जेल से सरकार चलाना कितना आसान ?
जेल से सरकार चलाना कितना आसान, कहानी उन 4 मुख्यमंत्रियों की, जिन्हें गिरफ्तारी पर देना पड़ा इस्तीफा
देश की सियासत में यह पहली बार नहीं है, जब किसी मुख्यमंत्री पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी हो. पहले भी 4 मुख्यमंत्री गिरफ्तारी की जद में आ चुके हैं.
आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की गिरफ्तारी का तलवार लटक रहा है. पार्टी के मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन और संजय सिंह जैसे बड़े नेता अभी भी ईडी के शिकंजे में है.
देश की सियासत में यह पहली बार नहीं है, जब किसी मुख्यमंत्री पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी हो. पहले भी 4 मुख्यमंत्री गिरफ्तारी की जद में आ चुके हैं. इनमें से कुछ सजा पाकर गिरफ्तार हुए, तो कुछ जांच के दौरान ही पकड़े गए.
हालांकि, गिरफ्तारी की जद में आए चारों मुख्यमंत्रियों ने जेल जाने से पहले अपनी कुर्सी छोड़ दी.
1. गिरफ्तारी की तलवार लटकी, तो लालू को छोड़नी पड़ी कुर्सी
मई 1997 में चारा घोटाला के एक मामले में लालू यादव पर सीबीआई ने शिकंजा कस दिया. लालू उस वक्त बिहार के मुख्यमंत्री थे. केंद्र में भी उन्हीं की पार्टी की सरकार थी, लेकिन सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल कर दिया.
चार्जशीट दाखिल होने के बाद लालू यादव को अपनी गिरफ्तारी का डर सताने लगा. उन्होंने तुरंत अपने उत्तराधिकारी की खोज शुरू कर दी. उस वक्त लालू के उत्तराधिकारी के रेस में रघुनाथ झा और अली अशरफ फातमी का नाम सबसे आगे था.
रघुनाथ झा ने लालू को मुख्यमंत्री बनाने के लिए 1990 में रामसुंदर दास के वोट काटे थे. हालांकि, दिल्ली के एक बड़े नेता की सलाह पर लालू यादव ने राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनवाया. राबड़ी को मुख्यमंत्री बनाने की वजह से जनता दल में टूट हो गई.
लालू ने खुद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल बना लिया. तब से लालू यादव इस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.
2. जेल जाने से पहले जयललिता को भी छोड़नी पड़ी थी कुर्सी
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता को भी जेल जाने की वजह से कुर्सी छोड़नी पड़ी. 2014 में आय से अधिक संपत्ति के एक मामले में जयललिता दोषी पाई गईं. कोर्ट से फैसला आने के तुरंत बाद जयललिता ने ओ पनीरसेल्वम को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया.
जयललिता 20 दिन जेल में रहीं और फिर बाहर आ गईं. हालांकि, सीएम पद पर उनकी बहाली 237 दिन बाद हुई.
जयललिता को 2001 में भी एक घोटाले में सजायफ्ता होने की वजह से कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. दरअसल, चुनाव में जीत से पहले जयललिता को तांसी भूमि सौदा मामले में दोषी ठहराया गया था. हालांकि, उस वक्त जयललिता को सजा मिलने के बाद जमानत मिल गई थी.
जमानत मिलने की वजह से जयललिता सीएम पद की शपथ ले लीं. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने जयललिता को जमकर फटकारा. सितंबर 2001 में जयललिता ने अपने करीबी ओ पनीरसेल्वम को सीएम की कुर्सी दे दी.
3. बवाल मचाने के बाद उमा भारती ने दिया इस्तीफा
2003 में दिग्विजय सिंह की सत्ता उखाड़ने के बाद बीजेपी ने उमा भारती को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन कर्नाटक कोर्ट के एक वारंट ने उमा की मुश्किलें बढ़ा दी. इस केस में अधिकारियों की लापरवाही की वजह से उमा पर गिरफ्तारी की तलवार लटक गई.
बीजेपी हाईकमान ने उमा को गिरफ्तारी से पहले इस्तीफा देने का फरमान सुनाया, लेकिन उमा बिफर गई. हाईकमान ने उमा को उनके करीबी को मुख्यमंत्री बनाने का भरोसा दिया, तब जाकर उन्होंने इस्तीफा दिया.
सियासी गलियारों में इस बात की भी खूब चर्चा होती है कि उमा ने मुख्यमंत्री बनाने के लिए पहला नाम प्रह्लाद पटेल का दिया था, लेकिन बीजेपी हाईकमान ने इसे खारिज कर दिया. उमा ने तब जाकर बाबूलाल गौर के नाम को आगे बढ़ाया.
गौर भोपाल के गोविंदपुरा से विधायक थे. उस वक्त यह चर्चा आम थी कि कुर्सी देने से पहले उमा ने गौर को गंगाजल की कसम खिलाई.
हालांकि, बाद में गौर भी हाईकमान के वफादार निकले और शिवराज के नाम आने पर उनका समर्थन कर दिया. गौर शिवराज के सरकार में कई विभागों के मंत्री रहे.
4. लोकायुक्त रिपोर्ट ने येदियुरप्पा की कुर्सी छिनी
साल 2011 में लोकायुक्त की एक रिपोर्ट ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा की कुर्सी छीन ली. दरअसल, कर्नाटक के लोकायुक्त ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि अवैध उत्खनन के काम में राज्य का मुख्यमंत्री कार्यालय सक्रिय है.
इसके बाद जांच सीबीआई के पास चली गई और बीजेपी बैकफुट पर आ गई. बीजेपी हाईकमान ने येदियुरप्पा को दिल्ली बुलाया. उस वक्त पार्टी के अध्यक्ष थे नितिन गडकरी. रिपोर्ट के मुताबिक गडकरी ने येदि से इस्तीफा देने के लिए कहा
इधर, येदि इस्तीफा देने को तैयार नहीं थे और उधर सीबीआई की कार्रवाई तेज हो रही थी. बीजेपी हाईकमान ने येदि को हटाने का फैसला किया. येदि भी पार्टी से नाराज होकर अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
डीवी सदानंद गौड़ा कर्नाटक के मुख्यमंत्री बनाए गए. सीएम कुर्सी से हटने के कुछ ही दिन बाद येदियुरप्पा गिरफ्तार हो गए.

जयललिता, बीएस येदियुरप्पा और उमा भारती
अब 3 सवालों के जवाब, जिसे जानना जरूरी है…
1. क्या जेल जाने से पहले मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ता है?
रिटायर जज और संविधान विशेषज्ञ चंद्रभूषण पांडे के मुताबिक संविधान में यह कहीं नहीं लिखा है कि जेल जाने से पहले मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ेगा. यह एक पुरानी परंपरा है, जिसके तहत उमा, लालू और जयललिता ने कुर्सी छोड़ दी.
मुख्यमंत्री को हटाने का अधिकार राज्यपाल के पास है. राज्यपाल बहुमत न होने और संवैधानिक अराजकता के मसले पर ही मुख्यमंत्री को हटा सकते हैं.
2. क्या जेल से कोई मुख्यमंत्री सरकार चल पाएंगे?
चंद्रभूषण पांडे कहते हैं- प्रैक्टिकली यह संभव नहीं है. मुख्यमंत्री का काम सिर्फ कागज पर हस्ताक्षर करना नहीं होता है. मुख्यमंत्री के जिम्मे कई सारे काम होते हैं. जैसे- अधिकारियों से मशवरा करना, कैबिनेट मीटिंग करना और एडवोकेट जनरल से सलाह लेना है.
वे कहते हैं- जेल में कैबिनेट की मीटिंग नहीं हो सकती है. यह उसके मैन्युअल का उल्लंघन होगा. अधिकारी विजिटर की तरह तो मुख्यमंत्री से नहीं न मिलने जाएंगे? अगर कैबिनेट मीटिंग और अधिकारियों की सलाह के बिना फैसला लिया जाता है, तो वह अवैधानिक माना जाएगा.
पांडे के मुताबिक यह एक तरह से जिद ही होगा कि संविधान में नहीं लिखा है, तो उसे नहीं मानेंगे. संविधान में सभी बातें नहीं लिखी जा सकती है.
3. केजरीवाल फिर ऐसा क्यों कर रहे हैं?
जानकारों का कहना है कि अब लोकसभा चुनाव के बहुत ही कम समय रह गए हैं. आम आदमी पार्टी इसी अभियान और मुद्दे के बहाने दिल्ली के लोगों को साधना चाहती है. दिल्ली में लोकसभा की कुल 7 सीटें हैं और सब पर बीजेपी का कब्जा है.
केजरीवाल अगर इस्तीफा नहीं देते हैं, तो यह गेंद उपराज्यपाल के पाले में चला जाएगा. उपराज्यपाल अगर कोई फैसला करते हैं, तो आप इसका माइलेज लेना चाहेगी.
अगर केजरीवाल इस्तीफा दे देते हैं, तो आप इसे इमोशनल राजनीतिक मुद्दा बना सकती है.