हिंद महासागर और भूमध्य सागर को जोड़ने वाला लाल सागर और स्वेज नहर का रूट दुनिया के सबसे व्यस्त समुद्री मार्गों में है। एशिया से यूरोप तक सामान भेजने या मंगाने के लिए यह सबसे छोटा रास्ता है, इसलिए माल ढुलाई का खर्च भी कम आता है। हिंद महासागर से लाल सागर में प्रवेश करने पर सबसे पहले यमन देश आता है, जहां हाउदी विद्रोही जहाजों को निशाना बना रहे हैं। कहा जा रहा है कि उन्हें ईरान का समर्थन हासिल है।

भारत आ रहे टैंकर एमवी केम प्लूटो पर भी शनिवार, 23 दिसंबर को ड्रोन से हमला हुआ था। यह हमला भारत के समुद्र तट से करीब 370 किमी दूर हुआ। भारत बड़ी मात्रा में कच्चे तेल का आयात इसी तरफ से करता है। हमले के बाद भारत ने सुरक्षा बढ़ाते हुए इस इलाके में पोत तैनात किए हैं।

  

अनेक निर्यातकों की सप्लाई रुकी

इस संकट के भारत पर असर के बारे में पूछने पर निर्यातकों के संगठन फियो के डायरेक्टर जनरल और सीईओ डॉ. अजय सहाय जागरण प्राइम से कहते हैं, “भारत पर दो तरह से प्रभाव पड़ा है। सामान की लूट होने या नष्ट होने के डर से कुछ निर्यातकों ने अपने ऑर्डर की डिलीवरी रोक दी है। कुछ मामलों में खरीदारों ने ही कहा है कि स्थिति को देखते हुए अभी आप सप्लाई न भेजें। दूसरा प्रभाव यह पड़ा है कि शिपिंग कंपनियों ने ढुलाई का रेट काफी बढ़ा दिया है।”

अंतरराष्ट्रीय व्यापार में इस रूट के महत्व का पता इन तथ्यों से चलता है। अमेरिकी एनर्जी इन्फॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार 2023 की पहली छमाही में स्वेज नहर के रास्ते रोजाना औसतन 92 लाख बैरल कच्चे तेल का व्यापार हुआ। यह कुल वैश्विक मांग का 9% है। इस वर्ष 4% एलएनजी आयात भी इसी रास्ते हुआ।

अजय सहाय बताते हैं, “भारत का करीब एक-तिहाई कंटेनर एक्सपोर्ट और कुल निर्यात का 15% लाल सागर के रास्ते होता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत से यूरोपीय देशों और अमेरिका के पूर्वी तट पर भेजे जाने वाले सामान के लिए यह रास्ता सबसे छोटा पड़ता है। इसके अलावा रेड सी के इर्द-गिर्द के देशों- सऊदी अरब, ईरान, इराक, जॉर्डन, सूडान, मिस्र आदि को निर्यात के लिए भी इस रूट का प्रयोग होता है। कुल मिलाकर देखें तो आयात और निर्यात मिलाकर भारत का 220 से 230 अरब डॉलर का ट्रेड इस रूट से होता है।”

वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2022-23 में भारत का आयात 716 अरब डॉलर और निर्यात 451 अरब डॉलर का था। इस तरह देखें तो कुल 1167 अरब डॉलर के विदेश व्यापार में लगभग 20 प्रतिशत लाल सागर के रास्ते होता है।

कंटेनर ढुलाई का खर्च दोगुना हुआ

हाउदी के हमलों को देखते हुए अनेक बड़ी शिपिंग कंपनियों ने इस रूट से अपने जहाज भेजना बंद कर दिया। वे अफ्रीका महाद्वीप के दक्षिणी छोर पर स्थित उत्तमाशा अंतरीप (केप ऑफ गुड होप) के रास्ते जहाज भेज रहे हैं। इसका असर ढुलाई के खर्च पर दिखने लगा है।

सहाय के अनुसार, “भारत से कुछ जगहों के लिए ढुलाई का खर्च दोगुना तो कुछ जगहों के लिए इससे भी ज्यादा हो गया है। जैसे, भारत से सऊदी अरब तक के लिए 20 फुट के कंटेनर का रेट पहले 1500 डॉलर था, वह अब 3000 डॉलर हो गया है। यूरोप के लिए 2000 डॉलर का रेट था, वह अब 4000 डॉलर हो गया है।”

हालांकि अलग-अलग इंडस्ट्री पर असर फिलहाल अलग दिख रहा है। गारमेंट एक्सपोर्टर्स एंड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (जेमा) के प्रेसिडेंट विजय जिंदल के मुताबिक, “भारतीय गारमेंट निर्यातकों का 90 से 95 प्रतिशत बिजनेस एफओबी आधारित है। इसमें हमारा खर्च कस्टम क्लियरेंस और जहाज में चढ़ाने तक का होता है। ढुलाई का खर्च ग्राहक चुकाता है। इसलिए फ्रेट बढ़ने का सीधा असर हमारे ऊपर नहीं होता। लेकिन जो निर्यातक अपने खर्च पर ग्राहक तक माल पहुंचा रहे हैं, उनके लिए लागत तत्काल बढ़ गई है।”

जेमा के ऑनररी महासचिव अनिमेष सक्सेना बताते हैं, “शिपिंग कंपनियों की तरफ से एलर्ट आया है कि माल ढुलाई में 10 से 15 दिनों का अतिरिक्त समय लगेगा तथा ढुलाई का खर्च 20 प्रतिशत बढ़ जाएगा।”

ढुलाई खर्च कम होने में लगेगा समय

बढ़े हुए ढुलाई खर्च का असर आखिरकार महंगाई पर होगा। इसे ध्यान में रखते हुए जहाजों की सुरक्षा के लिए अमेरिका की अगुवाई में करीब एक दर्जन देशों ने साझा ऑपरेशन शुरू किया है। इसे ‘ऑपरेशन प्रोस्पेरिटी गार्डियन’ नाम दिया गया है। इसके बाद मर्स्क जैसी कुछ बड़ी शिपिंग कंपनियों ने कहा है कि वे लाल सागर के रास्ते अपने जहाज दोबारा भेजना शुरू करेंगी, लेकिन जैसा कि सहाय कहते हैं, “वे कब से भेजेंगी अभी यह स्पष्ट नहीं है। जब तक शिपिंग कंपनियों को हमला न होने का भरोसा नहीं होगा, तब तक वे उस रास्ते से अपने जहाज नहीं भेजेंगी। अमेरिका के नेतृत्व में पेट्रोलिंग शुरू हुई है। अमेरिका ने हाउदी के कुछ ड्रोन नष्ट भी किए हैं। अगर एक महीने में स्थिति सामान्य होती है तो ट्रेड भी धीरे-धीरे सामान्य हो सकता है। लेकिन यहां एक और समस्या है कि माल ढुलाई का रेट बढ़ता तो जल्दी है, लेकिन उसे नीचे आने में काफी समय लगता है।”

जिंदल भी कहते हैं, “अमेरिका के नेतृत्व में कई देश जहाजों को सुरक्षा दे रहे हैं, भारत ने भी नौसेना को तैनात किया है। इसके बावजूद शिपिंग कंपनियां रेड सी रूट पर जाने से बच रही हैं।”

भारत इस रास्ते से कच्चा तेल और प्राकृतिक गैस का बड़े पैमाने पर आयात करता है। रूस से कच्चे तेल का आयात भी इसी रास्ते होता है। दूसरी तरफ भारत से पेट्रोलियम पदार्थ, बासमती चावल, चाय आदि का निर्यात इस रास्ते होता है। इसके अलावा कंटेनर के जरिए जो निर्यात होता है, उनमें अनेक तरह के सामान होते हैं। इनमें वाहन, मशीनरी, केमिकल, लेदर, गारमेंट्स सब शामिल हैं।

आगे कंटेनर का संकट भी संभव

उत्तमाशा अंतरीप का वैकल्पिक मार्ग काफी लंबा पड़ता है। हाउदी संकट लंबा चलने पर कंटेनर की उपलब्धता की समस्या भी हो सकती है। सहाय बताते हैं, “अगर जहाज रेड सी के बजाय अफ्रीका का चक्कर लगाकर, केप ऑफ गुड होप के रास्ते जाते हैं तो यात्रा का समय 12 से 14 दिन बढ़ जाता है। इससे कंटेनर ज्यादा समय तक फंसे रह जाते हैं और इनकी उपलब्धता पर इसका असर दिखने भी लगा है। आने वाले समय में कंटेनर का रेट भी बढ़ने का डर है।”

एक रिपोर्ट के अनुसार ताइवान से नीदरलैंड्स तक बड़े जहाज का सफर लाल सागर और स्वेज नहर के रास्ते 26 दिनों में पूरा होता है। यह 18,520 किमी लंबा रास्ता है। उत्तमाशा अंतरीप के रास्ते जाने पर रूट 25,000 किमी लंबा होगा और इसमें 34 दिन लगेंगे।

हालांकि गारमेंट इंडस्ट्री को फिलहाल कंटेनर की कमी का सामना नहीं करना पड़ रहा है। जिंदल के अनुसार, “कंटेनर की समस्या अभी नहीं है, लेकिन संकट जारी रहा तो एक महीने बाद कंटेनर की कमी हो सकती है।” फिलहाल कंटेनर की समस्या से सक्सेना ने भी इनकार किया।

संकट लंबा चला तो निर्यातकों की मुसीबत बढ़ेगी

संकट लंबा चला तो कई समस्याएं खड़ी हो सकती हैं। जिंदल कहते हैं, “लंबे समय में ग्राहक के लिए समय और खर्च दोनों बढ़ेगा तो आखिरकार उसका प्रभाव हमारे ऊपर ही आएगा। ढुलाई खर्च बढ़ने पर वे हमारे ऊपर दाम कम करने के लिए दबाव बनाएंगे। अभी भारत का 60 से 70 प्रतिशत गारमेंट निर्यात इस रास्ते होता है। इसलिए अगर इस संकट का समाधान जल्दी नहीं निकला तो निर्यातकों के लिए बड़ी समस्या उत्पन्न हो जाएगी। इस रूट से मुख्य रूप से यूरोप को गारमेंट निर्यात प्रभावित होगा।”

यूरोप के सभी देशों, खाड़ी और पश्चिम एशिया के अन्य देश तथा उत्तरी अफ्रीका के साथ भारत का बड़ा व्यापार है। वर्ष 2022-23 में भारत का 38.6% निर्यात इन क्षेत्र के देशों को हुआ। भारत के आयात में भी इन देशों की 37.9% हिस्सेदारी थी।

अनिमेष सक्सेना एक और समस्या बताते हैं, “शिपिंग कंपनियों ने समय और खर्च बढ़ने की जो जानकारी दी है, उसकी सूचना हमने अपने ग्राहकों को दे दी है। उनका कहना है कि ढुलाई में ज्यादा समय लग रहा है, इसलिए हम (निर्यातक) अपनी तरफ से कोई देरी न करें। आयातकों के लिए यह पीक सीजन है, इसलिए गारमेंट का पहुंचना उनके लिए जरूरी है।” सक्सेना के अनुसार, “पहले हमें माल भेजने में पांच-दस दिन देर होने पर भी ग्राहक उसे ले लेते थे। अब उनका कहना है कि ढुलाई में पहले ही ज्यादा समय लगेगा, इसलिए हम और अतिरिक्त समय नहीं दे पाएंगे। वैसी स्थिति में विमान से अपने खर्च पर माल भेजना पड़ेगा।”