वन नेशन, वन इलेक्शन …सेमीकंडक्टर चिप का भी बड़ा रोल!

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’: चुनाव आयोग के तर्क, सेमीकंडक्टर चिप का भी बड़ा रोल!
पिछले बहुत समय से ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की बात चर्चाओं में बनी हुई है, लेकिन सेमीकंडक्टर चीप की कमी इसके वजूद में आने पर एक बड़ी अड़चन साबित हो रही है.
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के लिए पिछले बहुत समय से तर्क वितर्क किए जाते रहे हैं. 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में देश में विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ ही हुए थे. हालांकि उसके बाद साल 1968 और 1969 में कुछ विधानसभाओं और 1970 में लोकसभा भंग होने के बाद हालातों में बदलाव आया.

साल 2018 में विधि आयोग की तरफ से तैयार किए गए मसौदे में भी ‘एक देश एक चुनाव’ की वकालत की गई थी. इस मसौदे में ये बात कही गई थी कि देश को यदि चुनावी मोड से निकाला जाता है तो विकास पर और अधिक ध्यान दिया जा सकता है.

हालांकि अब तक ऐसा संभव नहीं हो सका. अब अगले महीने यानी नवंबर 2023 में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव और इसके कुछ समय बाद यानी 2024 के शुरुआती महीनों में लोकसभा चुनाव होने हैं. इस बीच मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने वन नेशन वन इलेक्शन की अवधारणा पर कहा कि वो कानूनी प्रावधानों के अनुरूप चुनाव करवाने के लिए तैयार हैं. तो चलिए आज जानते हैं इस मुद्दे पर चुनाव आयोग के सवाल और सेमीकंडक्टर यानी चिप का क्या रोल है.

क्या है ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ पर तर्क?
वन नेशन वन इलेक्शन का तर्क दिया जाता है कि आदर्श आचार संहिता लागू होते ही सरकार कोई नई योजना लागू नहीं कर सकती है. इसके अलावा आचार संहिता के दौरान नए प्रोजेक्ट्स की शुरुआत या नई नौकरियां या नई नीतियों की घोषणा भी नहीं की जा सकती. जिसका असर देश के विकास के काम पर पड़ता है.

इसके अलावा एक दूसरा तर्क ये भी है कि एक चुनाव होने से चुनावों पर होने वाले खर्च में भी कमी आएगी. साथ ही जब भी चुनाव होते हैं तो तमाम सरकारी कर्मचारी इसमें लग जाते हैं. ऐसे में बार-बार चुनाव नहीं होंगे तो वो अपने काम पर फोकस कर पाएंगे. भारत में साल 1967 तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए चुनाव एक साथ हुआ करते थे. साल 1947 में भारत के आजाद होने के बाद नए संविधान के तहत देश में पहला आम चुनाव साल 1952 में हुआ था.

इसके बाद साल 1957, 1962 और 1967 में भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ ही करवाए गए थे. एकसाथ चुनाव कराने का ये क्रम उस समय टूटा जब केरल में साल 1957 में हुए चुनाव में ईएमएस नंबूदरीबाद की वामपंथी सरकार को चुना गया था. जिसके बाद इस सरकार को उस वक्त की केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 356 के अधीन राष्ट्रपति शासन लगाकर हटा दिया था. इसके बाद साल 1960 में दोबारा विधानसभा चुनाव कराए गए. 

क्या है सेमीकंडक्टर चिप?
मई 2022 में इजरायल की आईएसएमसी एनालॉग फैब प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने राज्य में सेमीकंडक्टर चिप उत्पादन का प्लांट लगाने का प्रस्ताव रखा था. कर्नाटक सरकार के मुताबिक इस परियोजना की लागत करीब 22,900 करोड़ रुपए है. सरकार की माने तो इसके शुरू होने से करीब 1500 स्थानीय लोगों को प्रत्यक्ष तौर पर रोजगार मिलेगा. 

आईएसएमसी एनालॉग फैब प्राइवेट लिमिटेड कंपनी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिप बनाने का काम करती है. कंपनी के मुताबिक प्लांट लगने में 7 साल का वक्त लगेगा. इससे प्रत्यक्ष के अलावा अप्रत्यक्ष तौर पर करीब 10 हजार लोगों को रोजगार मिल सकेगा. बता दें सेमीकंडक्टर चिप की लगातार होती कमी पूरे विश्व के लिए एक बड़ी समस्या है. जिसका उपयोग ईवीएम मशीन बनाने के लिए भी किया जाता है.

एक देश एक चुनाव में सेमीकंडक्टर चिप कैसे है अड़चन?
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, एक साथ चुनाव कराने की व्यवहार्यता के संबंध में इस साल की शुरुआत में चुनाव आयोग ने कानून पैनल को अपनी प्रतिक्रिया में सेमीकंडक्टर और चिप्स की वैश्विक कमी के बारे में चिंता व्यक्त की है. जो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और मतदाता सत्यापन योग्य पेपर ऑडिट ट्रेल (या वीवीपीएटी) मशीनों के निर्माण के लिए एक आवश्यक चीज है. 

इस कमी के चलते 2024 में केवल लोकसभा चुनावों के लिए चुनाव आयोग को अतिरिक्त 4 लाख वोटिंग मशीन बनाने में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. ऐसे में पूरे देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराए जाते हैं तो अतिरिक्त वोटिंग मशीन की कमी को पूरा करने की बड़ी चुनौती सामने आएगी. सूत्र के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा, “उन्होंने (ईसी) ने महसूस किया कि दो निर्माताओं (भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड) की वर्तमान प्रतिबद्धताओं को ध्यान में रखते हुए वोटिंग मशीन उत्पादन लाइनों को बढ़ाने के लिए एक साल तक का निश्चित समय लग सकता है. इसके अलावा कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर सेमीकंडक्टर की कमी ने ईवीएम खरीद की समय सीमा को और गड़बड़ कर दिया है.”

चुनाव आयोग ने कभी भी एक साथ चुनाव कराने के विचार का विरोध नहीं किया है. जब तक कि ईवीएम खरीद के लिए तार्किक व्यवस्था पर ध्यान दिया जाता है. हालांकि चुनाव आयोग ने ईवीएम की व्यवस्था के लिए छह महीने से एक साल तक समय चाहता है. ये पहली बार नहीं है जब ईसी ने सेमीकंडक्टर की कमी से संबंधित उत्पादन चुनौतियों के बारे में चिंता जताई है. इस साल की शुरुआत में भी ईसी ने ईवीएम खरीद में आवंटित बजट का 80 प्रतिशत खर्च करने में असमर्थता जताई थी. इसी के चलते ईवीएम के निर्माण में भी देरी हुई. इसके अलावा चुनाव प्रक्रिया की विश्वसनीयता और आमजन के विश्वास को ठेस न पहुंचे इसलिए चुनाव आयोग इन मशीनों के उत्पादन में निजी निर्माताओं को शामिल करने के भी सख्त खिलाफ है.

एक देश एक चुनाव के लिए सरकार को क्या कदम उठाना है जरूरी?
पूर्व चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने बीबीसी से हुई बातचीत में बताया, “चुनाव आयोग ने केंद्र सरकार को बताया था कि दोनों चुनाव साथ कराना संभव है. इसके लिए सरकार को चार काम करना होगा. इसके लिए सबसे पहले संविधान के 5 अनुच्छेदों में संशोधन जरूरी होगा. इसमें विधानसभाओं के कार्यकाल और राष्ट्रपति शासन लगाने के प्रावधानों को भी बदलना होगा”

इसके अलावा निर्वाचन आयोग ने ये भी बताया था कि जन प्रतिनिधित्व कानून और सदन में अविश्वास प्रस्ताव को लाने के नियमों को बदलना होगा. जिसके लिए ‘अविश्वास प्रस्ताव’ की जगह ‘रचनात्मक विश्वास प्रस्ताव’ की व्यवस्था लानी होगी. यानी अविश्वास प्रस्ताव के साथ ये भी बताना जरूरी है कि किसी सरकार को हटाकर कौन सी नई सरकार बनानी चाहिए. जिसमें सदन को विश्वास हो, ताकि पुरानी सरकार गिरने के बाद भी नई सरकार के साथ विधानसभा या लोकसभा का कार्यकाल पांच साल तक चलाया जा सके.

चुनाव के लिए कितनी ईवीएम जरूरी?
वहीं निर्वाचन आयोग ने वन नेशन वन इलेक्शन के लिए कुल 35 लाख ईवीएम की जरूरत बताई थी. जिसके लिए नई ईवीएम की खरीद बहुत आवश्यक है. भारत में इस्तेमाल होने वाली ईवीएम की कीमत लगभग 17 हजार और एक वीवीपीएटी की कीमत भी लगभग इतनी ही है. ऐसे में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के लिए लगभग 15 लाख नए ईवीएम और वीवीपीएटी की जरूरत होगी. ऐसे में इन्हें बनवाने के लिए लगभग एक साल से ज्यादा का समय लग सकता है.

भारत में एक चुनाव में आता है इतना खर्च
‘एक देश एक चुनाव’ के पीछे चुनाव में होने वाले खर्च भी एक दलील हैं. हालांकि इसके पीछे की सच्चाई थोड़ी अलग है. ओपी रावत के अनुसार भारत में चुनाव प्रक्रिया दुनिया में सबसे सस्ती है. ओपी रावत ने बताया कि भारत में चुनावों में प्रति व्यक्ति पर एक अमेरिकी डॉलर का खर्च आता है. जिसमें चुनाव की व्यवस्था, सुरक्षा, कर्मचारियों की तैनाती और ईवीएम सब कुछ शामिल होता है. वहीं दुनिया में चुनावी खर्च में सबसे आगे केन्या है. 

इसके अलावा बीबीसी से हुई बातचीत में पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा, “भारत में चुनाव कराने में करीब चार हजार करोड़ का खर्च होता है, जो कि बहुत बड़ा नहीं है. जहां तक राजनीतिक दलों के करीब 60 हजार करोड़ के खर्च की बात है तो ये अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है. इससे नेताओं और राजनीतिक दलों के पैसे गरीबों के पास पहुंचते हैं.” 

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