चुनावी घोषणाओं पर सुप्रीम कोर्ट का नोटिस !
चुनावी घोषणाओं पर सुप्रीम कोर्ट का नोटिस …
बीते 6 महीने में लागू शिवराज सरकार की 4 योजनाएं भी घेरे में; क्या होगा जवाब?
फ्रीबीज यानि मुफ्त की रेवड़ी जैसी सरकारी घोषणाओं और योजनाओं पर सुप्रीम कोर्ट तल्ख हो गया है। शीर्ष अदालत ने केंद्र, मध्यप्रदेश और राजस्थान सरकार के साथ चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर 4 हफ्ते में जवाब मांगा है।
सुप्रीम कोर्ट का यह कदम कई मायनों में खास है। मध्यप्रदेश समेत छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनावों की घोषणा एक-दो दिन में ही हो सकती है। मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने बीते 6 महीने में लाड़ली बहना सहित 4 बड़ी योजनाएं लागू की हैं। इन्हें फ्रीबीज स्कीम्स के दायरे में गिना जा रहा है।
हालांकि, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले सप्ताह ही दैनिक भास्कर के एक कार्यक्रम में कहा था कि यह रेवड़ी संस्कृति नहीं बल्कि सामाजिक क्रांति है। इसके उलट जानकार कहते हैं कि यह फ्री व फेयर इलेक्शन के खिलाफ है।
पहले पढ़िए, सुप्रीम कोर्ट ने क्यों मांगा जवाब
BJP नेता अश्विनी उपाध्याय ने जनवरी 2022 में सुप्रीम कोर्ट में फ्रीबीज के खिलाफ जनहित याचिका दायर की थी। इसमें चुनावों के दौरान राजनीतिक पार्टियों द्वारा वोटर्स से फ्रीबीज या मुफ्त उपहार के वादों पर रोक लगाने की अपील की गई है। यह भी मांग की गई है कि चुनाव आयोग को ऐसी पार्टियों की मान्यता रद्द करनी चाहिए।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने अश्विनी से सहमति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट से फ्रीबीज की परिभाषा तय करने की अपील की थी। केंद्र ने कहा कि अगर फ्रीबीज जारी रहे तो ये देश को ‘भविष्य की आर्थिक आपदा’ की ओर ले जाएंगे।
वहीं, चुनाव आयोग ने कहा था कि फ्रीबीज पर राजनीतिक पार्टियां क्या पॉलिसी अपनाती हैं, उसे रेगुलेट करना चुनाव आयोग के अधिकार में नहीं है। चुनावों से पहले फ्रीबीज का वादा करना या चुनाव के बाद उसे देना राजनीतिक पार्टियों का नीतिगत फैसला होता है। इस बारे में नियम बनाए बिना कोई कार्रवाई करना चुनाव आयोग की शक्तियों का दुरुपयोग करना होगा। कोर्ट ही तय करे कि फ्री स्कीम्स क्या हैं और क्या नहीं? इसके बाद हम इसे लागू करेंगे।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अदालत ने इस जनहित याचिका को पहले से चल रही अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ दिया है। सभी मामलों की सुनवाई अब एक साथ होगी।
सरकारें 5 साल काम नहीं करती, आखिरी में लालच देती हैं
याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकारों द्वारा चुनाव के पहले योजनाओं के जरिए वोटर्स को लालच दिया जाता है। सरकारें पांच साल काम नहीं करतीं, आखिरी में ऐसी योजनाएं लाकर वोटर्स को लुभाने का प्रयास करती हैं। याचिका में मांग की गई थी कि राजनीतिक दलों के घोषणा-पत्र पर नजर रखी जानी चाहिए, साथ ही पूछा जाना चाहिए कि घोषणा पत्र के दावों को कैसे पूरा करेंगे?
MP में चुनाव से 6 महीने पहले 4 बड़ी स्कीम लागू
मध्यप्रदेश में बीते 6 महीने में लाड़ली बहना समेत 4 बड़ी योजना लागू होने से सरकारी खजाने पर सालाना 21,675 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ आएगा।
1. 10 जून 2023 – लाड़ली बहना योजना
1 करोड़ 31 लाख पात्र महिलाओं के बैंक खातों में हर महीने 1250 रुपए डाले जा रहे हैं। योजना पर 163.75 करोड़ रुपए प्रति महीने खर्च हो रहे हैं। सालाना 19,650 करोड़ रुपए खर्च होंगे।
2. 14 अगस्त 2023 – किसान सम्मान निधि 2 हजार रुपए बढ़ाई
MP के 87 लाख किसानों को मिलने वाली सम्मान निधि 4 हजार से बढ़ाकर 6 हजार रुपए की गई। इससे सरकारी खजाने पर 1750 करोड़ का सालाना अतिरिक्त बोझ आएगा। हालांकि, ये सरकार पर साल में एक बार आने वाला बोझ है।
3. 20 जुलाई 2023 – मेधावी छात्र-छात्राओं को लैपटॉप
शिवराज सरकार ने कक्षा 12वीं के 78,641 मेधावी छात्र-छात्राओं के बैंक खातों में 25-25 हजार रुपए डाले। सरकारी तिजोरी पर 196 करोड़ 60 लाख रुपए का अतिरिक्त बोझ आया। ये भी साल में एक बार पड़ने वाला बोझ है।
4. 24 अगस्त 2023 – 7800 स्टूडेंट्स को स्कूटी
कक्षा 12वीं की परीक्षा में टॉप करने वाले छात्र-छात्राओं को सरकार स्कूटी दे रही है। इलेक्ट्रिक स्कूटी के लिए 1 लाख 20 हजार और पेट्रोल वाली स्कूटी के लिए 90 हजार रुपए निर्धारित किए गए हैं। इस योजना पर 79 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं। ये भी साल में एक बार पड़ने वाला बोझ है।
लाड़ली बहना योजना पर 5 साल में खर्च होंगे करीब 1 लाख करोड़
लाड़ली बहना योजना में हितग्राहियों की मौजूदा संख्या 1.31 करोड़ के हिसाब से देखें तो अगले पांच साल में सरकार को 98 हजार 250 करोड़ रुपए खर्च करने होंगे। जब यह योजना शुरू हुई तो सरकार ने कहा था कि पांच साल में 61 हजार 890 करोड़ रुपए खर्च होंगे। यह अनुमान सवा करोड़ हितग्राहियों के हिसाब से किया गया था, लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि राशि 1250 से बढ़ाकर धीरे-धीरे 3 हजार रुपए तक की जाएगी। यानी केवल एक ही योजना को संचालित करने के लिए सरकार को अपनी वित्तीय सेहत ठीक करना होगी।
सरकार का जितना बजट, उससे ज्यादा कर्ज फिर भी फ्रीबीज
मध्यप्रदेश सरकार पर कुल कर्ज 3 लाख 32 हजार करोड़ रुपए हो गया है। 31 मार्च 2022 तक प्रदेश का कुल सार्वजनिक कर्ज 2.95 लाख करोड़ रुपए था। बजट अनुमान (वित्त वर्ष 2023-24 के लिए) के अनुसार 31 मार्च 2024 तक यह आंकड़ा बढ़कर 3.85 लाख करोड़ होने का अनुमान है।
बता दें कि मौजूदा वित्तीय वर्ष में मप्र सरकार का बजट- 3 लाख 14 हजार 25 करोड़ रुपए है। सरकार की इनकम के लिहाज से भी देखें तो सरकार की आमदनी 2023-24 में 2 लाख 25 हजार करोड़ होने का अनुमान लगाया गया है जबकि खर्च 2,79,000 करोड़।
विशेषज्ञ हैरान हैं कि कर्ज में डूबी सरकार ने दो साल में बाजार से एक लाख करोड़ से ज्यादा का लोन उठा लिया है। यह अब तक लिए गए लोन का एक तिहाई है। इसका असर यह हुआ कि मप्र में हर व्यक्ति पर पांच साल में कर्ज डबल हो गया। ऐसा संभवत: पहली बार है। बावजूद इसके सरकार ने फ्रीबीज स्कीम लागू की हैं।
सुप्रीम कोर्ट में अब तक क्या-क्या हुआ
इस मामले की सुनवाई पूर्व सीजेआई एनवी रमना की अगुवाई वाली जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस हिमा कोहली की तीन सदस्यीय बेंच ने अगस्त 2022 में शुरू की थी।
3 अगस्त 2022: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फ्रीबीज मुद्दे पर फैसले के लिए एक समिति गठित की जानी चाहिए। इसमें केंद्र, राज्य सरकारें, नीति आयोग, फाइनेंस कमीशन, चुनाव आयोग, RBI, CAG और राजनीतिक पार्टियां शामिल हों।
11 अगस्त 2022: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘गरीबों का पेट भरने की जरूरत है, लेकिन लोगों की भलाई के कामों को संतुलित रखने की जरूरत भी है क्योंकि फ्रीबीज की वजह से इकोनॉमी पैसे गंवा रही है। हम इस बात से सहमत हैं कि फ्रीबीज और वेलफेयर के बीच अंतर है।’
17 अगस्त 2022: कोर्ट ने कहा, ‘कुछ लोगों का कहना है कि राजनीतिक पार्टियों को वोटर्स से वादे करने से नहीं रोका जा सकता…अब ये तय करना होगा कि फ्रीबीज क्या है? क्या सबके लिए हेल्थकेयर, पीने के पानी की सुविधा…मनरेगा जैसी योजनाएं, जो जीवन को बेहतर बनाती हैं, को फ्रीबीज माना जा सकता है?’ कोर्ट ने इस मामले के सभी पक्षों से अपनी राय देने को कहा।
23 अगस्त 2022: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि आप सर्वदलीय बैठक क्यों नहीं बुलाते? राजनीतिक दलों को ही इस पर सबकुछ तय करना है।
26 अगस्त 2022: पूर्व सीजेआई एनवी रमना ने मामले को नई बेंच में रेफर कर दिया। सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा कि कमेटी बनाई जा सकती है, लेकिन क्या कमेटी इसकी परिभाषा सही से तय कर पाएगी। रमना ने ये भी कहा था कि इस केस में विस्तृत सुनवाई की जरूरत है और इसे गंभीरता से लेना चाहिए।