के पेश होते ही इसका तमाम विपक्षी दलों ने इसका विरोध भी शुरू का दिया है। कांग्रेस ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि वह चुनाव आयोग को प्रधानमंत्री के हाथों की कठपुतली बनाने का प्रयास कर रही है। आप संयोजक और दिल्ली सीएम केजरीवाल ने पीएम पर बिल के जरिए लोकतंत्र को कमजोर करने का आरोप लगाया।

आखिर सीईसी की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर अभी क्या हुआ है? बिल लाने की वजह क्या है? अभी मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति कैसे की जाती है? बिल के बाद क्या बदल जाएगा? विपक्षी दल इसका विरोध क्यों कर रहे हैं? बिल से जुड़े विवाद पर सरकार का क्या कहना है? चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का इतिहास क्या रहा है? आइए जानते हैं…

सीईसी की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर अभी क्या हुआ है?
विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने गुरुवार को राज्यसभा में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023 पेश किया। विपक्षी सदस्यों के विरोध के बीच उन्होंने यह विधेयक राज्यसभा में पेश किया। यह चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और कार्य संचालन की शर्तें अधिनियम, 1991 को निरस्त करता है।

CEC Appointment Bill: How it plans to amend the process and what is the opposition concern
Election Commission of India
विधेयक के प्रावधान क्या हैं?
इस बिल में मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया, उनकी सेवा शर्तों और पदावधि के बारे में नए नियम का उल्लेख है। इसके मुताबिक चुनाव आयुक्तों का चयन प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक कैबिनेट मंत्री की तीन सदस्यीय समिति करेगी। इस चयन समिति के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होंगे और यदि लोकसभा में विपक्ष के नेता को मान्यता नहीं दी गई है, तो लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता यह भूमिका निभाएगा।विधेयक में प्रमुख प्रावधानों में कहा गया है कि चयन समिति अपनी प्रक्रिया को पारदर्शी तरीके से रेगुलेट करेगी। मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त का कार्यकाल छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक जो पहले पूरा हो, रहेगा। चुनाव आयुक्तों का वेतन कैबिनेट सचिव के समान होगा। विधेयक में कहा गया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त दोबारा नियुक्ति के पात्र नहीं होंगे।बिल के अन्य अहम प्रावधानों में एक सर्च कमेटी का भी जिक्र किया गया है। यह कमेटी चयन समिति के विचार के लिए पांच व्यक्तियों का एक पैनल तैयार करेगी। सर्च कमेटी की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेंगे। इसमें दो अन्य सदस्य होंगे, जो केंद्र सरकार के सचिव स्तर से नीचे के नहीं होंगे। दोनों सदस्यों के पास चुनाव से संबंधित मामलों का ज्ञान और अनुभव होना चाहिए। चयन समिति उन उम्मीदवारों पर भी विचार कर सकती है जिन्हें खोज समिति द्वारा तैयार पैनल में शामिल नहीं किया गया है।
यह बिल अभी क्यों लाया गया? 
केंद्र सरकार द्वारा यह बिल सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले की पृष्ठभूमि में लाया गया है। दरअसल, न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मार्च में फैसला सुनाया था कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियां प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश की सदस्यता वाली एक समिति की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएं।इस सर्वसम्मत फैसले में कहा गया था कि यह मानदंड तब तक लागू रहेगा जब तक कि इस मुद्दे पर संसद द्वारा कानून नहीं बनाया जाता। इसके साथ ही फैसले के उद्देश्य में कहा गया था कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को कार्यपालिका के हस्तक्षेप से बचाना है।
…तो अभी सीईसी और ईसी की नियुक्ति कैसे की जाती है?
देश में चुनाव कराने का काम भारत निर्वाचन आयोग करता है। भारतीय संविधान के तहत संसद और प्रत्येक राज्य की विधानसभा और विधानमंडल तथा राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पदों के निर्वाचन की पूरी प्रक्रिया का संचालन और नियंत्रण भारत निर्वाचन आयोग को सौंपा गया है। वर्तमान में निर्वाचन आयोग में एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो निर्वाचन आयुक्त के पद हैं। शुरुआती दौर में आयोग में केवल एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त का पद था।मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। संविधान के अनुच्छेद-324(2) के तहत भारत के राष्ट्रपति को मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों को नियुक्त करने की शक्तियां दी गई हैं। अभी चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल की सिफारिश के बाद राष्ट्रपति की ओर से की जाती है।आमतौर पर देखा गया है कि इस सिफारिश को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल ही जाती है। इसी के चलते चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं। चुनाव आयुक्त का कार्यकाल छह वर्ष, या 65 वर्ष की आयु, जो भी पहले हो, तक होता है। वहीं, राज्य में चुनाव आयुक्त की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है।
बिल का विरोध क्यों?
कांग्रेस ने गुरुवार को सीईसी और ईसी की नियुक्ति वाले विधेयक को ‘असंवैधानिक, मनमाना और अनुचित’ करार दिया। कांग्रेस के संगठन महासचिव के.सी. वेणुगोपाल ने कहा कि पार्टी इसका हर मंच पर विरोध करेगी। उन्होंने कहा कि यह चुनाव आयोग को पूरी तरह से प्रधानमंत्री के हाथों की कठपुतली बनाने का खुला प्रयास है। सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा फैसले का क्या, जिसमें एक निष्पक्ष आयोग की आवश्यकता की बात की गई है?दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी गुरुवार को चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से जुड़े बिल पर टिप्पणी की। उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी को घेरते हुए कहा कि उनका सुप्रीम कोर्ट में विश्वास नहीं है। केजरीवाल ने पीएम पर बिल के जरिए लोकतंत्र को कमजोर करने का आरोप लगाया है।टीएमसी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा सदस्य साकेत गोखले ने लिखा, ‘भाजपा खुलेआम 2024 के चुनावों के लिए धांधली कर रही है।’ उन्होंने आरोप लगाया, मोदी सरकार ने एक बार फिर बेशर्मी से उच्चतम न्यायालय के फैसले को कुचल दिया और आयोग को अपनी कठपुतली बना रही है। वहीं माकपा नेता जॉन ब्रिटास ने कहा कि यह देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को ध्वस्त करने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति किसी स्वतंत्र प्रक्रिया से होनी चाहिए।
बिल से जुड़े विवाद पर सरकार का क्या कहना है?
शुक्रवार को केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस मामले में अपनी प्रतिक्रिया दी है। मेघवाल ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में फैसला दिया था इसलिए हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक कानून लेकर आए…नए बिल में हम एक सर्च कमेटी बना रहे हैं जिसका नेतृत्व कैबिनेट सचिव करेंगे। उसके बाद, एक चयन समिति होगी जिसका नेतृत्व प्रधानमंत्री करेंगे। इसमें गलत क्या है?’
विपक्ष में रहते हुए भाजपा का इसे लेकर क्या रुख था?
2012 में भाजपा संसदीय दल के अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियों के लिए व्यापक आधार वाले कॉलेजियम का सुझाव दिया गया था। आडवाणी ने मांग की थी कि सीईसी और अन्य सदस्यों की नियुक्ति पांच सदस्यीय पैनल या कॉलेजियम द्वारा की जानी चाहिए, जिसमें प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश, संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता और कानून मंत्री शामिल हों। आडवाणी ने दो जून, 2012 को पत्र में लिखा था कि मौजूदा प्रणाली, जिसमें चुनाव आयोग के सदस्यों को केवल प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है, लोगों में विश्वास पैदा नहीं करता है। इस पर उस समय सरकार सभी राजनीतिक दलों की राय लेने के लिए तैयार थी। मनमोहन सिंह ने कहा था कि वह चुनाव सुधारों के तहत चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में बदलाव के लिए तैयार हैं।

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