प्लास्टिक भारत सहित पूरी दुनिया के लिए बनी परेशानी  !

प्लास्टिक जिंदगी का हिस्सा और अब लील रहा है सब कुछ, भारत में सहित पूरी दुनिया के लिए बनी परेशानी 
प्लास्टिक का बढ़ता इस्तेमाल धीरे-धीरे एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है. अमेरिकी वैज्ञानिक की एक रिपोर्ट के अनुसार हर व्यक्ति सप्ताह में लगभग एक क्रेडिट कार्ड के बराबर प्लास्टिक खा रहा है.
हम सुबह प्लास्टिक के फोन में बजते अलार्म से उठते हैं, प्लास्टिक के टूथब्रश से अपने दांत साफ करते हैं, प्लास्टिक पैकेजिंग में लिपटा खाना खाते हैं और इस तरह अपने दिन की शुरुआत कर देते हैं. इस तरह हम दिनभर में लगभग हर काम करते हुए प्लास्टिक का इस्तेमाल कर ही रहे होते हैं.

प्लास्टिक हमारी जिंदगी में इस तरह घुलमिल गया है कि उसने हमारी दुनिया में अपना एक हिस्सा बना लिया है, लेकिन ये इतना हानिकारक है कि धीरे-धीरे हमारी जिंदगी को निगल रहा है और इस बात का हमें एहसास भी नहीं हो रहा.

क्या है प्लास्टिक?
प्लास्टिक एक ऐसी सामग्री है जो किसी सिंथेटिक या अर्ध-सिंथेटिक प्रकार के पॉलिमर से निर्मित हुई है. पॉलिमर एक बड़ा अणु है जो जुड़े हुए दोहराए जाने वाली चीजों या छल्लों से बना होता है, जिन्हें मोनोमर्स कहते हैं. रेशम, रबर, सेलूलोज, केराटिन, कोलेजन और डीएनए प्राकृतिक पॉलिमर के कुछ उदाहरण हैं और ये पॉलिमर का आकार है जो प्लास्टिक को ‘प्लास्टिसिटी’ देता है. प्लास्टिक लगभग किसी भी कार्बनिक पॉलिमर से बनाया जा सकता है. पहला सिंथेटिक प्लास्टिक प्लांट का निर्माण सेलूलोज से किया गया था, लेकिन आज अधिकांश प्लास्टिक पेट्रोकेमिकल्स से बनाया जाता है. ऐसे में अक्सर इसमें कुछ अतिरिक्त कृत्रिम मसाला देने के लिए अतिरिक्त एडिटिव्स डाले जाते हैं.

कैसे हुई थी प्लास्टिक की खोज?
प्लास्टिक की खोज एक एक्सीडेंट से हुई थी. दरअसल 1846 में प्रसिद्ध जर्मन रसायनशास्त्री क्रिश्चियन शॉनबीन अपने किचन में कुछ प्रयोग कर रहे थे. इस बीच गलती से उनसे नाइट्रिक एसिड और सल्फ्यूरिक एसिड का मिश्रण नीचे गिर गया. इस घोल को पोछने के लिए उन्होंने एक कपड़ा लिया और पोछा लगाने के बाद उस कपड़े को चूल्हे पर रख दिया. कुछ समय बाद कपड़ा गायब हो गया और एक पदार्थ बचा. जिसे प्लास्टिक के रूप में जाना गया.

कितने प्रकार के होते हैं प्लास्टिक?
भौतिक गुणों के आधार पर प्लास्टिक दो प्रकार के होते हैं. पहला थर्मोप्लास्टिक और दूसरा थर्मोसेंटिक. 

थर्मोप्लास्टिक– थर्मोप्लास्टिक वो होता है जो गर्म करने पर आसानी से मुड़ जाता है. एक ही लाइन में चलने वाला पॉलिमर और क्रॉस-लिंक्ड पॉलिमर का संयोजन थर्मोप्लास्टिक के अंतर्गत आता है. उदाहरण के तौर पर पीवीसी, नायलॉन, पॉलिथीन.

थर्मोसेटिंग- ऐसे प्लास्टिक जिन्हें एक बार ढालने के बाद गर्म करके दोबारा नरम नहीं किया जा सकता. भारी क्रॉस-लिंक्ड पॉलिमर थर्मोसेटिंग प्लास्टिक होते हैं. उदाहरण के तौर पर बैकेलाइट, मेलामाइन. बैकेलाइट का उपयोग लाइट के स्विच बनाने के लिए किया जाता है जबकि मेलामाइन का उपयोग फर्श की टाइल्स के लिए किया जाता है.

क्यों है खतरनाक?
प्लास्टिक एक ऐसा पदार्थ है जिसे खत्म होने में सदियां बीत जाती हैं. यदि ये किसी खेत में चला जाए तो वहां सदियों तक जीवित रहता है और इससे उस खेत की उर्वरा शक्ति पर भी असर पड़ता है. वहीं यदि इसे जलाया जाए तो ये पूरी तरह खत्म नहीं होता और इसके धुएं से वायु प्रदूषण जैसी स्थितियां सामने आती हैं.

इसके अलावा प्लास्टिक के तत्वों के भोजन में मिल जाने से अस्थमा, मोटापा और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. यहां तक कि प्लास्टिक निर्माण के समय निकलने वाली जहरीली गैस पर्यावरण को प्रदूषित करती है. 

एक क्रेडिट कार्ड जितना प्लास्टिक रोज खा रहा आम इंसान
साइंस जर्नल एसीएस पब्लिकेशन्स में छपी एक स्टडी के एक्सपर्ट्स के अनुसार, हर साल हम 39 से लेकर 55 हजार प्लास्टिक के टुकड़े निगल जाते हैं या सांस के जरिए ये हमारे शरीर में पहुंच रहे हैं.

अमेरिकी वैज्ञानिकों ने इंसानों की नसों में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक का पता लगाया है. इस स्टडी में पता चला है कि हर ग्राम ऊतक में माइक्रोप्लास्टिक के लगभग 15 कण मिले हैं. माना जाता है कि इस तरह हर हफ्ते एक व्यक्ति के शरीर में लगभग एक क्रेडिट कार्ड जितना प्लास्टिक पहुंच रहा है. ये प्लास्टिक नसों से होता हुआ हार्ट और ब्रेन तक पहुंच जाता है.

भारत में सबसे प्रदूषित शहर
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक दिल्ली में हर दिन 690 टन, चेन्नई में 429 टन, कोलकाता में 426 टन के साथ मुंबई में 408 टन प्लास्टिक कचरा फेंका जाता है. इन आकड़ों से समझा जा सकता है कि स्थिति कितनी भयावह है. इसके अलावा लगातार छोटे शहरों में प्रदूषण तेजी से फेल रहा है इससे साफ पता चलता है कि आने वाले समय में ये स्थिति और कितनी भयावह होने वाली है. वहीं पर्यावरण सरंक्षण को लेकर बनाए सारे नियम और कानून भी किताबी साबित हो रहे हैं.

भारत में कब आया प्लास्टिक
भारत में प्लास्टिक का आगमन लगभग 60 के दशक में हुआ था. आज स्थिति ये हो गई है कि महज 60 साल में ये प्लास्टिक कूड़े के पहाड़ में बदल गया है. कुछ साल पहले भारत में सिर्फ आटोमोबाइल क्षेत्र में इसका उपयोग पांच हजार टन वार्षिक था. संभावना ये भी जताई गई कि इसी तरफ उपयोग बढ़ता रहा तो जल्द ही ये 22 हजार टन तक पहुंच जाएगा. भारत में जिन इकाईयों के पास यह दोबारा रिसाइकिल के लिए जाता है वहां प्रतिदिन 1,000 टन प्लास्टिक कचरा जमा होता है. इस प्लास्टिक के कचरे का 75 फीसदी भाग कम मूल्य की चप्पलों के निर्माण में खपता है. 1991 में भारत में इसका उत्पादन 9 लाख टन था. आर्थिक उदारीकरण की वजह से प्लास्टिक को लगातार बढ़ावा मिल रहा है.

सिंगल यूज प्लास्टिक सबसे ज्यादा खतरनाक 
इस प्लास्टिक के कचरे का 75 फीसदी भाग कम मूल्य की चप्पलों के निर्माण में खपता है. 1991 में भारत में इसका उत्पादन नौ लाख टन था. आर्थिक उदारीकरण की वजह से प्लास्टिक को लगातार बढ़ावा मिल रहा है. 2014 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार समुद्र में प्लास्टिक कचरे के रुप में 5,000 अरब टुकड़े तैर रहे हैं. अधिक वक्त बीतने के बाद यह टुकड़े माइक्रो प्लास्टिक में तब्दील हो गए हैं. जीव विज्ञानियों के अनुसार समुद्र तल पर तैरने वाला ये भाग कुल प्लास्टिक का सिर्फ एक फीसदी है. जबकि 99 फीसदी समुद्री जीवों के पेट में है या फिर समुद्र तल में छुपा है.

सिंगल यूज प्लास्टिक में थर्माकोल से बनी प्लेट, कप, ग्लास, कटलरी जैसे कांटे, चम्मच, चाकू, पुआल, ट्रे, मिठाई के बक्सों पर लपेटी जाने वाली फिल्म, निमंत्रण कार्ड, सिगरेट पैकेट की फिल्म, प्लास्टिक के झंडे, गुब्बारे की छड़ें और आइसक्रीम पर लगने वाली स्टिक, क्रीम, कैंडी स्टिक और 100 माइक्रोन से कम के बैनर होता है.

सिंगल यूज प्लास्टिक पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक है. ऐसे प्लास्टिक न तो डिकंपोज होते हैं और न ही इन्हें जलाया जा सकता है. इनके टुकड़े पर्यावरण में जहरीले रसायन छोड़ता है जो इंसानों और जानवरों के लिए खतरनाक होते हैं. वहीं सिंगल यूज प्लास्टिक का कचरा बारिश के पानी को जमीन के नीचे जाने से भी रोकता है. जिससे लगातार ग्राउंड वाटर लेवल में कमी आती है.

संयुक्त राष्ट्र द्वारा पेश की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक अब तक समुद्रों में लगभग 20 करोड़ टन प्लास्टिक का कचरा जा चुका है. 2016 तक ये आंकड़ा हर साल 104 करोड़ टन था जो 2040 तक 307 करोड़ टन हने का अनुमान है. विशेषज्ञ बताते हैं कि जिस तेजी से समंदरों में प्लास्टिक का कचरा फैल रहा है यदि यही रफ्तार रही तो 2050 तक समुद्रों में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा.

80 देशों में सिंगल यूज प्लास्टिक पर लगी पाबंदी
भारत में पिछले साल यानी 2022 में सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन लगा दिया गया है. इसके अलावा विश्व के 80 देशों में सिंगल यूज प्लास्टिक पर पाबंदी लगी है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक इन देशों में पूरी तरह या आंशिक रूप से सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन लगा है. अफ्रीका के 30 देशों में ये पाबंदी पूरी तरह लागू है. वहीं यूरोप में प्लास्टिक बैग के इस्तेमाल पर अलग से टैक्स लगा दिया गया है या उसे इस्तेमाल करने पर अलग से शुल्क लिया जाता है.                                                                                     

हालांकि ये सभी उपाय भी प्लास्टिक को रोकने में कामयाब साबित नहीं हो रहे हैं और लगातार बढ़ता प्लास्टिक का कचरा आने वाले समय में बहुत विक्राल समस्या का रूप ले सकता है.   

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