शासन संबंधी ऐसे सुधार लालफीताशाही से मुक्ति दिलाने से परे तमाम मूर्त एवं अमूर्त फायदों का माध्यम भी बनते हैं। सबसे पहला लाभ तो यही कि ये अनुपालन आवश्यकताओं के बोझ को हटाकर उद्यमों को नवाचार एवं वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करने में सहायक बनकर आर्थिक उत्पादकता को बढ़ाते हैं। खासतौर से छोटे उद्यमों एवं स्टार्टअप्स के लिए इन पहलुओं की बहुत उपयोगिता है, क्योंकि अक्सर उन्हें नियामकीय बाधाओं से दो-चार होना पड़ता है। दूसरा, नियमों के सुगम बनने से सरकार द्वारा उद्यमिता को प्रोत्साहन, आर्थिकी का विविधीकरण और रोजगार सृजन को बढ़ावा दिया जाता है। तीसरा, छोटे-मोटे मामले अदालती दायरे से बाहर ही सुलझ जाते हैं, जिससे न्याय की प्रक्रिया पर बोझ घटने से उसकी गति तेज होती है। चौथा लाभ यही कि इससे सरकार और नागरिकों के बीच भरोसे की बुनियाद मजबूत होती है कि सरकार उन्हें दंडित करने से अधिक उनकी साझेदारी को महत्व देती है।

इन सुधारों के अमूर्त लाभ भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। जिस गवर्नेंस माडल में अनावश्यक रूप से दंडित करने की भावना नहीं होती, उसमें नागरिकों एवं उद्यमों के भीतर अपने कार्यों की जिम्मेदारी का दायित्वबोध बढ़ता है। इससे विश्वास एवं परस्पर जवाबदेही की संस्कृति विकसित होती है, जो न केवल लोकतंत्र को सशक्त, अपितु एक सामंजस्यपूर्ण समाज का निर्माण करती है। जब नियामकीय मोर्चे पर बोझ घटता है और सहयोग-समन्वय पर जोर होता है तो इसके माध्यम से सरकार उस बुनियाद को ही मजबूत करती है, जिसमें नागरिक और उद्यम नवाचार, वृद्धि और समग्र बेहतरी पर ध्यान देने में सक्षम होते हैं। परिणामस्वरूप राष्ट्रीय प्रगति को तेजी के पंख लगते हैं।

जहां केंद्र सरकार नियामकीय बोझ घटाने और विश्वास आधारित गवर्नेंस ढांचे को सशक्त बनाने के लिए विभिन्न उपाय कर रही है तो राज्य सरकारों को भी ऐसे सुधारों की दिशा में कदम बढ़ाने चाहिए। आखिरकार रोजमर्रा के कई मामलों में नागरिकों और उद्यमों का केंद्र के बजाय स्थानीय निकाय और राज्य सरकारों के साथ कहीं ज्यादा सरोकार जुड़ा होता है। चाहे परमिट लेना हो, विवादों का समाधान हो, या आवश्यक लोक सेवाओं तक पहुंच जैसे काम मुख्यत: स्थानीय निकाय और राज्य सरकार के स्तर पर ही संपादित होते हैं। असल में चाहे जीवन की सुगमता हो या कारोबारों के लिए सुगम परिवेश बनाने से जुड़ी पहल तभी सफल हो सकती हैं जब शीर्ष से लेकर जमीनी स्तर पर उन्हें उचित रूप से क्रियान्वित किया जा सके। व्यक्तियों और उद्यमों को जिन सबसे प्रमुख अवरोधों से जूझना पड़ता है उन्हें दूर करने की कुंजी मुख्य रूप से राज्य सरकारों के पास होती है। सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता, गवर्नेंस की सक्षमता और जीवन एवं उद्यम को सही दिशा में उन्मुख करने से संबंधित अधिकांश पहलू इन्हीं स्तरों पर प्रभावित होते हैं। इसलिए राज्य और स्थानीय निकायों को अपनी जिम्मेदारियां समझकर सार्थक पहल एवं क्रियान्वयन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

मध्य प्रदेश ने गत सप्ताह एमपी जन विश्वास (संशोधन का प्रविधान) विधेयक, 2024 पारित कर एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया है। इसका आधार केंद्र सरकार का जन विश्वास अधिनियम, 2023 ही है। इस ऐतिहासिक विधायी पहल का उद्देश्य कानूनी प्रक्रियायों को सुगम बनाना, पारदर्शिता सुनिश्चित करना और गुड गवर्नेंस को बढ़ावा देकर सामान्य नागरिकों और उद्यमिकों की राह आसान बनाना है। इस विधेयक के अंतर्गत पांच प्रमुख विभागों की 64 धाराओं में संशोधन किया गया है, जिसमें औद्योगिक नीति एवं निवेश संवर्धन, ऊर्जा, सहकारिता, श्रम और शहरी विकास जैसे विभागों के विषय शामिल हैं। इसके तहत छोटी-मोटी गलतियों पर जेल के बजाय हर्जाने का प्रविधान और 920 अप्रासंगिक कानूनों को समाप्त कर आधुनिक दौर के अनुकूल उन्हें सुसंगत करना प्रमुख सुधारों में शामिल हैं। नि:संदेह ये सुधार सक्षम एवं कारोबार अनुकूल परिवेश को बढ़ावा देने में सहायक बनेंगे।

अन्य राज्यों को भी मध्य प्रदेश से सीख लेकर इस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। ऐसे सुधार तमाम अवरोधों को दूर कर राज्य की उन आर्थिक संभावनाओं को भुनाने में सहायक बनेंगे, जिन्हें विभिन्न बाधाओं के चलते अभी तक पूरी तरह भुनाया नहीं जा सका। हालांकि यह एकमुश्त रूप से नहीं किया जा सकता। वही नियामकीय ढांचा बेहतर होता है जो समय और सामाजिक आवश्यकताओं के अनुरूप स्वयं को ढाल सके। ऐसे में, राज्य सरकारों को ऐसा संस्थागत ढांचा बनाना चाहिए जो प्रत्येक पांच से 10 वर्षों के दौरान नीतियों की नियमित अंतराल पर समीक्षा के साथ उनके परिणामों एवं वर्तमान प्रासंगिकता पर प्रकाश डाल सके। इसमें नीतियों-नियमों की परख भी संभव है कि अपने मूल उद्देश्यों पर वे कितने खरे उतरे। यदि राज्य सरकारें इस दिशा में अपनी गति बढ़ाती हैं तो इससे केंद्र सरकार के जीवन को सुगम बनाने के प्रयासों को बड़ा सहारा मिलेगा।

(लेखक लोक नीति विश्लेषक हैं)