मोदी Vs मनमोहन: सबसे ज्यादा AIIMS किस सरकार में बने?
मोदी Vs मनमोहन: सबसे ज्यादा AIIMS किस सरकार में बने? क्या यहां फ्री में होता है इलाज?
एम्स का नाम तो आपने जरूर सुना होगा. लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि एम्स की स्थापना कब और किसने की? किस सरकार ने कब और कितने बनाए AIIMS? क्यों आखिर हर कोई अच्छे इलाज के लिए एम्स ही जाना चाहता है?
देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर से लोग इलाज और मेडिकल साइंस में रिसर्च के लिए एम्स आना पसंद करते हैं. वहीं मेडिकल में अपना करियर बनाने का सपना देखने वाला छात्र भी एम्स से ही पढ़ाई करना चाहता है.
इस स्पेशल स्टोरी में आज हम आपको बहुत सरल भाषा में पहले एम्स की नींव रखे जाने की कहानी से लेकर आज तक की स्थिति के बारें में विस्तार बताते हैं.
सबसे पहले किसने देखा एम्स का सपना
देश में आज 18 एम्स हैं. 5 एम्स अभी बन रहे हैं. साल 1952 में सबसे पहले एम्स की नींव राजधानी दिल्ली में रखी गई थी. 11 साल बाद 1961 में ये बनकर तैयार हो गया. कहा जाता है तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने ही एम्स का सपना देखा था.
1946 में भारतीय लोक सेवक सर जोसेफ भोर की अध्यक्षता में एक समिति ने भारत में एक राष्ट्रीय चिकित्सा केंद्र बनाने की सिफारिश की थी. आजादी के बाद पंडित नेहरू के सपने और समिति की सिफारिशों को मिलाकर एक प्रस्ताव बनाया गया. 1952 में न्यूजीलैंड सरकार की मदद से दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की आधारशिला रखी.
पंडित नेहरू चाहते थे कि भारत में साउथ ईस्ट एशिया का सबसे अच्छा इलाज और मेडिकल रिसर्च के लिए एक सेंटर होना चाहिए. नेहरू के इस सपने पर तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर ने काम करना शुरू किया और पूरा भी किया.
1956 में संसद में पारित हुआ अधिनियम
साल 1956 में एम्स को ऑटोनोमस यानी स्वतंत्रता देने के लिए संसद में एक एक्ट पास किया गया. आखिरकार 27 जनवरी 1961 को इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने एम्स की पहली बिल्डिंग का उद्घाटन किया. हालांकि तब एम्स के पास अपना अस्पताल नहीं था.
एम्स में 50 मेडिकल स्टूडेंट्स के साथ एजुकेशन व रिसर्च डिपार्टमेंट की शुरुआत की गई थी. प्रेक्टिकल के लिए छात्र सफदरजंग अस्पताल जाते थे. इसके बाद 1962 में एम्स को अपनी दूसरी बिल्डिंग मिली. फिर यहां मरीजों के इलाज और क्लीनिक रिसर्च का काम भी शुरू हुआ.
आज दिल्ली एम्स में 42 डिपार्टमेंट और 7 सेंटर हैं. फैकल्टी की संख्या कुल 1095 और नॉन फैकल्टी की संख्या 12318 है. 2019-20 में एम्स ने 44 लाख 14 हजार 490 मरीजों का इलाज ओपीडी में किया. 2 लाख 68 हजार 144 मरीजों को एडमिट कर इलाज किया गया. इसमें से दो लाख से ज्यादा मरीजों की सर्जरी हुई. तीन हजार से ज्यादा बेड्स हैं. हर साल 600 से ज्यादा रिसर्च पेपर प्रकाशित किए जाते हैं.
NIRF रैंकिंग में दिल्ली एम्स नंबर-1
एनआईआरएफ रैंकिंग देश के मेडिकल कॉलेजों को एजुकेशन, रिसर्च और अन्य कारकों के आधार पर रैंक करती है. मेडिकल कॉलेजों की NIRF रैंकिंग 2023 के अनुसार, लगातार कई सालों से एम्स दिल्ली भारत में सबसे अच्छा मेडिकल कॉलेज बना हुआ है. 2023 में भी उसने अपना पहला स्थान बरकरार रखा है.
एम्स जोधपुर की रैंकिंग तीन पायदान सुधरी है. एम्स भुवनेश्वर 26वें से 17वें स्थान पर आ गया है और एम्स ऋषिकेश 48वें से 22वें स्थान पर पहुंच गया है. दिल्ली, जोधपुर, ऋषिकेश, भोपाल, पटना, रायपुर और भुवनेश्वर के एम्स सबसे बेहतरीन माने जाते हैं. एम्स पटना और एम्स भोपाल ने पहली बार रैंकिंग में स्थान पाया है क्रमशः 27वें और 38वें स्थान पर.
एम्स का क्या है अपना मकसद
1956 में एक कानून बनाकर एम्स की स्थापना की गई. एम्स को आजादी दी गई कि वो अपने तरीके से काम कर सकता है. एम्स में मेडिकल की पढ़ाई कराई जाती है और मरीजों का इलाज भी किया जाता है. साथ ही यहां बीमारियों को समझने के लिए नए तरीके खोजने का भी काम करता है.
एम्स की ओर मिलने वाली डिग्रीज को पूरे भारत में मान्यता प्राप्त है, ठीक उसी तरह जैसे किसी यूनिवर्सिटी की डिग्री को मान्यता मिलती है. एम्स का मुख्य मकसद ये है कि पूरे देश के मेडिकल कॉलेज में पढ़ाने वाले डॉक्टरों को खास ट्रेनिंग दी जाए. इन ट्रेनिंग में बहुत रिसर्च और नई खोजों पर ध्यान दिया जाता है, ताकि वो छात्रों को बेहतर सीखा सकें.
एम्स में पोस्टग्रेजुएट करने वाले छात्रों को सीखने के नए तरीके बताए जाते हैं. एम्स का दूसरा मकसद है कि यहां हर तरह के डॉक्टर को अच्छी ट्रेनिंग दी जाए, जिससे हर किसी को अच्छा इलाज मिल सके. एम्स में जो पढ़ाई होती है, उसे भारत के हिसाब से ही डिजाइन किया गया है. मतलब कि यहां डॉक्टरों को वैसी ही ट्रेनिंग दी जाती है, जिसकी भारत में सबसे ज्यादा जरूरत है.
दूसरे एम्स की कब रखी गई नींव?
भारत में पहले एम्स की आधारशिला रखे जाने के 50 साल बाद 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दूसरा एम्स बनाने का ऐलान किया. अटल बिहारी ने स्वीकार किया कि अविकसित राज्यों में लोगों को अच्छी अस्पताल सेवाओं की कमी के कारण परेशानी होती है. इसलिए उन्होंने प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (PMSSY) की शुरुआत की.
PMSSY योजना के तहत 2003 में छह एम्स की घोषणा की गई. इनमें पटना (बिहार), रायपुर (छत्तीसगढ़), भोपाल (मध्य प्रदेश), भुवनेश्वर (ओडिशा), जोधपुर (राजस्थान) और ऋषिकेश (उत्तराखंड) शामिल हैं. पहले चरण में हर एक एम्स के लिए अनुमानित 820 करोड़ रुपये का बजट रखा गया. इनमें 620 करोड़ रुपये निर्माण के लिए दिए गए. 200 करोड़ रुपये मेडिकल इक्युपमेंट्स और मॉड्यूलर ऑपरेशन थिएटर बनाने के लिए दिए.
हालांकि, 6 एम्स की घोषणा करने के नौ महीने बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार गिर गई. इसके बाद 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में मनमोहन सरकार सत्ता आई. इसी सरकार के कार्यकाल के दौरान सभी छह एम्स बनाने का काम किया गया.
पीआईबी की रिपोर्ट के अनुसार, ये छह एम्स 2014 से पहले आंशिक रूप से कार्यात्मक हो गए थे. फिर 2014 के बाद एनडीए सरकार ने भी काम जारी रखा और कई सेवाओं का विस्तार किया गया. इन छह एम्स में कुल मिलाकर 5764 बिस्तर हैं. अब तक 33 लाख 13 हजार 747 मरीज ओपीडी में इलाज करवा चुके हैं. 2 लाख 1 हजार 754 मरीजों को आईपीडी में भर्ती किया गया है.
मनमोहन vs मोदी सरकार
मनमोहन सरकार ने अपने 10 साल के कार्यकाल (2004-2014) में एक एम्स बनाने का ऐलान किया. 2012 में उत्तर प्रदेश के राय बरेली शहर में नए एम्स के लिए 823 करोड़ रुपये सेंशन किए गए. राय बरेली का संसदीय निर्वाचन क्षेत्र कांग्रेस पार्टी का गढ़ माना जाता है. पहले फिरोज गांधी, फिर इंदिरा गांधी और अब सोनिया गांधी लंबे समय से इस सीट पर जीत हासिल करती आ रही हैं.
2014 में मोदी सरकार सत्ता में आई. मोदी कैबिनेट ने 15 नए एम्स बनाने की स्वीकृति दी. इनमें से 10 एम्स में लिमिटेड सर्विसेज शुरू हो चुकी है. बाकी पांच एम्स में से कुछ तीन में कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा है. जबकि दो एम्स का काम अभी शुरू होना है.
किस राज्य में सबसे ज्यादा AIIMS
आज भारत के 21 राज्यों में एम्स बन चुके हैं या बन रहे हैं. केवल दो राज्य ऐसे हैं उत्तर प्रदेश और बिहार जहां दो-दो एम्स हैं. बाकी 19 राज्यों में एक-एक एम्स है.
क्या एम्स में फ्री में होता है इलाज?
एम्स के जनरल वॉर्ड में देश के किसी भी हिस्से से आने वाले कुछ मरीजों का इलाज किया जाता है या फिर बहुत मामुली खर्चा आता है. गरीबी रेखा से नीचे (BPL) रहने वाले मरीजों को एम्स में इलाज मुफ्त मिलता है. साथ ही आयुष्मान भारत योजना के तहत आने वाले मरीजों को भी एम्स में फ्री इलाज मिलता है. वहीं कंसल्टेशन सभी मरीजों के लिए फ्री है. इस कारण देश के सभी एम्स में हर वक्त मरीजों की भीड़ लगी रहती है.
वहीं मरीज पैसा खर्च करके प्राइवेट वॉर्ड या प्राइवेट रूम में भी अपना इलाज करा सकते हैं. खास बात ये है कि यहां के प्राइवेट वॉर्ड्स दूसरे अस्पतालों की तुलना में ज्यादा सुविधाओं से लैस और सस्ते होते हैं. ऑपरेशन और दवाइयों के लिए मरीजों को कम खर्चा करना होता है.