कहां हैं आज मंदिर आंदोलन के फायरब्रांड नेता?

किसी को फेम मिला तो किसी की संपत्ति बढ़ी… कहां हैं आज मंदिर आंदोलन के फायरब्रांड नेता?
बड़े नेता भले ही आंदोलन की स्क्रिप्ट लिख रहे थे, लेकिन जमीन पर फायरब्रांड नेताओं का जलवा था. आंदोलन उफान पर पहुंचा, तो इन नेताओं की भी किस्मत चमकी. इस स्टोरी में इन्हीं नेताओं के बारे में जानते हैं.
राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही अयोध्या में मंदिर आंदोलन का पटाक्षेप हो जाएगा. 1984 में शुरू हुए आंदोलन ने करीब 3 दशक तक भारत की राजनीति को प्रभावित किया. शुरुआत में इस आंदोलन के साथ मुट्ठीभर लोग थे, लेकिन फायरब्रांड नेताओं के भाषण ने आंदोलन को भीड़ में तब्दील कर दिया. 

बड़े नेता भले आंदोलन की स्क्रिप्ट लिख रहे थे, लेकिन जमीन पर फायरब्रांड नेताओं का ही जलवा था. इसका उदाहरण 1992 में देखने को भी मिला था, जब अयोध्या के कारसेवकपुरम में भीड़ ने लालकृष्ण आडवाणी और अशोक सिंघल का विरोध कर दिया था. 

उस वक्त उमा भारती और विनय कटियार जैसे फायरब्रांड नेताओं ने भीड़ को संभालने का काम किया था.

मंदिर आंदोलन उफान पर पहुंचा, तो इन फायरब्रांड नेताओं की भी किस्मत चमकी. आंदोलन में शामिल कई नेता लोकसभा पहुंचे, तो कई विधानसभा. आंदोलन की सक्रिय सदस्य उमा भारती मुख्यमंत्री बनने में भी कामयाब रही.

राजनीतिक लाभ के अलावा मंदिर आंदोलन से जुड़े फायरब्रांड नेताओं की संपत्ति में भी भारी बढ़ोतरी हुई. मंदिर आंदोलन से पहले जो नेता लाखपति भी नहीं थे, वो बाद के दिनों में करोड़पति हो गए. 

इस स्पेशल स्टोरी में मंदिर आंदोलन के इन्हीं फायरब्रांड नेताओं के बारे में जानते हैं…

विनय कटियार- मंदिर आंदोलन की शुरुआत करने वाले विनय कटियार 1984 में बजरंग दल के अध्यक्ष बने. दल काी कमान मिलते ही उन्होंने पहला काम लोगों से समर्थन जुटाने का किया. इसके लिए कटियार ने अयोध्या के आसपास के इलाकों में सैकड़ों सभा की. 

कटियार इस सभा में लाला सीताराम की किताब लेकर जाते थे, जिसमें बाबरी के जगह पर मंदिर होने की बात लिखी थी. देखते-ही-देखते कटियार की मुहिम कारसेवा में तब्दील हो गई और मंदिर आंदोलन का बजरंग दल अगुवा बन गया.

1990 में कटियार 10 हजार कारसेवक को लेकर अयोध्या पहुंच गए. बाबरी मस्जिद के पास जैसे ही कारसेवक जुटे, वैसे ही पुलिस ने फायरिंग कर दी. इस फायरिंग में 16 लोगों की मौत हो गई. मरने वाले अधिकांश लोग बजरंग दल से ही जुड़े थे. 

घटना के बाद बीजेपी और हिंदू परिषद के बड़े नेता बैकफुट पर आ गए. वजह राजनीतिक थी, लेकिन कटियार ने युवाओं के भीतर फिर से जोश भरने का जिम्मा संभाल लिया. इसके बाद कटियार मंदिर आंदोलन के प्रमुख नेता बन गए. 

1991 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें फैजाबाद सीट से प्रत्याशी बनाया. बीजेपी का यह प्रयोग सफल रहा और कटियार चुनाव जीत गए. इसके बाद मस्जिद गिरने तक अयोध्या विवाद की पूरी कहानी कटियार के निवास पर ही लिखी गई.

1998 का चुनाव छोड़ दिया जाए, तो फैजाबाद सीट से कटियार लगातार लोकसभा का चुनाव जीतते रहे. 2004 में कटियार को बीजेपी ने यूपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया. हालांकि, उनके कार्यकाल में पार्टी को बड़ी सफलता नहीं मिली. 

कटियार 2012 में राज्यसभा के सदस्य बनाए गए. राजनीतिक शक्ति बढ़ने के साथ-साथ कटियार की संपत्ति भी इस दौरान खूब बढ़ी. मायनेता के मुताबिक 2004 में कटियार की संपत्ति 1 करोड़ 45 लाख रुपए थी, जो बढ़कर 2009 में 2 करोड़ 7 लाख हो गई.

2012 में कटियार राज्यसभा गए. उस वक्त उन्होंने अपने हलफनामे में बताया कि उनकी संपत्ति 2 करोड़ 50 लाख है. कटियार के शुरुआती दिनों की संपत्ति के बारे में कोई रिकॉर्ड नहीं है. वजह चुनाव आयोग का हलफनामा है. 

उमा भारती- बुंदेलखंड में घुम-घुम कर कथावाचन करने वाली उमा भारती मंदिर आंदोलन से 1984 के बाद जुड़ीं. धीरे-धीरे भारती मंदिर आंदोलन का मुख्य चेहरा बन गईं. उनकी तकरीरें युवाओं में जोश भरने का काम करता था. 

कथावाचक होने की वजह से भारती को यह जिम्मेदारी दी गई थी. मंदिर आंदोलन ने भारती के राजनीतिक करियर में भी जान फूंकने का काम किया.

1984 में मध्य प्रदेश के खजुराहो सीट पर 50 हजार वोट से हारी उमा 1989 में मंदिर आंदोलन की वजह से करीब 2 लाख वोटों से चुनाव जीती. भारती ने इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा. 

5 बार की सांसद भारती मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री और केंद्र में मंत्री रह चुकी हैं. 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद उन पर साजिश के आरोपों में एफआईआर दर्ज हुआ था. 

2019 के बाद से उमा राजनीति में साइडलाइन चल रही हैं. हालिया विधानसभा चुनाव से पहले उनके भतीजे को बीजेपी ने सरकार में शामिल किया था, लेकिन 2023 के चुनाव में उनका भतीजा जीत दर्ज नहीं कर पाया. 

2008 में उमा भारती की संपत्ति 60 लाख रुपए थी, जो 2012 में 80 लाख और 2014 में में 1.43 करोड़ रुपए पर पहुंच गई. उमा के इससे पहले की संपत्ति का कोई सार्वजनिक रिकॉर्ड नहीं है.

जयभान सिंह पवैया- पूर्व सांसद और पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया की गिनती राम मंदिर आंदोलन के दौरान फायरब्रांड नेता के रूप में होती थी. पवैया उस वक्त बजरंग दल से जुड़े थे. उन पर बाबरी विध्वंस के बाद अयोध्या में एफआईआर भी दर्ज हुआ था. 

पवैया पर मस्जिद गिराने की साजिश और भीड़ को उकसाने का आरोप था. 1995 में पवैया को इन कामों का इनाम मिला और वे विनय कटियार की जगह बजरंग दल के अध्यक्ष बनाए गए. 

1999 में पवैया को ग्वालियर से बीजेपी ने मैदान में उतारा. पवैया चुनाव जीतने में कामयाब रहे. हालांकि, 2004 के चुनाव में उन्हें कांग्रेस के रामसेवक सिंह ने हरा दिया.

2013 में पवैया ग्वालियर सीट से विधायक बने, जिसके बाद उन्हें शिवराज सरकार में शामिल किया गया. ग्वालियर बेल्ट में पवैया को सिंधिया राजपरिवार का धुर-विरोधी नेता भी माना जाता है.

राजनीतिक शक्ति बढ़ने के साथ-साथ पवैया की आर्थिक शक्ति में भी भारी बढ़ोत्तरी हुई. चुनाव आयोग में जमा हलफनामे के मुताबिक 2008 में पवैया की संपत्ति 26 लाख रुपए थी, जो 2013 में बढ़कर 87 लाख हो गई.

2014 के एफिडेविट में पवैया ने खुद की संपत्ति 88 लाख और 2018 में 1 करोड़ 26 लाख रुपए घोषित किया. यह 2008 के तुलना में 5 गुना अधिक था. हालांकि, 2018 के बाद से पवैया साइड लाइन चल रहे हैं.

वर्तमान में पवैया किसी भी बड़े पद पर नहीं हैं. 2023 के विधानसभा चुनाव में उनके लड़ने की बात कही जा रही थी, लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया.

साक्षी महाराज सच्चिदानंद साक्षी उर्फ साक्षी महाराज भी मंदिर आंदोलन के मुखर चेहरा रहे हैं. बाबरी विध्वंस के बाद जो एफआईआर हुई थी, उनमें साक्षी महाराज का भी नाम था. 

1990 में कारसेवकों पर फायरिंग के बाद 1991 के चुनाव में बीजेपी ने यूपी के धार्मिक शहरों में कट्टर हिंदू नेताओं को टिकट देने का फैसला किया. इसी फैसले के तहत महाराज को मथुरा से टिकट मिला.

महाराज इस चुनाव में जनता दल के लक्ष्मीनारायण चौधरी को 15 हजार वोटों से हराने में कामयाब रहे. इसके बाद वे मंदिर आंदोलन के सक्रिय सदस्य बन गए.

1996 में महाराज फर्रूखाबाद सीट से सांसद बने, लेकिन ब्रह्मस्वरूप द्विवेदी हत्या में नाम आने की वजह से उन्हें बाद में टिकट नहीं मिला. 1999 के चुनाव में महाराज ने सपा के लिए प्रचार किया. मुलायम ने इसके बदले 2000 में उन्हें राज्यसभा भेजा.

महाराज 2013 में फिर बीजेपी में लौट आए और 2014 के चुनाव में उन्नाव सीट से मैदान में उतरे. 2014 और 2019 का चुनाव उन्होंने उन्नाव से ही जीता.

संपत्ति की बात करें तो 2007 में साक्षी महाराज की संपत्ति 54 लाख रुपए थी. 2009 में यह बढ़कर 71 लाख पर पहुंच गई. 2014 में दिए हलफनामे में साक्षी महाराज ने खुद की संपत्ति 1 करोड़ 47 लाख रूपए घोषित की थी. 

2019 में यह बढ़कर 3 करोड़ 21 लाख रुपए हो गई. 

चंपत राय- मंदिर आंदोलन जब उफान पर था, तब वीएचपी ने चंपत राय को प्रभारी बनाकर अयोध्या भेजा था. राय मंदिर आंदोलन के मुखर चेहरा रहे हैं. मंदिर आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाने में भी राय ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

राय वर्तमान में विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव हैं. रामजन्मभूमि तीर्थक्षेत्र की स्थापना केंद्र सरकार ने की है.

बतौर महासचिव राय का काम ट्रस्ट की तरफ से राम मंदिर की व्यवस्था सुदृढ़ करना है. राजनीतिक जीवन में नहीं होने की वजह से राय की संपत्ति के बारे में कोई पब्लिक रिकॉर्ड नहीं है.

साध्वी ऋतंभरा- सीबीआई चार्जशीट के मुताबिक 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों के गुबंद पर चढ़ने से पहले साध्वी ऋतंभरा ने ही उकसावे वाला भाषण दिया था. साध्वी का यह भाषण आज भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल होता है. 

साध्वी मंदिर आंदोलन की फायरब्रांड नेता रही हैं. बाबरी विध्वंस के बाद उन पर साजिश और उकसावे का एफआईआर दर्ज हुआ था.

बाबरी विध्वंस के बाद साध्वी के भी राजनीति में आने की चर्चा थी, लेकिन वे सक्रिय राजनीति में नहीं आई. हालांकि, कई चुनावों में उन्होंने बीजेपी के लिए कैंपेन जरूर किया.

साध्वी को इसका फायदा भी मिला. 2002 में रामप्रकाश गुप्ता की सरकार ने कम कीमत पर साध्वी को मथुरा में जमीन मुहैया कराया. साध्वी ने इन जमीनों पर परमशक्तिपीठ ट्रस्ट की स्थापना की. वर्तमान में साध्वी इस पीठ की मुखिया हैं.

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