कहानी उस शेल कंपनी की जिसकी वजह से चली गई 2 मंत्रियों की कुर्सी

कहानी उस शेल कंपनी की जिसकी वजह से चली गई 2 मंत्रियों की कुर्सी
शेल कंपनियां सिर्फ पैसे के प्रबंधन यानी ठिकाने लगाने के अलावा कोई काम नहीं करती है.इन्हें कागजों पर बनी कंपनियां भी कहते हैं. कोलकाता इसका सबसे बड़ हब है.
देश के कई हिस्सों में प्रवर्तन निदेशालय की ताबड़तोड़ कार्रवाई से शेल कंपनियां चर्चा में है. ममता बनर्जी के 2 मंत्री (पार्थ चटर्जी और ज्योतिप्रिय मल्लिक) शेल कंपनियों की वजह से ही ईडी के हत्थे चढ़ गए हैं. दोनों पर शेल कंपनियों के सहारे मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप है.

दिल्ली सरकार के  पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन पर भी शेल कंपनियों से पैसे लेने के आरोप में ईडी ने शिकंजा कसा था. ईडी ने उन्हें मई 2022 में गिरफ्तार किया था. गिरफ्तारी की वजह से  जैन को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी थी.

भारत में 2017 में शेल कंपनियां तब पहली बार सबसे ज्यादा सुर्खियों में आई थी, जब नोटबंदी के बाद देशभर के कई शेल कंपनियों पर एकसाथ छापे पड़े थे. उस वक्त सरकार ने बयान जारी कर कहा था कि देश में 37000 शेल कंपनियों की पहचान की गई है, जिन पर जल्द ही कार्रवाई होगी.

शेल कंपनी का मतलब क्या है?
आम भाषा में कहे तो शेल कंपनियों का आस्तित्व कंपनियों की तरह जमीन पर नहीं होता है. सीबीआई के मुताबिक शेल कंपनियां महत्वपूर्ण संपत्ति या नियमित व्यवसायिक गतिविधियों में शामिल नहीं रहती है.

सीबीआई के मुताबिक यह धन जुटाने के वाहक यानी की एक तंत्र के रूप में काम करती है. शेल कंपनियां अवैध व्यवसाय के मुखौटे के रूप में भी काम करती है. शेल कंपनियों को फैंटम, बेनाम और घोस्ट कंपनियों के नाम से भी जाना जाता है. 

कुल मिलाकर कहा जाए, तो शेल कंपनियां सिर्फ पैसे के प्रबंधन यानी ठिकाने लगाने के अलावा कोई काम नहीं करती है इसलिए इसे कागजों पर बनी कंपनियां भी कहते हैं. 

सीबीआई के मुताबिक शेल कंपनी में अंतिम लाभार्थी का पता लगाना सबसे मुश्किल काम होता है. शेल कंपनियों में निचले स्तर के कर्मचारियों को निदेशक के तौर पर नियुक्त किया जाता है.

जानकारों के मुताबिक ज्यादातर शैल कंपनियां चार्टर्ड अकाउंटेंटों द्वारा बनाई जाती हैं. जो इस घोटाले में सबसे अहम रोल अदा करते हैं. केंद्र सरकार के एक रिपोर्ट के मुताबिक शेल कंपनियों का हब पश्चिम बंगाल का कोलकाता है. यहीं पर देश के काले धन के 48 प्रतिशत हिस्से को शेल या कागजी कंपनियां सफेद बनाने का काम करती हैं.

हालांकि, भारत के कंपनी अधिनियम 2013 में शेल कंपनी को परिभाषित नहीं किया गया है. न ही यह बताया गया है कि किस प्रकार की गतिविधियों के कारण किसी कंपनी को शेल कंपनी कहा जा सकता है?

शेल कंपनियों की पहचान और उसके काम
भारत में आमतौर पर शेल कंपनियों का उपयोग कर-चोरी, धोखाधड़ी और आतंकवादी वित्तपोषण सहित विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है. पनामा पेपर खुलासे में दुनियाभर की 2 लाख शेल कंपनियाों की भागीदारी के बारे में पता चला.

एक अनुमान के मुताबिक शेल कंपनियों की वजह से संयुक्त राज्य अमेरिका को सालाना लगभग 70 डॉलर बिलियन का नुकसान होता है.

शेल कंपनियों की पहचान के लिए सबसे पहले कंपनियों की गतिविधियों पर नजर रखना जरूरी है. इसके अलावा शेल कंपनियों के ट्रेंड, डेटा और असमान्य लेन-देन पर भी नजर रखने की जरूरत है. 

2017 में शेल कंपनियों पर एक्शन लेने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक टास्क फोर्स का गठन किया था. इसकी कमान राजस्व सचिव और एमसीए के सचिव को दी गई थी. 

2021 में केंद्रीय मंत्री इंद्रजीत राव ने संसद में एक सवाल के जवाब में कहा था कि केंद्र सरकार ने 2018 से 2021 तक 238,223 शेल कंपनियों की पहचान की. हालांकि, कितने कंपनियों पर कार्रवाई हुई है, इसकी जानकारी सरकार की ओर से अब तक नहीं दी गई है.

क्यों रडार पर आए?
1. पार्थ चटर्जी- ममता बनर्जी सरकार में कद्दावर मंत्री रहे पार्थ चटर्जी को जुलाई 2022 में ईडी ने गिरफ्तार किया था. ईडी ने पार्थ की गिरफ्तारी शिक्षक भर्ती मामले में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में की थी. गिरफ्तारी के बाद ममता बनर्जी ने पार्थ को मंत्रीपद से हटा दिया.

कोर्ट में चार्जशीट दाखिल करते हुए ईडी ने दावा किया कि पार्थ और उनके करीबी अर्पिता मुखर्जी 30 शेल कंपनियों के जरिए शिक्षक भर्ती घोटासे के पैसों को सफेद किया. जांच एजेंसी ने दावा किया कि शिक्षक भर्ती के दौरान पार्थ ने सभी उम्मीदवारों से पैसे लिए थे. 

ईडी सूत्रों ने दावा किया था कि शिक्षक नियुक्ति के लिए बोर्ड की ओर से एक पद के लिए 5-15 लाख रुपए तक लिए गए. इसके लिए बकायदा रेटलिस्ट बनाया गया था. शिक्षक भर्ती घोटाले में अभी भी पार्थ चटर्जी जेल में ही बंद हैं.

बंगाल में 2019 में शिक्षा भर्ती घोटाला सामने आया था. आरोप के मुताबिक 2016-17 में बंगाल में शिक्षकों की भर्ती के लिए वैकेंसी निकाली गई थी, जिसके मेरिट लिस्ट में पैसे लेकर बदलाव किया गया था. 

2021 में कोलकाता हाईकोर्ट ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी थी. सीबीआई को शुरुआती जांच में शेल कंपनियों से पैसे हेरफेर के सबूत मिले, जिसके बाद इस केस की जांच ईडी भी करने लगी. 

2. ज्योतिप्रिय मल्लिक- ममता बनर्जी कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक को हाल ही में ईडी ने गिरफ्तार किया है. मल्लिक बंगाल सरकार में खाद्य एवं उपभोक्ता विभाग के मंत्री थे. 

मल्लिक की गिरफ्तारी राशन घोटाले के एक आरोप में हुई है. ईडी ने राशन घोटाले में सबसे पहले व्यवसायी बकीबुर रहमान की गिरफ्तारी की थी. रहमान पर पीडीएस के राशन में धांधली का आरोप था.

जांच एजेंसी ने कोलकाता के बैकशाल अदालत को बताया कि 3 शेल कंपनियों के जरिए ज्योतिप्रिय मल्लिक को 8 करोड़ रुपए बतौर ऋण मिले, जिसे कभी नहीं चुकाया गया. ईडी के मुताबिक ये तीनों शेल कंपनियां बकीबुर का ही था.

ईडी ने कहा कि ज्योतिप्रिय ने अपनी पावर के सहारे रहमान को गलत तरीके से फायदा पहुंचाया और सारा पैसा शेल कंपनियों के मार्फत सफेद किया गया. ज्योतिप्रिय मल्लिक की कुर्सी जाएगी या नहीं, इस पर ममता बनर्जी कभी भी फैसला कर सकती हैं.

3. सत्येंद्र जैन- मई 2022 में दिल्ली सरकार में मंत्री रहे सत्येंद्र जैन को प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार किया था. जैन की गिरफ्तारी मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में हुई थी. जैन को वर्तमान में स्वास्थ्य आधार पर जमानत मिली हुई है. 

जैन पर आरोप था कि इनके कंपनियों को शेल कंपनियों के मार्फत 4.82 करोड़ रुपए मिले थे. जांच एजेंसी ने कोर्ट को बताया था कि जैन से जब 4.82 करोड़ रुपए का हिसाब मांगा गया, तो वे देने में असफल रहे.

जांच एजेंसी ने यह भी दावा किया कि इन पैसों का उपयोग दिल्ली के आसपास खरीदे गए जमीन के कर्ज चुकाने में किया गया. गिरफ्तार होने के कुछ महीने बाद जैन ने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. 

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