सियासत से नहीं बुझेगी दिल्ली की प्यास ?

जल संकट: सियासत से नहीं बुझेगी दिल्ली की प्यास, टैंकर माफिया के सामने बेबस है सरकार

 

वैसे तो मौसम की मार झेल रहे दिल्लीवासियों को हर साल भीषण गर्मी के दौरान पानी की भारी कमी से जूझना पड़ता है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से दिल्लीवासी पानी की भारी किल्लत का सामना कर रहे हैं। दिल्ली की जल मंत्री आतिशी दिल्ली के जल संकट के लिए कभी दिल्ली के उपराज्यपाल को, तो कभी हरियाणा सरकार को दोषी ठहराती रहीं, तो वहीं उपराज्यपाल जल संकट के लिए पानी की चोरी और बर्बादी को मुख्य कारण बता रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने टैंकर माफिया पर अंकुश लगाने में नाकाम रहने पर दिल्ली सरकार को कड़ी फटकार लगाई है और यह भी माना है कि इसी वजह से यह समस्या इतना विकराल रूप ले पाई है।

अब जब हिमाचल साफ कह चुका है कि उसके पास दिल्ली को देने के लिए 136 क्यूसेक पानी नहीं है, शीर्ष अदालत ने यह कहते हुए दिल्ली को पानी देने का फैसला अपर रिवर यमुना बोर्ड पर छोड़ा है कि उसके पास जल बंटवारे के जटिल मुद्दे के समाधान की तकनीकी विशेषज्ञता नहीं है।

सवाल यह भी है कि जब हरियाणा द्वारा दिल्ली को पूरा पानी दिया जा रहा है, तो दिल्ली पानी की किल्लत क्यों झेल रही है। दिल्ली वाले पानी के लिए क्यों तरस रहे हैं, मारामारी करने पर क्यों उतारू हैं? असलियत में यह सिलसिला दिल्ली में आप की सरकार के अस्तित्व में आने के साथ से ही लगातार जारी है। दिल्ली को हरियाणा से कुल 1,050 क्यूसेक पानी मिलना चाहिए। एक से 22 मई तक हरियाणा मुनक नहर के कैरियर लाइन नहर यानी सीएलसी में 719 क्यूसेक और दिल्ली सब ब्रांच यानी डीएसबी नहर में 350 क्यूसेक पानी छोड़ा गया था। मतदान के दो से तीन दिन पहले इसे 91 क्यूसेक तक कम कर दिया गया। जहां तक मुनक नहर की मरम्मत और रख-रखाव का सवाल है, इसका ठीकरा दिल्ली सरकार पर फोड़ना नितांत गलत है, क्योंकि नहर की मरम्मत और उसके रख-रखाव का जिम्मा हरियाणा सरकार के सिंचाई विभाग का है। हकीकत में मुनक नहर से पानी बवाना लाया जाता है। बवाना से पहले यदि पानी की चोरी होती है, तो इसके लिए हरियाणा सरकार जिम्मेदार है।

यह तो रही दूसरे राज्यों से पानी आने, न आने की बात। कम पानी आने से वजीराबाद जलाशय का स्तर सामान्य से पांच फीट नीचे आ जाना खतरे का संकेत है। दिल्ली में जगह-जगह लोगों के लिए लगाए गए वाटर एटीएम की बात करें, जिसके बारे में भीषण गर्मी में लोगों की प्यास बुझाने के बढ़-चढ़कर दावे किए जा रहे थे, तो हकीकत यह है कि वे खराब पड़े हैं। जहां तक वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की बात है, तो हाल फिलहाल नौ वाटर ट्रीटमेंट प्लांट अपनी क्षमता से ज्यादा काम कर रहे हैं। दिसंबर तक द्वारका में एक नया प्लांट बनकर तैयार हो जाएगा। लेकिन, असली समस्या तो पानी की मांग और उपलब्धता की है। दिल्ली में पानी की मांग 1,296 एमजीडी से 1,300 एमजीडी तक है, जबकि सप्लाई केवल 998.8 से 1,000 एमजीडी ही है। स्वाभाविक है 300 एमजीडी पानी की कमी तो बरकरार रहती ही है।

जल संकट के मद्देनजर कुल 587 ट्यूबवेल लगाने की योजना थी। पहले चरण में इनमें से कुछ लगे भी, जिनसे 19 एमजीडी पानी मिल रहा है, जबकि दूसरे चरण में 2,590 ट्यूबवेल के लिए 1,800 करोड़ की राशि की दरकार थी, जिसकी अभी तक मंजूरी नहीं मिली है। फिर दिल्ली सरकार के जल बोर्ड की क्षमता केवल 90 करोड़ गैलन पानी के ट्रीटमेंट की ही है।

हकीकत यह है कि दिल्ली सरकार खुद ही पानी के ट्रीटमेंट और स्टोरेज पर पूरी तरह ध्यान नहीं दे पा रही है। ऐसे में दिल्ली सरकार दिल्लीवासियों की पानी की जरूरत कैसे पूरी कर पाएगी, यह समझ से परे है। जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार से पानी की बर्बादी रोकने के लिए योजना पेश करने का निर्देश दिया है। ऐसे में जब तकरीबन 40-50 साल पुरानी पाइप लाइन लीकेज और जगह-जगह फटने से हजारों गैलन पानी की बर्बादी रोजमर्रा की बात है, तो इनमें सुधार किए बिना आने वाले दिनों में दिल्ली वाले पानी के संकट से कैसे निजात पाएंगे, यह समझ से परे है। हिमाचल की मनाही और शीर्ष अदालत के अपर रिवर यमुना बोर्ड के पास जाने के लिए कहने के बाद देखने वाली बात है कि अब दिल्ली सरकार पानी के लिए क्या कदम उठाएगी।

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