12वीं में दो बार फेल होकर भी रामानुजन कैसे बने महान गणितज्ञ?
12वीं में दो बार फेल होकर भी रामानुजन कैसे बने महान गणितज्ञ? अनंत का फॉर्मूला खोजा
National Mathematics Day 2024: भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन ने 32 साल की जिंदगी में गणित में ऐसी-ऐसी खोजें कीं, जिनको समझने में गणितज्ञों को सालों लग गए. 22 दिसम्बर को उनकी जयंती को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया जाता है. आइए जान लेते हैं कि कक्षा 12 में दो बार फेल होने वाले श्रीनिवास रामानुजन महान गणितज्ञ कैसे बने और अनंत के फॉर्मूले की खोज कर डाली?
महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन को आज भला कौन नहीं जानता, जिन्होंने केवल 32 साल की जिंदगी में गणित में ऐसी-ऐसी खोजें कीं, जिनको समझने में गणितज्ञों को सालों लग गए. उन्हीं श्रीनिवास रामानुजन की जयंती पर हर साल 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस मनाया जाता है. इसकी घोषणा तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने साल 2012 में की थी. आइए जान लेते हैं कि कक्षा 12 में दो बार फेल होने वाले श्रीनिवास रामानुजन महान गणितज्ञ कैसे बने और अनंत की खोज कर डाली?
तमिलनाडु के इरोड में श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को एक तमिल ब्राह्मण (आयंगर) परिवार में हुआ था. उन्होंने कुंभकोणम के सरकारी स्कूल से शिक्षा हासिल की. हालांकि, गणित के अलावा दूसरे विषयों में रुचि नहीं होने के कारण वह 12वीं की परीक्षा में दो-दो बार फेल हो गए. आज कुंभकोणम का वह स्कूल रामानुजन के नाम पर है.
किसी तरह से पढ़ाई पूरी कर साल 1912 में रामानुजन ने मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में एक क्लर्क के रूप में नौकरी करनी शुरू की. वहां पर एक बार उनके एक अंग्रेज सहकर्मी ने रामानुजन को गणित के मुश्किल सवाल हल करते देख उनकी प्रतिभा को पहचाना. उस सहकर्मी को खुद गणित की अच्छी समझ थी. उसने रामानुजन की प्रतिभा को देखते हुए ब्रिटेन में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से जुड़े ट्रिनिटी कॉलेज के प्रोफेसर जीएच हार्डी के पास जाने की सलाह दी.
16 साल की उम्र में हो गई थी शादीइसी बीच केवल 16 साल की उम्र में घर वालों ने रामानुजन की शादी जानकी अम्माल से कर दी. हालांकि, गणित के प्रति उनका लगाव कब भी जारी रहा. उन्होंने पत्रों के जरिए गणित के कुछ फॉर्मूले कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जीएच हार्डी को भेजे. इन फॉर्मूलों को देखकर प्रोफेसर हार्डी इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने रामानुजन को अपने पास लंदन बुला लिया. वह प्रोफेसर हार्डी उनके मेंटर बन गए. लंदन में प्रोफेसर हार्डी के साथ मिलकर रामानुजन ने गणित के कई रिसर्च पेपर प्रकाशित किए. उन रिसर्च पेपर को देखकर अंग्रेज भी रामानुजन का लोहा मानने लगे और उनको सम्मान दिया.
1914 में इनफिनिटी सीरीज का सूत्र खोजासाल 1914 में रामानुजन ने पाई के लिए इनफिनिटी सीरीज (अनंत शृंखला) का सूत्र खोजा था, जो आज भी कई एल्गोरिदम का आधार होता है. दरअसल, पाई (π) का सटीक अनुमान गणित के इतिहास में सबसे चुनौतीपूर्ण था. इसके अलावा रामानुजन ने गणित की कई चुनौतीपूर्ण समस्याओं को हल करने का रास्ता निकाला, जिनकी सूची काफी लंबी है. इसने खेल के सिद्धांत के विकास को बढ़ावा दिया. रामानुजन ने मॉक थीटा फंक्शन पर भी विस्तार से प्रकाश डाला. साल 1729 को रामानुजन नंबर के रूप में जाना जाता है. यह वास्तव में दो संख्याओं 10 और 9 के घनों (क्यूब) का जोड़ है. रामानुजन ने ही प्रोफेसर हार्डी के साथ मिलकर वृत्त विधि (सर्किल मेथड) की खोज की थी.
ट्रिनिटी कॉलेज की फेलोशिप पाने वाले पहले भारतीयट्रिनिटी कॉलेज से जुड़ने के बाद श्रीनिवास रामानुजन को साल 1916 में बैचलर ऑफ साइंस (बीएससी) की डिग्री मिल गई. साल 1917 में उनको लंदन मैथमेटिकल सोसाइटी में भी स्थान मिल गया. इसके अगले ही साल गणित के क्षेत्र में रिसर्च के लिए रामानुजन को रॉयल सोसायटी में जगह दे दी गई. अक्तूबर 1918 में उनको ट्रिनिटी कॉलेज की फेलोशिप मिल गई और यह फेलोशिप पाने वाले वह पहले भारतीय बने.
टीबी के कारण हुआ था निधनश्रीनिवास रामानुजन की गणित की प्रतिभा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि केवल 33 साल की जिंदगी में उन्होंने गणित के चार हजार से ज्यादा ऐसे थ्योरम पर रिसर्च कर डाली, जिनको समझने में पूरी दुनिया के गणितज्ञों को सालों का समय लग गया. हालांकि, स्वास्थ्य से जुड़ी दिक्कतों के कारण रामानुजन साल 1919 में लंदन से भारत वापस आ गए. उनको टीबी जैसी तब की असाध्य बीमारी हो गई. स्वदेश आने के एक साल बाद ही साल 1920 में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.
मौत के बाद किया तिरस्कार का सामनादुनिया भर को अपनी गणित की प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन को मरने के बाद अपने ही लोगों से तिरस्कार तक झेलना पड़ा. पंडितों ने मौत के बाद उनकी अंत्येष्टि कराने से इनकार कर दिया, क्योंकि समुद्र मार्ग से यात्रा करने के बावजूद उन्होंने प्रायश्चित नहीं किया था. तब माना जाता था कि समुद्री यात्रा के बाद पश्चाताप के लिए रामेश्वरम की यात्रा करनी चाहिए पर उनको इसके लिए मौका ही नहीं मिला था.
रॉबर्ट कैनिगल नाम के एक लेखकर ने श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी लिखी, जिसका नाम है, द मैन हू न्यू इन्फिनिटी: अ लाइफ ऑफ द जीनियस रामानुजन. इसी जीवनी के आधार पर साल 2015 में एक फिल्म भी बनी, जिसका नाम है, द मैन हू न्यू इन्फिनिटी. इस फिल्म में देव पटेल ने रामानुजन की भूमिका निभाई है.