कांग्रेस ने पीएम पद से दावा छोड़ा, इससे पार्टी को नुकसान या फायदा?

लोकसभा चुनाव 2024: कांग्रेस ने पीएम पद से दावा छोड़ा, इससे पार्टी को नुकसान या फायदा?

लोकसभा चुनाव में एनडीए को टक्कर देने के लिए एक तरफ जहां विपक्ष ने ‘INDIA’ नाम से गठबंधन बना लिया है. इसके साथ ही कांग्रेस ने भी खुद को पीएम पद की रेस से बाहर कर लिया है.
साल 2024 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं और इसे लेकर सभी पार्टियां अपने-अपने समीकरण बनाने बिगाड़ने में लग गई है. इसी क्रम में 17 और 18 जुलाई को बेंगलुरु में 26 राजनीतिक दलों की बैठक हुई. इस बैठक में विपक्षी एकता की राह में सबसे बड़ी बाधा प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी को लेकर थी, जिस पर कांग्रेस ने अपने कदम पीछे खींच लिए.
दरअसल बैठक के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि उन्होंने पहले भी कहा था कि कांग्रेस को सत्ता या पीएम पद में कोई दिलचस्पी नहीं है. उन्होंने कहा कि हमारा इरादा कांग्रेस के लिए सत्ता हासिल करना नहीं है बल्कि भारत के संविधान, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय की रक्षा करना है.

कांग्रेस अध्यक्ष के इस बयान के बाद सभी 26 दलों ने बीजेपी के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरने और एनडीए का मुकाबला करने के लिए ‘INDIA’ नाम से गठबंधन बनाया. इस गठबंधन के बाद सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि साल 2024 लोकसभा चुनाव में मोदी बनाम कौन होगा और कांग्रेस ने पीएम का दावा छोड़ने के फैसले पर पार्टी को कितना नुकसान या फायदा होगा?

पहले जानते हैं विपक्षी गठबंधन में कौन-कौन से दल शामिल हैं

कांग्रेस, डीएमके, टीएमसी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, केरल कांग्रेस (M),आम आदमी पार्टी, जदयू, शिवसेना (UBT), एनसीपी (शरद पवार), सीपीआईएम, समाजवादी पार्टी, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, सीपीआई, आरजेडी, सीपीआई (ML), आरएलडी, मनीथानेया मक्कल काची (MMK), एमडीएमके, वीसीके, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, आरएसपी, केरल कांग्रेस, केएमडीके, अपना दल (कमेरावादी) और एआईएफबी.

कांग्रेस ने क्यों लिया ये फैसला, तीन कारण 

विपक्षी एकता में जितनी भी पार्टियां शामिल हुई हैं उनमें कांग्रेस सबसे पुरानी और बड़ी पार्टी है. ऐसे में कांग्रेस को लेकर क्षेत्रीय दल बार-बार कहते रहे थे कि पार्टी को एक कदम आगे बढ़कर अन्य विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने की कोशिश करनी चाहिए.

कांग्रेस कई बार सार्वजनिक मंचों पर भी कह चुकी है कि पार्टी का फिलहाल एक ही लक्ष्य है और वह है मोदी सरकार को सत्ता से हटाना. इसके अलावा कांग्रेस पिछले दो लोकसभा चुनाव लगातार हार चुकी है.

अगर पार्टी तीसरी बार भी हारती है तो कहीं न कहीं पार्टी को अपना सियासी वजूद को बचाए रखने में मुश्किल हो सकता है. ऐसे में साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए वह किसी भी तरीके को आजमाने के लिए तैयार है.

मोदी सरनेम मानहानि केस में राहुल गांधी की सजा पर गुजरात हाई कोर्ट ने अब तक राहत नहीं दी है. जिसे देखते हुए राहुल गांधी अगला चुनाव लड़ भी पाएंगे या नहीं इस पर फिलहाल सवालिया निशान है.

कांग्रेस को इस फैसले से फायदा या नुकसान, तीन प्वाइंट

राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर अंकुल मिश्रा ने एबीपी को बताया, ‘ कांग्रेस का ये फैसला लेना बहुत ही सोची समझी रणनीति का हिस्सा है, फिलहाल पार्टी में राहुल गांधी के चुनाव लड़ने पर कोई स्पष्टता नहीं है. दूसरी तरफ पार्टी के पीएम पद के दावे से कदम पीछे खींचने के बाद अब मजबूरन क्षेत्रीय दलों को पीएम पद की मांग छोड़नी पड़ेगी.

प्रोफेसर मिश्रा का कहना है कि चुनाव के बाद अगर कांग्रेस विपक्षी गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आती है तो पीएम पद पर उसकी ही दावेदारी होगी. इतना ही नहीं खरगे ने जिस तरह से यह कहा कि है कि कांग्रेस के लिए सत्ता और पीएम पद कोई अहमियत नहीं रखता है, उसके लिए लोकतंत्र, संविधान, सामाजिक न्याय अहमियत रखता है. कांग्रेस के इस फैसले का सीधा असर सीटों के बंटवारे पर भी पड़ेगा. दरअसल ममता बनर्जी और अखिलेश यादव सहित कई ऐसी क्षेत्रीय पार्टियां हैं जो अपने अपने राज्य में मजबूत स्थिति में है और ज्यादा से ज्यादा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारना चाहती है. ऐसे में जब सीट बंटवारे की बात आएगी तो उन्हें भी कांग्रेस के तरह ही बड़ा दिल दिखाने को कहा जाएगा.

क्या कहते हैं पत्रकार 

बीबीसी की एक रिपोर्ट में राजनीतिक विश्लेषक आनंद सहाय कहते हैं, “पटना के बाद बेंगलुरु में बैठक करना और विपक्ष को एकजुट करने के लिए कांग्रेस का पीएम के दावे से खुद को अलग करना इस बात का संकेत है कि कांग्रेस इस गठबंधन को लेकर खास गंभीर है. उनकी ये गंभीरता ही पार्टी को भविष्य में एकजुट भी रख सकती है. इसकी तुलना में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में बिखराव दिखता है.”

वहीं स्वतंत्र पत्रकार शशि शेखर ने एबीपी को बताया, ‘कांग्रेस की यह घोषणा कहीं भविष्य को देखते हुए की गयी राजनीतिक सौदेबाजी है या हताशा में किया गया फैसला, यह तो कांग्रेस के दिग्गजों को ही पता होगा, लेकिन इससे विपक्षी दलों की एकता में दिख रहा एक बड़ा रोड़ा हटता दिख रहा है. अब ये सभी दल बिना पीएम पद का चेहरा घोषित किए चुनाव में जा सकते हैं. वैसे भी विंस्टन चर्चिल ने कभी कहा था, “विपक्ष का मुख्य काम सत्ता पक्ष को कुर्सी से बेदखल करना है.” शायद यही वजह है कि नेता प्रतिपक्ष को ‘पीएम इन वेटिंग’ भी कहा जाता है. इस वक्त भारतीय राजनीति की दिशा इसी तरफ जाती दिख रही है कि कैसे भी हो, मोदी को सत्ता से कैसे बेदखल किया जाए.’

बीजेपी के खिलाफ INDIA की रणनीति 

देश के 26 विपक्षी पार्टियों को एक साथ आने का एक ही कारण है पीएम मोदी को हराना. गठबंधन की यही कोशिश होगी कि वह हर सीट पर एनडीए के उम्मीदवार के खिलाफ अपना एक उम्मीदवार उतारे. पिछले कई विधानसभा चुनावों में ये देखा भी जा चुका है कि ‘वन टू वन’ लड़ाई में बीजेपी को हराना थोड़ा आसान हो जाता है.

हालांकि इस फॉर्मूले को अपनाने के लिए सभी पार्टियों में से किसी न किसी को त्याग करना ही होगा. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि कौन किसके लिए कितनी सीटें छोड़ेगा.

INDIA बनाम NDA का गणित 

जिस दिन विपक्षी पार्टियों की बैठक हो रही थी उसी दिन एनडीए ने भी 38 दलों के मीटिंग बुलाई थी. इस मीटिंग के बाद 2024 में होने वाला लोकसभा चुनाव ‘इंडिया’ बनाम ‘एनडीए’ हो गया है. जहां एक तरफ विपक्ष मोर्चे में 26 दल एक साथ मैदान में उतरेंगे तो वहीं दूसरी तरफ एनडीए की बैठक में 38 पार्टियों के शामिल होने का दावा किया गया.

इन दोनों ही गठबंधन में एक बड़ा अंतर जो नजर आ रहा है वह यह कि बीजेपी ने कई छोटे-छोटे दलों को अपने साथ शामिल किया है. वहीं ये छोटे दल विपक्षी गठबंधन India से गायब हैं. इन दलों को या तो बैठक में आमंत्रित नहीं किया गया या फिर विपक्ष ने उन्हें अपने में शामिल करने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं की.

उदाहरण के तौर पर ओवैसी की पार्टी को ही ले लीजिये. ओवैसी हमेशा बीजेपी के विरोध में मैदान में उतरती आई है और चुनाव भी इसी नाम पर लड़ती है. इसके अलावा उत्तर प्रदेश में चंद्रशेखर आजाद और मायावती का अपना वोट बैंक है.

ठीक इसी तरह बिहार में मुकेश सहनी है, पप्पू यादव हैं. लेकिन, क्षेत्रीय राजनीति के कारण नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के लिए ये लोग महत्वपूर्ण नहीं रह जाते. लेकिन बिल्कुल इसके उलट बीजेपी उपेन्द्र कुशवाहा, चिराग पासवान, मांझी, ओपी राजभर, अनुप्रिया पटेल जैसे छोटे दलों के नेताओं को भी अहमियत दे रहे हैं और हो सकता है कि इनके बूते पर ही बीजेपी यूपी-बिहार में बाजी मार ले जाए.

अब जानते हैं बीजेपी के साथ कौन कौन 36 दल शामिल 

बीजेपी, शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) , राष्ट्रीय लोक जन शक्ति पार्टी (पारस), लोक जन शक्ति पार्टी (रामविलास पासवान), एजीपी, निषाद पार्टी, यूपीपीएल, एआईआरएनसी, टीएमसी (तमिल मनीला कांग्रेस), शिरोमणि अकाली दल सयुंक्त, जनसेना, एनसीपी (अजित पवार), हम, अपना दल (सोनेलाल), एआईएडीएमके, एनपीपी, एनडीपीपी, एसकेएम, आईएमकेएमके, आजसू, एमएनएफ, एनपीएफ, आरपीआई, जेजेपी, आईपीएफटी (त्रिपुरा), बीपीपी, पीएमके, एमजीपी, रालोसपा, सुभासपा, बीडीजेएस (केरल), केरल कांग्रेस (थॉमस), गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट, जनातिपथ्य राष्ट्रीय सभा, यूडीपी, एचएसडीपी, जन सुराज पार्टी (महाराष्ट्र) और प्रहार जनशक्ति पार्टी (महाराष्ट्र).

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