उधारी और खर्चों के बोझ तले क्यों दबते जा रहे हैं किसान ?
आय में 57 प्रतिशत बढ़त, फिर भी उधारी और खर्चों के बोझ तले क्यों दबते जा रहे हैं किसान
2016-17 में जहां एक ग्रामीण परिवार की औसत मासिक आय 8,059 रुपये थी, वह 2021-22 में बढ़कर 12,698 रुपये तक पहुंच गई.
भारत में किसानों की आर्थिक स्थिति में हाल के कुछ सालों में कई बदलाव आए हैं. संसद की कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण पर स्थायी समिति की ताज़ा रिपोर्ट में यह बताया गया है कि देश में किसानों की आय तो बढ़ी है, लेकिन उनका खर्च उससे भी ज्यादा बढ़ गया है. इसका मतलब यह है कि हालांकि उनकी आय में वृद्धि हो रही है, लेकिन खर्च इतना ज्यादा हो गया है कि वे अपनी आर्थिक स्थिति को सही से नहीं संभाल पा रहे हैं. इस वजह से, किसान परिवारों को अपना खर्च पूरा करने के लिए ज्यादा कर्ज लेना पड़ रहा है.
आय में वृद्धि, लेकिन खर्च भी तेजी से बढ़ा
नाबार्ड (नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट) द्वारा 2022-23 में किए गए एक सर्वेक्षण से यह जानकारी सामने आई है कि पिछले पांच सालों में ग्रामीण परिवारों की औसत मासिक आय में काफी वृद्धि हुई है. साल 2016-17 में जहां एक ग्रामीण परिवार की औसत मासिक आय 8,059 रुपये थी, वह 2021-22 में बढ़कर 12,698 रुपये तक पहुंच गई. इस आंकड़े के अनुसार, आय में 57.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. यह किसानों और ग्रामीण परिवारों के लिए एक सकारात्मक संकेत हो सकता है, क्योंकि इससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार दिखता है.
लेकिन, यही कहानी का सिर्फ एक पक्ष है. सर्वेक्षण में यह भी सामने आया कि इसी पांच साल की अवधि में इन परिवारों के खर्च में कहीं ज्यादा तेजी से वृद्धि हुई है. रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण परिवारों का औसत मासिक खर्च 6,646 रुपये से बढ़कर 11,262 रुपये हो गया, यानी इसमें 69.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. इसका मतलब है कि इन सालों में खर्च में जो बढ़ोतरी हुई है, वह आय से ज्यादा है.
उदाहरण के तौर पर, अगर कोई किसान पहले 8,000 रुपये कमाता था और उसके खर्चे 6,600 रुपये थे, तो उसकी आय और खर्चों के बीच कुछ अंतर था. लेकिन अब उसकी आय बढ़कर 12,698 रुपये हो गई है, जबकि खर्च 11,262 रुपये तक बढ़ गया है. इससे साफ है कि बढ़ी हुई आय भी खर्चों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं हो पा रही है.
इस बढ़ती आय और खर्च के असंतुलन का मुख्य असर किसान परिवारों की आर्थिक स्थिति पर पड़ रहा है. जब आय और खर्च के बीच संतुलन नहीं बनता, तो लोग उधारी पर निर्भर होने लगते हैं. किसान परिवारों को अपना खर्च पूरा करने के लिए अब ज्यादा कर्ज लेना पड़ रहा है. कर्ज लेने की वजह से वे एक वित्तीय दबाव में फंस जाते हैं, क्योंकि कर्ज चुकाने के लिए उन्हें और ज्यादा पैसे की जरूरत होती है. इस तरह , आय में वृद्धि के बावजूद खर्चों का दबाव बढ़ता जा रहा है, जिससे किसान परिवारों को अपने वित्तीय संकट से बाहर निकलने में कठिनाई हो रही है.
इस आर्थिक असंतुलन का प्रभाव किसान परिवारों की समग्र स्थिति पर भी पड़ता है. अगर कर्ज चुकाने के लिए अतिरिक्त पैसे की जरूरत होती है, तो किसान अपनी संपत्ति तक बेचने के लिए मजबूर हो सकते हैं. इससे न केवल उनकी वित्तीय स्थिति कमजोर होती है, बल्कि उनका मानसिक तनाव भी बढ़ता है.
उधारी का बढ़ता दबाव
रिपोर्ट के अनुसार, 2016-17 और 2021-22 के बीच लोन लेने वाले ग्रामीण परिवारों का प्रतिशत 47.4 प्रतिशत से बढ़कर 52 प्रतिशत हो गया है. इसका मतलब यह है कि लगभग आधे से ज्यादा ग्रामीण परिवार कर्ज पर निर्भर हैं, और उनमें से अधिकतर कृषि परिवार हैं. कर्ज लेने की इस बढ़ती प्रवृत्ति का एक प्रमुख कारण किसानों का बढ़ता खर्च और उनकी आय का उस खर्च से मेल न खाना है.
किसान परिवारों को अपने कृषि कार्यों के लिए जरूरी निवेश करने, कृषि उपकरण खरीदने, उर्वरक और बीज खरीदने के लिए कर्ज लेना पड़ता है. इसके अलावा, मौसम की अनिश्चितता, प्राकृतिक आपदाएं, और बाजार में मूल्य के उतार-चढ़ाव के कारण भी किसानों को अतिरिक्त वित्तीय दबाव का सामना करना पड़ता है। इन सभी कारणों से किसानों का कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है.
किसानों की वित्तीय स्थिति पर प्रभाव
किसान परिवारों का बढ़ता कर्ज न केवल उनकी आर्थिक स्थिति को प्रभावित कर रहा है, बल्कि यह उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डाल रहा है. कई किसान अपनी खेती से होने वाली आय को कर्ज चुकाने में ही लगा देते हैं, और इससे उनका जीवन स्तर गिरता जाता है. कई किसान परिवारों को यह चिंता सताती रहती है कि वे अपना कर्ज कैसे चुका पाएंगे, जिससे उनका मानसिक दबाव बढ़ जाता है.
इसके अलावा, अगर किसान कर्ज चुकाने में असमर्थ रहते हैं, तो उन्हें ऋण चुकाने के लिए संपत्ति बेचने या और अधिक कर्ज लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे वे एक दुष्चक्र में फंस जाते हैं. इस स्थिति में सुधार के लिए जरूरी है कि सरकार और संबंधित विभाग इस संकट को समझें और इसके समाधान के लिए ठोस कदम उठाएं.
सरकार की सिफारिशें और हस्तक्षेप की जरूरत
कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण पर स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में सरकार से यह सिफारिश की है कि किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए लक्षित हस्तक्षेप की आवश्यकता है. समिति ने यह कहा कि किसानों को अपनी कृषि गतिविधियों में निवेश करते हुए अपने कर्ज का सही तरीके से प्रबंधन करने में मदद करने की जरूरत है. इसके लिए सरकार को किसानों को ऋण के बोझ से बचाने के लिए बेहतर योजनाएं बनानी चाहिए.
समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि किसान परिवारों को उनके खर्चों और आय के बीच के असंतुलन को ठीक करने के लिए वित्तीय जागरूकता और प्रबंधन में मदद दी जाए. इसके अलावा, किसान परिवारों को सस्ती और सुलभ वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराई जाएं, ताकि वे उधारी की जरूरत को कम कर सकें.
खेतीहर मजदूरों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता
समिति ने इस बात पर भी जोर दिया है कि किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए खेत मजदूरों के कल्याण पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए. खेतीहर मजदूर खेती के लिए बहुत आवश्यक हैं, और उनकी जीवनशैली को बेहतर बनाना कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने में सहायक हो सकता है.
समिति ने “कृषि, किसान और खेत मजदूर कल्याण विभाग” का नाम रखने का सुझाव दिया है, ताकि खेत मजदूरों की समस्याओं पर अधिक ध्यान दिया जा सके. वर्तमान में विभाग का नाम केवल “कृषि और किसान कल्याण विभाग” है, जो मुख्य रूप से किसानों की स्थिति पर केंद्रित है. नए नाम से यह साफ संकेत मिलता है कि खेत मजदूरों की भी उतनी ही अहमियत है और उनके कल्याण के लिए भी नीतियां बनानी चाहिए.
इसके अलावा, समिति ने एक राष्ट्रीय आयोग बनाने का भी सुझाव दिया है, जो खेतीहर मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित करेगा. इससे खेतीहर मजदूरों को उनके मेहनत का उचित भुगतान मिल सकेगा, और उनके जीवन स्तर में सुधार हो सकेगा.
किसानों की कल्याण योजनाओं का कार्यान्वयन
समिति ने यह भी सिफारिश की है कि किसानों के कल्याण के लिए जो योजनाएं सरकार चला रही है, उनका बेहतर तरीके से कार्यान्वयन किया जाए. कई बार यह योजनाएं जमीनी स्तर पर नहीं पहुंच पातीं, या फिर उनका लाभ सही लोगों तक नहीं पहुंच पाता. इसके लिए जरूरी है कि इन योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए विभाग अधिक सतर्क रहे और यह सुनिश्चित करे कि किसानों को योजनाओं का वास्तविक लाभ मिले.
किसानों की आय में वृद्धि और खर्चों में असंतुलन एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है. किसानों का बढ़ता कर्ज और उनके वित्तीय दबाव की स्थिति इस बात की ओर इशारा करती है कि किसानों की वास्तविक स्थिति में सुधार के लिए सरकार और संबंधित विभागों को सक्रिय रूप से काम करने की जरूरत है. केवल आय में वृद्धि से किसान का कल्याण नहीं हो सकता, जब तक उनकी वित्तीय स्थिति को स्थिर नहीं किया जाता.
इसके लिए जरूरी है कि सरकार किसान परिवारों को बेहतर वित्तीय प्रबंधन, सुलभ ऋण सुविधाएं, और खेतीहर मजदूरों के लिए न्यायसंगत नीतियां प्रदान करें. किसानों की आय बढ़ाने के साथ-साथ उनके खर्चों पर काबू पाना और कर्ज के बोझ को कम करना ही उनका असली कल्याण होगा.