किन मुद्दों पर वोट डालेगी यहां की जनता?

कैसा है ग्वालियर-चंबल का चुनावी मिजाज, किन मुद्दों पर वोट डालेगी यहां की जनता?

इन दिनों हम ग्वालियर चंबल इलाके की जनता के चुनावी मुद्दे और मिजाज जानने की कोशिश कर रहे हैं। ग्वालियर-चंबल वो इलाका है जो 2020 में हुए सत्ता परिवर्तन के दौरान सबसे ज्यादा चर्चा में रहा। इस क्षेत्र में कुल 34 विधानसभा सीटें आती हैं। 
इन सीटों पर इस बार क्या हो रहा है? इलाके की कौन सी सीटों की चर्चा सबसे ज्यादा है? 2020 की बगावत के केंद्र में कौन सी सीटें रहीं? जहां विधायक बागी हुए थे वहां इस बार क्या हो रहा है? ग्वालियर-चंबल के मतदाताओं के क्या हैं मुद्दे? आइये जानते हैं…

कैसा रहा है ग्वालियर-चंबल का मिजाज?
सबसे पहले बात ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के सियासी नक्शे की कर लेते हैं। इस क्षेत्र में कुल 34 विधानसभा सीटें आती हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में यहां इन 34 में से 26 सीटें कांग्रेस के खाते में गईं थीं। वहीं, भाजपा को महज सात सीटों से संतोष करना पड़ा था। जबकि, भिंड सीट पर बसपा के संजीव कुशवाहा ने जीत दर्ज की थी। 

2013 के नतीजों की बात करें तो इलाके की 34 में से 20 सीटें भाजपा के खाते में गईं थीं। वहीं, कांगेस 12 सीटों पर जीतने में सफल रही थी। जबकि, दो सीटों दिमनी और अंबाह सीट पर बसपा को जीत मिली थी। 2008 के नतीजे भी भाजपा के पक्ष में रहे थे। उस चुनाव में 34 में से 16 सीटें भाजपा ने जीतींं थीं। 13 सीटों पर कांगेस के उम्मीदवार जीतने में सफल रहे थे। वहीं, पांच सीटें अन्य के खाते में गईं थीं। इनमें से चार जौरा, मुरैना, ग्वालियर ग्रामीण और सेंवढ़ा सीट पर बसपा को जीत मिली। वहीं, गुना सुरक्षित सीट पर उमा भारती की पार्टी भारतीय जन शक्ति के राजेंद्र सिंह सलूजा जीते थे।  
इस बार किन सीटों की सबसे ज्यादा चर्चा?
ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की लगभग सभी सीटों पर प्रमुख मुकाबला तय हो चुका है। क्षेत्र की गुना सीट ही ऐसी है जहां भाजपा का उम्मीदवार तय होना बाकी है।
 
दिमनी: प्रमुख मुकाबलों की बात करें तो सबसे ज्यादा चर्चा दिमनी सीट की हो रही है। इस सीट पर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भाजपा उम्मीदवार हैं। उनका मुकाबला कांग्रेस के रविंद्र सिंह तोमर से है। 2018 के विधानसभा चुनाव में यह कांग्रेस ने जीती थी। 2020 में हुई बगावत के वक्त दिमनी विधायक गिर्राज दंडोतिया भाजपा में शामिल हो गए। इसके बाद हुए चुनाव में दंडोतिया को रविंद्र सिंह तोमर ने हरा दिया। अब रवींद्र तोमर के सामने भाजपा ने नरेंद्र सिंह तोमर को उतार मुकाबला दिलचस्प बना दिया है। 

लहार: इस सीट से नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर गोविंद सिंह चुनाव मैदान में हैं। गोविंद सिंह के खिलाफ भाजपा ने अमरीश शर्मा को टिकट दिया है। अमरीश शर्मा के समाने चुनौती बहुत बड़ी है। क्योंकि 1993 से लगातार छह बार इस सीट पर गोविंद सिंह जीत दर्ज कर चुके हैं।  

दतिया: मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा दतिया सीट से मैदान में हैं। नरोत्तम मिश्रा दतिया सीट पर जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं। कांग्रेस ने नरोत्तम मिश्रा को जीत का चौका लगाने से रोकने के लिए राजेंद्र भारती को मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने पहले इस सीट से भाजपा से आए अवधेश नायक को उम्मीदवार बनाया था। स्थानीय कार्यकर्ताओं के विरोध के चलते उनकी जगह राजेंद्र भारती को टिकट दे दिया गया। भारती 2018 में दतिया सीट से चुनाव हार गए थे। 

राघोगढ़: दिग्विजय सिंह बेटे और पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह यहां से मैदान में हैं। भाजपा की ओर से हिरेंद्र सिंह बंटी चुनाव लड़ रहे हैं। जयवर्धन 2013 और 2018 में इस सीट से जीत दर्ज कर चुके हैं। 1985 और 2008 को छोड़कर 1977 से राघोगढ़ विधानसभा सीट पर दिग्विजय सिंह और उनके परिवार का कब्जा रहा है। 1985 और 2008 में इस सीट पर दिग्विजय सिंह के बेहद करीबी रहे मूल सिंह दादा भाई यहां से जीते थे। दिग्विजय परिवार की बात करें तो खुद दिग्विजय सिंह यहां से पांच बार, उनके भाई लक्ष्मण सिंह दो बार और बेटे जयवर्धन दो बार राघोगढ़ से जीते। राघोगढ़ उन सीटों में शामिल है जहां भाजपा आज तक नहीं जीत सकी है। लक्ष्मण सिंह इस बार चाचौड़ा से मैदान में हैं। 2018 में भी वह इस सीट से जीत दर्ज कर चुके हैं। 

शिवपुरी: सबसे ज्यादा चर्चा इस सीट पर टिकट को लेकर रही। जिले की पिछोर सीट से 1993 से लगातार जीत रहे कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री केपी सिंह इस बार शिवपुरी सीट से मैदान में हैं। यहां से कोलारस से भाजपा विधायक वीरेंद्र रघुवंशी भी कांग्रेस से टिकट मांग रहे थे। टिकट नहीं मिलने से रघुवंशी नाराज हैं। इस सीट से भाजपा की यशोधरा राजे सिंधिया विधायक हैं। यशोधरा ने इस बार चुनाव लड़ने से मना कर दिया था। उनकी जगह पार्टी ने देवेंद्र कुमार जैन को टिकट दिया है। जैन 1993 में यहां से जीत चुके हैं। 

डबरा: यहां समधी-समधन के बीच मुकाबला, इमरती देवी 2020 में हुए उप-चुनाव में अपने समधी और कांग्रेस उम्मीदवार सुरेश राजे से हार गईं थीं। एक बार फिर दोनों आमने-सामने हैं। सिंधिया की करीबी इमरती देवी 2018 में यहां से कांग्रेस के टिकट पर जीतीं थीं। 2020 की बगावत के वक्त पाला बदलकर भाजपा में आ गईं। इसके बाद हुए उप-चुनाव में उन्हें हार मिली। 2020 की हार के बाद भी पार्टी ने एक बार फिर उन्हें टिकट दिया है। 

ग्वालियर पूर्व: इस सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया की मामी और पूर्व मंत्री माया सिंह मैदान में हैं। माया सिंह 2013 में इस सीट से जीत दर्ज कर चुकी हैं। 2018 में यहां से कांग्रेस के मुन्नालाल गोयल जीते थे। 2020 की बगावत में उन्होंने पाला बदल लिया। उपचुनाव में गोयल भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े। उन्हें कांग्रेस के सतीश सिकरवार ने आठ हजार से ज्यादा वोट से हरा दिया था। दिलचस्प यह है कि सिकरवार 2018 में भाजपा उम्मीदवार के तौर पर यहां से हार गोयल से हार गए थे। सीतश सिकरवार एक बार फिर कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं। 

भिंड: 2018 के चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के अलावा किसी दूसरे दल को जीत भिंड में मिली थी। यहां से बसपा के संजीव कुशवाहा जीते थे। कुशवाहा बाद में भाजपा के साथ हो लिए थे। उन्हें भाजपा से टिकट मिलने की उम्मीद थी। हालांकि, चुनाव से चंद महीने पहले पटवारी भर्ती में हुई धांधली में कुशवाहा के कॉलेज का नाम आया। कहा जा रहा है कि इस वजह से भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया। हालांकि, कुशवाहा एक बार फिर बसपा के टिकट पर मैदान में हैं। भाजपा ने यहां से नरेंद्र सिंह कुशवाह को मैदान में उतारा है। वहीं, कांग्रेस से चौधरी राकेश चतुर्वेदी मैदान में हैं।चतुर्वेदी 2018 में यहां से भाजपा उम्मीदवार थे। 

पिछोर: शिवपुरी जिले की पिछोर विधानसभा सीट पर कांग्रेस के नेता केपी सिंह लगातार छह बार जीते हैं। केपी सिंह इस बार शिवपुरी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा ने पिछोर सीट से उमा भारती के करीबी प्रीतम लोधी को उतारा है। प्रीतम लोधी तीसरी बार यहां पर भाजपा उम्मीदवार हैं। प्रीतम लोधी चंद महीने पहले जाति विशेष पर की गई टिप्पणी के चलते पार्टी से बाहर कर दिए गए थे। हालांकि, बाद में उनकी वापसी हो गई। प्रीतम लोधी के खिलाफ कांग्रेस ने इस बार अरविंद सिंह लोधी को उम्मीदवार बनाया है। 

अटेर: यह विधानसभा सीट 2018 के विधानसभा चुनाव में सबसे चर्चित सीटों में रही थी। यहां से भाजपा के अरविंद भदौरिया ने कांग्रेस के हेमंत कटारे को हराया था। एक बार फिर दोनों आमने-सामने हैं। कटारे पूर्व नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे के बेटे हैं। उनके निधन के बाद विधायक बने थे। विधायक रहते हुए उनके ऊपर लगे आरोपों को 2018 के चुनाव में भाजपा ने मुद्दा बनाया था। 

2020 की बगावत का केंद्र में कौन सी सीटें रहीं?
2020 में मध्य प्रदेश कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में बगावत हुई। कांग्रेस के करीब दो दर्जन विधायक पाला बदलकर भाजपा में आ गए। कांग्रेस सरकार गिर गई। इस पूरी बगावत के केंद्र में ग्वालियर-चंबल संभाग के विधायक ही थे। बगावत के बाद 28 सीटों पर उप-चुनाव हुआ। इन 28 में से 16 सीटें ग्वालियर-चंबल संभाग की थीं। इन सीटों में जौरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी, अंबाह, मेहगांव, गोहद, ग्वालियर, ग्वालियर पूर्व, डबरा, भांडेर, करैरा, पोहरी, बमोरा, अशोकनगर और मुंगावली विधानसभा सीट शामिल थी। इन 16 में से सात सीटों पर बगावत के बाद भी कांग्रेस ने वापसी थी। जबकि, नौ सीटे उसे गंवानी पड़ी थी। जिन सीटों को बगावत के बाद भी कांग्रेस बचाने में कामयाब रही उनमें सुमावली, मुरैना, दिमनी, गोहद, ग्वालियर पूर्व, डबरा और करैरा विधानसभा सीट शामिल थी।
 
ग्वालियर-चंबल के मतदाताओं के क्या हैं मुद्दे?
अमर उजाला के चुनावी रथ ‘सत्ता का संग्राम’ इस वक्त ग्वालियर-चंबल इलाके में है। इस दौरान हमने स्थानीय लोगों, युवाओं, महिलाओं और राजनीतिक दलों से उनके मुद्दे और चुनावी मिजाज को समझने की कोशिश की। मुरैना से लेकर भिंड, ग्वालियर और दतिया तक ज्यादातर जगह युवाओं ने शिक्षा के लिए बेहतर सुविधाएं नहीं होने की बात कही। 

स्वास्थ्य सेवाओं के लिए क्षेत्र के जिलों की ग्वालियर पर निर्भरता भी बड़ा मुद्दा है। ग्वालियर को छोड़कर सभी जिले अपने यहां बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी का मुद्दा उठाते हैं। किसानों के बीच यूरिया की कमी बड़ा मुद्दा है। वहीं, राजनीतिक दलों से जुड़े कार्यकर्ताओं में 2020 का दलबदल भी मुद्दा है।

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