क्या संविधान बनाने का पूरा श्रेय अंबेडकर ने ले लिया था?
क्या संविधान बनाने का पूरा श्रेय अंबेडकर ने ले लिया था?
आज, 26 नवंबर को संविधान दिवस है. 26 नवंबर 1949 को भारत का संविधान बनकर तैयार हुआ और इसे अपनाया गया था. संविधान के निर्माण में डाॅ. भीम राव अंबेडकर सहित कई अन्य महत्वपूर्ण लोगों ने उल्लेखनीय योगदान दिया था. आइए इस अवसर पर संविधान निर्माण से जुड़े कुछ किस्से जानते हैं और उन लोगों के बारे में जानते हैं, जिन्होंने इसे अंतिम रूप दिया.
संविधान का जिक्र होते ही उसके रचनाकार के तौर पर डॉक्टर भीम राव अंबेडकर की तस्वीर उभरती है, लेकिन खुद अंबेडकर यह श्रेय अकेले लेने को तैयार नहीं थे. संविधान की सर्वसम्मति से स्वीकृति के मौके पर 25 नवंबर 1949 के उनके जिस ऐतिहासिक भाषण को बार- बार उद्धृत किया जाता है. उसमें उन्होंने कहा था कि जो श्रेय मुझे दिया गया है, इसका वास्तव में मैं ही अधिकारी नहीं हूं. उसके अधिकारी बेनेगल नरसिंह राव भी हैं, जो इस संविधान के संवैधानिक सलाहार हैं और जिन्होंने प्रारूप समित के विचारार्थ मोटे तौर पर संविधान का मसौदा बनाया. आज, 26 नवंबर को संविधान दिवस है. आइए जानते हैं इससे जुड़े किस्से.
बेनेगल नरसिंह राव के इस योगदान को संविधान सभा के अध्यक्ष डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने भी अपने 26 नवंबर 1949 के भाषण में भी याद किया. अपनी पुस्तक ‘इंडियाज कांस्टीट्यूशन इन द मेकिंग’ में डॉक्टर प्रसाद ने उनके बारे में लिखा “अपने ज्ञान,अनुभव और प्रज्ञा के कारण बेनेगल नरसिंह राव संविधान सभा के सलाहकार पद के लिए अपरिहार्य थे, जिन्होंने संविधान बनाने में बड़ी सहायता की.
सलाहकार बनते ही उन्होंने संविधान सभा के सदस्यों के लिए आवश्यक सामग्री खोजी और उसे साधारण आदमी की समझ के लिए सरल शब्दों में प्रस्तुत किया. संविधान सभा के ज्यादातर सदस्य स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्हें संविधान की जटिलताएं नहीं पता थीं, जो वकालत पेशे से थे, वे भी संविधान के विशेषज्ञ नहीं थे. सामग्री की कमी नहीं थी लेकिन उसका सही चयन और उचित व्याख्या चुनौतीपूर्ण कार्य था”.
घर से दूर दीजिए तैनाती
26 फरवरी 1887 को कर्नाटक के साउथ केनेरा जिले में जन्मे प्रतिभाशाली राव ने उच्च शिक्षा भारत सरकार की स्कालरशिप पर कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में हासिल की. 1909 के आई.सी.एस. के लिए चुने गए पचास लोगों के बैच में वे अकेले भारतीय थे. किस सीमा तक वे ईमानदार थे, इसका उल्लेख वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने अपनी किताब ” भारतीय संविधान अनकही कहानी ” में किया है. पहली नियुक्ति मद्रास में होने पर उन्होंने पत्र लिखा, ” जिस प्रांत में मेरी नियुक्ति हुई है, वहां मेरे बहुत से मित्र और हर क्षेत्र में संबंधी हैं.
मद्रास प्रेसिडेंसी में ही मेरे पिता की जमीन भी है. ऐसी परिस्थिति में मैं अपना कर्तव्य पक्षपात से परे होकर संभवतः नहीं कर सकूंगा. इसलिए मेरी नियुक्ति अन्यत्र करें. मुझे आप बर्मा (म्यांमार) भी भेज सकते हैं. फिर सेवाकाल में वे बंगाल और असम के अनेक स्थानों पर नियुक्त रहे. असम को पाकिस्तान में शामिल करने की मुस्लिम लीग और अंग्रेजों की साजिश को विफल करने में राव की इन इलाकों के बारे में जानकारी और अनुभव से बड़ी सहायता मिली थी.
हर भूमिका में शानदार
राव 1935 में थोड़े समय के लिए और फिर 1939 – 44 के दौरान कलकत्ता हाईकोर्ट के जज रहे. रिटायरमेंट के बाद विभिन्न आयोगों के अध्यक्ष के तौर पर भी उनका योगदान शानदार रहा. सिंध और पंजाब के बीच सिंधु नदी के पानी के बंटवारे और मद्रास प्रेसीडेंसी और उड़ीसा राज्यों के सीमा विवाद को उन्होंने सुलझाया. हिंदू पर्सनल लॉ सुधार आयोग के भी वे अध्यक्ष थे. इंडियन एक्ट 1935 के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए उन्हें रिफॉर्म आफिस में ओएसडी पद पर नियुक्त किया गया था.
राव की संवैधानिक मामलों की जानकारी ने वायसराय को काफी प्रभावित किया था. रिटायरमेंट के बाद राव के लिए कलकत्ता हाईकोर्ट में स्थायी जज का प्रस्ताव था. लेकिन राव ने वायसराय के निजी सचिव को पत्र लिखकर बताया कि उन्होंने अपने जीवन के 12 वर्ष संवैधानिक कानूनों और विशेषकर भारत के संविधान का अध्ययन करने में लगाए हैं. अगर मुझे अवसर मिले तो भारतीय संविधान का ढांचा बनाने में योगदान कर सकता हूं.
हर भ्रम निवारण में सक्षम
राव को वायसराय ने गवर्नर जनरल सचिवालय के रिफॉर्म ऑफिस में सचिव का दर्जा दिया. 1946 में लॉर्ड वेवेल ने उन्हें संवैधानिक सलाहकार बनाया. संविधान सभा के गठन के पश्चात जवाहर लाल नेहरू के प्रस्ताव पर सभा ने संवैधानिक सलाहकार के तौर पर उनकी नियुक्ति की पुष्टि की. वहां राव ने कैसी भूमिका निभाई इसे डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने इन शब्दों में व्यक्त किया, ” अगर डॉक्टर भीम राव अंबेडकर संविधान के निर्माण के विभिन्न चरणों में कुशल पायलट की भूमिका में थे तो बेनेगल राव वह व्यक्ति थे, जिन्होंने संविधान की एक स्पष्ट परिकल्पना दी और उसकी नींव रखी. संवैधानिक विषयों के वे जहां विशेषज्ञ थे,वहीं साफ-सुथरी भाषा में लिखने की उन्हें कमाल की योग्यता प्राप्त थी. संविधान संबंधी किसी भी विषय की वे तह तक जाते थे. किसी समस्या के हर पहलू की छानबीन करते थे. उस पर वे जो परामर्श देते थे, वह भ्रम निवारण में सहायक होता था.”