नई दिल्ली। चुनाव के पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनैतिक दलों द्वारा की जाने वाली मुफ्त रेवडि़यों की घोषणाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है। बुधवार को याचिकाकर्ता की ओर से मांग की गई कि राजनैतिक दलों द्वारा की जाने वाली मुफ्त रेवडि़यों की घोषणाओं को जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 में भ्रष्ट आचरण यानी भ्रष्टाचार या मतदाताओं को रिश्वत देना माना जाना चाहिए। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का 2013 का एस. सुब्रमण्यम बालाजी मामले में दिया फैसला सही नहीं है जिसमें इसे भ्रष्ट आचरण नहीं माना गया है।

दो न्यायाधीशों की पीठ के उस फैसले पर सवाल उठा है और इसीलिए अब यह मामला तीन न्यायाधीशों की पीठ को विचार के लिए भेजा गया है। दूसरा सवाल यहां यह है कि चुनाव आयोग को राजनैतिक दलों की मान्यता रद करने का अधिकार मिलना चाहिए। सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने सवाल किया कि क्या पार्टी को व्यक्ति माना जा सकता है। हंसारिया ने हां में जवाब देते हुए कहा कि राजनैतिक दल और कुछ नहीं बल्कि व्यक्तियों का समूह है। अगर ऐसा नहीं माना जाएगा तो कानून का उद्देश्य निष्फल हो जाएगा।

मुफ्त रेवडि़यों के नाम पर कल्याणकारी योजनाओं को बनाया गया निशाना 

हालांकि बुधवार को सुनवाई में आम आदमी पार्टी की ओर से याचिका का विरोध किया गया। पार्टी के वकील का कहना था कि इस याचिका में मुफ्त रेवडि़यों के नाम पर कल्याणकारी योजनाओं को निशाना बनाया गया है। लेकिन याचिका का समर्थन करने वाले एक हस्तक्षेप कर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि मुफ्त रेवडि़यों और कल्याणकारी योजनाओं में अंतर है। जैसे जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों के कर्ज माफ करना, या धर्म विशेष से जुड़ी मुफ्त चीजों की अनुमित नहीं दी जा सकती।

मामले में गुरुवार को भी बहस जारी रहेगी। वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मुफ्त रेवडि़यों का विरोध किया है। याचिका में मांग की गई है कि चुनाव से पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनैतिक दलों द्वारा की जाने वाली मुफ्त घोषणाओं पर रोक लगनी चाहिए। मुफ्त रेवडि़यों के मामले में सुप्रीम कोर्ट का 2013 का एस सुब्रमण्यम बालाजी का फैसला है जिसमें इसे जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 के तहत भ्रष्ट आचरण नहीं माना था।

सुब्रमण्यम बालाजी मामले में दिया गया फैसला सही नहीं

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर याचिकाकर्ताओं की ओर से सवाल उठाया गया है और उस पर पुर्नविचार की मांग की गई है जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मुद्दे की जटिलता और व्यापकता तथा पूर्व फैसले को देखते हुए 26 अगस्त 2022 को यह मामला तीन न्यायाधीशों की पीठ को विचार के लिए भेज दिया था। बुधवार को यह मामला प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष सुनवाई पर लगा था। उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने कहा कि सुब्रमण्यम बालाजी मामले में दिया गया फैसला सही नहीं है। उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 में रिश्वत को भ्रष्ट आचरण माना गया है।

मताधिकार को अनुचित रूप से प्रभावित करना भ्रष्ट आचरण

इस धारा में रिश्वत का मतलब है कि उम्मीदवार या उसके एजेंट या उम्मीदवार की सहमति से किसी और व्यक्ति के द्वारा मतदाता को प्रलोभन के लिए कोई उपहार या वादा किया जाता है। हंसारिया ने कहा कि राजनैतिक दलों द्वारा किये जाने वाले वादों को उम्मीदवार की सहमति से उम्मीदवार के पक्ष में मतदाताओं को लुभाने के लिए किया गया वादा माना जाना चाहिए। इस तरह से राजनैतिक दलों द्वारा किया गया वादा जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 के तहत रिश्वत के अलावा और कुछ नहीं है जिसे कानून में भ्रष्ट आचरण कहा गया है और कानून में दी गई अन्य शर्तें पूरी होती हैं तो यह धारा 100(1)(बी) में चुनाव को शून्य घोषित करने का आधार है।

कानून की धारा 123 की ओर कोर्ट का ध्यान खींचा

इसी तरह धारा 123 (2) में मताधिकार को अनुचित रूप से प्रभावित करना भ्रष्ट आचरण है, यदि उम्मीदवार या उसके एजेंट या उसकी सहमति से किसी और ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ऐसा करने का प्रयास किया है। हंसारिया ने जब कानून की धारा 123 की ओर कोर्ट का ध्यान खींचा और सुब्रमण्मयम बालाजी फैसले में कोर्ट द्वारा की गई व्याख्या को गलत बताया तो चीफ जस्टिस ने सवाल किया कि क्या पार्टी को व्यक्ति माना जा सकता है? हंसारिया ने कहा कि राजनैतिक दल और कुछ नहीं बल्कि व्यक्तियों का समूह है। अगर ऐसा नहीं होगा तो कानून का उद्देश्य निष्फल हो जाएगा। आगे मामले पर गुरुवार को सुनवाई होगी।