विधानसभा चुनाव: 8 संत हैं मैदान में, एक तो सीएम रेस में ….

विधानसभा चुनाव: 8 संत हैं मैदान में, एक तो सीएम रेस में भी शामिल, जानिए किस पार्टी से कौन
200 सीटों वाली राजस्थान में ही अलग-अलग समुदाय के 4 से ज्यादा बाबा मैदान में उतर चुके हैं, तो वहीं कुछ उतरने की तैयारी में हैं. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी कई संत खुद ताल ठोक रहे हैं.
कोई भगवा पहने अपनी टोली के साथ घर-घर जा रहा है, तो कोई शंख फूंकते और दंड प्रणाम करते हुए बीच सड़क से गुजर रहा है.. मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में यह नजारा आपको हर कहीं देखने को मिल सकता है.

वजह इस बार बड़े स्तर पर संतों के मैदान में उतरना है. 200 सीटों वाली राजस्थान में ही अलग-अलग समुदाय के 4 से ज्यादा बाबा मैदान में उतर चुके हैं, तो वहीं कुछ उतरने की तैयारी में हैं. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी कई संत मठ छोड़ चुनावी रण में कूद चुके हैं.

इनमें सबसे ज्यादा चर्चा बुधनी सीट से लड़ने वाले मिर्ची बाबा और रायपुर सीट से लड़ने वाले महंथ रामसुंदर दास की है. 

मिर्ची बाबा बुधनी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चुनौती देंगे. बुधनी सीट बीजेपी का अभेद्य किला माना जाता है. वहीं रायपुर दक्षिण सीट पर कांग्रेस सिंबल से उतरे महंथ रामसुंदर दास बीजेपी के बृजमोहन अग्रवाल के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. यह सीट भी बीजेपी का गढ़ है.

भारत में संतों की सत्ता कथा नई नहीं है. मंडल-कमंडल की लड़ाई के बाद भारी संख्या में संतों की सियासत में एंट्री हुई. हालांकि, यह पहला चुनाव है, जब इतनी बड़ी तादाद में संत विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं.

इस स्टोरी में विधानसभा चुनाव में संतों की सत्ता कथा को विस्तार से जानिए.

शुरू राजस्थान से करते हैं..
राजस्थान में कांग्रेस और बीजेपी दोनों जमकर संतों को टिकट देने में जुटी है. बीजेपी ने घोषित रूप से अब तक महंत बालकनाथ,ओटाराम देवासी और महंत प्रताप पुरी को टिकट दिया है. कांग्रेस ने मुस्लिम धर्मगुरु सालेह मोहम्मद को टिकट दिया है. 

हाल ही में पार्टी का दामन थामने वाली साध्वी अनादि सरस्वती भी टिकट की दावेदार हैं. उन्हें अजमेर के किसी सीट से टिकट देने की चर्चा है.

तिजारा सीट से बीजेपी उम्मीदवार महंत बालकनाथ योगी वर्तमान में अलवर लोकसभा सीट से सांसद भी हैं. बालकनाथ का पर्चा दाखिल कराने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आए थे. 

बालकनाथ नाथ संप्रदाय के योगी है. नाथ संप्रदाय का हरियाणा और राजस्थान बॉर्डर के कई जिलों में मजबूत दबदबा है. महंत बालकनाथ को राजस्थान में बीजेपी के भीतर सीएम दावेदार भी माना जा रहा है.

बीजेपी ने 20 साल में पहली बार राजस्थान में चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है.

वहीं महंत प्रताप पुरी की बात की जाए, तो वे तारातारा मठ के प्रमुख हैं. यह मठ बारमेड़ इलाके में काफी सक्रिय हैं. प्रताप पुरी 2018 में भी पोखरण सीट से चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. 

प्रताप पुरी की प्रारंभिक शिक्षा लीलसर गांव में हुई थी. वे बहुत ही कम उम्र में तारातारा मठ के मोहन पुरी के सानिध्य में आ गए. व्यस्क होने पर उन्होंने हरियाणा के चेशायर जिले के गुरुकुल से शास्त्र खंड में अपनी प्रमुख शिक्षा ग्रहण की. 

महंत प्रताप पुरी को मात देने के लिए पिछली बार कांग्रेस ने सालेह मोहम्मद को मैदान में उतारा था. मोहम्मद भी मुस्लिम धर्मगुरू हैं. सालेह के पिता को जैसलमेर इलाके में गाजी फकीर कहते हैं. यह सिंधी मुस्लिम समुदाय के धर्मगुरु का पद है.

सालेह पोखरण से 2008 में भी जीत चुके हैं. वर्तमान में अशोक गहलोत सरकार में मंत्री भी थे. इन तीनों के अलावा साध्वी अनादी सरस्वती भी चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में है. वे अजमेर उत्तर सीट से चुनाव लड़ सकती हैं.

यह सीट बीजेपी का गढ़ माना जाता है, जिस पर इस बार अशोक गहलोत के करीबी धर्मेंद्र राठौड़ दावेदारी कर रहे थे, लेकिन हाईकमान ने उनका पत्ता काट दिया.

साध्वी को अशोक गहलोत ने कांग्रेस में शामिल कराया है. भागवत गीता, वेदांत का अध्ययन करने वाली अनादि ने 2008 में प्रेमानंद महाराज से महानिर्वाण अखाड़े के परंपरा के मुताबिक दीक्षा ली थी. 

साध्वी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपना आइडियल मानती हैं. कांग्रेस में शामिल होने के बाद उन्होंने कहा कि वे योगी की तरह राजनीति में रहकर लोगों की सेवा करना चाहती हैं.

बात मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की
देश के हृदयस्थल मध्य प्रदेश में 2 संत इस बार खुलकर ताल ठोक रहे हैं. बुधनी सीट से शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ मिर्ची बाबा मैदान में हैं. मिर्ची बाबा का पूरा नाम महामंडलेश्‍वर स्वामी वैराग्यानंद है और उन्हें समाजवादी पार्टी ने टिकट दिया है. 

मिर्ची बाबा मूल रूप से भिंड के रहने वाले हैं. 2018 से पहले वे लाइमलाइट में आए थे. कांग्रेस की सरकार बनने के बाद उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया था. 2019 में मिर्ची बाबा ने भोपाल सीट से दिग्विजय सिंह के चुनाव हारने पर जल समाधि लेने की घोषणा की थी. 

2020 में कांग्रेस की सरकार जाने के बाद बाबा के बुरे दिन शुरू हो गए. उन पर एक महिला ने रेप का आरोप लगाया था, जिसकी वजह से उन्हें 13 महीने जेल में रहना पड़ा. हालांकि, कोर्ट ने उन्हें इस मामले में बरी कर दिया.

बाबा ने इसके बाद से ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को निशाने पर लेना शुरू कर दिया. बुधनी सीट से कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया, तो बाबा अखिलेश से मिलने लखनऊ चले गए. यहां टिकट पर बात फाइनल हुई, तो समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए.

मिर्ची बाबा की तरह ही रीवा सीट पर सबके महाराज नाम से मशहूर सुशील सत्य महाराज मैदान में हैं. वे 2018 में भी इसी सीट से चुनाव लड़ चुके हैं. 

सुशील महाराज के दावे के मुताबिक पारिवारिक विरक्तियों की वजह से वे हिमालय पर चले गए, जहां उन्होंने 10 वर्षों की घनघोर तपस्या की. महाराज ने पत्रकारों से बताया कि रीवा का विनाश मुझसे देखा नहीं गया, इसलिए चुनाव में उतर गया.

छत्तीसगढ़ के रायपुर सीट से चुनाव लड़ रहे रामसुंदर दास दूधाधारी मठ के प्रमुख हैं. कहा जाता है कि मठ के प्रमुख वैष्णवदास रामसुंदर दास के ज्ञान से खूब प्रसन्न हुए थे, जिसके बाद उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया.

रामसुंदर दास गौसेवा बोर्ड के चेयरमैन हैं और छत्तीसगढ़ सरकार से उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा मिला हुआ है. वे विधायक भी रह चुके हैं. 

राम मंदिर आंदोलन ने कई संतों को शीर्ष पर पहुंचाया
देश में राम मंदिर आंदोलन के बाद कई संतों का राजनीति उदय हुआ. इनमें उमा भारती,  सतपाल महाराज, चिन्मयानंद, योगी आदित्यनाथ, साक्षी महाराज जैसे नाम प्रमुख हैं. 

उमा भारती केंद्रीय मंत्री के बाद मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी. उनके फायरब्रांड भाषण ने दिग्विजय सिंह के 10 साल की सत्ता उखाड़ दी. सतपाल महाराज उत्तराखंड की सियासत में एक बड़ा नाम है. वे कई सरकारों में मंत्री रहे हैं.

चिन्मयानंद अटल बिहारी वाजपेई की सरकार में मंत्री रह चुके हैं. साक्षी महाराज वर्तमान में उन्नाव से सांसद हैं. साध्वी प्रज्ञा भारती भी 2019 में भोपाल सीट से जीतकर सदन पहुंची थीं.

गोरखनाथ पीठ के पीठाधीश्वर मंहत योगी आदित्यनाथ वर्तमान में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. उनके गुरु दिग्विजयनाथ भी गोरखपुर से सांसद थे. 

संतों का राजनीति में आना कितना सही, 2 बयान
जगदगुरु शंकराचार्य राजेश्वराश्रम फरवरी 2022 में सतों के राजनीति में आने का विरोध कर चुके हैं. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि संतों को भगवा उतारकर ही राजनीति में आना चाहिए. उन्होंने कहा था कि धर्म राजनीति को कंट्रोल करता था, लेकिन अब धर्मगुरु खुद सहभागी हो गए हैं.

उन्होंने कहा था कि संत के राजनीतिक कुर्सी पर बैठ जाने से रामराज्य नहीं आने वाला है. 

संघ प्रमुख मोहन भागवत भी संतों के राजनीति में आने का विरोध कर चुके हैं. 2017 में हरिद्वार के ‘साधु स्वाध्याय संगम सम्मेलन’ में उन्होंने कहा था कि संत राजनीति से दूर रहें. वे किसी पार्टी से जुड़ने की बजाय लोगों को एक साथ जोड़ें.

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