नौ बीघा की सरकारी जमीन हाथों से निकली !

नौ बीघा की सरकारी जमीन हाथों से निकली
निरावली स्थित कृषि भूमि जिसका पुराना सर्वे क्रमांक 537 जिसका रकबा 9 बीघा है, जिस पर साड़ा अपने अधिपत्य का दावा कर रहा था, वह भूमि भी शासन के हाथ से चली गई।
  1. मामले में जिला कलेक्टर और साडा के मुख्य कार्यपालन अधिकारी को भी पार्टी बनाया
  2. बहुमूल्य शासकीय भूमि का एक और मामला शासन हार गया

ग्वालियर ते दिनों में लगातार एक के बाद एक शासकीय भूमियों के मामले हारने के बाद शासन को एक और जोरदार झटका लगा है। निरावली स्थित कृषि भूमि जिसका पुराना सर्वे क्रमांक 537 जिसका रकबा 9 बीघा है, जिस पर साड़ा अपने अधिपत्य का दावा कर रहा था, वह भूमि भी शासन के हाथ से चली गई। बहुमूल्य शासकीय भूमि का एक और मामला शासन हार गया। इस मामले में जिला कलेक्टर और साडा के मुख्य कार्यपालन अधिकारी को भी पार्टी बनाया गया था। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि इस मामले में प्रतिवादी क्र 1 यानि कलेक्टर ने न तो दावे का जवाब दिया और न ही वादग्रस्त भूमि की संहिता लागू होने के पूर्व और बाद में स्थिति स्पष्ट करने के लिए कोई भी रिकार्ड कोर्ट में पेश किया गया है। ऐसी स्थिति में लगता है कि यदि रिकार्ड कोर्ट में पेश किया जाता तो वादी के हित के अनुकूल होता , शायद इसी वजह से नहीं किया गया है। यहां बता दें कि मामले के वादीगणों ने जमीन पर अपना आधिपत्य के साथ साथ पट्टा भी कोर्ट में साबित कर दिया जिसके बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया।

किरकिरी: बार-बार हार रहा शासन शासन की जमीनों को हारे जाने का

सिलसिला जारी है। इससे पहले भी कई मामले सामने आ चुके हैं और यह मामला कलेक्टर के संज्ञान में भी आया था। लोक अभियोजक विजय शर्मा पर शासन के केसों की निगरानी का जिम्मा है और उन्हें दो लोगों का स्टाफ भी कलेक्ट्रेट से मिला है। माफी के मंदिरों के मामले में भी शासन की पहले काफी किरकिरी हो चुकी है।

पहले कब्जा फिर पट्टा करवाया

वादी सरनाम सिंह ने अपने मुख्य परीक्षण में अपने बयानों में कहा कि वादग्रस्त भूमि उसके पैदा होने के पहले उसके पिता ने तहसील से सन् 1953 में प्रकरण क्रमांक 398/53X62 में पारित आदेश से पट्टे पर प्राप्त की थी। पट्टे से 13-14 वर्ष पहले से ही उसके पिता का उक्त भूमि पर कब्जा था। उक्त भूमि शासकीय होकर उबड खाबड थी जिसे उसके पिताजी ने खेती लायक बनाया। उसके बाद तहसील से पट्टा लिया था। पट्टे के साथ उसके पिता को उस समय मिलने वाली लाल रंग की बही रसीद दी थी ,जिसमें हर साल पटवारी लगान लेकर लगान दर्ज करता था। हालांकि वह किताब खो गयी है। पट्टा मिलने के समय वादग्रस्त भूमि का सर्वे नं. 537 रकबा 9 बीघा था। पट्टा मिल जाने के बाद उसके पिताजी वादग्रस्त भूमि के पक्के कृषक हो गये और म.प्र. भ-राजस्व संहिता के लागू होने के बाद पक्का कृषक के स्थान पर कानूनी भूमि-स्वामी हो गये।

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