नियोजित शिक्षक बिहार में बने स्पेशल टीचर !

नियोजित शिक्षक बिहार में बने स्पेशल टीचर: शिक्षा विभाग पर कितना बोझ बढ़ेगा?
नए साल की शुरुआत के साथ ही बिहार सरकार ने उन शिक्षकों की झोली में खुशियां भर दी हैं, जो अब तक नियोजित शिक्षक कहे जाते हैं.
  बिहार में बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा रहा है. . हर साल इस राज्य से लाखों लोग नौकरी की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं. लोकसभा या विधानसभा चुनाव के दौरान भी बेरोजगारी का मुद्दा सबसे ज्यादा उठाया जाता है. हालांकि तमाम वादों और दावों के बाद भी आज बिहार के लाखों युवा बेरोजगार है. 

अब लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले राज्य की नीतीश सरकार काफी एक्टिव नजर आ रही है. उन्होंने एक के बाद एक बड़े फैसले लेकर केंद्र सरकार तक को सख्ते में ला दिया है. 

दरअसल नए साल की शुरुआत के साथ ही बिहार सरकार ने उन शिक्षकों की झोली में खुशियां भर दी हैं, जो अब तक नियोजित शिक्षक कहे जाते थे. 26 दिसंबर को नीतीश कुमार ने कैबिनेट बैठक में एक अहम फैसला लिया. उन्होंने नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा दिए जाने का फैसला किया है. 

नीतीश सरकार के इस फैसले के बाद प्रदेश के 4 लाख से ज्यादा नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा देने का रास्ता साफ हो गया है. अब बिहार में नियोजित शिक्षकों को स्पेशल टीचर या परमानेंट टीचर का दर्जा मिलेगा. ये फैसला बिहार के उन नियोजित शिक्षकों के लिए किसी बड़ी जीत से कम नहीं है. जो सालों से खुद को राज्यकर्मी का दर्जा देने की मांग कर रहे थे. हालांकि ये रास्ता अभी भी अड़चनों से भरा हुआ है. 

ऐसे में इस रिपोर्ट में जानते हैं कि आखिर ये नियोजित शिक्षक कौन होते हैं और उन्हें परमानेंट टीचर का दर्जा मिलने पर क्या-क्या सुविधाएं दी जाएंगी. इस फैसले से शिक्षा विभाग पर कितना बोझ बढ़ेगा..

कौन होते हैं नियोजित शिक्षक

साल 2003 में बिहार में शिक्षकों की कमी हो गई थी. इस कमी को पूरा करने के लिए राज्य सरकार ने 10वीं, 12वीं पास युवाओं को शिक्षा मित्र के रूप में रखा था. उन्हें यह नौकरी उनके अंकों के आधार दी गई थी, पहली बार इन शिक्षकों को 11 महीने के कॉन्ट्रैक्ट पर रखा गया था. उस वक्त इन्हें हर महीने 1500 रुपये का वेतन दिया जा रहा था. फिर हर साल इन शिक्षकों का कांट्रैक्ट बढ़ता गया और उनकी सैलरी भी बढ़ती गई.

केंद्र सरकार ने इस पद पर नियुक्त किए गए शिक्षकों को साल 2006 में नियोजित शिक्षक की मान्यता दी थी. अब 26 दिसंबर की बैठक में नीतीश सरकार ने इन्हीं शिक्षकों को राज्यकर्मी का देने का फैसला किया है.

नियोजित शिक्षक, पंचायती राज या नगर निकाय संस्थान के वो शिक्षक होते हैं जो सरकारी स्कूलों में पढ़ाते तो हैं. लेकिन, उन्हें मिलने वाली सेवाएं और राज्य सरकार के कर्मचारियों यानी सरकारी शिक्षकों को मिलने वाली सेवाओं से काफी अलग होती है. 

नियोजित शिक्षक को सरकारी शिक्षकों की तुलना में कई सुविधाएं नहीं मिलती है. उन सुविधाओं में शिक्षकों को ट्रांसफर, वेतन बढ़ोतरी, प्रमोशन शामिल है. साल 2003 में शिक्षकों की कमी होने पर राज्य सरकार ने 10वीं, 12वीं पास युवाओं को शिक्षा मित्र के रूप में रखा था. 

क्यों राज्य कर्मी के दर्जे की कर रहे थे मांग 

बिहार पंचायत नगर प्राथमिक शिक्षक संघ (Primary Teachers Association) के अनुसार वर्तमान में बिहार में लगभग 4 लाख नियोजित शिक्षक है. उनका कहना है कि उनसे सरकार काम तो पूरा लेती है लेकिन उन्हें उस हिसाब से सैलरी नहीं दी जा रही है. 

यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि कांट्रैक्ट पर बने इस शिक्षकों की भी सैलरी में हर साल बढ़ोतरी की गई है. नियोजित शिक्षकों में प्राइमरी टीचरों को 22 हजार से 25 हजार रुपये हर महीने दिए जाता है. जबकि माध्यमिक शिक्षकों को हर महीने 22 से 29 हजार रुपये मिलते हैं, हाई स्कूलों के नियोजित शिक्षकों को 22 से 30 हजार रुपये दिए जाते हैं. 

लेकिन समय-समय पर नियोजित शिक्षकों की सैलरी बढ़ाए जाने के बाद भी परमानेंट सरकारी शिक्षकों की सैलरी इनसे लगभग ढाई गुना ज्यादा है.

इस फैसले का केंद्र सरकार और राज्य सरकार पर कितना असर

साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट में एक सवाल का जवाब देते हुए केंद्र सरकार की ओर से एटार्नी जनरल वेणु गोपाल ने कोर्ट कहा था कि नियोजक शिक्षकों को समान वेतन देने में केंद्र सरकार पर 1.36 लाख करोड़ का अतिरिक्त भार पड़ेगा.

वहीं राज्य सरकार की तरफ से सीनियर वकील श्याम दीवान ने कहा था 3.56 लाख नियोजित शिक्षकों को पुराने शिक्षकों के समान वेतन देने पर राज्य सरकार को सालाना 28 हजार करोड़ का बोझ देना पड़ेगा. अगर इसमें एरियर को भी जोड़ लें तो राज्य सरकार को 52 हजार करोड़ का भार पड़ेगा. इसके अलावा जुलाई 2015 से ही शिक्षकों को वेतनमान दिया जा चुका है. 2015 में 14 और 2017 में लगभग 17 प्रतिशत शिक्षकों के वेतन में बढ़ोतरी भी हुई है.

26 अगस्त 2023 को पूर्व उपमुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने अपने एक ट्वीट में कहा था, ‘नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा देने के लिए 5000 हजार करोड़ रुपये की अतिरिक्त व्यवस्था अपने बूते करनी होगी.’

स्पेशल टीचर का दर्जा मिलने की राह आसान नहीं 

अब भले ही नीतीश सरकार ने इन शिक्षकों के स्पेशल टीचर का दर्जा देने पर मंजूरी दे दी है, लेकिन इन नियोजित टीचरों को परमानेंट होने के लिए साक्षमता परीक्षा को पास करना पड़ेगा. इस परीक्षा में पास करने के बाद ही नियोजित शिक्षक राज्यकर्मी कहलाएंगे. 

हालांकि यह परीक्षा कब, कैसे और इसका पैटर्न क्या होगा इसे लेकर अब तक कोई खास जानकारी साझा नहीं की गई है. फिलहाल इस परीक्षा को लेकर जो अपडेट  आया है वह यह है कि शिक्षा विभाग की ओर से सेकंड फेज के टीचर नियुक्ति से मौका मिलते ही तैयारी शुरू की जाएगी. 

अप्रैल में हो सकती है परीक्षा

फिलहाल सूत्रों के हवाले से जो जानकारी सामने आ रही है उसके अनुसार नियोजित शिक्षकों के राज्यकर्मी का दर्जा देने वाली सक्षमता परीक्षा अप्रैल में होने सकती है. इस बात की भी पूरी संभावना है कि इस परीक्षा को पूरा करने की जिम्मेदारी बिहार विद्यालय परीक्षा समिति को दिया जाएगा. इसमें बिहार लोक सेवा आयोग को इन्वॉल्व नहीं किया जाएगा. दूसरी तरफ जिन नियोजित शिक्षकों ने बीपीएससी परीक्षा पास कर ली है, उन्हें परीक्षा देने की जरूरत नहीं होगी.

परीक्षा पास करने वाले शिक्षकों की सैलरी में कितना इजाफा होगा 

सक्षमता परीक्षा पास करने के बाद कक्षा 1 से लेकर 5 तक के विशिष्ट शिक्षकों को 25 हजार वेतन मिलेगा. वहीं कक्षा 6 से लेकर 8 तक के शिक्षकों को 28000 रुपये प्रति माह सैलरी दी जाएगी जबकि कक्षा 9 से लेकर 10 तक के लिए 31 हजार रुपये और कक्षा 11 से लेकर 12 तक के विशिष्ट शिक्षकों को 32000 रुपये वेतन प्रतिमाह दिया जाएगा.

परमानेंट शिक्षक बनने के बाद क्या सुविधाएं मिलेगी

बताया जाता है कि नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा मिलने के बाद उन्हें महंगाई भत्ता, मकान, किराया भत्ता, चिकित्सा भत्ता, शहरी परिवहन भत्ता भी मिलेगा. इसके अलावा समय-समय पर वेतन, भत्तों में संशोधन किया जा सकता है. जिला शिक्षा पदाधिकारी शिक्षकों को जिला में स्थानांतरित कर सकते हैं. आठ साल की अवधि के बाद शिक्षकों की प्रोन्नति भी हो सकती है. 

बिहार में स्कूल कॉलेजों की स्थिति भी जान लीजिए 

94,163 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ राज्य बिहार की कुल जनसंख्या 10,40,99,452 है. इस राज्य में 38 जिले हैं. लेकिन, केवल 22 विश्वविद्यालय हैं, जिनमें 744 कॉलेज हैं. साल 2015-16 के अनुसार बिहार में प्रति कॉलेज औसत नामांकन 721 था. जिसका मतलब है कि राज्य के कुल युवा आबादी में से सिर्फ 1,78,833 छात्र कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में नामांकित हैं.  

वहीं दूसरी तरफ साल 2011 के जनगणना के अनुसार बिहार का साक्षरता दर 61.8% है जो कि भारत में सबसे कम है और महिला साक्षरता दर 51.5 प्रतिशत है जो कि दूसरा सबसे कम है.

बिहार में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की स्थिति

साल 2017-18 के आंकड़ों के अनुसार बिहार में 40,652 प्राइमरी स्कूल हैं. लेकिन जैसे-जैसे ही छात्र आप ऊपर जाते हैं, बिहार में शिक्षा व्यवस्था चरमराने लगती है. इसके मुख्य चुनौतियों की बात करें तो अनुपस्थिति दर, ड्रॉपआउट प्रमुख नजर आते हैं.

बिहार में उच्च शिक्षा की दयनीय स्थिति

आज इस राज्य की सबसे बड़ी चुनौती है शिक्षा के गुणवत्ता को सुधारना. हर साल  बिहार में पेपर लीक और नकल की सबसे आम हो गई है. अगर साल 2022 में इसका अवलोकन करें तो बिहार ही वो राज्य है जहां सबसे ज्यादा पेपर लीक के मामले सामने आए हैं.

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