अब 12 देशों में कैंपस, 2.5 लाख स्टूडेंट !

एमिटी यूनिवर्सिटी की सक्सेस स्टोरी:37 साल पहले NGO से शुरुआत, अब 12 देशों में कैंपस, 2.5 लाख स्टूडेंट

एमिटी यूनिवर्सिटी, देश की टॉप यूनिवर्सिटीज में से एक है। NIRF की ताजी रैंकिंग में 31वें नंबर पर। देश में 40 कैंपस और 2.5 लाख से ज्यादा स्टूडेंट्स। हमारे साथ हैं एमिटी यूनिवर्सिटी के चांसलर और चेयरमैन असीम चौहान। बातें एमिटी की शुरुआत, जर्नी और एक आइडिया को कामयाब बिजनेस में बदलने की। तो चलिए शुरू करते हैं…

कुशान: एमिटी यूनिवर्सिटी की शुरुआत कब और कैसे हुई? इसके नाम के पीछे क्या सोच थी?

असीम चौहान: मेरे पिता डॉक्टर अशोक चौहान एजुकेशन को लेकर काफी डेडिकेटेड थे। उनका मानना था कि भारत में हाई क्वालिटी एजुकेशन की जरूरत है। एजुकेशन के दम पर ही हम देश में और समाज में बदलाव ला सकते हैं। देश को आगे ले जा सकते हैं। इसी सोच के साथ उन्होंने 1986 में अपने पिता के नाम पर ऋत्नंद बलवेद एजुकेशन फाउंडेशन की शुरुआत की।

चार साल बाद यानी 1990 में उन्होंने दिल्ली में एमिटी नाम से स्कूल खोला। इसके बाद 1994 में नोएडा में एमिटी बिजनेस स्कूल शुरू किया। आज भारत में एमिटी के 40 कैंपस हैं, 12 यूनिवर्सिटीज हैं और 2.5 लाख से ज्यादा स्टूडेंट हैं। इसके साथ ही ब्रिटेन, यूएई, सिंगापुर सहित दुनिया के 12 देशों में कैंपस है।

जहां तक एमिटी नाम रखने की बात है, तो अंग्रेजी में इसका मतलब दोस्ती और सद्भाव होता है। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि मेरी मां अमिता के नाम पर एमिटी नाम रखा गया है।

कुशान: एमिटी यूनिवर्सिटी की ग्रोथ के लिए आपने क्या स्ट्रैटजी अपनाई?

असीम चौहान: एमिटी यूनिवर्सिटी को आगे बढ़ाने के लिए हमने 3 स्ट्रैटजी अपनाई।

पहली- उस वक्त देश की आबादी के हिसाब से एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स काफी कम थे। एनरॉलमेंट रेट करीब 12% था, जो कम से कम 50% होना चाहिए। आईआईटी जैसे कुछ संस्थान थे, लेकिन उनमें सिर्फ सिलेक्टिव बच्चों का ही एडमिशन हो पाता था।

एक बड़ी आबादी को क्वालिटी एजुकेशन नहीं मिल पाता था। हमने तय किया कि देशभर में वर्ल्ड क्लास एजुकेशन प्रोवाइड कराएंगे। ज्यादा से ज्यादा बच्चों को इससे जोड़ेंगे। इसलिए हमने देशभर में कैंपस खोले।

दूसरी- हम चाहते थे कि इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट के अलावा भी स्टूडेंट्स को करियर के ऑप्शन मिले। हमने अलग-अलग इंडस्ट्री के लोगों के साथ बात की। उनसे जाना कि आगे चलकर किस फील्ड में जॉब्स मिलने वाली हैं। इसके बाद हमने नैनो टेक्नोलॉजी, स्पेस टेक्नोलॉजी, बायो टेक्नोलॉजी जैसे कई प्रोग्राम्स बनाए।

तीसरी- हमने देखा कि दुनिया की बेस्ट यूनिवर्सिटीज रिसर्च और इनोवेशन पर बहुत फोकस करती हैं, लेकिन इंडिया में ऐसा नहीं था। हमने अपनी टैगलाइन बनाई – ‘अ रिसर्च एंड इनोवेशन फोकस्ड यूनिवर्सिटी।’ इसी वजह से हमारे स्टूडेंट्स और साइंटिस्ट्स ने हजारों पेटेंट अपने नाम किए हैं।

कुशान: भारत के एजुकेशन सिस्टम और US जैसे दूसरे देशों की एजुकेशन में क्या बड़े डिफरेंसेज हैं?

असीम चौहान: पहले हमारे एजुकेशन सिस्टम में फ्लेक्सिबिलिटी कम थी। एनरॉलमेंट के बाद कोर्स बदलना आसान नहीं था। जबकि यूएस जैसे देशों में फ्लेक्सिबिलिटी बहुत है। इसलिए हमने काफी पहले ही चॉइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम, फ्लेक्सिबल बेस्ड क्रेडिट सिस्टम, वैल्यू एडेड जैसी चीजें इंट्रोड्यूस कर दी थी।

हमने यह भी तय किया कि कोई भी स्टूडेंट सिर्फ फाइनल एग्जाम के बल पर पास नहीं होगा। उसकी रेगुलर एसेसमेंट जरूरी है। कई बार कुछ टैलेंटेड बच्चे फाइनल एग्जाम में किसी कारण बेहतर नहीं कर पाते हैं। कुछ बच्चे लिखने में अच्छे नहीं होते हैं, लेकिन उनका प्रेजेंटेशन शानदार होता है। इसलिए हमने अपने कोर्स में कंटिनुअस टेस्ट, प्रोजेक्ट वर्क जैसी चीजें शामिल कीं।

अब हमारा एजुकेशन सिस्टम भी काफी तेजी से बदल रहा है। इसमें फ्री थिंकिंग, इनोवेशन, रिसर्च पर जोर दिया जा रहा है। 2020 की नेशनल एजुकेशन पॉलिसी भी फ्लेक्सिबिलिटी पर फोकस करती है। हालांकि फॉरेन कंट्रीज की क्वालिटीज को मैच करने में वक्त लगेगा। मैं चाहता हूं कि दुनिया का बेस्ट टैलेंट भारत आए, भारत में पढ़ाई करे।

कुशान: एजुकेशन सेक्टर की यूनिक और अलग मुश्किलें क्या हैं?

असीम चौहान: हर फील्ड की तरह एजुकेशन सेक्टर में भी सबसे बड़ी मुश्किल है बेस्ट टैलेंट की तलाश करना। फॉरेन कंट्रीज में जो फैकल्टीज होते हैं, वे इंडस्ट्री में काम कर चुके होते हैं। उनके पास फील्ड एक्सपीरियंस होता है। हमारे यहां इस कल्चर को डेवलप करने में वक्त लगेगा। इसको लेकर हम काम कर रहे हैं। लगातार फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम कंडक्ट करते हैं, अपने फैकल्टीज को ट्रेनिंग के लिए बाहर भी भेजते हैं।

कुशान: आने वाले सालों में एमिटी यूनिवर्सिटी के क्या प्लांस हैं?

असीम चौहान: अभी हम कर्नाटक, गुजरात और हैदराबाद में नई यूनिवर्सिटी शुरू करने का प्लान कर रहे हैं। हमारा सपना है दुनिया की टॉप 100 यूनिवर्सिटीज में इंडिया की कोई ना कोई यूनिवर्सिटी हो। इसको लेकर हम काम कर रहे हैं।

अभी एनरॉलमेंट रेट करीब 27% तक पहुंच गया है। मैं इसे 50% तक ले जाना चाहता हूं। मैं हाइब्रिड टेक्नोलॉजी पर काम कर रहा हूं। यानी जिसमें ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों फैसिलिटी हो, ताकि ज्यादा से ज्यादा बच्चों तक एजुकेशन पहुंच सके। साथ ही हम यह भी प्लान कर रहे हैं कि AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) की मदद से कैसे एजुकेशन सिस्टम में बदलाव लाया जा सकता है।

कुशान: आप कॉलेज में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स को क्या टिप्स देना चाहेंगे?

असीम चौहान: भारत में अवसर बहुत हैं। कुछ सालों में हमारी GDP डबल हो जाएगी। यानी हर फील्ड में जॉब्स की भरमार होगी। इसलिए स्टूडेंट्स को इंडस्ट्री की डिमांड के हिसाब से अपने को तैयार करना चाहिए। इसके अलावा एक्स्ट्रा करिकुलम एक्टिविटीज पर भी जोर देना चाहिए। ताकि उनका 360 डिग्री डेवलपमेंट हो सके।

कुशान: आप देश के यंग एंटरप्रेन्योर्स को एक पर्सनल और एक बिजनेस टिप क्या देना चाहेंगे?

असीम चौहान: कोई भी मुश्किल आए, आप हार नहीं मानिए। बिजनेस में कई बार आपको लगेगा कि अब बहुत हो गया, इसे छोड़ देते हैं, लेकिन आप उस वक्त में पीछे मत हटिए। ऐसे मौकों को पार करते हुए अगर आप आगे बढ़ जाते हैं, तो कोई भी मुश्किल आपको नहीं रोक पाएगी।

बिजनेस टिप ये कि आप जो टीम बना रहे हैं, उसमें ऐसे लोग सिलेक्ट करिए जिनकी स्किल्स आपसे अलग हैं। ताकि डायवर्सिटी बिल्ट हो सके। साथ ही आप मेरे इनक्यूबेटर सेंटर आ सकते हैं। हम आपकी मदद करने के लिए तैयार हैं। यंग एंटरप्रेन्योर्स को सपोर्ट करने के लिए हमने कई डेडिकेटेड इनक्यूबेटर सेंटर बनाए हैं।

कुशान: क्या कभी ऐसा वक्त आया, जब आपको लगा बस अब बहुत हुआ? आपने खुद को उस मुश्किल वक्त से आगे कैसे बढ़ाया?

असीम चौहान: मुश्किलें हर बिजनेस लीडर की लाइफ में आती हैं। कई बार तो ऐसी मुश्किलें आती हैं कि समझ नहीं आता कि उन्हें कैसे हैंडल किया जाए। मैंने पिता से सीखी है कि मुश्किल वक्त में खुद को और मजबूत बनाइए, हौसला मजबूत रखिए। रास्ता जरूर निकलेगा।

कुशान: आपकी हॉबीज क्या हैं। आप फ्री टाइम में क्या करना पसंद करते हैं?

असीम चौहान: मैं किताबें पढ़ता हूं। देश और दुनिया में क्या कुछ नया हो रहा है, उसके बारे में पढ़ता हूं। साथ ही यंग एंटरप्रेन्योर्स की मेंटॉरिंग करता हूं। अलग-अलग आइडियाज को लेकर उनसे बातें करता हूं, उन्हें मोटिवेट करता हूं।

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