जानिए फर्स्ट एड का सही समय !

रोड एक्सीडेंट में तुरंत इलाज पर 25% बचेंगे:जानिए फर्स्ट एड का सही समय, बच्चे के गले में सिक्का फंसे तो क्या करें

‘हैदराबाद में मेकअप आर्टिस्ट सत्या भानू को बगल के कमरे से अपनी छोटी बेटी कृष्णा अणर्वी की जोर से रोने की आवाज आई। वो भागकर अणर्वी के पास पहुंचीं तो देखा कि वह कंबल में लिपटी निढाल पड़ी हुई थी।

सत्या ने पाया कि अणर्वी की हार्ट बीट और नब्ज दोनों चल नहीं रही थी। उसका शरीर नीला पड़ रहा था।

अणर्वी किसी अनहोनी के डर से कांपने लगीं। उन्होंने पति को फोन किया और बेटी को खुद से CPR देना शुरू किया। 33 अटेम्प्ट और चार बार ब्रीदिंग देने के बाद अणर्वी की सांस लौटी।’

सत्या अपनी बेटी अणर्वी की जान इसलिए बचा सकीं क्योंकि उन्होंने CPR देने की तकनीक पता थी।

सत्या ने फोन पर दैनिक भास्कर को बताया कि चोकिंग यानी अचानक सांस लेना बंद होने की वजह से बेटी लगभग मृत हो गई थी। अगर वो CPR देना नहीं जानतीं तो उनकी बेटी आज दुनिया में नहीं होती।

कृष्णा अणर्वी की तो सांस अटकी लेकिन कई बार बच्चे सिक्का निगल लेते हैं जो उनके गले में अटक जाता है, पानी पीते-पीते चोकिंग से सांस बंद होने लगती है। खेलते-खेलते छत की रेलिंग से बच्चा गिर कर अचेत हो गया, किसी को दौरे या अचानक चक्कर आने पर ऐसी घटनाएं आम सुनने को मिलती हैं।

ऐसी परिस्थिति में मरीज को तुरंत जो सहायता मिलती है वही फर्स्ट एड है। आज ‘वर्ल्ड फर्स्ट एड डे’ पर संकट की स्थिति से तुरंत निपटने के एक्सपर्ट्स से उपाय जानेंगे।

केवल पट्‌टी बांधना ही फर्स्ट एड नहीं है

आप अपने घरों में फर्स्ट एड बॉक्स तो जरूरत रखते होंगे। बैंडेज, कॉटन, पेनकिलर, आइस बैग, हीटिंग बैग, एंटीसेप्टिक क्रीम, पैरासिटामोल, गैस की दवा, ORS, थर्मामीटर, बर्न क्रीम, बड्स, कैंची आदि।

अधिकतर लोग कटने, छिलने या घाव बनने पर केवल बैंडेज बांधने को ही फर्स्ट एड मानते हैं।

फर्स्ट एड को लेकर कैंपेन चलाने वाली हैदराबाद की पीडियाट्रिशियन डॉ. शिवरंजनी संतोष बताती हैं कि केवल बैंडेज या पट्‌टी लगा देना ही फर्स्ट एड नहीं है।

फर्स्ट एड का मतलब

फर्स्ट एड का मतलब है किसी व्यक्ति की स्थिति बिगड़ने से रोक दें, जब तक डॉक्टर नहीं पहुंचें तब तक उसकी स्थिति स्टैबल हो जाए यानी हादसे होने के सेकेंड्स के अंदर ही मरीज को जो मदद मिले जिससे उसकी जान बचाई जा सके।

फर्स्ट एड की मदद से हर 6 मौतों में से 1 की जान बचाई जा सकती है

पिछले 14 वर्षों से फस्ट एड को लेकर वर्कशॉप कर रही डॉ. शिवरंजनी बताती हैं कि सही समय पर सही फर्स्ट एड दिया जाए तो भारत में हर 6 मेडिकल इमरजेंसी में एक की जान बचाई जा सकती है।भारत में फर्स्ट एड को लेकर जागरुकता नहीं है। अगर घर में फर्स्ट एड किट है तब भी लोग इसका सही इस्तेमाल करना नहीं जानते।

जब तक एंबुलेंस नहीं आती तब तक मरीज की स्थिति को कैसे कंट्रोल में रखा जाए, लोगों को पता नहीं होता।

सोसाइटी फॉर इमरजेंसी मेडिसिन के नेशनल प्रेसिडेंट डॉ. एस श्रवण कुमार बताते हैं कि सड़क हादसों में सबसे अधिक लोगों की जान जाती है। अगर फर्स्ट एड सही समय पर मिल जाए तो दुर्घटना में बहुत खून बहने की स्थिति में भी 25% लोगों की जान बचाई जा सकती है।

अफसोस की बात है कि सड़क दुर्घटना ही नहीं, हार्ट अटैक, जलने, बिल्डिंग से गिरने जैसे मामलों में सही फर्स्ट एड नहीं मिल पाती। नतीजा व्यक्ति की जान चली जाती है।

ग्रैफिक से समझते हैं कि कैसे हम अनजाने में मरीज की जान बचाने के बजाए उसे मौत के मुंह में धकेल देते हैं-

चोकिंग में गोल्डन आवर नहीं, गोल्डन सेकेंड्स का असर

सोसाइटी फोर इमरजेंसी मेडिसिन (SEMI) के दिल्ली चैप्टर के प्रेसिडेंट डॉ. अंकुर वर्मा बताते हैं कि किसी भी मेडिकल इमरजेंसी में गोल्डन आवर्स होते हैं लेकिन सांस फंसने की स्थिति में गोल्डन सेकेंड्स ही होते हैं।

चोकिंग का मतलब है गले में खाना अटक जाना, सांस की नली का जाम होना। तुरंत फर्स्ट एड नहीं मिले तो इसमें संभलने तक का भी वक्त नहीं मिलता।

बच्चों और बुजुर्गों में सबसे अधिक चोकिंग देखने को मिलती है।

अभी हाल में गले में मोमो अटकने से 50 साल के व्यक्ति की मौत हो गई थी। इस पर दिल्ली एम्स के फोरेंसिक इमेजिंग जर्नल ने रिपोर्ट में बताया गया कि जल्दबाजी में खाने के दौरान मोमो का बड़ा हिस्सा विंडपाइप यानी सांस की नली में चला गया था। इससे सांस की नली चोक हो गई और कुछ ही देर में व्यक्ति की मौत हो गई।

डॉ. अंकुर बताते हैं कि किसी के गले में बोतल का ढक्कन चला जाए या गले में मछली का कांटा फंसने की घटनाएं कॉमन है। अक्सर दूध पिलाते वक्त बच्चों को भी चोकिंग होती है।

दरअसल, सांस रुकने से परेशानी होती है। यानी एयरवेज चोक होने पर वह खांस कर भी गले में अटकी चीज को बाहर नहीं निकाल सकता। ऐसी स्थिति में हेमलिच मैन्युवर टेक्नीक का इस्तेमाल करना चाहिए।

हेमलिच मैन्युवर टेक्नीक क्या है इसे ग्रैफिक से जानें-

अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक 4-5 साल तक के बच्चों पॉपकॉर्न, कैंडी जैसी चीजें खाने को न दें। बच्चे को चपटा लॉलीपॉप दें। अंगूर को भी चार टुकड़े करके खिलाएं।

हार्ट अटैक में गोल्डन आवर 10 मिनट, CPR से बच सकती है जान

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की गाइडलाइंस ‘गोल्डन आवर्स इन मेडिकल प्रैक्टिस’ के अनुसार, हार्ट अटैक की स्थिति में 10 मिनट का समय गोल्डन आवर होता है। यानी पहले 10 मिनट में CPR (कार्डियो पल्मनरी रिससिटैशन) ट्रीटमेंट मिले तो मरीज की जान बच सकती है।

फर्स्ट एड में डॉक्टर इस 10 मिनट को ‘प्लैटिनम 10 मिनट्स’ कहते हैं।

CPR ऐसी टेक्नीक है जिसमें पीड़ित व्यक्ति की छाती को जोर-जोर से दबाया जाता है ताकि ब्रीदिंग और ब्लड सर्कुलेशन लौट सके। ब्रेन को ऑक्सीजन की सप्लाई शुरू हो सके।

डॉ. अंकुर बताते हैं कि पीड़ित वयस्क है तो अपनी उंगलियों को इंटरलॉक करें और छाती को जोर-जोर से एक मिनट में 100 से 120 बार दबाएं। जबकि बच्चों की स्थिति में केवल दो उंगली या एक हाथ का ही इस्तेमाल करना चाहिए।

कई बार लोगों को यह कंफ्यूजन होता है कि CPR टेक्नीक का प्रयोग हार्ट अटैक के समय ही करना चाहिए। जबकि CPR कई मुश्किल क्षणों में मरीज को बचाने का काम करता है।

बर्न का गोल्डन आवर नहीं, किस डिग्री का बर्न-इलाज इस पर निर्भर

रांची स्थित रिम्स के प्लास्टिक सर्जन डॉ. विक्रांत राजहंस बताते हैं कि बर्न के मामलों में कोई गोल्डन आवर नहीं होता। ट्रीटमेंट इस बात पर निर्भर करता है कि बर्न फर्स्ट, सेंकेंड या थर्ड किस डिग्री का है।

बर्न में तत्काल फर्स्ट एड क्या हो

  • पहले और दूसरे डिग्री के बर्न में जली त्वचा पर 10-20 मिनट तक ठंडा पानी डालें।
  • शरीर पर किसी भी तरह की जूलरी हो तो तुरंत हटाएं।
  • शरीर से कपड़ा हटा दें।
  • साफ पतले सूती कपड़े से जली हुई त्वचा को ढंक दें।
  • भूलकर भी बर्फ या क्रीम न लगाएं।
  • दर्द की स्थिति में पेनकिलर दें।
  • बर्न अधिक होने पर तत्काल टेटनेस का इन्जेक्शन दें।

स्ट्रोक का गोल्डन आवर 1 घंटे

अचानक से सिर में भयंकर दर्द होना, गर्दन अकड़ना, बोलते समय जुबान लड़खड़ाना, चलने-फिरने में परेशानी जैसे लक्षण स्ट्रोक के होते हैं।

हैदराबाद में न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुधीर कुमार बताते हैं कि स्ट्रोक के मामलों में इन लक्षणों को पहचानना ही फर्स्ट एड है। स्ट्रोक होने पर करीब 1 घंटे का वक्त बेहद महत्वपूर्ण होता है। इस पीरियड में मरीज का इलाज शुरू हो जाता है तो उसे बचाया जा सकता है।

सदमे का शिकार का नहीं होता गोल्डन आवर

एक्सीडेंट, सीरियस इंजरी, इन्फेक्शन, स्ट्रेस जैसे कारणों से व्यक्ति सदमे में आ सकता है।

डॉ. सुधीर बताते हैं कि मरीज की त्वचा पीली, हाथ-पैर ठंडे, आंखों के आगे अंधेरा, होंठ और नाखून का पीला पड़ना, प्यास लगना, नब्ज का कमजोर पड़ना, सांस का तेज चलना, उल्टी आना ये सभी लक्षण शॉक की स्थिति में देखने को मिल सकते हैं।

ऐसे में फर्स्ट एड बहुत कारगर है-

  • पल्स रेट चेक करें।
  • मरीज के दोनों पैरों को थोड़ा ऊपर उठाएं।
  • कॉलर को लूज करें।
  • कमर की बेल्ट है तो हटा दें।
  • कोल्ड ड्रिंक न पिलाएं।
  • खाने को न दें।
  • मरीज को कंबल या गर्म कपड़े में लपेटें।
  • इमरजेंसी के लिए डायल 100 पर फोन करें।

सिर में चोट लगने पर गोल्डन आवर 6 घंटे

भारत में रोड एक्सीडेंट में सबसे ज्यादा सिर में चोट लगती है। लेकिन 70% लोग जिन्हें हेड इंजरी होती है वे गोल्डन आवर में अस्पताल नहीं पहुंचते। पीजीआई चंडीगढ़ की ओर से करीब 15,000 मरीजों पर हुई रिसर्च में बताया गया है कि केवल 30% लोग ही गोल्डन आवर यानी 6 घंटे के भीतर अस्पताल पहुंच सके।

66% लोगों को रोड एक्सीडेंट में सिर में चोट लगी जबकि 14% लोगों में सिर में चोट लगने की वजह ऊंचाई से गिरना था।

डॉ. सुधीर बताते हैं कि सिर में चोट लगने पर मरीज के लक्षणों को पहचान कर तुरंत फर्स्ट एड दें।

सिर में अंदरूनी चोट के लक्षण

  • -बार-बार बेहोश होना।
  • आंखों की पुतलियां छोटी-बड़ी होना।
  • धुंधला दिखना। सिर में तेज दर्द ।
  • उल्टी आना।
  • नाक या कान से खून आना।
  • यादादश्त चले जाना।
  • बिहेवियर में अचानक से बदलाव आना।

अगर ये लक्षण दिखे तो क्या करें

  • सिर या गर्दन को हिलाएं-डुलाएं नहीं।
  • मरीज को खुली हवा में रखें।
  • ब्लीडिंग होने पर कपड़े से दबाएं।

गिरने से हडि्डयां टूट जाए या मसल्स इंजरी तो क्या करें

एक्सीडेंट्स की वजह से बोन, जॉइंट और मसल्स इंजरी कॉमन है। खिलाड़ियों को सबसे अधिक मसल्स क्रैंप का सामना करना पड़ता है।

कई बार घर में काम करते वक्त या बाथरूम में गिरने से हडि्डयां ब्रेक कर जाती हैं।

ऐसे में फ्रैक्चर या ब्रेक को पहचानना जरूरी है। चोट वाली जगह पर सूजन, दर्द इसके लक्षण होते हैं।

हडि्डयां खिसक जाएं तो दर्द और सूजन को कम करने के लिए कोल्ड पैक का इस्तेमाल करना चाहिए। मरीज को चोट वाले स्थान को हिलाना-डुलाना नहीं चाहिए।

अगर मसल्स क्रैंप है तो हीट पैक से सिकाई करें। मसाज भी किया जा सकता है।

डॉ. शिवरंजनी संतोष कहती हैं कि आम लोगों में फर्स्ट एड से जुड़ी जानकारियों की कमी मरीज के लिए नुकसानदेह होती है। दूसरा, सड़क के हादसों में हर किसी के पास राय होती है। लेकिन फर्स्ट एड की जानकारी नहीं होती। बेहतर हो कि लोग आगे आएं और हादसे के शिकार व्यक्ति को फर्स्ट एड दें या तुरंत हॉस्पिटल पहुंचाने का काम करें ताकि व्यक्ति की जान बच सके।

डिस्क्लेमर: फर्स्ट एड पर यह आर्टिकल डॉक्टरों की सलाह पर लिखी गई है। किसी इंजरी या मेडिकल इमरजेंसी में CPR, AED या दूसरे फर्स्ट एड का प्रयोग तभी करें जब आपने इसकी ट्रेनिंग ली हो।

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