बलात्कार के दोषियों को सजा दिलाने में क्यों फिसड्डी है भारत की पुलिस?

बलात्कार के दोषियों को सजा दिलाने में क्यों फिसड्डी है भारत की पुलिस?
निर्भया गैंगरेप के बाद बलात्कारियों को तुरंत सजा दिलाने को लेकर खूब बहस हुई. त्वरित सुनवाई कर रेप के आरोपियों को सजा दिलाने के लिए अलग से मैकेनिज्म बनाने की बात भी हुई, लेकिन सब शिगूफा ही निकला.

2013 के मुकाबले 2022 के सजा की दर में ज्यादा बदलाव नहीं आया है. 2013 में भी रेप के मामलों में कन्विकशन रेट 27.1 प्रतिशत ही था. 

2012 में निर्भया गैंगरेप के बाद बलात्कारियों को तुरंत सजा दिलाने को लेकर देशभर में खूब बहस हुई. त्वरित सुनवाई कर रेप के आरोपियों को सजा दिलाने के लिए अलग से मैकेनिज्म बनाने की बात भी हुई, लेकिन 9 साल में सब शिगूफा ही निकला.

रेप गंभीर अपराध, सजा- आजीवन कारावास से फांसी तक
बलात्कार को एक गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो-2022 के मुताबिक भारत में बलात्कार के रोजाना 122 मामले सामने आते हैं. इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध के 7.1 प्रतिशत मामले बलात्कार से जुड़े थे. 

राज्यवार बात की जाए, तो राजस्थान में रेप की घटना सबसे ज्यादा सामने आई है. राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का स्थान भी इसमें शामिल है. एनसीआरबी के मुताबिक 2022 में राजस्थान में 5408, उत्तर प्रदेश में 3692 और मध्य प्रदेश में 3046 रेप के केस सामने आए हैं. 

भारतीय दंड संहिता में बलात्कारियों के लिए आजीवन कारावास से लेकर फांसी तक की सजा का प्रावधान है. आमतौर पर बलात्कार के दोषियों को 7 साल तक की सजा सुनाई जाती है. 

नाबालिग के साथ बलात्कार का मामला रहता है, तो कोर्ट ऐसे केस में दोषियों को 10 साल से आजीवन कारावास तक की सजा सुनाती है. रेप के दुर्लभतम मामलों में फांसी की सजा का भी प्रावधान है. 

10 साल में रेप के मामले बढ़े, सजा दर जस की तस
साल 2012 में रेप के 24,923 केस दर्ज किए गए थे. इसी साल हुई निर्भया गैंगरेप की घटना ने पूरे देश को हिला दिया था. रेप में सजा की दर को लेकर सरकार की खूब आलोचना भी हुई. इस साल रेप केस में सजा दर 24 फीसदी थी. 96 प्रतिशत मामलों में ही पुलिस ने चार्जशीट फाइल की थी.

2013 में सजा की दर के आंकड़ों में कुछ सुधार आया. इस साल रेप के 33707 मामले दर्ज किए गए. पुलिस ने रेप के 95.4 प्रतिशत मामलों में चार्जशीट फाइल की. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस साल रेप केस में सजा दर 27.1 प्रतिशत रही.

बात 2022 की करें तो इस साल रेप के 44785 नए मामले सामने आए. पुलिस सिर्फ 77 प्रतिशत मामलों में चार्जशीट फाइल कर पाई. सजा दर भी 27.4 प्रतिशत ही रही.

यह आंकड़ा 2021 से भी बदतर है. 2021 में रेप के 46127 मामले सामने आए थे. 80 प्रतिशत मामलों में पुलिस ने चार्जशीट फाइल की थी और इस साल कन्विक्शन रेट 28 प्रतिशत था. 

रेप के मामले में राजस्थान टॉप पर

एनसीआरबी के मुताबिक रेप के सबसे ज्यादा केस राजस्थान में दर्ज किए गए हैं. राजस्थान में रेप के 5399 केस दर्ज किए गए हैं. उत्तर प्रदेश में 3690, मध्य प्रदेश में 3029, महाराष्ट्र में 2904, हरियाणा में 1787 और ओडिशा में 1464 केस सामने आए हैं.

नगालैंड में 7 और मिजोरम में 14 सबसे कम रेप के केस दर्ज किए गए हैं. केंद्रशासित प्रदेश में दिल्ली में सबसे ज्यादा (1212) रेप के केस सामने आए हैं.

सजा दिलाने में फिसड्डी क्यों है पुलिस?

भारत में बलात्कार जैसे मामलों में सजा दिलाने की जिम्मेदारी पुलिस और राज्य पर है. रेप के मामलों में मुकदमा दर्ज कर पुलिस ही पीड़िता का बयान दर्ज करती है. गवाह की पहचान से लेकर आरोपी को गिरफ्तार कर ट्रायल चलाने की जिम्मेदारी भी पुलिस पर ही है. 

ऐसे में सवाल उठता है कि भारत में रेप जैसे गंभीर मामले में पुलिस सजा दिलाने में फिसड्डी क्यों साबित हो रही है?

पुलिस के पास बेहतर मैकेनिज्म की कमी
दिल्ली पुलिस के पूर्व एसीपी वेदभूषण के मुताबिक किसी भी मामले में सजा दिलाने की एक पूरी प्रक्रिया होती है. रेप जैसे गंभीर अपराध में त्वरित सजा दिलाने की जरूरत होती है, जिसके लिए अलग मैकेनिज्म की व्यवस्था होनी चाहिए, यह व्यवस्था देशभर में किसी भी पुलिस के पास नहीं है.

वेदभूषण कहते हैं- रेप के कई मामलों में गवाह ही मुकर जाते हैं, तो पुलिस कोर्ट में क्या करेगी? गवाह की मॉनिटरिंग और सुरक्षित करने का भी कोई विशेष अधिकार पुलिस के पास नहीं है.

वेदभूषण के मुताबिक पुलिसकर्मी की संख्या में कमी भी सजा दिलाने में देरी की एक मुख्य वजह है.  

2022 में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया था कि देशभर में पुलिस की स्वीकृत संख्या 26 लाख 23 हजार है, लेकिन वर्तमान में 20 लाख 91 हजार पद ही भरे गए हैं. इस आंकड़े की मानें तो देशभर में 5 लाख से ज्यादा पुलिसकर्मी का पद रिक्त है.

निर्भया गैंगरेप के बाद केंद्र सरकार ने रिटायर चीफ जस्टिस जेएस वर्मा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था. 8000 पन्नों की रिपोर्ट में इस कमेटी ने कहा था कि बलात्कार के केस में जांच और ट्रायल के लिए अलग से व्यवस्था बनाई जाए.

रेप मामले में ट्रायल का समय फिक्स नहीं होना
सुप्रीम कोर्ट के वकील ध्रुव गुप्ता के मुताबिक रेप जैसे मामले में भी ट्रायल का समय फिक्स नहीं है. केस दर्ज होने के बाद अगर ट्रायल का समय फिक्स कर दिया जाए, तो पुलिस पर दबाव बढ़ेगा और मामले में तेजी आएगी. 

गुप्ता कहते हैं- कई चार्ज फ्रेम होने के बाद भी आरोपी दूसरी कोर्ट में चला जाता है. कई बार तो ऊपरी अदालत से चार्जशीट से भी स्टे लग जाता है, जिससे ट्रायल प्रभावित होता है.

इसके अलावा तारीख पर तारीख की प्रवृति भी रेप मामले की सुनवाई में देखा जाता है. इन सब वजहों से अक्सर गवाह ही मुकर जाते हैं और संदेह का लाभ पाकर आरोपी छूट जाता है.

ध्रुव गुप्ता के मुताबिक रेप मामले में अगर सजा दर को ठीक करना है, तो सहसे पहले प्रक्रिया को सख्त करना होगा. आरोपी को संदेह का लाभ न मिल पाए, यह सुनिश्चित करना होगा.

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