अगर एपल का अलर्ट सीरियस मामला नहीं, तो फिर विरोधी दलों के पास ही क्यों आ रहा है?

अगर एपल का अलर्ट सीरियस मामला नहीं, तो फिर विरोधी दलों के पास ही क्यों आ रहा है?
आईफोन एपल की तरफ से ईमेल और फोन हैकिंग को लेकर जो मैसेज विपक्ष के महुआ मोइत्रा, शशि थरूर और राघव चड्ढा समेत कई नेताओं के पास आया. ये स्पष्ट तौर पर विरोधी दलों के खिलाफ मोदी सरकार का षड्यंत्र है. ये पूरी तरह से जासूसी का मामला है. आपको याद होगा कि इससे पहले इजरायल के पेगासस से जासूसी का मामला सामने आया था. इस पर भी भारत सरकार ने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया.    

एक बात और गौर करने के लायक ये है कि एपल की तरफ से जो नोटिस दिया गया है, अगर एपल का कहना है कि ये बहुत सीरियस नहीं है तो फिर सिर्फ विरोधी दलों को ही क्यों आ रहा है. बीजेपी के किसी नेता ने ये तो कहा नहीं है कि उनके फोन पर भी ये मैसेज आया है कि सरकार आपसी जासूसी कर रही है.  ऐसा पहली बार नहीं हुआ है.

जनतंत्र में विपक्ष का होता है आदर

हकीकत ये है कि प्रधानमंत्री जी को लोकतंत्र में विश्वास नहीं है. जनतंत्र में अपने विरोधियों का भी आदर किया जाता है. ये ठीक है कि हमारी नीतियां अलग-अलग है. आप अपनी नीतियों से जनता की सेवा करने की बात करते हैं और हम अपनी नीतियों से बात करते हैं. हम कहते हैं कि आपकी नीति गलत है और आप कहते हैं कि हमारी नीति गलत है. ये जनतंत्र में होता है और यही जनतंत्र का मूल सिद्धांत भी है कि असहमति की बातें हम जनता के पास लेकर जाएं और जनता का जो आदेश है, उसका हम पालन करें.

लेकिन, विरोधियों को ईडी से, सीबीआई से दबाने का प्रयास… बताइये तो कि पूरे देश में एक भी बीजेपी का नेता ऐसा नहीं है जो भ्रष्टाचार में शामिल रहा हो, जिसके यहां पर केन्द्रीय जांच एजेंसियां सीबीआई और ईडी जाए. स्वभाविक रुप से पेगासस का मामला हो, या अभी एपल का मामला हो, ईडी और सीबीआई का मामला हो, ये सब पीएम मोदी जी अपने विरोधियों के खिलाफ एक तरह से जासूसी करते हैं. उनकी बातें प्रसारित करने या फिर फैलने से रोकना चाहते हैं.

उठ रहे गंभीर सवाल

ऐसे में स्वभाविक रुप से इसमें पीएम और भारत सरकार की संलिप्तता है. उसी को एपल ने उजागर किया गया है. अब उस पर दबाव दिया जा रहा है. सबसे बड़ी बात ये है कि एपल ने ये नहीं कहा है कि मेरी तरफ से नोटिस नहीं है. दूसरी बात ये कि आखिर एपल ने नोटिस क्यों दिया? दूसरा सवाल ये कि सिर्फ विरोधी दलों को ही क्यों दिया? ये बात हर भारतीय को समझ में आती है लेकिन कुछ लोग न बोलें क्योंकि उनके समर्थक हैं, मुख्य धारा के मीडिया पर दबाव है. लेकिन जो सच्चाई है वो देश के लोग बिल्कुल अच्छी तरह से समझते हैं.  

एपल के नोटिफिकेशंस का आना बहुत बड़ा गंभीर मुद्दा है. ये जनतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ है. अगर कोई निष्पक्ष सरकार मोदी जी के बाद आ गई और इन बातों की अगर जांच हुई तो फिर सारा कुछ सामने उजागर हो जाएगा.

पेगासस जासूसी का इजरायल का एक साधन था, इसके लिए ऐसा नियम है कि ये सरकार से सरकार के बीच इसका ट्रांजेक्शन होगा. कोई व्यक्तिगत तौर पर या फिर कोई कंपनी इसे नहीं खरीद सकती है. ऐसे में अगर भारत सरकार ने इजरायल से पेगासस नहीं लिया तो फिर किसने लिया?

जांच हुई तो सब हो जाएगा उजागर

भारत सरकार ने पेगासस को लेकर खंडन भी नहीं किया कि हमलोगों ने इसकी खरीद की है. बातें टालते रहे. इस बारे में भी यही बात है. इसलिए ये बहुत गंभीर बात है. मोदी सरकार के जाने के बाद जो भी सरकार आएगी, उसमें एक निष्पक्ष जांच का मामला अगर शुरू किया तो हम नहीं समझते हैं कि जो पदाधिकारी इसमें लगे हैं, सरकार बदलने के बाद उनका बचना मुश्किल होगा.

जहां तक केन्द्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव की तरफ से दिया गया ये बयान कि एपल का 150 देशों में ऐसा अलर्ट भेजा गया है, लेकिन खास बात ये है कि सिर्फ विरोधी नेताओं को ही वो एडवाइजरी क्यों गई है. ऐसे में आप समझ सकते हैं.

मैं बार-बार पेगासस की बात कर रहा हूं, लेकिन इससे पहले भी फोन टैपिंग के मामले हुए हैं. राहुल गांधी ने खुद कहा था कि उनके फोन की टैपिंग कराई जा रही है. फोन टैपिंग का एक प्रोसेस है. सरकार भी अगर किसी का फोन टैप करना चाहेगी तो सवाल उठता है कि विरोधी दलों के ही लोगों को वो ऐसा क्यों कर रहे हैं?
इसकी एक प्रक्रिया है कि होम सेक्रेटरी स्टेट में और गवर्नमेंट ऑफ इंडिया परमिशन देते हैं, उसके बाद ही किसी की फोन टैपिंग कराई जा सकती है, अगर देश को किसी तरह का कोई खतरा हो तो.

बगैर किसी वजह के अगर फोन टैपिंग कराई जा रही है, एपल का नोटिस दिया जा रहा है कि आपके खिलाफ आपकी सरकार आपकी बातों को फैलना से रोकना चाहती है, सरकार एक तरह से जासूसी कर रही है, पेगासस का मामला आ रहा है, ये सब विरोधी दलों के खिलाफ आता है. आप खुद समझिए कि विरोधी दलों के लोगों के साथ केन्द्र सरकार क्या कर रही है.   

केन्द्र के अधीनस्थ जो लोग हैं, उन्हें उस काम के लिए आदेश दिया जाता है. इसलिए मेरे कहने का मतलब ये है कि जो भी पदाधिकारी या कर्मचारी ऐसे मामलों में लगे हुए हैं, सरकार किसी की स्थाई नहीं रहती है, ऐसे में अगर सरकार बदलेगी तो ऐसे पदाधिकारियों को परेशानियों का सामना करना पड़ेगा. उस समय वो ये नहीं कह सकते हैं कि सरकार के जबानी पर या किसी केन्द्रीय मंत्री के आदेश पर हम ये काम कर रहे थे. अगली सरकार में जब जांच होगी तो उनको इसके लिए जवाबदेह होना पड़ेगा. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि ……न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]

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