फेस्टिव सीजन में बढ़ती है खाने में मिलावट !
सेहतनामा- फेस्टिव सीजन में बढ़ती है खाने में मिलावट
दो साल में FSSAI ने लगाया 100 करोड़ का जुर्माना, मिलावटखोरों से सावधान
वह लिखते हैं कि अचार में तांबा मिलाकर इसके रंग चटक किये जा रहे हैं, विनेगर में सल्फ्यूरिक एसिड मिलाया जा रहा और दूध में आरारोट मिलाया जा रहा है। यहां तक कि बच्चों के खाने की क्रीम में जहरीले केमिकल मिलाए जा रहे हैं।
इन खुलासों के बाद वहां के लोग खाने में मिलावट को लेकर सजग हो गए। सड़कों पर रैलियां निकालने लगे, नारे लगाने लगे और सबसे बड़ी बात यह कि अपनी खाने-पीने की चीजों पर नजर रखने लगे।
ऐसा नहीं है कि इस किताब के आने से पहले लोगों को खाने में हो रही मिलावट के बारे में मालूम नहीं था। पर उनकी आंखें तब खुलीं, जब उन्हें मालूम चला कि मिलावटखोर खाने को एडिक्टिव और आकर्षक बनाने के चक्कर में किस हद तक जाकर उसमें जहरीली चीजें मिलाने पर आमादा थे। वो भी थोड़े और मुनाफे के लिए।
उस किताब को छपे 200 साल बीत चुके हैं और मुनाफे के लालच में किया जा रहा मिलावट का यह कारोबार पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो चुका है। जितनी जागरूकता इन सालों में बढ़ी है, उसी के अनुपात में अज्ञानता भी।
दिवाली-दशहरा के इस मौसम में मिलावटखोरों की चांदी हो जाती है। सालों से चल रहा मिलावट का यह गोरखधंधा और भी फलने-फूलने लगता है। आपके त्योहार की खुशियों की मिठास कहीं फीकी न पड़ जाए, इसलिए आज हम बात करेंगे फेस्टिव सीजन में खाने-पीने की चीजों में होने वाली मिलावट के बारे में।
सबसे ज्यादा मिलावट दूध और उससे जुड़े प्रोडक्ट्स में
2020 में इसी दिवाली-दशहरे के सीजन में FSSAI ने एक सर्वे किया। सर्वे में दूध से बने अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट और मिठाइयों की जांच की गई। देश के अलग-अलग हिस्सों से 2081 सैंपल इकट्ठा किए गए और जांच के लिए लैब में भेजे गए। जब नतीजे आए तो पता चला कि 40% सैंपल मानकों पर खरे नहीं उतर रहे थे।
इसमें से कुछ प्रोडक्ट्स में केमिकल की मिलावट पाई गई तो कुछ में ई-कोलाई जैसे खतरनाक बैक्टीरिया पाए गए।
हालांकि मिलावट का शिकार अकेले दूध और खोया ही नहीं हैं। मिलावटी चीजों की लिस्ट काफी लंबी है। इसके अलावा एक बड़ी समस्या गलत और भ्रामक लेबल की भी है। मतलब नाम बड़े और दर्शन छोटे।
पैक्ड सामान भी है मिलावट की जद में
आमतौर पर हमें लगता है कि मिलावट सिर्फ खुले मिलने वाले सामानों में होती है, लेकिन सच तो ये है कि पैक्ड चीजें भी मिलावट से अछूती नहीं। हाल ही में महाराष्ट्र में एक मामला सामने आया था, जिसमें दूध के पैकेट खोल-खोल कर उसमें पानी भरा जा रहा था। और फिर मोमबत्ती से पैकेट जोड़ दिया जा रहा था।
2020 की मिल्क सर्वे की रिपोर्ट में पाया गया कि 57% दूध के सैंपल में किसी न किसी तरह के केमिकल की मिलावट थी। इसमें से कुछ पैकेज्ड दूध के सैंपल भी थे।
मिलावट कब बढ़ती है? कैसे पता करें किन चीजों में है मिलावट
शायद इस मामले में ईमानदार वही है, जिसे बेईमानी का मौका नहीं मिला। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि आप हर किसी पर शक करना शुरू कर दें। बस एक चीज हमेशा ध्यान रखने लायक है कि अगर ‘अवसर’ व ‘बेईमानी की इच्छा’ मिल जाए और नियम थोड़े ढीले पड़ जाएं तो ये खाने में मिलावट और फ्रॉड को जन्म देते हैं।
ऐसा हम नहीं कह रहे, यह दुनिया भर में खाने की मिलावट पर नजर रखने वाली गैर सरकारी संस्था SSAFE का कहना है।
इसलिए त्योहारों में जब खोये, दूध, मिठाइयों और घी वगैरह की मांग अचानक बढ़ जाती है तो जाहिर है, मिलावट का कारोबार भी बढ़ता है। इस तरह की चीजों में मिलावट की संभावना सबसे ज्यादा होती है-
- जिनकी मांग अचानक से बढ़ गई हो
- जिनकी कीमत ज्यादा हो
- जल्दी खराब होने वाली चीजें
- ज्यादा ही फ्रेश दिखने वाले फल
सबसे ज्यादा मिलावट की शिकार चीजें:
दूध और मिल्क प्रोडक्ट
हम सभी जानते हैं कि दूध मिलावट का शिकार होता है। आए दिन खबरें भी आती रहती हैं। लेकिन समस्या सिर्फ मिलावट की नहीं है। दूध जल्दी खराब होता है, इसलिए इसमें केमिकल प्रिजर्वेटिव भी मिलाए जाते हैं।
दूध में पानी और डिटर्जेंट की मिलावट पता करने का एक नुस्खा भी है। किसी चिकनी सतह के बोर्ड पर एक बूंद दूध की डालें और उसे तिरछा करें, अगर दूध में पानी मिला होगा तो वह बिना निशान छोड़े बहेगा। और अगर दूध शुद्ध होगा तो बूंद अपनी जगह पर रहेगी या फिर सफेद निशान छोड़ेगी।
तेल
तेल में मिलावट दो सूरतों में बढ़ती है। अगर तेल की कीमतें अचानक से बढ़ जाएं और दूसरा जब त्योहारों में तेल की मांग बढ़ जाए। ऐसे में मुनाफे के लिए तेल में कभी पाम ऑयल मिलाया जाता है तो कभी केमिकल से तेल का रंग चटक किया जाता है।
FSSAI के तेल पर किए गए सर्वे में 30% तेल के सैंपल मानकों के अनुरूप नहीं पाए गए। इसलिए तेल खरीदने से पहले बोतल पर FSSAI का लोगो जरूर चेक करें। खुला तेल न खरीदें।
गुड़
FSSAI का गुड़ पर किया गया सर्वे भी मिलावट के संकेत देता है, जिसमें 34.5% सैंपल मानकों पर खरे नहीं उतरे। साथ ही एक डराने वाली बात यह सामने आई कि 25% सैंपल पैकेज्ड गुड़ के थे। एरिथ्रोसिन और टार्ट्राजिन जैसे केमिकल से गुड़ को लाल किया जाता है। इसलिए चटक रंग देखकर अपनी नजरों से धोखा न खाएं।
नारियल का गुड़ इस मामले में सुरक्षित पाया गया। इसके एक भी सैंपल में गड़बड़ी नहीं थी। इसलिए अगर गुड़ की क्वालिटी के बारे में दुविधा है तो नारियल के गुड़ को एक चांस दे सकते हैं।
केसर
कभी पहाड़ों पर जाएं तो अक्सर टहलते हुए एक आदमी आता है और कान में पूछता है- केसर? चौंककर हम उसकी तरफ देखते हैं। और वो दाम बताता है, 3 हजार। फिर मोलभाव के बाद 300 रुपए में एक डिब्बी दे जाता है। जानते हुए कि इस केसर के असली होने के चांस न के बराबर हैं, लालच में हम उसे खरीद ही लेते हैं।
यह सिर्फ पहाड़ों की कहानी नहीं है। केसर भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा नकली बनाई जाने वाली चीजों में से एक है। कारण है इसकी कीमत।
एक बात ध्यान रखिए, अगर कोई बहुत महंगी चीज बहुत सस्ते में मिल रही है तो सजग हो जाइए। कोई शुद्ध शहद कौड़ियों के दाम देकर जा रहा तो जरा रुकिए। लालच में मत आइए।