इंसान स्वार्थी नहीं, हमें दान देना अच्छा लगता है ? जीवन में सकारात्मकता आती है …
इंसान स्वार्थी नहीं, हमें दान देना अच्छा लगता है: ….
दूसरों पर खर्च करने से संतोष मिलता है; 7 देशों के 200 लोगों पर हुई रिसर्च
सदियों से कहा गया है कि इंसानमूल रूप से स्वार्थी होते हैं। मैकियावेली ने तर्क दिया था कि इंसान धोखेबाज और लोभी हैं। शास्त्रीय अर्थशास्त्र इस विचार पर आधारित है कि इंसान लगातार अपने स्वार्थ का पीछा करते हैं।
अर्थशास्त्री गॉर्डन टुलॉक ने कहा था कि इंसान औसतन लगभग 95% स्वार्थी है। एक पोल के मुताबिक, सिर्फ 30% अमेरिकी अपने आसपास के लोगों पर भरोसा कर सकते हैं। इस तरह की धारणा मानव स्वभाव के काफी गंभीर दृष्टिकोण की तरफ इशारा करती है। लेकिन, हाल ही में किए गए एक शोध ने इस धारणा पर सवाल खड़ेकर दिए हैं।
लगभग 8 लाख रुपए मुफ्त दिए गए
मनोवैज्ञानिक रयान जेड्वेयर, विलियम जे ब्रैडी और एलिजाबेथ डब्ल्यू डन ने एक प्रयोग किया। इस प्रयोग में 7 देशों के 200 लोगों में प्रत्येक को लगभग 8 लाख रुपए मुफ्त दिए गए। कुछ समयबाद सभी से पूछा गया कि उन्होंने इन पैसों को किस तरह खर्च किया।
औसतन सभी प्रतिभागियों ने लगभग 5 लाख रुपए से ज्यादा दूसरों को फायदा पहुंचाने के लिए खर्च किए। इसमें 1.4 लाख रुपए दान में शामिल है। इसके अलावा सामाजिक खर्च में से लगभग 3 लाख रुपए निकट के लोगों को दिए। लगभग 1.8 लाख रुपए अजनबियों, परिचितों और संगठनोंपर खर्च किए।
जीवन में सकारात्मकता आती है
लोगों को दूसरों पर पैसा खर्च करना फायदेमंद लगता है। इससे जीवन में सकारात्मकता के साथ उन्हें अलग तरह की संतुष्टी महसूस होती है। मानवता के विकसित होने का कारणस्वार्थ नहीं है। बल्कि, हम इसलिए सफल हुए, क्योंकि हम एकदूसरे का सहयोग करने के इच्छुक हैं।