राजस्थान, एमपी-छत्तीसगढ़ में पिछला विधानसभा चुनाव क्यों हार गई थी बीजेपी !

राजस्थान, एमपी-छत्तीसगढ़ में पिछला विधानसभा चुनाव क्यों हार गई थी बीजेपी, इस बार भेद पाएगी चक्रव्यूह?
पांच राज्यों में मतदान की तारीख बेहद नजदीक है. बीजेपी तीन प्रमुख राज्य मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपना पिछला प्रदर्शन नहीं दोहराना चाहेगी.

पांच राज्यों में मतदान की तारीख बहुत नजदीक है. ऐसे में राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में पिछले चुनाव में हार का सामना कर चुकी बीजेपी के लिए आने वाला समय भी कठिन होने वाला है. 

मौजूदा समय में देखें तो इनमें से दो राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है. जबकि मध्य प्रदेश में सीएम शिवराज के नेतृत्व वाली बीजेपी की सरकार होने के बाद भी आने वाले चुनाव में बीजेपी ने सीएम के चेहरे पर सस्पेंस बरकरार रखा है. मध्य प्रदेश में किसी राष्ट्रीय नेता ने शिवराज सिंह को फिर से सीएम बनाए जाने पर कोई बयान नहीं दिया है.

वहीं बीजेपी का राजस्थान में भी यही हाल दिख रहा है. राज्य की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे पर किसी ने अब तक खुलकर बयान नहीं दिया है. इसके अलावा छत्तीसगढ़ में पूर्व सीएम रमन सिंह को लेकर भी यही स्थिति दिखाई दे रही है.

साथ ही तीनों राज्यों में ओबीसी वोटर्स एक बड़ा फैक्टर साबित हो रहे हैं, तो चलिए जानते हैं तीनों राज्यों का समीकरण और क्यों बीजेपी को तीनों राज्यों में पिछले चुनाव में करना पड़ा था हार का सामना.

2018 के चुनाव में मध्य प्रदेश में त्रिशंकु विधानसभा बनी थी, जिसमें 114 सीटों के साथ कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, वहीं इस चुनाव में बीजेपी को 109 सीटें हासिल हुई थीं. कांग्रेस ने जीत के बाद सरकार बनाई लेकिन सिर्फ 18 महीनों के लिए, उसके बाद बीजेपी के दांव-पेंच से फिर शिवराज सिंह चौहान की सरकार बन गई. 

2018 में हुए चुनाव में मध्यप्रदेश में सुरक्षित सीटों पर काफी बुरा प्रदर्शन किया था. जिसकी कीमत उसे प्रदेश में अपनी सत्ता गंवा कर चुकानी पड़ी थी. प्रदेश में सुरक्षित सीटों की संख्या 82 है. यहीं पर पार्टी को 25 सीटों पर ही जीत हासिल हुई थी. 

वहीं साल 2013 में हुए चुनावों पर गौर करें तो यहां पार्टी को 53 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. साथ ही कांग्रेस को 2013 की तुलना में 2018 में 28 सीटों पर लाभ मिला था. पार्टी  ने राज्य में 82 में से 40 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं बीजेपी की जीती हुई सीटों की संख्या बीते चुनाव के मुकाबले लगभग आधी ही रह गई थी, जबकि कांग्रेस की जीती हुई सीटों की संख्या 12 से बढ़कर 40 हो गई थी.

ऐसे में अब फिर सभी पार्टियों को चुनावी रण में जाना है, इस बीच सवाल ये भी उठ रहा है कि मध्य प्रदेश में शीर्ष नेतृत्व के बीच खींचतान है. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में भी इस बात का दावा किया गया कि गृहमंत्री अमित शाह के सामने ये बात आई कि प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और सीएम शिवराज के बीच गंभीर मतभेद हैं. 

साथ ही राजनीतिक गलियारे में ऐसी बात चल रही है कि इस बार केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया टॉप पोस्ट का एक विकल्प हो सकते हैं. ऐसे में बीजेपी की 2016 में असम में किए गए प्रयोग की ओर भी एक नजर जा रही है, जब बीजेपी ने कांग्रेस से आए हेमंत बिस्वा सरमा की चुनावी जीत में महत्वपूर्ण भूमिका के बाद सर्बानंद सोनोवाल को रिप्लेस कर 2021 में सीएम बनाया था. 

वहीं जब हमने इस मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार और माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति दीपक तिवारी से बात की तो उन्होंने बताया, “ऐसा पहली बार है जब बीजेपी इस तरह का चुनाव लड़ने जा रही है. पार्टी को लगता है कि जनता का गुस्सा शिवराज के खिलाफ ज्यादा है. जबकि ऐसा नहीं है. शिवराज ने ही मध्य प्रदेश में बीजेपी को गरीबों से जोड़ा है और अब भी शिवराज से गरीब महिलाओं और बच्चों को काफी आशाएं हैं.”

उन्होंने बताया, “अगर बीजेपी इस बार सीएम का फेस रिवील नहीं करती है तो जो लोग शिवराज से जुड़े हुए हैं उनके वोट पाना भी मुश्किल हो जाएगा. साथ ही बीजेपी अबतक की सबसे बड़ी हार की ओर भी आगे बढ़ रही है.”

क्या कहता है राजस्थान का गणित?
राजस्थान की 200 सदस्यों वाली विधानसभा चुनाव के लिए बहुमत का आंकड़ा 101 सीटों का है. प्रदेश में 2018 में हुए चुनाव में बीजेपी को करारी शिकस्त मिली थी और कांग्रेस की अशोक गहलोत की सरकार 5 सालों बाद फिर सत्ता में आई थी. 

इस चुनाव में कांग्रेस ने 100 और बीजेपी ने 73 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जहां राज्य में 2013 के चुनाव में बीजेपी को 163 सीटें मिली थी और ऐसा कहा जाता है कि ये 73 सीट भी इसलिए संभव हो पाई क्योंकि पीएम मोदी ने खुद चुनाव से ठीक पहले 15 रैलियां निकाली थीं. 

वहीं राजस्थान में एसटी के लिए 25 और एससी के लिए 34 सीटें आरक्षित हैं. साल 2013 के चुनावों पर नजर डालें तो राज्य में बीजेपी ने एससी के लिए सुरक्षित 34 में से 32 सीटों पर जीत हासिल कर सरकार बनाई थी. हालांकि 2018 में हुए चुनावों में ये संख्या घटकर महज 11 रह गई थी.

दूसरी ओर कांग्रेस जिसे 2013 में सुरक्षित सीटों पर एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई थी उसने 2018 में हुए चुनाव में एससी के लिए सुरक्षित 21 सीटों पर जीत दर्ज की थी. वहीं एसटी के लिए सुरक्षित सीटों पर भी कांग्रेस बीजेपी पर भारी पड़ी थी. बीजेपी को राज्य में 2013 के मुकाबले 2018 में सुरक्षित सीटों पर 13 की जगह 10 सीटों पर ही जीत मिली थी. वहीं कांग्रेस ने यहां सात की जगह 13 सीटों पर जीत दर्ज की थी.

इसके अलावा राजस्थान में पिछले दो लोकसभा चुनाव में बंपर जीत और पिछली विधानसभा चुनाव में बुरी तरह शिकस्त की वजह से राज्य नेतृत्व यानी वसुंधरा राजे पर खासे सवाल उठाए गए, जबकि हालिया घटनाक्रम में बीजेपी ने राज्य में चार परिवर्तन रैली का आयोजन किया था, जिसमें से किसी भी रैली में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे शामिल नहीं हुईं. 

अब ऐसी स्थिति में राज्य में एक बड़ा चेहरा जो वसुंधरा राजे की जगह विकल्प के तौर पर देखे जा सकते हैं वो गजेंद्र सिंह शेखावत हैं. उन्हें 2018 में केंद्र में राज्य मंत्री बनाया गया था. 2019 में जल शक्ति मंत्री बनाया गया. बीजेपी के हाल तक प्रदेश अध्यक्ष रहे सतीश पूनिया एक और विकल्प वसुंधरा राजे की जगह हो सकते हैं. वहीं मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष सांसद सीपी जोशी भी एक ऑप्शन हैं. इसके अलावा नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ एक विकल्प हैं. फिलहाल शीर्ष नेतृत्व को लेकर भ्रम की स्थिति राज्य में है.

वहीं जब हमने इस मुद्दे पर राजस्थान की पॉलिटिक्स पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार ओम सैनी से बात की तो उन्होंने कहा, “इस बार बड़ा नुकसान होगा पार्टी को, उन्हें लगता है मोदी के चेहरे से सब कुछ हो जाएगा लेकिन ऐसा नहीं है. 2014 या 2019 के मुकाबले उनकी लोकप्रियता में कमी आई है. बेरोजगारी जैसे मुद्दे सामने आए हैं और 2014 से 2019 तक जो प्रामिसेस किए गए थे अब लोग उनपर सवाल करने लगे हैं. इसके अलावा राज्य में कांग्रेस बीजेपी को अब भी टफ कॉम्पिटिशन दे रही है.”

गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान, इलाहाबाद के निदेशक बद्री नारायण तिवारी का तर्क है कि “सेवाओं के प्रभावी वितरण और लाभार्थी निर्वाचन क्षेत्र के विकास ने भाजपा को जाति पहचान की राजनीति को कमजोर करने में मदद की है.” वो बताते हैं कि हाल ही में शुरू की गई विश्वकर्मा योजना जैसे शासन के हस्तक्षेप, जिसमें 18 दस्तकार (कारीगर) समुदायों को लक्षित किया गया था, जो अब तक राजनीतिक रूप से अदृश्य थे, ने भाजपा को पार्टी के खिलाफ किसी भी ओबीसी एकीकरण को रचनात्मक रूप से विफल करने की अनुमति दी थी.

छत्तीसगढ़ में क्यों करना पड़ा शिकस्त का सामना?
वहीं छत्तीसगढ़ में गौर करें तो प्रदेश में तीन बार से बीजेपी के नेतृत्व में रमन सिंह की सरकार बन रही थी, लेकिन साल 2018 में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा था. प्रदेश में कुल 90 विधानसभा सीटें हैं जिनमें से बीजेपी के खाते में महज 15 सीटें आई थीं.

वहीं राज्य में सुरक्षित सीटों पर नजर दौड़ाएं तो बीजेपी को 2013 के मुकाबले 2018 में बड़ा झटका लगा था. राज्य में जहां एससी और एसटी के लिए सुरक्षित सीटों की संख्या 39 है वहीं बीजेपी को इनमें से महज 6 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. 

हालांकि 2013 में हुए चुनाव में बीजेपी को एससी के लिए सुरक्षित 10 सीटों में से 9 पर जीत हासिल हुई थी. जो 2018 में घटकर 2 रह गईं. इसके अलावा पार्टी को एसटी के लिए सुरक्षित 29 में से महज चार सीटों पर जीत हासिल हुई थी.

इन सीटों पर बीजेपी के खराब प्रदर्शन के चलते राज्य में कांग्रेस को तीन चौथाई बहुमत हासिल हुआ था.

जबकि दूसरी ओर देखें तो प्रदेश में लोकसभा चुनाव में बीजेपी का बोलबाला रहा और पार्टी ने राज्य की 11 सीटों में से 9 सीटों पर जीत हासिल की थी. जिसके बाद राज्य में ये मैसेज दौड़ गया कि राज्य में पार्टी रमन सिंह के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव हारी है. वहीं लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मोदी के चेहरे पर जीत हासिल हुई है. 

फिलहाल राज्य में बीजेपी के पास रमन सिंह के विकल्प के रूप में अरुण साव, बृजमोहन अग्रवाल और अजय चंद्राकर जैसे चेहरे मौजूद हैं. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक पार्टी के एक नेता ने ये बात कही है कि पार्टी सीएम उम्मीदवार की घोषणा की जगह सामूहिक नेतृत्व पर ध्यान देकर चुनाव लड़ेगी. वहीं सीएम फेस को लेकर छत्तीसगढ़ बीजेपी के महासचिव ओपी चौधरी का कहना है कि पूरी पार्टी के नेता सिर्फ मोदी हैं.

किस राज्य में कब और कितने चरणों में होगा मतदान?
चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में मतदान और परिणामों की तारीखों का ऐलान कर दिया है. उसके मुताबिक छत्तीसगढ़ और मिजोरम में 7 नवंबर से चुनाव हैं. छत्तीसगढ़ में दो फेज 7 और 17 नवंबर को मतदान होंगे. मध्य प्रदेश में मतदान 17 नवंबर, तेलंगाना में 23 और 30 नवंबर और राजस्थान में 25 नवंबर को मतदान होगा. सभी राज्यों की मतगणना 3 दिसंबर को होगी. 

इससे पहले राजस्थान में मतदान की तारीख 23 नवंबर तय की गई थी लेकिन इस दिन देवउठनी ग्यारस के चलते कई संगठनों ने इसकी तारीख बदलने की बात कही. जिसके बाद चुनाव आयोग ने राजस्थान में 23 की जगह 25 नवंबर को मतदान का ऐलान किया. आयोग ने इस बार मतदान और प्रचार का गैप कम रखा है. 

मध्य प्रदेश में विधानसभा की जहां 230 सीटें हैं, वहीं छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीटें हैं. राजस्थान में विधानसभा की 200 सीटें हैं, जबकि तेलंगाना में 119 और मिजोरम में 40 सीटें हैं. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पिछली बार कांग्रेस की सरकार आई थी. 

हालांकि, ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद 2020 में मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिर गई. सिंधिया 28 कांग्रेस विधायक और अपने समर्थकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए. जिसके बाद बीजेपी ने बहुमत साबित कर अपनी सरकार बना ली. उसके बाद फिर शिवराज सिंह चौहान सीएम बनकर सत्ता में आए. 

किस राज्य में फिर मिल रही बीजेपी को मात?
एबीपी न्यूज द्वारा करवाया गए सी वोटर्स के सर्वे पर नजर डालें तो मध्यप्रदेश में सर्वे के मुताबिक इस बार 230 सीटों में से कांग्रेस को 113-125 सीटें, बीजेपी को 104-116, बसपा को 0-2 जबकि अन्य के खाते में 0-3 सीटें आ सकती हैं. वहीं राजस्थान में बीजेपी इस बार बाजी मारती हुई दिखाई दे रही है. 

सर्वे के मुताबिक इस बार राजस्थान की 200 सीटों में से कांग्रेस को 59-69 सीटें, बीजेपी को 127-137 जबकि अन्य के खाते में 2-6 सीटें आ सकती हैं. इसके अलावा छत्तीगढ़ के ओपीनियन पोल पर नजर डालें तो राज्य में कांग्रेस को 45 से 51 सीटें मिल सकती हैं. 

बीजेपी के खाते में 39 से 45 सीटें आ सकती हैं. वहीं अन्य के खाते में शून्य से दो सीटें आ सकती हैं. राज्य में विधानसभा की कुल सीटें 90 और बहुमत का आंकड़ा 46 है. छत्तीसगढ़ में मौजूदा कांग्रेस सरकार की कमान भूपेश बघेल संभाल रहे हैं. 

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