सफल स्त्रियां अन्य महिला पेशेवरों के लिए स्पेस बनाएं ?

सफल स्त्रियां अन्य महिला पेशेवरों के लिए स्पेस बनाएं

बीते कुछ सालों में भारतीय वर्कफोर्स का लैंडस्केप महत्वपूर्ण बदलावों के दौर से गुजरा है। इसमें एक अहम बदलाव यह आया है कि विभिन्न कम्पनियों में स्त्रियां अब लीडरशिप की भूमिकाओं में आगे आ रही हैं। ऐतिहासिक रूप से, भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की वर्कफोर्स में लैंगिक असंतुलन देखा जाता रहा था और लीडरशिप की भूमिकाओं में स्त्रियों का प्रतिनिधित्व कम रहा था। लेकिन अब यह तस्वीर बदल रही है। बोर्डरूम से लेकर सी-स्यूट्स तक बदलाव नजर आता है। इसके लिए सामाजिक परिवर्तन ही जिम्मेदार नहीं हैं, स्ट्रैटेजिक रूप से भी संगठनों के प्रदर्शन और नवोन्मेष को बढ़ाने के लिए ऐसा किया जा रहा है।

जिन महिलाओं ने लीडरशिप की भूमिकाओं में आने में सफलता पाई है, उनके लिए यह जरूरी है कि न केवल अपना अलग मुकाम बनाएं, बल्कि दूसरी महिला कर्मचारियों के लिए भी स्पेस रचें, ताकि वे भी आगे बढ़कर नेतृत्व की स्थिति में आ सकें। महिला लीडर्स के लिए कार्यस्थल पर अन्य महिला पेशेवरों का सशक्तीकरण करना जरूरी है, नहीं तो उनके नजरिए, अनुभव व प्रतिभा का समुचित उपयोग नहीं हो पाएगा।

कार्यस्थल पर महिला पेशेवरों के सशक्तीकरण के सबसे बेहतरीन उपायों में से एक है स्वयं का उदाहरण प्रस्तुत करना। क्योंकि किसी फीमेल-लीडर का कार्य और व्यवहार कैसा है, इसी से दूसरी पेशेवरों के लिए भी अवसर निर्मित होते हैं।

आत्मविश्वास, लचीलेपन, समावेश आदि गुणों का परिचय देने से दूसरी महिलाओं को भी प्रेरणा मिल सकती है। अपने कॅरियर की यात्रा को प्रदर्शित करना, अपने उपलब्धियों को रेखांकित करना और चुनौतियों से निपटने के अपने अनुभवों को साझा करने से वे दूसरों के लिए प्रेरणा बन सकती हैं। इससे दूसरों में भी विश्वास जगता है।

इतना ही जरूरी है नेटवर्किंग के अवसर निर्मित करना। कॅरियर में ग्रोथ और वर्कप्लेस में सशक्तीकरण के लिए नेटवर्किंग जरूरी है। महिला लीडर्स विशेषकर स्त्रियों के लिए नेटवर्किंग के अवसर निर्मित करने में अग्रणी भूमिका निभा सकती हैं।

वे महिला कर्मचारियों के लिए एक नेटवर्किंग समूह बना सकती हैं और विभिन्न विभागों व वरीयता-क्रम की स्त्रियों को निमंत्रित करके विविधतापूर्ण और समावेशी नेटवर्क बना सकती हैं। वे अपने संगठन में विशेषकर महिलाओं के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म या फोरम भी बना सकती हैं। साथ ही वे महिला कर्मचारियों को ऐसे इंडस्ट्री-स्पेसिफिक इवेंट और कॉन्फ्रेंस में शामिल होने के लिए भी प्रेरित कर सकती हैं, जो लीडरशिप भूमिकाओं में महिलाओं की उपलब्धियों को रेखांकित करती हों।

कार्यस्थल में महिलाओं के सशक्तीकरण का एक और जरूरी आयाम है कौशल-विकास और अपस्किलिंग के अवसर मुहैया कराना। इसके लिए अपने संगठन में महिलाओं की जरूरतों और हितों को समझने वाली वर्कशॉप, ट्रेनिंग सेशन या वेबिनार का आयोजन किया जा सकता है। इनमें नेतृत्वशीलता और निगोसिएशन के कौशल के साथ ही तकनीकी-कुशलता और इंडस्ट्री-स्पेसिफिक नॉलेज आदि विषयों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।

जूनियर महिला कर्मचारियों की मेंटरिंग भी की जा सकती है। उन्हें अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलकर चुनौतीपूर्ण असाइनमेंट्स लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है और उनके आत्मविश्वास को बढ़ाया जा सकता है। एक और तरीका है ऐसे वुमन एम्प्लायी रिसोर्स ग्रुप्स की स्थापना, जो कि नेटवर्किंग, अनुभवों का साझाकरण, महिला पेशेवरों से सम्बंधित मसलों पर चर्चा आदि के लिए सुरक्षित स्थान मुहैया कराते हों।

ऐसे समूह सामुदायिकता की भावना को बढ़ाने वाले होते हैं। एक महिला लीडर अपने संगठन में इस तरह के समूहों की स्थापना करके ऐसी नीतियों को बढ़ावा दे सकती है, जो लैंगिक विविधता और समानता को प्रोत्साहित करती हों।

इसके लिए कर्मचारियों से सीधे संवाद करके या समूह-चर्चा आयोजित करके उनकी समस्याएं जानी जा सकती हैं और समाधान सुझाए जा सकते हैं। शी-रोज़ नामक सोशल नेटवर्क महिलाओं के विकास के लिए ऐसे ही एक बेहतरीन इको-सिस्टम के रूप में उभरकर सामने आया है।

भारतीय दफ्तरों में महिला-पेशेवरों की सहभागिता बढ़ाना केवल समानता का ही मामला नहीं है, यह समग्र-विकास और राष्ट्र-निर्माण की दिशा में एक स्ट्रैटेजिक प्रयास भी है। नेतृत्व के हर स्तर पर लैंगिक विविधता से न केवल नया नजरिया मिलता है, बल्कि निर्णयशीलता और नवोन्मेष में भी बढ़ोतरी होती है।

महिला-पेशेवरों की सहभागिता बढ़ाना समानता का ही मामला नहीं, यह समग्र-विकास और राष्ट्र-निर्माण की दिशा में स्ट्रैटेजिक प्रयास भी है। नेतृत्व के हर स्तर पर लैंगिक विविधता से निर्णयशीलता और नवोन्मेष में बढ़ोतरी होती है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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