सरकार से भी ज्यादा ताकतवर हो रही हैं कुछ निजी कम्पनियां !
सरकार से भी ज्यादा ताकतवर हो रही हैं कुछ निजी कम्पनियां
इतिहास को देखें तो सत्ता का केंद्र हर युग में बदलता रहा है। आज फिर एक नए युग का उदय हो रहा है जिसमें सत्ता की बागडोर उन लोगों के हाथों में होगी, जो डिजिटल मंचों को चलाने वाले एआई एल्गोरिदमों को नियंत्रित करते हैं।
एआई-आधारित सत्ता के केंद्रीकरण ने एक नया भयावह पहलू भी अख्तियार कर लिया है। जब हम वैश्विक सत्ता के बारे में सोचते हैं, तब बहुधा हमारे ध्यान में अमेरिका, चीन या रूस जैसे देश आते हैं। पर आज निजी कंपनियां एआई और बिग डाटा जैसे उपकरणों से लाभ उठाने की अपनी क्षमता की बदौलत लोगों के मन को प्रभावित करने, उनके इरादों को बदलने और यहां तक कि उन्हें नियंत्रित करने की विशाल क्षमता हासिल कर रही हैं।
इनमें से कुछ निजी कंपनियां तो राज्यसत्ता से भी ज्यादा शक्तिशाली बन जाएंगी लेकिन यह परिवर्तन स्पष्ट तौर पर दिखेगा नहीं। ये कंपनियां न तो अपना झंडा फहराएंगी, न ही अपनी मुद्रा निकालेंगी (कुछ अपनी क्रिप्टोकरेंसी निकालने की कोशिश जरूर कर रही हैं) और वे सैन्य शक्ति का प्रयोग भी नहीं करेंगी, कम से कम प्रत्यक्ष रूप से तो नहीं।
हालांकि लोगों और दुनिया की चीजों के बारे में उनका अतुलनीय ज्ञान, भौतिक दुनिया को अस्त-व्यस्त करने और बदलने की क्षमता और लोगों की पसंद को प्रभावित करने की शक्ति, यह सब साथ मिलकर एक नई शक्ति का संगम बनाएगा। ऐसी कंपनियां तय करेंगी किसे यह नई शक्ति मिलेगी, किन शर्तों पर मिलेगी और किसे बिल्कुल नहीं मिलेगी।
लेखिका, भविष्यवादी और फ्यूचर टुडे इंस्टिट्यूट की सीईओ एमी वेब की पुस्तक, ‘द बिग नाइन : हाऊ द टेक टाइटन्स एंड देयर थिंकिंग कुड वार्प ह्यूमैनिटी’ में नौ कंपनियों की चर्चा की गई है- छह अमेरिकी और तीन चीनी। बताया गया है कि इनमें से ज्यादातर एआई और बिग डाटा से जुड़ी बौद्धिक सम्पदा की मालिक हैं। इस संघ में एक भी भारतीय कंपनी नहीं है।
सबसे दुर्भाग्य की बात यह है कि बहुत सारे कुशल भारतवंशी अमेरिकी और चीनी कंपनियों में व्यक्तिगत क्षमता के बल पर काम कर रहे हैं। वैसे तो इनमें शीर्ष कार्यकारी पद भी शामिल हैं, लेकिन किसी भी कंपनी का मालिक भारतीय नहीं है।
भारतीय कंपनियों के मालिकों का हाल ये है कि वे सही प्रस्ताव मिलने पर अपने शेयरों को बेचने के लिए सदैव तैयार बैठे रहते हैं। जब भी दुनिया में कोई नवप्रवर्तनशील उद्यमी आशाजनक सफलता पाते हैं, तब उन्हें खरीदने के लिए डिजिटल दिग्गज या उद्यम कंपनियों के प्रतिनिधि इंतजार करते रहते हैं। इस तरह तत्काल सैकड़ों लोग व्यक्तिगत स्तर पर करोड़पति बन जाते हैं। भारत के कई करोड़पति इसमें शामिल हैं।
मैं इस प्रवृत्ति को ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी की वापसी के रूप में देखता हूं, जो 1600 ईसवी में एक मामूली निजी कंपनी की तरह भारत के साथ व्यापार से लाभ कमाने के ध्येय से आई थी। अपने 250 साल के इतिहास में ईस्ट इंडिया कंपनी दुनिया के सबसे विशाल निजी व्यवसाय के तौर पर उभरी। उसने जितने धन, आमदनी और सैन्य शक्ति का संचय किया, वह उसके मालिक देश यानी ब्रिटिश सरकार से भी ज्यादा था।
एक निजी कंपनी होने के बावजूद वह एक औपनिवेशिक शक्ति बन गई- भारत में कई राज्यों में कर वसूलना, अदालतें चलाना और सेना के साथ-साथ राज्य से जुड़े कामकाज का संचालन, यही सब उसकी दिनचर्या हो गई थी। एक समय था, जब ईस्ट इंडिया कंपनी के नियंत्रण में किसी भी यूरोपीय सरकार से ज्यादा जहाज, सैनिक, धन और इलाका था, हालांकि आज उसे एक बदमाश संगठन की तरह याद किया जाता है। तभी से सरकार और निजी कंपनियों के बीच की रेखा अक्सर धूमिल होती हुई दिखाई दी है।
पीपुल्स लिबरेशन आर्मी- जो चीन की सरकार को नियंत्रित करती है- भी एक तरह से चीन के कई पूंजीवादी उद्यमों की प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मालिक है। सरकार इन्हीं कंपनियों से अपनी एआई आधारित चौकसी के लिए और अपने नागरिकों को नियंत्रित रखने के लिए तकनीक लेती है।
- कभी-कभी डिजिटल दिग्गज कंपनियां उस सरकार पर भारी पड़ती हैं, जिसको वे समर्थन देने का दावा करती हैं। सवाल उठता है, क्या निजी कंपनियां ये फैसला ले सकती हैं कि वो लोगों का निजी डाटा सरकार को देकर उनसे धोखाधड़ी करें?