सीएआरए के नियमों में बदलाव की मांग उठी है … मुश्किल प्रक्रिया की वजह से गोद लेने वालों में आ रही कमी
मुश्किल प्रक्रिया की वजह से गोद लेने वालों में आ रही कमी, इसे आसान बनाना कितना दुश्वार?
सीएआरए अनाथ बच्चों को गोद देने के लिए बनाई गई एक नोडल एजेंसी है. इसे देश और अंतर-देश में गोद लेने की निगरानी और विनियमन करने का दायित्व दिया गया है.
भारत में बच्चों के गोद लेने की जटिल प्रक्रिया पर फिर से बहस शुरू हो गई है. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में केंद्र सरकार से गोद लेने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए सुझाव मांगा है. कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (सीएआरए) के तहत वर्तमान में जो गोद लेने की प्रक्रिया है, वो काफी जटिल है.
याचिकाकर्ता का कहना है कि प्रक्रिया जटिल होने की वजह से सैकड़ों लोग बच्चों को गोद नहीं ले पा रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट की बेंच भी याचिकाकर्ता के इस दलील से सहमत नजर आया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी व्यवस्था बनाने पर विचार हो, जिसमें गोद लेने में ज्यादा वक्त न लगे.
याचिकाकर्ता ने अपनी दलील में कहा- अनाथों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, लेकिन गोद लेने वाले बच्चों की संख्या घट ही रही है. लोग गोद लेने को तैयार बैठे हैं, लेकिन उन्हें समय से बच्चा नहीं मिल रहा है. आखिर क्यों?
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्य भाटी ने कोर्ट को बताया कि हम बच्चे और गोद लेने वाले को बेहतर तरीके से परखते हैं. इसलिए प्रक्रिया में वक्त लगता है. कोर्ट के निर्देश पर हम समय-समय पर नियम बदलते भी हैं.
भारत में कैसे ले सकते हैं गोद, नियम जानिए
1. किन बच्चों को दिया जा सकता है गोद?
गोद लेने की प्रक्रिया सबसे पहले यह तय किया जाता है कि किन बच्चों को गोद दिया जा सकता है? वर्तमान में यह तय करने का जिम्मा राज्य एजेंसी को दिया गया है. राज्य सरकार के अधीन एजेंसी अनाथ बच्चों का विवरण क्रमवार तैयार करता है.
इसके बाद यह सूची सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी को सौंप दी जाती है. भारत में बच्चे गोद देने की प्रक्रिया की जिम्मेदारी इसी संस्था के पास है.
2. गोद का तरीका क्या होगा, यह भी अहम
बच्चों को गोद लेने का तरीका क्या होगा, यह भी इस प्रक्रिया में काफी अहम है. भारत में वर्तमान में 5 तरीके से बच्चे गोद लिए जा रहे हैं. इनमें सेमी ओपेन एडॉप्शन, क्लोज्ड एडॉप्शन, इंट्रा फैमिली एडॉप्शन, डोमेस्टिक फैमिली एडॉप्शन और इंटरनेशनल एडॉप्शन शामिल हैं.
– सेमी ओपन एडॉप्शन में बच्चे को किसे गोद दिया जाएगा, यह उसकी मां तय कर सकती है.
– क्लोज्ड एडॉप्शन में गोद लेने या देने वाले के बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं रहती है.
– इंट्रा फैमिली एडॉप्शन में परिवार के भीतर ही बच्चों के गोद लेने-देने की प्रक्रिया होती है.
– डोमेस्टिक एडॉप्शन में बच्चे की जैविक माता-पिता और दत्तक माता-पिता एक ही देश के होते हैं.
– इंटरनेशनल एडॉप्शन में किसी दूसरे देश के बच्चों को गोद लेने का प्रावधान है.
3. सीएआरए पर अप्लाई कर गोद लेना
यह प्रक्रिया आमतौर पर वे लोग अपनाते हैं, जो क्लोज्ड एडॉप्शन से बच्चे गोद लेना चाहते हैं. इस प्रक्रिया में सबसे पहले www.cara.nic.in के वेबसाइट पर जाकर अप्लाई करना पड़ता है. अप्लाई के वक्त मांगे गए सभी जरूरी दस्तावेज जमा कराने पड़ते हैं.
सीएआरए इसके बाद स्थानीय एजेंसी को इसके वेरिफिकेशन की जिम्मेदारी सौंपती है. वेरिफिकेशन के बाद राज्य एजेंसी से तय किए गए बच्चों की प्रोफाइल आवेदनकर्ता माता-पिता को भेजा जाता है. सब कुछ तय होने के बाद कानूनी प्रक्रिया शुरू होती है.
आखिरी मुहर निचली अदालत से लगती है, जिसके बाद बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र तैयार किया जाता है. कानूनी तौर पर बच्चों को गोद लेने के लिए माता-पिता को उससे 21 साल बड़ा होना अनिवार्य है. यानी गोद लिए जाने वाले बच्चे की उम्र 4 साल है, तो माता-पिता की उम्र 25-25 साल होना जरूरी है.
सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी क्या है, कैसे काम करता है?
सीएआरए अनाथ बच्चों को गोद देने के लिए बनाई गई एक नोडल एजेंसी है. इसे देश और अंतर-देश में गोद लेने की निगरानी और विनियमन करने का दायित्व दिया गया है. यह भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अधीन काम करती है.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक सीएआरए की स्थापना साल 1990 में की गई थी. नोडल एजेंसी को मुख्य रूप से 4 काम सौंपा गया है.
– अनाथ बच्चों के बारे में पता लगाना और उसे किसी संस्था में सुरक्षित रखवाना.
– गोद लेने वाले लोगों से आवेदन के जरिए पूरी डिटेल लेना उसे अनाथ बच्चों के बारे में बताना.
– जो गोद लेना चाहते हैं, उसके गृहस्थी और स्वास्थ्य के बारे में पूर्ण जानकारी लेना.
– गोद लेने की प्रक्रिया को पूरी कराना. बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र बनवाने में मदद करना.
भारत में गोद लेने के लिए कौन-कौन से कानून हैं?
भारत में गोद लेने के लिए मुख्य रूप से हिंदू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम 1956 और जेजे एक्ट 2015 है. वर्तमान में जेजे एक्ट 2015 के संशोधित स्वरूप के तहत ही बच्चों को गोद दिया जाता है.
हिंदू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम 1956 के तहत हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म से आने वाले माता-पिता ही बच्चे को गोद ले सकते हैं.
वहीं बाल तस्करी को रोकने के लिए 2015 में जेजे एक्ट लाया गया. जेजे एक्ट की धारा 41 में गोद लेने की विस्तृत प्रक्रिया के बारे में बताया गया है. इस एक्ट के तहत मुस्लिम धर्म के लोग भी बच्चे को गोद ले सकते हैं.
2021 में जेजे एक्ट-2015 के प्रावधानों में संशोधन किया गया और कहा गया कि जिलाधिकारी भी बच्चे को गोद देने के लिए अधिकृत हैं. यानी की बच्चा अगर किसी माता-पिता को गोद चाहिए और वो पात्र हैं, तो उन्हें कोर्ट-कचहरी का चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा.
साल 2021-22 में सीएआरए ने बतााया था कि बच्चे के गोद लेने से संबंधित 1 हजार से ज्यादा केस कोर्ट में अप्रूवल के लिए पेंडिंग है.
भारत में गोद लेने की प्रक्रिया कैसे होगी आसान?
याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया है कि देश में अभी 3 करोड़ 10 लाख के करीब अनाथ बच्चे हैं, लेकिन गोद सिर्फ 3000 बच्चों को दिया जा रहा है. कोर्ट में दलील दी गई है कि हिंदू दत्तक अधिनियम को स्वतंत्र रूप से लागू कर इसे आसान बनाया जा सकता है.
कोर्ट में याचिकाकर्ता टेंपल ऑफ होली के संस्पाथक पीयूष सक्सेना ने कहा- सबसे पहले हिंदू दत्तक अधिनियम के तहत गोद देने की प्रक्रिया शुरू की जाए. इस प्रक्रिया में सीएआरए के हस्तक्षेप को खत्म कर सीधे कोर्ट से परमिशन लिया जाए.
हिंदू दत्तक अधिनियम में गोद लेने के लिए 2 बातें ही महत्वपूर्ण है. पहला माता-पिता का धर्म हिंदू, सिख और बौद्ध हो और दूसरा वह पूरी तरह से स्वस्थ हो.
कोर्ट में यह भी दलील दी गई कि अगर कोई व्यक्ति 26 साल में गोद लेना चाहता और वह प्रक्रिया में शामिल होता है, लेकिन प्रक्रिया की वजह से उसकी उम्र 32 या 33 साल हो जाती है, तो इस समय तक काफी कुछ बदल जाता है. हो सकता है, व्यक्ति 33 साल की उम्र में बच्चा गोद लेना ही न चाहे.
सीएआरए के मुताबिक 2010 में करीब 6300 लोगों को बच्चा गोद दिया गया. 2015 में यह आंकड़ा 4300 के आसपास था. कोरोना काल से पहले लगभग 3800 लोगों ने बच्चे गोद लिए, लेकिन यह संख्या अब घटकर 3300 पर पहुंच गया है.
कितना मुश्किल है प्रक्रिया को आसान बनाना?
सीएआरए में स्टीयरिंग कमेटी के एक सदस्य नाम न बताने की शर्त पर एबीपी न्यूज़ को कहते हैं- प्रक्रिया को तेज बनाने से कई मुश्किलें खड़ी हो सकती है. क्या आपने कभी कोर्ट को तुरंत फैसला लेते देखा है? कोर्ट सभी दलील सुनकर और कागजात देखकर ही फैसला करता है. इसी तरह का काम सीएआरए का है.
वे आगे कहते हैं- अगर आप प्रक्रिया को काफी सरल बनाएंगे, तो बाल तस्करी बढ़ जाएगा. लोग इसका दुरुपयोग करेंगे. अगर आप गोद लेने वाले परिवार की स्थिति को नहीं आकेंगे, तो तय मानिए कि इस काम में दलाल सक्रिय हो जाएगा.
भारत में बाल तस्करी एक प्रमुख समस्या है. एनसीआरबी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में कुल 6,533 लोगों की तस्करी होने की जानकारी मिली है, जिनमें से 2,877 बच्चे और 3,656 वयस्क थे.
2023 में कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन ने इसको लेकर सर्वे किया था, जिसमें कहा गया कि राजधानी दिल्ली में बाल तस्करी के 68 प्रतिशत मामले बढ़े.