मध्य प्रदेश में मामा पर ‘मौन’ बीजेपी चल रही कौन सी चाल?
न सीएम कैंडिडेट किया घोषित न अब तक दिया टिकट, मध्य प्रदेश में मामा पर ‘मौन’ बीजेपी चल रही कौन सी चाल?
बीजेपी ने जिन सीटों पर सात सांसदों को मैदान में उतारा है, उनमें से 5 सीटें वो हैं, जिन पर पिछले चुनाव में पार्टी हार गई थी और 2 सीटें वो हैं जिन पर मौजूदा विधायकों की स्थिति कमजोर आंकी गई.
79 उम्मीदवारों की लिस्ट में 3 केंद्रीय मंत्री समेत 7 सांसदों के नाम शामिल हैं. सीएम पद का ऐलान अभी तक नहीं किया गया, लेकिन मुख्यमंत्री पद के कई दावेदारों को मैदान में उतार दिया है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि शिवराज सिंह की सीट की घोषणा आगे होगी या इस पर भी संशय है. पहली लिस्ट में 39 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम की घोषणा की गईं. इनमें सभी वो सीटें थीं, जिन पर पिछले चुनाव में बीजेपी हार गई थी. इसके बाद दूसरी और तीसरी लिस्ट सामने आई, जिसमें 40 उम्मीदवारों के नाम की घोषणा की गई. इनमें से 37 सीटें ऐसी हैं, जिन पर बीजेपी 2018 में हार गई थी. मतलब बीजेपी का फोकस हारी हुई सीटों पर है.
ओबीसी से आते हैं शिवराज सिंह चौहान
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ओबीसी वर्ग से आते हैं. वह किराड़ जाति से ताल्लुक रखते हैं और बुधनी सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक, राज्य की 50.09 फीसदी आबादी ओबीसी है, अनुसूचित जनजाति 21.1 और अनुसूचित जाति की आबादी 16.6 है. इन आंकड़ों के हिसाब से मध्य प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी, उसमें ओबीसी का अहम रोल है और ओबीसी वर्ग से होने के नाते शिवराज सिंह चौहान राज्य की ज्यादातर सीटों पर अच्छा प्रभाव रखते हैं. अगर पिछले चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालें तो बीजेपी और कांग्रेस के बीच बहुत करीबी मुकाबला था. साल 2018 के चुनाव में बीजेपी को कांग्रेस से सिर्फ 47,827 वोट ज्यादा मिले, लेकिन कांग्रेस को 7 सीटें ज्यादा मिलीं. वहीं, अगर इन सात सीटों पर बीजेपी को 4337 वोट और मिल जाते तो कमलनाथ मुख्यमंत्री नहीं बन पाते. वहीं, विधायकों के वोटबैंक पर नजर डालें तो पिछले चुनाव में बीजेपी के 17 विधायक सिर्फ 1 फीसदी से कम वोट के अंतर से जीते थे और 13 विधायक ऐसे थे, जो 1-2 फीसद वोट के अंतर से और 16 विधायक 2-3 फीसदी वोट के अंतर से जीते.
ओबीसी बहुल 13 जिलों की 40 सीटें बीजेपी के पास
मध्य प्रदेश विधानसभा की कुल 230 सीटों में से 148 अनारक्षित हैं और एससी-एसटी के लिए 82 सीटें रिजर्व हैं. 2018 में बीजेपी ने 39 फीसदी ओबीसी, 24 फीसजी, ठाकुर और 23 फीसदी ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट दिए थे. 13 जिले ऐसे हैं, जहां पर सबसे ज्यादा ओबीसी वर्ग की आबादी है. मुरैना, भिंड, दतिया, शिवपुरी, अशोक नगर, सागर, छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, रीवा, सिंगरौली, सतना और निवाड़ी में सबसे ज्यादा ओबीसी हैं और इन क्षेत्रों की 61 सीटों में से 40 पर बीजेपी का कब्जा है, जबकि कांग्रेस 19 सीटों पर है. बीएसपी और सपा के पास एक-एक सीट है. शिवराज सिंह चौहान ओबीसी चेहरा हैं और इतने लंबे समय तक उनके मुख्यमंत्री बने रहने की यह भी एक वजह है. वहीं, कांग्रेस के पास ओबीसी का उतना दमदार चेहरा नहीं है.
बीजेपी को क्यों बदलनी पड़ रही रणनीति
ऊपर दिए गए आंकड़ों से साफ है कि पिछले चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को कांटे की टक्कर दी थी इसलिए पार्टी इस बार किसी तरह की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहती इसलिए यह प्रयोग करने जा रही है. बीजेपी सातों सांसदों को जिन सीटों पर उतारा गया है, उनमें सें पांच वो सीट हैं, जिन पर पार्टी पिछले चुनाव में हार गई थी और बाकी दो सीटें वो हैं, जिन पर ज्यादा बहुमत से नहीं जीती थी. केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को मुरैना की दिमनी सीट पर उतारा है. मुरैना की 6 में से चार सीटें कांग्रेस के पास हैं. प्रह्लाद सिंह पटेल को नरसिंहपुर सीट से उन्हें उतारा गया है. उनके भाई का टिकट काटा गया है. उनके भाई की स्थिति कमजोर आंकते हुए प्रह्लाद सिंह पटेल को उतारा गया. वहीं, मंडला सीट से फग्गन सिंह कुलस्ते को उतारकर बीजेपी आदिवासी वोटबैंक को साधने की कोशिश कर रही है. 2013 के मुकाबले 2018 में बीजेपी को 2 आदिवासी सीटों का नुकसान हुआ था.
क्या हैं जातीय समीकरण?
बीजेपी ने जो सात सांसद उतारे हैं, वे राजपूत, लोधी, कुर्मी, आदिवासी, वैश्य और ब्राह्मण हैं. नरेंद्र सिंह तोमर, राकेश सिंह, उदय प्रताप सिंह राजपूत समुदाय से हैं. प्रह्लाद पटेल लोधी हैं, गणेश सिंह कुर्मी, फग्गन सिंह कुलस्ते आदिवासी, कैलाश विजयवर्गीय वैश्य और रीति पठक ब्राह्मण जाति से हैं.
बीजेपी में गुटबाजी
अब बात करते हैं कि बीजेपी ने जो ये दांव चला है इससे उसे फायदा होगा या फिर चुनाव से पहले ही गुटबाजी ही नुकसान करेगी. दरअसल, शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया का पहले से गुट है. इस बीच केंद्रीय मंत्रियों और सांसद जैसे हाई प्रोफाइल उम्मीदवारों को उतारा गया, जिनका राज्य में अच्छा प्रभाव है. वे पहले से यहां की राजनीति में सक्रिय रहे हैं. इनमें से कुछ ऐसे हैं जो शायद पहली भी विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन इनमें वो नेता भी हैं जो राज्य की सियासत में लंबा समय बिताने बाद दिल्ली पहुंचे. ये सभी मध्य प्रदेश की लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़कर जीतते आ रहे हैं तो राज्य में उनका भी अच्छा खासा वोटबैंक. इतने सारे गुट होने के बाद अब सवाल ये है कि क्या चुनाव से पहले गुटबाजी ही बीजेपी को नुकसान करेगी या इन सबके बीच मची होड़ बीजेपी को फायदा दे जाएगी. हालांकि, सात सांसदों को टिकट दिया गया, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम का किसी लिस्ट में जिक्र नहीं है.