कब और कहां से शुरू हुआ इंसान का सफर, फिर कैसे दुनियाभर में फैल गए?

कब और कहां से शुरू हुआ इंसान का सफर, फिर कैसे दुनियाभर में फैल गए?

यह समझने के लिए कि इंसान कैसे विकसित हुए और दुनिया में कैसे फैले, वैज्ञानिकों ने इंसानी शरीर के अंदर मौजूद एक खास चीज का अध्ययन किया है जिसे DNA कहते हैं.

वैज्ञानिकों का मानना है कि हमारी प्रजाति होमो सेपियन्स का जन्म 3 लाख साल से भी ज्यादा समय पहले अफ्रीका में हुआ था. लगभग 60 से 70 हजार साल पहले कुछ होमो सेपियन्स अफ्रीका से बाहर निकले और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में फैल गए. लेकिन अफ्रीका छोड़ने के बाद ये पहले इंसान कहां गए और दुनियाभर में कैसे फैले?

नेचर मैगजीन में छपी रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, DNA और पुरातात्विक सबूतों से यह पता चलता है कि अफ्रीका छोड़ने के बाद इंसान सबसे पहले मध्य पूर्व में गए. वहां से वे धीरे-धीरे एशिया और यूरोप में फैले. कुछ समय बाद, वे अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया भी पहुंच गए.

यह सफर हजारों सालों तक चला और इसमें इंसानों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा. लेकिन वे धीरे-धीरे विकसित होते रहे और पूरी दुनिया में अपनी जगह बनाई.

आसान नहीं था अफ्रीका से दुनिया में इंसानों का सफर
होमो सेपियन्स के अफ्रीका से निकलकर दुनिया में फैलने की कहानी उतनी सीधी नहीं है जितनी हम सोचते हैं. नए सबूत बताते हैं कि यह एक जटिल प्रक्रिया थी, जिसमें कई बार इंसानों ने अफ्रीका से बाहर जाने की कोशिश की.

जीवाश्म और पुरातात्विक खोज से पता चलता है कि इंसानों ने कई बार अफ्रीका से बाहर जाने की कोशिश की, न कि सिर्फ एक बार. नीएंडरथल एक प्राचीन मानव प्रजाति थी जो यूरोप और एशिया में रहती थी. उनके DNA में होमो सेपियन्स के DNA के निशान मिले हैं, जो बताता है कि दोनों प्रजातियों के बीच मेल-जोल हुआ था. यह भी बताता है कि इंसानों ने कई बार अफ्रीका से बाहर जाने की कोशिश की.

कब और कहां से शुरू हुआ इंसान का सफर, फिर कैसे दुनियाभर में फैल गए?

शुरुआती दौर में अफ्रीका से बाहर जाने वाले कुछ इंसानों की आबादी कम हो गई या वे विलुप्त हो गए. लगभग 60-70 हजार साल पहले इंसानों की एक बड़ी लहर अफ्रीका से बाहर निकली और पूरी दुनिया में फैल गई. आज के सभी गैर-अफ्रीकी लोग इन्हीं इंसानों के वंशज हैं.

45 हजार साल पहले इंसानों ने कैसे बसाया यूरेशिया?
लगभग 45 हजार साल पहले होमो सेपियन्स ने यूरेशिया (एशिया और यूरोप) को अपना घर बना लिया था. लेकिन इससे पहले 60-70 हजार साल पहले अफ्रीका से निकलने के बाद से लेकर 45 हजार साल पहले तक, वे कहां रहे? यह एक रहस्य बना हुआ है.

45 हजार साल पहले इंसानों ने यूरेशिया में कई तरह के पत्थर के औजार बनाए थे, जो बताता है कि वे अलग-अलग समूहों में बंटे हुए थे और उनकी संस्कृति भी अलग-अलग थी. कुछ इंसान यूरोप में पहले भी गए थे, लेकिन वे वहां टिक नहीं पाए और उनका कोई वंशज आज मौजूद नहीं है. अफ्रीका से निकलने (60-70 हजार साल पहले) और यूरेशिया में बसने (45 हजार साल पहले) के बीच 20 हजार साल का गैप है. इस दौरान इंसान कहां रहे, यह पता नहीं है.

वैज्ञानिकों का मानना है कि 60-70 हजार साल पहले अफ्रीका से निकलने के बाद इंसानों का एक समूह किसी एक जगह पर रहा होगा, जिसे ‘हब पॉपुलेशन’ कहा जाता है. यह समूह धीरे-धीरे बढ़ता रहा और फिर यूरेशिया में फैल गया. लेकिन यह हब पॉपुलेशन कहां थी, यह पता लगाना मुश्किल है क्योंकि उस समय के इंसानों के जीवाश्म बहुत कम मिले हैं.

एशिया और यूरोप में कैसे बसे हमारे पूर्वज?
वैज्ञानिकों का मानना है कि अफ्रीका से निकलने के बाद इंसानों का एक समूह किसी एक जगह पर रहा होगा जिसे हब पॉपुलेशन कहा जाता है. इस समूह से दो अलग-अलग समूह निकले: पूर्वी यूरेशियन कोर (EEC) और पश्चिमी यूरेशियन कोर (WEC).

पूर्वी यूरेशियन कोर समूह पूर्वी एशिया और ओशिनिया (ऑस्ट्रेलिया और पास के द्वीप) में फैला. पश्चिमी यूरेशियन कोर समूह पश्चिमी एशिया और यूरोप में फैला. EEC समूह पश्चिमी यूरेशिया में ज़्यादा समय तक नहीं टिक पाया और लगभग 38 हजार साल पहले विलुप्त हो गया. WEC समूह पश्चिमी यूरेशिया में फैलता रहा और आज के ज्यादातर पश्चिमी यूरेशियाई लोग इसी समूह के वंशज हैं.

इसके अलावा, एक और समूह था जिसे ‘बेसल यूरेशियन’ कहा जाता है. यह समूह अफ्रीका से निकलने के कुछ ही समय बाद अन्य इंसानों से अलग हो गया था. यह समूह मध्य पूर्व में रहता था और बाद में पश्चिमी यूरेशिया में फैल गया.

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ईरान का पठार हो सकता है इंसानों का पहला घर?
इस अध्ययन के मुताबिक, ईरान का पठार वह जगह हो सकती है जहां इंसानों ने अफ्रीका से निकलने के बाद पहली बार अपना घर बसाया. यह जगह हब पॉपुलेशन के लिए एक ‘हब’ की तरह थी, जहां से वे पूरे एशिया और यूरोप में फैले. 

ईरान के लोगों के DNA में कुछ ऐसे गुण पाए गए हैं जो अफ्रीका से बाहर आने वाले पहले इंसानों से मिलते हैं. पुराने जलवायु के अध्ययन से पता चलता है कि उस समय ईरान का पठार इंसानों के रहने के लिए अच्छा था.

वैज्ञानिकों ने कैसे की रिसर्च?
वैज्ञानिकों ने दो प्राचीन इंसानों के DNA का इस्तेमाल किया है: तियानयुआन और कोस्तेंकी. तियानयुआन 40 हजार साल पुराना एक व्यक्ति था जो पूर्वी एशिया में रहता था. कोस्तेंकी 38 हजार साल पुराना एक व्यक्ति था जो पश्चिमी रूस में रहता था. वैज्ञानिकों ने देखा कि अलग-अलग समूहों के DNA में तियानयुआन और कोस्तेंकी के DNA से कितनी समानता है. इस समानता के आधार पर उन्होंने एक नक्शा बनाया जिसमें हर समूह को एक बिंदु से दिखाया गया है. 

इस नक्शे में दो अक्ष हैं- एक तियानयुआन के लिए और एक कोस्तेंकी के लिए. जहां ये दोनों अक्ष मिलते हैं, वह बिंदु ‘हब पॉपुलेशन’ को दिखाता है जब EEC (पूर्वी यूरेशियन कोर) उससे अलग हुआ था. इस मिलान बिंदु से थोड़ा आगे, नीले अक्ष पर एक और बिंदु है जो हब पॉपुलेशन को दिखाता है जब EEC उससे अलग होने के बाद वह बदल गई थी.

हब पॉपुलेशन की खोज में जीवाश्म और पुरातात्विक सबूत
वैज्ञानिकों का मानना है कि हब पॉपुलेशन ने IUP (इनिशियल अपर पैलियोलिथिक) और UP (अपर पैलियोलिथिक) नाम की दो तरह की संस्कृतियों को जन्म दिया होगा. IUP संस्कृति लगभग 45 हजार साल पहले और UP संस्कृति लगभग 40 हजार साल पहले शुरू हुई थी. अगर हब पॉपुलेशन ईरान के पठार में थी, तो वहां इन संस्कृतियों के निशान मिलने चाहिए.

ईरान के पठार में 40 हजार साल पहले के इंसानों के जीवाश्म बहुत कम मिले हैं. इससे यह पता लगाना मुश्किल हो रहा है कि हब पॉपुलेशन वहां रहती थी या नहीं. कुछ सबूत बताते हैं कि ईरान के पठार में ज़्लाटी कुन नाम की एक और संस्कृति भी थी, जो IUP और UP से भी पुरानी थी.

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इंसानों ने कई बार अफ्रीका से बाहर जाने की कोशिश की, न कि सिर्फ एक बा

ईरान के पठार में इंसानों के पुराने निशान: क्या कहते हैं जीवाश्म और औजार?
ईरान के पठार में कई ऐसी जगहें मिली हैं जहां मध्य पाषाण काल (लगभग 77 से 40 हजार साल पहले) के इंसान रहते थे. इन जगहों पर पत्थर के औजार और कुछ नीएंडरथल की हड्डियां भी मिली हैं. हालांकि अभी तक ईरान के पठार में होमो सेपियन्स के कोई जीवाश्म नहीं मिले हैं, लेकिन अरब और लेवेंट (पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र) में कुछ जीवाश्म मिले हैं जो लगभग 85 हजार साल पुराने हैं. 

वहीं लेवेंट में मानोत गुफा में एक जीवाश्म मिला है जो लगभग 55 हजार साल पुराना है. अगर यह जीवाश्म हब पॉपुलेशन का है, तो यह इस बात का सबूत होगा कि हब पॉपुलेशन ईरान के पठार में रहती थी. ईरान के पठार में मिराक नाम की एक जगह है जहां लगभग 55 हजार साल पुराने पत्थर के औजार मिले हैं. इन औजारों को देखकर ऐसा लगता है कि ये होमो सेपियन्स ने बनाए होंगे.

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ईरान के पठार में इंसानों के बदलते औजार: क्या यह बताता है कि वहाँ कौन रहता था?
ईरान के पठार में पुराने जमाने के इंसानों द्वारा बनाए गए पत्थर के औजार मिले हैं. इन औजारों को देखकर पता चलता है कि वहां कौन रहता था और समय के साथ उनकी संस्कृति कैसे बदली.

यहां तीन तरह के औजार मिले- 

  • बारादोस्तियन: यह सबसे पुराने औजारों में से एक है
  • जाग्रोस ऑरिग्नेशियन: यह बारादोस्तियन से थोड़ा नया है
  • IUP (इनिशियल अपर पैलियोलिथिक): यह सबसे नया है.

ईरान के पठार में ये तीनों तरह के औजार बहुत जल्दी एक के बाद एक दिखाई दिए. यह बताता है कि वहां रहने वाले लोगों में तेजी से बदलाव आ रहे थे. हो सकता है कि नए लोग आए हों और उन्होंने पुरानी आबादी को वहां से हटा दिया हो. यह पुरानी आबादी नीएंडरथल या फिर होमो सेपियन्स की कोई पुरानी प्रजाति हो सकती है.

मतलब, इंसान का सफर लाखों साल पहले अफ्रीका से शुरू हुआ. फिर धीरे-धीरे वे भोजन, जलवायु और नए स्थानों की तलाश में दुनियाभर में फैल गए. आज भी वैज्ञानिक DNA और जीवाश्मों का अध्ययन करके इस सफर के बारे में नई-नई जानकारियां जुटा रहे हैं.

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