महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है,

महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है,

महिलाओं को मजबूत करने के दोनों रास्ते हमारे पड़ोसी देशों में लागू किए गए हैं। नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान ने कानून बनाने का रास्ता चुना है, और उनके यहां विधानसभा में महिलाओं की संख्या ज्यादा है।

जैसे कि पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में 17% सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व हैं, बांग्लादेश में 350 में 50 सीटें और नेपाल में 33% सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व हैं।

आंकड़े बताते हैं कि ऐसा करने से रिजर्व सीटों के प्रतिशत से अधिक महिलाएं चुनाव जीतकर विधानसभा तक पहुंच पाती हैं। यह दिखाता है कि इनमें से अगर हम एक भी रास्ता चुन लें, तो महिलाओं को राजनीतिक रूप से मजबूत किया जा सकता है।

दुनिया और भारत की राजनीति

यह भी सच है कि रिजर्वेशन देना ही राजनीति में महिलाओं की संख्या बढ़ाने का अकेला रास्ता नहीं है।

पार्टियों के भीतर टिकट बांटते समय रिजर्वेशन दिया जा सकता है, ये भी राजनीति में महिलाओं की संख्या बढ़ाने के लिए उतना ही असरदार होगा।

भारत में महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर बहस बहुत पहले से चली आ रही है।

9 मार्च, 2010 में यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस (UPA) का महिला आरक्षण (33%) का बिल लाया गया, जो राज्य सभा में पास हो गया था, मगर बहुमत में न होने के कारण UPA इसे लोक सभा में पास नहीं करवा पाई थी।

BJP के नेतृत्व वाली नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस ने कोटा देने का रास्ता चुना है। इसलिए उन्होंने संविधान में 106वें अमेंडमेंट एक्ट को शामिल किया है।

इसे महिलाओं को मजबूत करने के लिए एक बड़ा कदम माना जा रहा है (राज्यों के विधानसभा और संसद में 33% सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व की गई हैं)।

यह ध्यान देने वाली बात है कि लोकसभा में, दो सदस्यों के अलावा बाकी सभी ने इस बिल का समर्थन किया।

इस साल के विधानसभा चुनाव

इसमें कोई शक नहीं है कि महिलाओं की राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने के लिए यह एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन इसके बावजूद भी हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के पैटर्न में ऐसा कुछ भी देखें को नहीं मिला है।

लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों ने महिलाओं को कम टिकट दिए हैं।

यदि हम टिकट बंटवारे के पैटर्न को देखें, तो ऐसा लगता है कि किसी भी राजनीतिक पार्टी ने महिला उम्मीदवारों को ज्यादा टिकट देने की शायद ही कोई कोशिश की है।

दोनों राष्ट्रीय पार्टियों की टिकट संख्या को देखें, तो 2018 के चुनाव में मध्य प्रदेश की विधानसभा की 230 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने 24 और कांग्रेस ने 27 महिलाओं को टिकट दिया था।

2018 के चुनाव में तेलंगाना की 119 सीटों में भारत राष्ट्र समिति, जिसे पहले तेलंगाना राष्ट्र समिति के नाम से जाना जाता था ने 10 महिलाओं को टिकट दिए थे। वहीं, कांग्रेस ने 8 और BJP ने 4 महिलाओं को टिकट दिए थे।

इस साल हो रहे चुनाव में भारत राष्ट्र समिति ने महिलाओं को 10, कांग्रेस ने 11 और BJP ने 12 टिकट दिए हैं।

सभी 5 राज्य जहां चुनाव हो रहे हैं, वहां किसी भी पार्टी ने 15% टिकट भी महिलाओं को नहीं दी हैं, जहां एक तरफ राजनीतिक पार्टियां 33 % सीट महिलाओं को देने की बात करती हैं।

वहीं, हाल के चुनाव में उन्होंने 15% सीट भी महिलाओं को नहीं दी हैं। ये साफ दिखाता है कि राजनीतिक पार्टियां महिलाओं को राजनीति में आगे करने के बजाय, उन्हें एक वोटर के रूप में ही देखना चाहती हैं।

2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने 40% सीट महिलाओं के लिए रिजर्व की थीं। यह भारत की राजनीति में बहुत ही हिम्मत वाला और नया कदम था।

यदि BJP और समाजवादी पार्टी भी ऐसा ही करती, तो सबसे अधिक आबादी वाले राज्य की विधान सभा में महिलाओं की संख्या 40% से अधिक होती।

यह अन्य राज्यों और देशों के लिए भी एक उदाहरण सामने रख सकता था। विधान सभा चुनावों में उड़ीसा ( 2019 ) और पश्चिम बंगाल ( 2021 ), बीजू जनता दल (BJD) और तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने अधिक महिलाओं को टिकट दिए और जीत भी हासिल की। TMC ने जिन 46 महिलाओं को टिकट दिए थे उनमें से 32 महिलाएं जीत गईं।

टिकट बंटवारे की निराशाजनक स्थिति

आज के राजनेताओं ने वीमेन रिजर्वेशन एक्ट 2023 लाकर तारीफ करने योग्य शुरुआत की है, मगर इसे चुनाव क्षेत्रों के 2026 में होने वाले सीमाकंन के साथ जोड़ देने से, इसे जल्द लागू नहीं किया जा सकेगा।

फिलहाल यह कानून कागजों पर ही अच्छा लग रहा है। किसी कानून के न होने के बावजूद TMC जैसी क्षेत्रीय पार्टी ने न सिर्फ महिलाओं को ज्यादा टिकट दीं, बल्कि चुनावी जीत भी दर्ज की है।

ऐसे में यह सवाल उठता है कि अन्य राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियां विधानसभा चुनावों में महिलाओं को अधिक सीटें क्यों नहीं देती हैं।

कानून के पास होने के बाद ( हालांकि यह 2029 में लागू हो पाएगा ) भी महिलाओं को उचित संख्या में टिकट न देना, महिलाओं की राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने की घोषणा करने वाली राजनीतिक पार्टियों के लिए अच्छे संकेत नहीं माने जा सकते हैं।

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