नई दिल्ली : नशा बेचने वाली कंपनियों की बाजार नीति में फंस रहे 89 फीसदी किशोर ..
नशा बेचने वाली कंपनियों की बाजार नीति में फंस रहे 89 फीसदी किशोर
सर्वे में 14 से 17 साल तक के अधिकांश बच्चों ने कहा, नहीं जानते ई-सिगरेट पीने के नुकसान
नई दिल्ली। शहरों के 89 फीसदी किशोर नशा बेचने वाली कंपनियों की बाजार नीति में फंस रहे हैं। यह जानकारी थिंक चेंज फोरम (टीसीएफ) के दिल्ली सहित 12 से ज्यादा शहरों में किए सर्वे में सामने आई है। 10 हजार से ज्यादा स्कूली बच्चों, किशोर और अभिभावकों से बातचीत के आधार पर सर्वे में यह भी पता चला है कि 14 से 17 साल तक के अधिकांश बच्चे ई-सिगरेट पीने के नुकसान नहीं जानते हैं। 96 फीसदी बच्चों को यह भी नहीं पता है कि भारत में ई-सिगरेट या उससे जुड़े अन्य उत्पादों पर प्रतिबंध है।
हालांकि, प्रतिबंध के बाद भी कई कंपनियां ई-सिगरेट और उससे जुड़े तकनीकी उत्पादों का अलग-अलग तरह से प्रचार कर बेच रही हैं। ई-सिगरेट के दुष्प्रभावों को नहीं जानने वालों में से 52 फीसदी बच्चों को लगता है कि इनसे कोई नुकसान नहीं होता है और ये फैशनेबल लगता है। 37 फीसदी को लगता है कि इनसे कुछ नुकसान होता होगा, लेकिन उन्हें भी यह नहीं पता कि क्या नुकसान होता है। मात्र 11 फीसदी बच्चे स्पष्ट तौर पर जानते हैं कि वैपिंग और इस तरह के अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस खतरनाक हैं।
ने कहा कि यह सच में चिंताजनक है कि ज्यादातर बच्चे वैपिंग के खतरनाक प्रभावों से अनजान हैं। ऐसे उत्पादों को ग्लैमराइज करना और ऐसी आदतों को सामान्य बताकर प्रचारित करने से बच्चों को इनके दुष्प्रभावों के बारे में बिलकुल भी भनक नहीं लग पाती है। युवाओं को इनके खतरों के बारे में बताना होगा। निजी अस्पताल के वरिष्ठ डॉ. राजेश गुप्ता ने कहा कि सूचना के इस युग में भी भारतीय युवाओं पर नशे वाले इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के झांसे में आने का यह खतरा चिंता बढ़ाने वाला है। वैपिंग करते हुए बच्चे निकोटीन, फ्लेवरिंग, अल्ट्राफाइन पार्टिकल और कई रसायनों को सांस के साथ अंदर लेते हैं, जो फेफड़ों की बीमारी का कारण बन सकता है, इसलिए जरूरी है कि बच्चों को वैपिंग से जुड़े खतरों के बारे में सही जानकारी दी जाए और इस बारे में फैले हुए भ्रम को दूर किया जाए।