क्या मुख्य चुनाव आयुक्त का रुतबा घटेगा …. 18 सितंबर से संसद का विशेष सत्र !

क्या मुख्य चुनाव आयुक्त का रुतबा घटेगा:प्रस्तावित विधेयक में कैबिनेट सेक्रेटरी जैसी सेवा शर्तें; और किन बातों पर सवाल

सबसे पहले मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और टर्म ऑफ ऑफिस) विधेयक 2023 की मुख्य बातें जान लेते हैं…

  • नया कानूनः 10 अगस्त 2023 को केंद्र सरकार ने राज्यसभा में ये विधेयक पेश किया गया था। अब संसद के विशेष सत्र के दौरान इसे सदन में लाया जाएगा। अगर ये विधेयक पारित होकर कानून बनता है तो ये इससे पहले के कानून ‘चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और कार्य संचालन की शर्तें) अधिनियम 1991’ की जगह लेगा।
  • नियुक्तिः इस विधेयक के मुताबिक मुख्य चुनाव आयुक्त यानी CEC और अन्य चुनाव आयुक्तों यानी EC की नियुक्ति एक सिलेक्शन कमेटी के सुझाव पर राष्ट्रपति करेंगे।
  • सिलेक्शन कमेटीः इसमें तीन लोग होंगे- प्रधानमंत्री, लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष और एक कैबिनेट मंत्री जिसे पीएम ही नामित करेंगे। सिलेक्शन कमेटी को पांच लोगों के नाम शॉर्ट लिस्ट करके एक सर्च कमेटी देगी।
  • सर्च कमेटी: इसका नेतृत्व कैबिनेट सेक्रेटरी रैंक के अधिकारी करेंगे। इसमें दो अन्य सेक्रेटरी लेवल के अधिकारी भी होंगे।
  • सेवा: नियुक्ति के दिन से अगले 6 साल तक या 65 साल की उम्र होने तक चुनाव आयुक्त अपने पद की जिम्मेदारी संभालेंगे। चुनाव आयुक्त के पद के लिए कोई भी व्यक्ति सिर्फ एक बार नियुक्त हो सकेगा।
  • सैलरी, अलाउंस, सेवा शर्तें और दूसरी सुविधाएं: चीफ इलेक्शन कमिश्नर और अन्य इलेक्शन कमिश्नर की सैलरी, अलाउंस और दूसरी सुविधाएं कैबिनेट सेक्रेटरी लेवल के अधिकारी के बराबर होंगी।
  • इस्तीफाः आयुक्त किसी भी समय राष्ट्रपति ऑफिस को एक रिजाइन लेटर भेजकर अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं।
  • पद से हटाने के नियम: मुख्य चुनाव आयुक्त यानी CEC को उनके पद से हटाने का जिक्र आर्टिकल 324 के क्लॉज 5 में किया गया है। CEC को उनके पद से सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की तरह ही महाभियोग के जरिए हटाना संभव होगा।

चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और कामकाज का संचालन) अधिनियम, 1991 के मुताबिक इस समय चुनाव आयुक्तों का वेतन, भत्ता और बाकी सेवा शर्तें सुप्रीम कोर्ट के जजों के बराबर है।

क्या नए कानून से चुनाव आयुक्तों की शक्तियां कम हो जाएंगी?
इस कानून के बनने से शक्तियों और विशेषाधिकार में विशेष कमी आने की संभावना नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि चयन होने के बाद CEC और EC संविधान के अनुच्छेद-324 के तहत चुनावों का संचालन करते हैं। संविधान के प्रावधानों के अनुसार स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए चुनाव आयुक्तों को अनेक अधिकार दिए गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट के वकील और ‘इलेक्शन ऑन रोड्स’ के लेखक विराग गुप्ता के मुताबिक समिति के माध्यम से नियुक्ति होने पर मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की विश्वसनीयता बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि, CVC, CBI और ED चीफ की मुखिया की नियुक्ति में भी समिति का सिस्टम लागू होने के बावजूद विवाद बढ़ रहे हैं। इसलिए सिर्फ कानून या नियुक्ति की प्रक्रिया बनाने से चुनाव आयोग की विश्वसनीयता कायम रखना मुश्किल काम है।

इसके लिए निष्पक्ष और योग्य लोगों का चयन करना होगा जो नेताओं के इशारों की बजाय संविधान के प्रावधानों के अनुसार अपनी जिम्मेदारी निभाएं।

भारत के वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार हैं। कैबिनेट की सिफारिश और राष्ट्रपति के आदेश से 12 मई 2022 को नियुक्ति की गई थी। (Photo: PIB)
भारत के वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार हैं। कैबिनेट की सिफारिश और राष्ट्रपति के आदेश से 12 मई 2022 को नियुक्ति की गई थी। (Photo: PIB)

क्या नए कानून से मुख्य चुनाव आयुक्त का दर्जा राज्य मंत्री से कम हो जाएगा?
राष्ट्रपति सचिवालय द्वारा जारी प्रोटोकॉल की नए नोटिफिकेशन के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के जज 9वीं और मुख्य चुनाव आयुक्त 9-ए रैंक पर हैं। दूसरी तरफ कैबिनेट मंत्री 7वीं रैंक और केंद्र सरकार के राज्यमंत्री 10वीं रैंक पर आते हैं। कैबिनेट सेक्रेटरी का दर्जा 11वीं रैंक पर है।

विराग गुप्ता के मुताबिक प्रस्तावित कानून की धारा-10 (1) के मुताबिक मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त का वेतन, भत्ते और सेवा-शर्तें कैबिनेट सेक्रेटरी के दर्जे की रहेंगी, लेकिन प्रोटोकॉल में कोई बदलाव नहीं आएगा।

इसे ऐसे समझें कि भारत रत्न को सुप्रीम कोर्ट के जज से भी बड़ा ओहदा मिलता है, लेकिन उनके सैलरी और बाकी सुविधाओं को लेकर कोई सेवा शर्तें नहीं होती हैं। नए प्रस्तावित कानून में चुनाव आयुक्तों को नौकरी से निकालने के नियम सुप्रीम कोर्ट के जजों को नौकरी से निकालने के नियम के जैसा ही है। इसका मतलब ये है कि उनके प्रोटोकॉल पहले जैसे रहेंगे।

वहीं, पूर्व चुनाव आयुक्त एस. वाई कुरैशी ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि चुनाव आयुक्तों की सेवा शर्तों को कैबिनेट सेक्रेटरी के बराबर करना एक भूल है। पिछले सालों में सरकार ने मुख्य सूचना आयुक्त, मुख्य सतर्कता आयुक्त की सैलरी भी सुप्रीम कोर्ट के जजों की बजाय कैबिनेट सेक्रेटरी के बराबर की है। लेकिन, चुनाव आयुक्त एक संवैधानिक पद है जबकि सूचना आयोग और सतर्कता आयोग संवैधानिक निकाय नहीं है।

क्या नए कानून के बाद CEC को कैबिनेट सचिव की तरह सरकार कभी भी हटा सकेगी?
चुनाव आयुक्तों की बहाली वाले प्रस्तावित कानून की धारा-11 (2) के अनुसार CEC और EC को संविधान के अनुच्छेद-324 (5) के तहत ही हटाया जा सकता है। इसके मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के जजों को हटाने का जो सिस्टम है, उसी प्रक्रिया से CEC को हटाया जाना संभव होगा।

विराग मानते हैं कि प्रस्तावित कानून में CEC के साथ अन्य आयुक्तों को भी अनुच्छेद-324 (5) के दायरे में लाने से उनके कार्यकाल की सुरक्षा बढ़ी है। इसलिए प्रस्तावित कानून के प्रावधानों के अनुसार CEC और EC को कैबिनेट सचिव की तरह सरकार मनमाने तरीके से हटा नहीं सकती।

हालांकि, संसद से कानून पारित होने के बाद ही इन बातों की फाइनल तस्वीर सामने आएगी क्योंकि संसद से पारित कराने से पहले प्रस्तावित बिल के प्रावधानों को सरकार संशोधित कर सकती है।

क्या प्रस्ताव बिल सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लघंन है?
सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में चुनाव आयुक्तों की बहाली वाली समिति में चीफ जस्टिस को शामिल करने का फैसला सुनाया था। हालांकि, सरकार ने जो बिल पेश किया है, उसमें चीफ जस्टिस की बजाय केंद्रीय मंत्री को शामिल किया गया है। इसे अदालत की अवमानना कहा जा रहा है। ऐसा कहना तकनीकी तौर पर सही नहीं है।

इसकी वजह यह है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला संसद के कानून बनने तक ही लागू रहना था। किसी अन्य प्रावधान से अगर CEC और EC के संवैधानिक अधिकारों के हनन करने की कोशिश की गई तो सुप्रीम कोर्ट में नए कानून को चुनौती दी जा सकती है।

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को शामिल न करना सरकार का विशेषाधिकार है। हालांकि, सरकार कैबिनेट मंत्री के बजाय लोकसभा अध्यक्ष को शामिल करने पर विचार कर सकती थी।

उन्होंने कहा कि विधेयक यह आभास देता है कि चुनाव आयुक्त के स्टेटस को भी कम कर दिया गया है। क्या विशेषाधिकार और रियायत के मामले में चुनाव आयुक्तों को सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर रखा जाएगा? इसे स्पष्ट करना पड़ सकता है।

पूर्व चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी का कहना है कि सही तो यही होगा कि नियुक्ति सर्वसम्मति से हो। ये सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन नहीं है, क्योंकि कोर्ट ने वो प्रावधान कानून बनाने तक किया था। ये व्यवस्था विश्वसनीय तब बनेगी जब सर्वसम्मति से नियुक्ति होगी।

ऐसा नहीं है कि इससे विपक्ष के नेता को कोई वीटो पावर मिल जाएगा। उनके पास सर्च कमेटी के दिए हुए जो 5 नाम होंगे, उनमें से ही उन्हें चुनना होगा। विपक्ष के नेता को अगर किसी नाम पर आपत्ति होगी, तो उन्हें दूसरा विकल्प दिया जाएगा। हालांकि, कुरैशी ने चुनाव आयुक्तों को कैबिनेट सचिव रैंक का दर्जा दिए जाने पर आपत्ति जताई है।

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