विशेषाधिकार का मतलब सांसद-विधायक को कानून से ऊपर रखना नहीं !
विशेषाधिकार का मतलब सांसद-विधायक को कानून से ऊपर रखना नहीं ….
SC ने फैसला सुरक्षित रखा, सदन में बयान या रिश्वत लेने पर छूट का मामल
सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या वोट के लिए रिश्वत लेने के लिए मुकदमे से छूट के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया। इसके पहले केंद्र सरकार ने गुरुवार (5 अक्टूबर) को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि रिश्वतखोरी कभी भी मुकदमे से छूट का विषय नहीं हो सकती है। संसदीय विशेषाधिकार का मतलब किसी सांसद- विधायक को कानून से ऊपर रखना नहीं है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने संसद में अपमानजनक बयानबाजी को अपराध मानने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट के सामने एक प्रस्ताव में कहा गया था कि संसद और विधानसभाओं में अपमानजनक बयान सहित हर तरह के काम को कानून से छूट नहीं मिलनी चाहिए। जिससे ऐसा करने वालों के खिलाफ आपराधिक साजिश के तहत दंडात्मक कानूनों को लागू किया जा सके।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सदन के भीतर कुछ भी बोलने पर सांसदों-विधायकों पर कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती। संसद और विधानसभा के सदस्यों को सदन के भीतर बोलने की पूरी आजादी है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, झारखंड मुक्ति मोर्चा की विधायक सीता सोरेन के खिलाफ ‘वोट के बदले रिश्वत’ के आरोप से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की।
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस ए एस बोपन्ना, एम एम सुंदरेश, पी एस नरसिम्हा, जेबी पारदीवाला, संजय कुमार और मनोज मिश्रा की सात जजों की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी।
सीता सोरेन पर राज्यसभा में वोट के बदले रिश्वत लेने का आरोप
दरअसल, सीता सोरेन पर 2012 में राज्यसभा चुनाव के लिए वोट देने के बदले रिश्वत लेने का आरोप है। सीता सोरेन ने अपने बचाव में तर्क दिया कि उन्हें सदन में ‘कुछ भी कहने या वोट देने’ के लिए संविधान के अनुच्छेद 194(2) के तहत छूट हासिल है।
सीनियर एडवोकेट राजू रामचंद्रन ने सुप्रीम कोर्ट में सीता सोरेन का पक्ष रखा। उन्होंने हाल ही में लोकसभा में एक बसपा सांसद दानिश अली के खिलाफ भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी के अपमानजनक बयान का जिक्र करते हुए कहा कि वोट या भाषण से जुड़ी किसी भी चीज के लिए अभियोजन से छूट, भले ही वह रिश्वत या साजिश हो, पूरी तरह होनी चाहिए।
सीता सोरेन मामले का सदन की कार्यवाही से संबंध नहीं
हालांकि, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने सीता सोरेन के मामले को दूसरे मामलों से अलग बताया। उन्होंने कहा कि राज्यसभा चुनाव के लिए वोटिंग का सदन की कार्यवाही से कोई संबंध नहीं है। इसलिए राज्यसभा चुनाव में वोटिंग के लिए रिश्वत लेने के खिलाफ सीता सोरेन का मामला कानूनी दायरे में आता है।
सॉलिसिटर जनरल का तर्क- वोट के लिए रिश्वत सदन के बाहर का मामला
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि रिश्वतखोरी को कभी भी अनुच्छेद 105(2) और 194(2) के तहत छूट के दायरे में नहीं लाया जा सकता। अपराध भले ही संसद या विधानसभा में दिए गए भाषण या वोटिंग से जुड़ा हो, उसे सदन के बाहर अंजाम दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दो दिनों की कार्यवाही के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है।