हेल्थ कम्युनिकेशन को आम लोगों के हिसाब से सरल बनाएं ?
हेल्थ कम्युनिकेशन को आम लोगों के हिसाब से सरल बनाएं
वैसे तो मुझे अक्सर अपने लेखों पर पाठकों से प्रतिक्रियाएं मिलती रहती हैं। लेकिन पिछले दिनों प्रकाशित डेंगू के ऊपर लिखे लेख के बाद गुजरात से स्वास्थ्य विभाग के सीनियर अधिकारी ने एक खास मैसेज किया। उन्होंने बताया कि कैसे मेरा लेख स्वास्थ्य कर्मियों (आशा व आंगनवाड़ी कार्यकर्ता) के विभिन्न ग्रुप में सर्कुलेट हो रहा है।
एक लेखक के रूप में इससे अधिक प्रसन्नता नहीं हो सकती कि आपकी बात उन लोगों तक पहुंच रही है, जिनको जरूरत है। लेकिन इसने मुझे सोचने के लिए भी मजबूर किया। मुझे यह अहसास हुआ कि भारत में स्वास्थ्य संबंधी जानकारी आसान भाषा में फ्रंट लाइन कर्मियों और आम लोगों तक नहीं पहुंचती है।
आम नागरिकों को तपेदिक, मधुमेह, उच्च रक्तचाप या डेंगू और मलेरिया जैसी मौसमी बीमारियों और जुड़े हुए पहलुओं के बारे में अपर्याप्त जानकारी होती है। हालांकि स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ाने पर सरकारें अच्छा-खासा पैसा खर्च करती हैं, लेकिन वे अक्सर उन सवालों का समाधान नहीं करतीं, जो इन बीमारियों के बारे में लोगों के मन में होते हैं।
अधिकांश समय, जानकारी डॉक्टरों की भाषा में तो होती है लेकिन उस भाषा में नहीं होती, जिसे आम व्यक्ति समझ सके। शहरों में होर्डिंग लगाकर और विज्ञापन छापकर जागरूकता के तरीके चले आ रहे हंै। पर एक आम व्यक्ति के पास होर्डिंग पर लिखी बातों को पढ़ने और आत्मसात करने का समय नहीं होता।
भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र में अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं की एक सेना है और मेरा अनुभव कहता है कि उनमें से अधिकांश अपनी भाषा में सामान्य स्वास्थ्य मुद्दों पर अधिक जानकारी चाहते हैं, जो आसानी से उपलब्ध नहीं है। स्वास्थ्य जागरूकता सम्बन्धी जानकारी को डिज़ाइन करने के लिए पेशेवर विज्ञापन एजेंसियों का प्रयोग होना चाहिए।
हालांकि, आजकल सोशल मीडिया पर बहुत सारा कंटेंट आसान भाषा में है, पर उस सामग्री के साथ विश्वसनीयता का मुद्दा है। विश्व के कई देश स्वास्थ्य जानकारी को सरल बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। इसका एक अच्छा उदाहरण यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल वेबसाइट है।
यह स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और आम जनता को आसान भाषा में जानकारी प्रदान करती है। यह सभी आमजनों के लिए वन स्टॉप वेबसाइट है। ऐसे अनुभाग हैं जो डॉक्टर के लिए हैं लेकिन वही जानकारी अधिक सरल भाषा में आम जनता के लिए उपलब्ध है। सामग्री आम जनता के हर प्रश्न का उत्तर देती है। यदि आपके प्रश्न का उत्तर नहीं है, तो केंद्रीकृत कॉल सेंटर पर संपर्क कर सकते हैं और उसका जवाब समझ आ जाएगा। भारत में ऐसा कोई स्रोत नहीं है।
सवाल है कि हमें क्या करना चाहिए। सबसे पहले, सरकारी जागरूकता प्रयासों के लिए पेशेवर विज्ञापन एजेंसियों की मदद लेनी चाहिए। लिखी गई सामग्री, विषय विशेषज्ञों द्वारा जांच की जानी चाहिए और रिलीज से पहले टारगेट ऑडियंस पर परीक्षण किया जाना चाहिए।
ऐसी सामग्री कई भाषाओं में और फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं तक उपलब्ध कराई जानी चाहिए। दूसरा, एक केंद्रीय वेबसाइट की जरूरत है, जिसमें आबादी के विभिन्न समूहों के लिए सभी स्वास्थ्य सामग्री सभी भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हो। प्रत्येक नागरिक को उस वेबसाइट के बारे में पता होना चाहिए और सामग्री तक पहुंच आसान और निःशुल्क होनी चाहिए।
तीसरा, स्वास्थ्य संचार के लिए राष्ट्रीय संस्थान हो। हर राज्य में कम से कम एक स्वास्थ्य संचार उत्कृष्टता केंद्र स्थापित हो। चौथा, प्रत्येक राज्य और हरेक प्रमुख नगरपालिका के पास अपना तंत्र होना चाहिए। पांचवा, इन तंत्रों के लिए भारत की आईटी शक्ति का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाना चाहिए।
भारत की वर्तमान चुनौती हर जगह बहुत सारी जानकारी है, लेकिन नागरिकों के लिए अनाज से भूसी अलग करना मुश्किल है। एेसे में सरल व विश्वसनीय स्वास्थ्य जानकारी का महत्व कहीं अधिक प्रासंगिक हो गया है।
सरकार द्वारा चलाए जाने वाले जागरूकता अभियान में इस्तेमाल की गई सामग्रियों को अधिकतर डॉक्टरों द्वारा बनाया जाता है, लेकिन फ्रंटलाइन वर्कर की भाषा में अक्सर कम ही लिखा जाता है। इसे बदलने की जरूरत है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)