बच्चों को सिखाएं कि बैड टच होने पर तुरंत पेरेंट्स को बताएं

 माता-पिता बच्चों को गुड टच और बैड टच के बारे में किस तरह से बताएं और ऐसी क्या परवरिश दें कि बच्चे या बच्ची के साथ कुछ गलत हो तो वो पहले ही अलर्ट हो जाएं, ताकि कोई गलत तरह से उनका फायदा न उठा पाए।

इसलिए हमें बच्चों को सुरक्षित और असुरक्षित स्पर्श के बारे में बताना चाहिए …

सवाल: बच्चे को बताएं कि सुरक्षित स्पर्श क्या है?
जवाब: 
अगर कोई आपको टच करता है और आपको अच्छा लगता है या उससे प्यार और लगाव का एहसास होता है तो यह गुड टच या सुरक्षित स्पर्श कहलाता है। जैसे- मां, पिता, बड़ी बहन, दादी के स्पर्श करने पर फील होता है।

सवाल: असुरक्षित स्पर्श क्या है?
जवाब: 
जब कोई आपको इस तरह से छूता है कि आपको उससे बुरा फील होता है। आप खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं तो ये बैड टच होता है।

अगर कोई प्राइवेट पार्ट्स या उसके आस-पास छूने की कोशिश करता है तो ये बैड टच यानी असुरक्षित स्पर्श होता है।

बच्चे स्कूल, क्लासेज और खेलने के लिए दिन के ज्यादातर घंटे बाहर ही रहते हैं। ऐसे में उनके साथ कुछ गलत तो नहीं हो रहा है, पेरेंट्स ये जानने की कोशिश करें। साथ ही बच्चों को सुरक्षित और असुरक्षित स्पर्श के बारे में बताने की सबसे पहली जिम्मेदारी भी पेरेंट्स की है।

NGO ‘समाधान अभियान’ और देश में ‘पोक्सो अवेयरनेस रन अभियान’ चलाने वाली अर्चना अग्निहोत्री बताती हैं कि बच्चों को यह बताया जाना बेहद जरूरी है कि उन्हें किन बातों को माता-पिता के साथ बिना डरे और बिना शर्माए शेयर करना है।

इसके लिए बच्चों के प्राइवेट बॉडी पार्ट्स के रूल्स बताने चाहिए।

बच्चों को गुड टच और बैड टच सिखाएं, इन बातों को फॉलो करें

खुलकर बात करें- पेरेंट्स सेंसिटिव टॉपिक पर बच्चों से बात करें। वे बच्चों के पहले टीचर हैं, जो उन्हें उनके अच्छे-बुरे दोनों प्रोस्पेक्ट से रूबरू कराते हैं।

किसी को अपना शरीर छूने न दें- बच्चों को यह समझाएं कि उनका शरीर सिर्फ उन्हीं का है। वे ही उसके मालिक हैं। किसी भी दूसरे को यह हक नहीं है कि उनकी परमीशन के बिना कोई उनके शरीर को छुए। अगर फिर भी कोई ऐसा करता है, तो उसे स्ट्रिकली मना कर दें। न मानने पर उसका विरोध करें, जोर-जोर से चिल्लाएं। सारी बातें अपने पेरेंट्स को बताएं।

बॉडी पार्ट्स का सही नाम- अधिकतर ऐसा देखा जाता है कि पेरेंट्स शरीर के अंगों के लिए सही नाम का इस्तेमाल नहीं करते, खासकर प्राइवेट पार्ट्स के लिए। जिससे बच्चों को भी अंगों के सही नाम की जानकारी नहीं होती। आगे चलकर बच्चा भी इन पार्ट के बारे में बात करने से शर्माता और कतराता है।

स्पर्श के अंतर समझाएं- बच्चों को यह समझाना जरूरी है कि अगर कोई उन्हें जबरदस्ती गोद लेता है या फिर किस करने की कोशिश करता है, तो उसे तुरंत रोके, आस-पास के लोगों से मदद लें।

स्विमसूट नियम अपनाएं- स्विमसूट रूल से छोटे बच्चों को बैड टच के बारे में आसानी से समझाएं। इससे बच्चे को समझाया जा सकता कि उनके शरीर का अंग एक स्विमसूट से ढका हुआ है, जो उनके प्राइवेट पार्ट हैं।

बच्चों के गुड फ्रेंड बनें आप- लड़का हो या लड़की उसके पहले टीचर, पहला फ्रेंड उसके पेरेंट्स ही होते हैं। अपने बच्चे की हर प्रॉब्लम को नोटिस करें। उन्हें किससे बात करने में चिढ़ हो रही है, वो किसके साथ बैठने में कम्फर्टेबल नहीं है, ये भी नोटिस करें।

लोगों की पहचान- छोटे बच्चे अपने और पराए में फर्क नहीं समझते। उनके साथ जो भी खेलता है या फिर उन्हें टॉफी, चॉकलेट देता है, वो उसे अपना मान लेते हैं। इसलिए बच्चे की इन आदतों के होने पर उन्हें समझाएं। उन्हें बताएं कि अजनबी के साथ न जाएं, कोई बाहर वाला व्यक्ति उन्हें चॉकलेट-टॉफी देता है, तो उसे लेने से मना कर दें।

‘न’ कहने की आदत डालें- पेरेंट्स बच्चे को बताएं कि अगर कोई उनके शरीर के प्राइवेट पार्ट को छुए और बिना वजह कपड़े उतारे या उतारने को कहे, तो वो तुरंत न कहें और बड़ों को उस शख्स की हरकत के बारे में बताएं।

बच्चों का भरोसा जीतें- पेरेंट्स अपने बच्चे को भरोसा दिलाएं कि उन्हें उनकी हर बात पर विश्वास है। अगर बच्चे पेरेंट्स से छोटी-सी बात की भी शिकायत करते हैं, तो तुरंत उस पर अमल करें।

बच्चों के साथ समय बिताएं- कई बार पेरेंट्स इतने बिजी होते हैं कि अपने बच्चे की परेशानी उन्हें समझ नहीं आती है। ऐसे में बच्चों के साथ टाइम स्पेंड करें और उनसे बातें करें ताकि वह अपनी सारी बातें शेयर करने की हिम्मत कर सकें।

बच्चों के बर्ताव पर ध्यान दें- बच्चे कई बार बैड टच के बारे में बात करने से डरते हैं। ऐसे में वे अंदर ही अंदर उसे चीज से परेशान हो रहते हैं। इसलिए बच्चे के व्यवहार पर जरूर ध्यान दें। नोटिस करें कि आपका बच्चा पहले से चुप-चुप तो नहीं रहता है, खाना कम खा रहा है, पढ़ाई में मन नहीं लग रहा है या हमेशा खोया रहता है। तो उसे अच्छे से समझाएं।

किताबों का सहारा- बच्चों को कार्टून, ड्राइंग में काफी इन्टरेस्ट रहता है। इसलिए पेरेंट्स को बच्चों को इन्ही कार्टून और किताबों के जरिए बच्चों को समझाना चाहिए। किताब या चार्ट के जरिए उन्हें बॉडी पार्ट्स की जानकारी देनी चाहिए।

पब्लिक प्लेसेस पर अलर्ट- बच्चों को पब्लिक प्लेस पर अलर्ट रहना चाहिए। खासकर बस, ट्रेन या फिर बाकी किसी पब्लिक ट्रांसपोर्ट से ट्रैवल करने पर।

सवाल: बच्चों के साथ अगर इस तरह का सेक्सुअल हैरेसमेंट हो, तो पेरेंट्स कानून की मदद कैसे ले सकते हैं?
जवाब:
 सेक्सुअल हैरैसमेंट औऱ सेक्सुअली एब्यूज के मामले में पेरेंट्स पॉक्सो एक्ट के तहत स्थानीय थाने में एफआईआर लिखा सकते हैं।

कोई नहीं सुनेगा, तो यहां होगी सुनवाई

  • देश में बच्चों और नाबालिगों के सेक्सुअल हरैसमेंट के बढ़ते मामलों को देते हुए पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) लागू किया गया।
  • इसका पूरा नाम प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन अगेंस्ट सेक्सुअल ऑफेंस है।
  • ये एक्ट महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा 2012 में लागू किया गया था।
  • जिससे बाल यौन-शोषण की घटनाओं पर रोक लगाई जा सकें।
  • इसमें बाल सेक्सुअल हैरेसमेंट के क्रिमिनल को कड़ी सजा मिलने का प्रावधान है।

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