ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थलों पर पूजा-पाठ की इजाजत देना कितना उचित?
ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थलों पर पूजा-पाठ की इजाजत देना कितना उचित?
संसदीय पैनल ने सरकार को एएसआई के तहत संरक्षित धार्मिक महत्व वाले स्मारकों जैसे मस्जिद और मंदिर और चर्चों में पूजा-अर्चना की अनुमति देने की सिफारिश की है.
इस पैनल में युवाजन श्रमिक रायतु कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सांसद वी विजय साई रेड्डी भी शामिल थे. उनके अलावा भी इस कमेटी में 11 और नेता शामिल थे. कमेटी ने तर्क दिया कि देश में कई ऐसे ऐतिहासिक स्मारक हैं जो लोगों के बीच काफी धार्मिक महत्व रखते हैं. अगर इस स्थलों पर पूजा करने की अनुमति मिलती है तो इससे लोगों की धार्मिक आकांक्षाओं को पूरा किया जा सकेगा. कमिटी ने यह भी कहा कि एएसआई को स्मारक में पूजा करने की अनुमति देनी चाहिए, बशर्ते इसका स्मारक पर कोई दुष्प्रभाव न हो.
वहीं इस सिफारिश के जवाब में संस्कृति मंत्रालय ने कहा कि पहले इस मांग की व्यावहारिकता की जांच की जाएगी. इसके बाद ही ऐसा कर पाना मुमकिन है या नहीं इसकी संभावना तलाशी जाएगी. हालांकि मंत्रालय ने ये भी साफ कर दिया कि ऐसे ऐतिहासिक स्थलों पर पूजा की अनुमति नहीं देना नीतिगत निर्णय है.
वर्तमान में किन धार्मिक स्थलों पर पूजा करने की अनुमति है
ऐसे ही स्मारकों में कन्नौज में तीन मस्जिदें, मेरठ में रोमन कैथोलिक चर्च, दिल्ली के हौज खास विलेज में नीला मस्जिद और लद्दाख में कई बौद्ध मठ शामिल हैं. हो.
समिति की सिफारिश मान लेने पर क्या होगा
अब अगर केंद्र सरकार इस समिति की सिफारिश को मान लेती है और अमल में ले आती है तो कई संरक्षित जीर्ण शीर्ण मंदिर, दरगाह, चर्च और अन्य स्थलों पर पूजा अर्चना होने लगेगी.
पहले भी एएसआई जता चुके हैं चिंता
बता दें कि ये पहली बार नहीं है जब ऐतिहासिक स्थलों पर पूजा पाठ की मांग की गई है. इससे पहले साल 2022 के मई महीने में जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में आठवीं सदी के मार्तंड सूर्य मंदिर के खंडहरों में पूजा करने पर एएसआई ने जिला प्रशासन के सामने चिंता जाहिर की थी. उस वक्त एएसआई ने कहा था कि ऐसा करना नियमों का उल्लंघन है.
जम्मू कश्मीर के इस मंदिर के खंडहरों को 20वीं सदी में जब एएसआई ने अपने कब्जे में लिया था,उस वक्त यहां कोई पूजा नहीं की जाती थी. एएसआई ने कहा कि स्मारक के सिर्फ उन हिस्सों में ही पूजा की अनुमति दी जा सकती है, जहां पर कस्टडी के समय भी पूजा की जा रही होती है.
तीन हजार से भी ज्यादा स्मारकों का संरक्षण करता है एएसआई
एएसआई यानी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया वर्तमान में देशभर के कुल 3,693 स्मारकों का संरक्षण करता है. इन स्मारकों में 820 स्मारक ऐसे हैं जहां पूजा करने की इजाजत है, बाकी जितना भी बचे हुए स्मारक हैं वहां किसी भी तरह का धार्मिक अनुष्ठान नहीं किया जाता है. जिन स्मारकों में पूजा या इबादत की इजाजत है, उनमें मंदिर, मस्जिद, चर्च और दरगाह शामिल हैं.
मार्तंड सूर्य मंदिर की बात करें तो एक समय में इस मंदिर में काफी पूजा पाठ किया जाता था. इस मंदिर को कर्कोटक वंश के राजा ललितादित्य मुक्तापीड ने (725 ईस्वी से 753 ईस्वी) में बनवाया गया था. हालांकि सिकंदर ने इसे 14वीं शताब्दी में नष्ट कर दिया था. 20 वीं सदी में एएसआई ने इसको कस्टडी में ले लिया. एएसआई के एक अधिकारी ने कहा कि पिछले साल दो बार यहां पूजा की गई. एक बार भक्तजनों का एक ग्रुप यहां पूजा करने पहुंचा था और दूसरी पर जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट जनरल मनोज सिन्हा की उपस्थिति में पूजा की गई.
एएसआई संरक्षण धार्मिक स्थलों पर पूजा करना कितना उचित
इस सवाल के जवाब में इतिहासकार सुरेश राणा कहते हैं कि हमारे देश में पूजा पाठ करने का मूलभूत अधिकार है और इस अधिकार में कोई भी प्रतिबंध नहीं लगा सकता. अगर कोई, व्यक्ति, संस्था या कानून ऐसे करता है तो वह संविधान विरोधी है. लेकिन यहां हम ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थलों पर पूजा-पाठ की इजाजत की बात कर रहे हैं तो इसकी इजाजत देना सही है या नहीं ये तो मैं नहीं कह सकता लेकिन आम तौर पर ऐतिहासिक स्थलों पर पर्यटक इन धरोहरों को देखने जाते हैं. ये पर्यटक किसी भी जाती, धर्म या समुदाय के हो सकते हैं.
वहीं दूसरी तरफ अगर कोई व्यक्ति इस जगहों को तीर्थ स्थल मानकर पूजा पाठ करने जा रहा हो तो वो कोशिश करते हैं कि तन-मन और आचरण को शुद्ध रखें. यही कारण है कि बहुत से धार्मिक स्थलों पर जाने के लिए कई नियमों और शर्तों का भी पालन करना होता है. बहुत से धार्मिक स्थलों पर जाने पर आपको पोशाक की मर्यादा का ध्यान रखना होता है. कई धार्मिक स्थलों पर बकायदा ड्रेस कोड से लेकर आचरण संबंधी आचार संहिता भी लागू होती है.
क्या है आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया
एएसआई एक संस्था है जो भारत के संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत आता है. यह संस्था देश में ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण का काम करती है. एएसआई पुरानी चीजों का गहन अध्ययन करती है. आसान भाषा में समझे तो भारत के किसी भी कोने में पुरातात्विक इमारतें, संरचनाएं या वस्तुएं मिलने पर आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ही उसकी जांच-पड़ताल करती है. इसके अलावा ऐतिहासिक इमारतों के रखरखाव, मेंटेनेंस और अन्य जरूरी काम एएसआई की ही जिम्मेदारी है.
इस संस्था की शुरुआत अंग्रेजों के शासनकाल के वक्त साल 1861 में हुई थी. एएसआई की स्थापना देश की सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिए संस्कृति मंत्रालय के तहत की गई थी.