संसदीय लोकतंत्र के काले दिन वापस !

संसदीय लोकतंत्र के काले दिन वापस

कोई दोषी नहीं। कोई जिम्मेदार नहीं। भारत की संसद की किस्मत ही खराब है जो उसे अपने एक चौथाई सदस्यों को निलंबित कर अपना कामकाज चलाना पड़ रहा है । चूंकि ये सब पहले भी हो चुका है इसलिए मौजूदा संसद के पीठाधीश्वर के ऊपर आप कोई आरोप नहीं लगा सकते,ज्यादा से ज्यादा इतना कह सकते हैं कि इस बार संसद पहले से ज्यादा बधिर और असहिष्णु है। लोकतंत्र के लिए ये अच्छे लक्षण नहीं हैं। वर्ष 2023 संसदीय इतिहास में एक कुटिल व्यवहार के लिए सदा याद किया जाएगा।

संसद के प्रति मेरे मन में अपार आस्था है और हर भारतीय के मन में होना चाहिए,क्योंकि ये संसद ही है जिसे हम न सिर्फ लोकतंत्र का मंदिर मानते हैं बल्कि हमारा यकीन है कि इसी मंदिर में की गयी प्रार्थनाओं से हम भारतीयों की तमाम कामनाएं पूरी होतीं है। दुर्भाग्य से यही संसद पहले बहरी हुई और अब निर्मम तथा असहिष्णु भी हो गयी। मौजूदा संसद अब तक अपने 100 सदस्यों के विरुद्ध निलंबन और निष्कासन की कार्रवाई कर चुकी है। राज्य सभा के 45 और लोकसभा के 33 सदस्यों को पूरे सत्र के लिए निलंबित किया जा चुका है।
देश की संसद कोई प्राइमरी की कक्षा नहीं है ,लेकिन उसे प्राइमरी की कक्षा बना दिया गया ह। संसद की कार्रवाई का संचालन करने वाले पीठाधीश्वर अब ईश्वर से भी ऊपर हो गए हैं। उनके मन में दया-धर्म बचा ही नहीं है । वे संसद में प्रतिरोध के लिए रत्ती भर गुंजाइश नहीं देना चाहते । सांसद में पहले भी हंगामे होते थे लेकिन सदन चलने वाले अंत तक हार नहीं मानते थे,उस समय संसद की कार्रवाई भी तब स्थगित की जाती थी जब की पानी सर के ऊपर न हो जाये, लेकिन आजकल तो संसद शुरू होते ही स्थगित हो जातीहै । सांसदों को डाटने-फटकारने,मार्शल बुलाने का कोई मौक़ा ही इस्तेमाल नहीं किया जाता। पल भर में सांसदों के नामों की एक फेहरिस्त आती है और सभी को निलंबित करने का ऐलान कर दिया जाता है।
संसद द्वारा की जारही इस निर्मम कार्रवाई के बारे में टीका-टिप्पणी करने पर आपको अतीत की याद दिलाई जाएगी कि राजीव गांधी के काल में भी तो 63 सांसदों को निलंबित किया गया था ! यानि जो राजीव गांधी के शासनकाल में हुआ वो ही सब मोदी के शासन काल में होना चाहिए अन्यथा सत्तारूढदल की नाक कट जाएगी ! ये तर्क-कुतर्क करने वाले नहीं जानते कि राजीव गाँधी के शासनकाल में सांसदों को मात्र एक सप्ताह के लिए निलंबित किया गया था लेकिन इस बार ऐसी स्थिति नहीं है। इस बार लोकसभा से जिन सांसदों को निलंबित किया गया है, उनमें से 30 संसद के पूरे शीतकालीन सत्र तक निलंबित रहेंगे। बाकी तीन- के. जयकुमार, विजय वसंत और अब्दुल खालिक को विशेषाधिकार समिति की रिपोर्ट आने तक निलंबित किया गया है. इन तीनों पर स्पीकर के पोडियम पर चढ़कर नारेबाजी करने का आरोप है।
इसी तरह, राज्यसभा से जिन 45 सांसदों को आज सस्पेंड किया गया है, उनमें से 34 को पूरे सत्र और 11 को विशेषाधिकार समिति की रिपोर्ट आने तक निलंबित किया गया है।

सांसदों के खिलाफ कार्रवाई करना पीठाधीश्वरों का विशेषाधिकार है,उसे लेकर कोई उन्हें चुनौती नहीं दे सकता ,लेकिन जनता के पास ये अधिकार है कि वो अपने चुने हुए सांसदों के खिलाफ की गयी कार्रवाई पर अपना असंतोष जाहिर करे। दरअसल इस समय संसद को ध्वनिमत से चलने की कोशिश की जा रही है । सांसद में बहस-मुबाहिसे के लिए,प्रतिरोध के लिए कोई गुंजाइश नहीं है। जो बोलेगा उसे निलंबित कर दिया जाएगा,उसकी सदस्य्ता येन-केन रद्द कर दी जाएग। फिर खूब खटखटाते रहिये अदालतों के दरवाजे। ये सब प्रतिपक्ष के सांसदों के साथ हो रहा है । किसी सदन में सत्ता पक्ष के किसी एक संसद को निलंबित किया गया ? पीठाधीश्वर अपने-अपने सदन के संरक्षक और मुखिया होते है। और वे भूल गए हैं कि मुखिया-मुख जैसा होता है यानि खान-पान में एक।देश को रामराज की और ले जाने वाले लोग भूल गए कि -‘ मुखिआ मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक।
पालइ पोषइ सकल अँग तुलसी सहित बिबेक।।
संसद में आजकल का परिदृश्य देखकर कोई भी सदन कि संरक्ष्कों कि विवेक पर सवाल खड़े कर सकता है। पिछले दिनों इसी संसद में चार युवाओं ने तानाशाही ,बेरोजगारी और उत्पीड़न कि खिलाफ प्रदर्शन करने कि लिए अपने प्राण दांव पर लगा दिए। यदि यही काम सदन के सदस्यों को करने दिया जाता तो कोई बाहरी व्यक्ति कोनों सदन में अनाधिकार प्रवेश कर सदन की गरिमा से खिलवाड़ करता ? लेकिन इस विरोध प्रदर्शन को सदन की गरिमा और सुरक्षा से न जोड़कर साजिशों से जोड़ा जा रहा है। प्रदर्शनकारियों कि मुद्दों पर सदन में और सदन के बाहर बात करने कि लिए कोई तैयार नहीं है।
सांसदों को निलंबित करना सदन कि संचालकों का विशेषाधिकार है इसलिए कोई भी इसे चुनौती नहीं दे सकता ।सांसदों का निलंबन पहली बार नहीं हुआ है । लेकिन सांसदों कि साथ लगातार निलंबन को औजार बनाया जाना चिंताजनक है। पहली बार नहीं है जब इतनी बड़ी संख्या में सांसदों को निलंबित किया गया है। आंकड़े देखें तो पिछले 10 साल में लोकसभा और राज्यसभा के 154 सांसद निलंबित हो चुके हैं चुके हैं। इसमें उन सांसदों के नाम भी शामिल हैं, जिन्हें एक से ज्यादा बार निलंबित किया गया था। गोदे मुरहारी और राजनारायण उन सांसदों में से हैं जिन्हें उनके आचरण कि लिए पूरे सत्र में निलंबित रखा गया था। लेकिन अब ये अतीत भी बहुत पुराना हो गया है। इसकी यादें धूमिल पड़ चुकी हैं।
आपको याद होगा कि संसद की सुरक्षा में चूक के मामले को लेकर विपक्ष लगातार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान की मांग पर अड़ा हुआ है। ऐसे में सदन में हंगामे के कारण विपक्षी दल के सांसदों के खिलाफ कदम उठाया गया। प्र्धानमनतरि और गृहमंत्री सदन में इस मुद्दे पर कोई ब्यान नहीं दे रहे जबकि सदन के बाहर वे सब कुछ कह रहे है। इन दोनों का आचरण संसद की गरिमा और विशेषाधिकार के खिलाफ नहीं माना जाता। सामूहिक निलंबन के बाद विपक्ष को दोहरा झटका लगा है। एक तो उनके सांसद सदन की कार्यवाही में शामिल नहीं हो पाएंगे इसके अलावा लोकसभा में इंडिया गठबंधन की ताकत 50 फीसदी तो राज्यसभा में 33 फीसदी कम हो जाएगी। और यही सत्तारूढ़ दल का असल मकसद है। कल्पना कीजिये की यदि 303 सीटें हासिल करने वाली पार्टी का अभी ये हाल है और यदि खुदा न खास्ता इसी दल को 400 सीटें मिल जाएँ तो संसद का क्या हाल होगा ? बहुमत का इतना दुरूपयोग तो राजीव गांधी ने भी नहीं किया था जबकि उनके दल को उस समय 404 सीटें मिलीं थीं।

अगले कुछ महीनों में शायद फरवरी में ही देश में लोकसभा कि नए चुनाव होना हैं इसलिए ये मौक़ा है की देश की जनता उसे चुने जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कि खिलाफ न हो, जो असहिष्णु न हो ,जो संसद को बहरा न बनाये। मर्जी है आपकी,क्योंकि वोट है आपका । हम तो ‘वाच डॉग ‘ भर है। सावधन करना,’ जागते रहो ‘ ! की आवाज लगना हमारा काम है ,सो हम कर रहे हैं।

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